मेघना-दोसरोॅ दृश्य / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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स्थान : एक लकड़ी मिस्त्री के घोॅर।

(लकड़ी केॅ बनलोॅ-अधबनलोॅ ढेरी सब सामान बिखरलोॅ छै। मांगन मिस्त्री आपनोॅ काम करै में व्यस्त छै)

मेघना : (प्रवेश करतें हुएँ) की हो मांगन भाय। ई रंग ड़ड़खेपोॅ कहिया तांय खेपबोॅ, सब ठो उपरे-ऊपर उड़ी जाय छै की?

मांगन : की करियै मेघना, ऊपर नीचे घाघ्ेाघाघ। ऊपर वें डराय-धमकाय केॅ कम्में में लै लेॅ छै आरो नीचूु तोंय लूट आरो मोफत के मालोॅ में ढेरी मांगै छैं। फायदा हमरा कपाड़ होतोॅ। लागै छै रूखानी आरो बसुल्ला ठोंकतें हम्में यहेॅ रंग मरी जैवोॅ।

मेघना : चौआ तरें चौर लै केॅ पझड़ी लेॅ। जत्तेॅ पझड़ेॅ पारोॅ, हम्में तेॅ मजूर-बनिहार नी भेलिये मांगन भाय, हमरा मजूरी सें बेशी कहाँ मिलै छै?

मांगन : तहियोॅ बिना तोरा नजर राखलें हमरोॅ काम नै चलेॅ पारै।

मेघना : हमरा मेहनतोॅ पर तन्टा धियान दहोॅ। सौतरी से साव टोला तक जनाना-मरदाना लकड़ी काटी केॅ लानै छै। चोराय-छिपाय केॅ बेचै छै। की भाव पड़ै छै? तोंय तेॅ बसुल्ला नाकी सब टा छीली-छीली केॅ आपनें आगू में राखी लै लेॅ चाहै छोॅ।

मांगन : फायदा नै होतोॅ भाय तेॅ ई करम करला सें की लाभ?

मेघना : केना फायदा नै छै। जे गाछी के दाम तीन-चार हजार रुपया होतै ऊ तोरा हजार टाका में हम्में दै लै तैयार छिहौं। यहेॅ रंग तोरा दइयै रहलोॅ छिहौं। ई रंग सस्ता में तोरा अब तांय सैकड़ोॅ गाछ देलॅे होभोॅ।

मांगन : हम्में नै कहाँ कहै छियोॅ।

मेघना : ...आरो आवेॅ तेॅ पहाड़ी ठियाकरोॅ ई लपकोॅ जंगल खतम होय पर छै। आबे तेॅ दूर गेलोॅ पर गाहे-बगाहे बढ़िया कामोॅ लायक गाछ मिलै छै।

मांगन : हौं भाय, ई तेॅ ठीक्के कहै छै। तहियो ...?

मेघना : तहियो की? कतना ठियां पूजाय करै लेॅ पड़ै छै। तोंय ने जानै छोॅ की? ठीकेदार, सिपाही, सरकारी बड़का हाकीम अलगे। जे ऐलै वहीं एक भिसांड़ी दै देलकौं।

मांगन : ई सिनी बात छोड़ी के कामोॅ के बात करें नी। तोंय बोलतैं बड्डी छैं हों।

मेघना : दस गाछ... (सोंचते हुऐ) पाँच हजार रू। लागतौं। पाँच सौ में एक गाछ। आठ गाछ सीसम आरो दू गाछ आमोॅ के, पंजापोस आमोॅ के गाछ। अतना सस्ता में कोय नै दियै पारै।

मांगन : (हाँसै छै) लंगोटिया छेकैं। यहोॅ टा तेॅ करैं। बस, आबेॅ काम होय जैतै। सीजन आबी रैल्होॅ छै। खाय मान कमाय होय जैतै।

मेघना : ...तेॅ लान पैसा?

मांगन : काम करें नें। पैसा तेॅ देबोॅ करबोॅ रे मरदे।

मेघना : नै भाय। यै सीनी कामोॅ में पैसा आगू-पीछू नै। रोक मजूरी, चोखा काम।

मांगन : (सोची केॅ) गाछ लानी केॅ द्वारी पर दै लेॅ पड़तौ।

मेघना : नै भाय। अत्तेॅ कम पैसा में अतना जादा काम नै हुअेॅ पारतौं।

अतना पैसा तेॅ ढुवेॅ में ही लागी जैतेॅ।

मांगन : ठीक्के छै। लकड़ी ढोय लेबै हम्मीं, लेकिन द्वार तांय पहुँचै में जों कोनोॅ दिक्कत होतै तेॅ जिम्मा तोरोॅ।

मेघना : कोय दिक्कत नै होतै मांगन भाय। समूचा जंगल रो हल्का अधिकारी ही मिललोॅ छै।

मांगन : रास्ता में थाना पड़ै छै। ओकरोॅ जिम्मेदारी तोरोॅ।

मेघना : ओतनैं नै। तीन चौक भी पड़ै छै। बाज़ार के चौराहा पर सिपाही भी पकड़ै छै। लकड़ी देखथैं पैंतरा शुरु। ओकरा सब सें सलटी केॅ माल तोरा लकड़ी गोदामोॅ में पहुँची जैतें। तोहें चिन्ता नै करोॅ।

मांगन : मुखिया जी घुरतें-फुरतें गोदामोॅ पर आबी जाय छै। मनें मन लकड़ी देखै आरो भियारें छै।

मेघना : मुखिया लेली तोही काफी छोॅ। चाय-ताय पीला देलोॅ करोह।

मांगन : अच्छा ठीक छै। अखनी आधोॅ पैसा पकड़। पूरा पैसा पूरा माल एैला के बाद।

मेघना : ठीक छै। लानोॅ पैसा।

मांगन : (फेड़ा सें पैसा निकालते हुवें) पैसा तेॅ ओतना टा फेड़िये में रहै छै। ले ने भाय (पैसा दै छै) जो आरो तड़ातड़ भिड़ी जोॅ।

(मेघना अकड़तें हुवें जाय छै)