मूर्खता अभिनीत करना दुश्वार है / जयप्रकाश चौकसे

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मूर्खता अभिनीत करना दुश्वार है
प्रकाशन तिथि :15 मार्च 2018


अजय देवगन का कथन है कि मूर्ख पात्र अभिनीत करना कठिन काम है। बुद्धिमान पात्र अभिनीत करने के लिए पढ़ने का चश्मा, बालों में सफेदी और बेतरतीब बढ़ी दाढ़ी बहुत काम आती है। फ्रेन्च कट दाढ़ी आजकल लोकप्रिय है। ठोड़ी पर बाल बढ़ाने को फ्रेन्च कट कहते हैं। यह बिल्कुल बूढ़े बकरे की ठोड़ी पर उगे बालों की तरह होते हैं। सिनेमा संसार के प्रथम कवि चार्ली चैपलिन ने अपनी प्रतिभा से मूर्ख पात्रों और विद्वान पात्रों के अंतर को पाट दिया। उन्होंने उसकी पोशाक के चुनाव में भी कमाल किया है, उसका कोट तंग और पैंट ढीली है। उसका पेट खाली है फिर भी मांगे का कोट ढीला है और काम खोजते-खोजते पैर घिस गए हैं इसलिए पतलून ढीली है। चैपलिन के समकालीन बस्टर कीटन अभिनीत पात्र विशुद्ध मूर्ख होते थे। उनके पास चार्ली चैपलिन की दार्शनिकता नहीं होती थी।

पूंजीवादी अमेरिका ने साम्यवाद का हव्वा खड़ा किया था। अमेरिका इतना भयभीत था कि चार्ली चैपलिन को अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागना पड़ा। अरसे बाद अमेरिका ने चैपलिन को निमंत्रित किया और ऑस्कर से नवाजा भी। अमेरिका पुरानी ट्यूबलाइट की तरह है। बटन दबाने के बहुत बाद में उजाला होता है। आमिर खान के ताऊ नाजिर हुसैन और उनके अभिन्न मित्र सुबोध मुखर्जी दोनों ही शशधर मुखर्जी के सिनेमाई पाठशाला के छात्र रहे थे। सुबोध की फिल्म में एक मूर्ख पात्र का नाम नासिर होता था और नासिर की फिल्म में मूर्ख पात्र का नाम सुबोध होता था। इस तरह वे एक-दूसरे के साथ होली खेलते थे। एक मेहमान ने नासिर हुसैन के घर बनी बिरयानी की प्रशंसा की। बाद में उसी मेहमान ने पूछा कि वे हमेशा एक ही कहानी में थोड़ा सा परिवर्तन करके फिल्में बनाते हैं। कभी कोई नई कथा प्रस्तुत क्यों नहीं करते। नसीर साहब ने कहा कि आपको बिरयानी अच्छी लगी और पुन: आप ऐसी ही बिरयानी खाने की इच्छा भी जाहिर कर चुके हैं। वे अपनी बिरयानी की तरह अपनी फिल्में बनाते रहे। यह ऊपरवाले का खेल देखिए कि उनके अपने सगे भाई का पुत्र आमिर खान अभिनव प्रयोग करता है। उसका कॅरिअर भी दो भागों में बंटा हुआ है। 'लगान' के बाद की पारी सार्थक सिद्ध हुई है। 'लगान' ने आमिर का वैचारिक कायापलट कर दिया है। शेक्सपीअर के नाटकों में भी मूर्ख पात्र होता है परंतु उसका दृष्टिकोण दार्शनिक है। विशुद्ध मूर्ख पात्र रचना कठिन है। दादा कोंणके की फिल्मों में कभी-कभी विशुद्ध पात्र मूर्ख पात्र प्राप्त होते हैं परंतु वे फूहड़ अधिक लगते हैं। एसएस राजामौली की 'बाहुबली' तर्कहीनता का भव्य उत्सव मनाती है। यह प्रयास मूर्खता के अत्यंत निकट आता है और दार्शनिकता से पूरी तरह मुक्त है। आईएस जौहर अंग्रेजी साहित्य में एमए थे और अत्यंत विद्वान भी। उन्होंने मूर्ख पात्र रचकर सफल फिल्में बनाई हैं। उनके पास अपने पर हंसने का माद‌्दा था। उन्होंने डेविड लीन की 'लॉरेन्स ऑफ अरेबिया' में चरित्र भूमिका निभाई थी और फिल्म की सफलता पर एक दावत का आयोजन किया था। उद्‌घोषक ने उन्हें भारत का चार्ली चैपलिन कह दिया। अपनी बारी पर उन्होंने कहा कि प्राय: उन्हें अलग अलग ढंग से सम्बोधित किया जाता है जिसमें उनको मान कम दिया जाता है और किसी जीनियस का कद बौना कर दिया जाता है।

उस समारोह में उन्होंने अपने बारे में एक काल्पनिक कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि वे हमशक्ल जुड़वां भाई थे। वे स्कूल क्रिकेट में शतक बनाते और जुड़वां उनकी ट्राफी लेने पहुंच जाता था। इस तरह की कई घटनाएं हुईं परंतु एक दिन जौहर ने बदला ले लिया। हुआ कुछ यूं कि वह मर गए परंतु लोग उनके जुड़वां को दफ्ना आए। इस तरह उनका हास्यबोध विरल था। एक दौर में आईएस जौहर ने अमेरिकन फिल्म 'नॉक ऑन वुड' से प्रेरित फिल्म 'बेवकूफ' बनाई थी। अमेरिकन निर्माता ने दावा प्रस्तुत किया और मिलियन डॉलर की मांग कर डाली।

उन्होंने निर्माता को पत्र लिखकर यह बताया कि उस दौर में बनी सारी फिल्मों की जमा जोड़ कमाई भी मिलियन डॉलर नहीं होती। वह पत्र इतनी बुद्धिमानी से लिखा गया था कि निर्माता ने अपना दावा वापस ले लिया। फिल्मफेयर में वे पाठकों के प्रश्नों का जवाब देते थे और गजब का 'विट' उनके पास था। आजकल उसी तरह का काम शत्रुघ्न सिन्हा करते हैं परंतु वह बात नहीं बन पाती। सलीम साहब कहते हैं कि पागलों के इलाज के लिए पागलखाने होते हैं परंतु बेवकूफों के लिए इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। आजकल हुक्मरान बेवकूफाना काम करते हैं परन्तु उन्हें दंडित नहीं किया जा सकता। उनके वोट बैंक में कभी डाका नहीं पड़ता।