मेघना-पहिलोॅ दृश्य / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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(स्थान एक पहाड़ी गाँव)

(बिहनकोॅ समय छैं। आभी सूरज बढ़िया से उगलोॅ भी नै छै। गरमी के दिन छेकै। हवा जोर सें बहेॅ नै लागै यही लेली बुच्ची काकी धतर-पतर खाना बनाय रैल्ही छै। खाना लगभग समाप्ति पर छै। आँच बुताय केॅ काकी देहरी पर आबी केॅ खाड़ी होलोॅ छै कि मेघना आबै छै। मेघना गाँव के ही रहै वाला छेकै। भरलोॅ-पुरलोॅ स्वस्थ शरीर। रंग करिया सिलौठ। कंधा पर कुल्हाड़ी। लागै छै, लकड़ी काटै लेॅ जैंते रहेॅ)

मेघना: गोड़ लागै छियोॅ काकी। पुरकस आशीर्वाद दहीं।

काकी : लाख बरिस जियें-बचें बेटा।

मेघना : देखै छियौ काकी, धूइयाँ-धूइयाँ होय रैल्ही छैं। खाना बनी गेलोॅ की?

काकी : हों बेटा। गरमी केॅ दिन छेकै नेॅ। बेरा थोड़ोॅ बेशी उगतैं होॅ-होॅ पछिया बहेॅ लागै छै। उदम्मा घोॅर। आगिन-छाय सें बचिये केॅ रहै लेॅ लागै।

मेघना : कौन चीजोॅ सें खाना बनैलें। देखै छियोॅ आँख धूइयाँ सें लाल-लाल होय गेलोॅ छोॅ।

काकी : ज्रगलोॅ से पत्ता बिछी केॅ छोटकी लानलेॅ छेलै। आय वही सें खाना बनाय लेलियै। नै कुच्छु मिललोॅ तेॅ काका नें कोयलोॅ लानी केॅ देलै छौ। ओकरै सें खाना बनाय लेॅ छियौ।

मेघना : धौ काकी। तोंय अत्ते तरदूत कथी लेॅ करै छैं।

काकी : कैन्हें? यैं में तरदूत की? पेट लेली खाना बनैते तेॅ, थोड़ोॅ बहुत दिक्कत होबे करेॅ।

मेघना : (तिरस्कार भाव सें) घरोॅ जे बनैलेॅ छौ काका ने, भगवानेॅ रोॅ मांगलोॅ। ठाठ, बाँस, कोरोॅ कुछुवे नय। उदम्मा, एकदम उदम्मा। मुन्हां पर सें कौआ धौंस मारी केॅ भात खाय केॅ भागी जैतोॅ, पता नै चलतौ।

काकी : (दुःख सें भरी केॅ) की करियै बेटा। काका आरो हम्में दुनों कमैतें मरै छियौ, तहियौ घोॅर नै छारेॅ पारै छियौ। लकड़ियोॅ तेॅ ढेरे लागतै।

मेघना : लकड़ी तेॅ लागवेॅ करतौ। बिना लकड़ी के घोॅर बनै छै?

काकी : ई तेॅ सच्चे कहलैं बेटा। लेकिन अत्तेॅ-अत्तेॅ लकड़ी ऐतै कहाँ सें। पैसोॅ तेॅ ढेरे लागतै। अत्तेॅ पैसा छै कहाँ?

मेघना : चिन्ता नै करें काकी। हम्में आखिर कौन दिनां लेली छियै। अतना बड़ोॅ जंगल रहतें तोंय कथी लेॅ सोचै छैं। हम्में तेॅ यहेॅ कामें करै छियै।

काकी : (अचरज सें) तोंय? असकल्ले ई काम करै छैं?

मेघना : धौ काकी। तोंय नै समझबैं। हम्में असकल्लेॅ अतना बड़ोॅ जंगल केना काटेॅ पारबै। हमरा नांकी ढेरी लोग ओदावादी सें एका पर एकैस भिड़लोॅ छै। जल्दी घोॅर बनाय लेॅ। बादोॅ में लकड़ी के दर्शन नै होतोॅ।

काकी : कहै छै, जंगल सरकारोॅ के सम्पत्ति छेकै। जंगल में सरकारी आदमी रहै छै।

मेघना : सरकारी आदमी तेॅ रहतैं छै। आफिसर आरो पुलिस दोनों, तहियोॅ जंगल कटी रल्होॅ छै काकी। सरकारोॅ द्वारा जंगल के रक्षा लेली बहाल करलोॅ गेलोॅ वही आदमी घूसोॅ में पैसा लै केॅ जंगलोॅ के गाछ

कटवावै छै।

काकी : (अचरज में आँख फाड़तें हुवें) आँय...

मेघना : हों काकी! यही कमाय सें कारोॅ पर घूमै छै। मस्ती काटै छै। कत्तेॅ नी लोग दू नम्बर रोॅ यही धंधा सें पैसा वाला बनी गेलै। बड़का-बड़का लोगें ई धंधा करी केॅ शहरोॅ में बड़का मकान बनाय लेलकै। तोय झूटठेॅ डरी रहलोॅ छैं।

काकी : हमरा ई सब बूझै केॅ माथोॅ नै छौ बेटा।

मेघना : ऐकरा में माथोॅ लगावै के की बात छै। ठेकेदारें जंगल के अफसर बाबू केॅ पैसा सें पटियाय लेनें छै। ठेकेदारोॅ केॅ हम्में पटियाय केॅ काम बनाय लै छियै।

काकी : ठीक्केॅ छै। हम्में कक्का से कहबौ।

मेघना : कक्का से कहियैं, घोॅर नै बनैतोॅ तेॅ रहतोॅ कहाँ, गिदड़ोॅ के मानी में।

काकी : कहै तेॅ तोंय ठीक्के छै बेटा।

मेघना : तोंय काका सें एक सौ टाका मांगी केॅ राखिहैं, नै तेॅ कम सें कम पचास टाका। आपनोॅ आदमी छेकैं। कम्में में काम करी देबोॅ। देखै नै छैं ई कुल्हाड़ी, जंगले जाय रेल्हौॅ छियै। वही कामोॅ सें, दू गाछी में तोरोॅ उद्धार होय जैतोॅ।

(कुल्हाड़ी लै केॅ कंधा पर रखै छै। जंगल तरफ जाय छै।)