मेरे फेसबुकिया होने की व्यथा कथा / पंकज प्रसून

Gadya Kosh से
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कहानी वहाँ से शुरू होती है जब मैं फेसबुकिया नहीं हुआ करता था। क्योंकि तब मैं एक आम इंसान था। हँसता मुसकुराता। यह वह समय था जब मुझे लैपटॉप की जगह माँ की गोद प्यारी थी, जब मैं टच स्क्रीन के बजाय चरण स्पर्श करता था, जब मेरी ज़िंदगी में अहमियत पड़ोसी की थी पासवर्ड की नहीं। जब मैं अपने मोबाइल के सारे एसएमएस सहेज के रखता था, जब इनबॉक्स भर जाता था तो मैं उन मैसेजेज डायरी में नोट करके रखता था। ग्रीटिंग कार्ड्स से उतना दूर नहीं था जितना कि अब हो गया हूँ।

यह वह दौर था जब मार्क जुकरबर्ग के आविष्कार ने भारत में प्रवेश किया। और इतनी तेजी से फेसबुक ने समाज को बदला कि राजा राम मोहन राय की आत्मा भी सदमे में आ गयी होगी। यह आंदोलन तो असहयोग आंदोलन का भी बप्पा निकला। जो देश को अब तक लाइन पर न लाये थे वो सारे ऑनलाइन दिखने लगे। जो साइन तक करना नहीं जानते थे वो साइन इन और साइन आउट करने लगे। हालात ये हो गए कि आपका बैंक में एकाउंट हो न हो पर फेसबुक पर होना अनिवार्य है। वर्ना आप पिछड़े कहे जाने लगेंगे। आउट डेटेड ब्लडी इन्डियन। अगर आप सोशल नेटवर्क से नहीं जुड़े हैं तो असामाजिक कहे जाने लगेंगे। अनसोशल एलीमेंट।

मेरे कई साहित्यकार मित्रों ने फेसबुक पर अपना एकाउंट खोल लिया था। और अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार कहलाने लगे थे। उन लोगों के स्टेट्स अपडेट हो रहे थे। इससे पहले कि मैं हीन ग्रंथि का शिकार होता, लैपटॉप खरीद लाया और उसमें इंटरनेट लगवा लिया। इस तरह शुरू हो गयी मेरी फेसबुक की रेस। यानी जलने और जलाने का सतत कार्यक्रम आरम्भ।

मैंने उन मित्रों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी जो आलरेडी मेरे मित्र थे। फेसबुक पर स्वागत मेरे हमउम्र या कमउम्र वाले साहित्यकार मित्रों ने किया। बड़ी अजीब थी यह दुनिया जहाँ बड़े बड़े नामवर सिंह, जिनको मैं ‘सर’ कहता था, वह हमारे मित्र बन जाते हैं। लेकिन ये नामी साहित्यकार या संपादक हम जैसों का मित्रता प्रस्ताव तभी स्वीकार करते हैं यदि हम उनकी पत्रिका के सदस्य हों, मीडिया कर्मी हों, नौकरशाह हों या फिर प्रायोजक। मुझे दुःख हुआ जब कई ऐसे नामी-गिरामियों ने मेरे मित्रता प्रस्ताव को नहीं स्वीकार किया या स्वीकारा तो एक अरसे बाद। मार्क जुकरबर्ग को चाहिए की एक ‘सेंड फ्रेंड रिक्वेस्ट’ के साथ ‘सेंड सर रिक्वेस्ट’, सेंड मैडम रिक्वेस्ट आदि के नए विकल्प दें, जिससे ऐसे महानुभावों के अहम की तुष्टि हो सके।

मैंने उन मित्रों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी जो आलरेडी मेरे मित्र थे। फेसबुक पर स्वागत मेरे हमउम्र या कमउम्र वाले साहित्यकार मित्रों ने किया। बड़ी अजीब थी यह दुनिया जहाँ बड़े बड़े नामवर सिंह, जिनको ‘सर’ कहता था, वह हमारे मित्र बन जाते हैं। लेकिन ये नामी साहित्यकार या संपादक हम जैसों का मित्रता प्रस्ताव तभी स्वीकार करते हैं यदि हम उनकी पत्रिका के सदस्य हों, मीडिया कर्मी हों, नौकरशाह हों या फिर प्रायोजक। मुझे दुःख हुआ जब कई ऐसे नामी-गिरामियों ने मेरे मित्रता प्रस्ताव को नहीं स्वीकार किया या स्वीकारा तो एक अरसे बाद। मार्क जुकरबर्ग को चाहिए की एक ‘सेंड फ्रेंड रिक्वेस्ट’ के साथ ‘सेंड सर रिक्वेस्ट’ का एक नया विकल्प दें जिससे ऐसे महानुभावों के अहम की तुष्टि हो सके।

मित्रों की संख्या बढ़ने के साथ ही मेरी सृजन शक्ति भी बढ़ती जा रही थी। मैं दनादन अपनी रचनाएँ पोस्ट करता और फिर सारा दिन उन रचनाओं पर आ रहे कमेन्ट पढ़ता। फिर हर कमेन्ट करने वाले को धन्यवाद देता। मेरे सामान्य जीवन के ख़ास दोस्त जो मेरी रचनाओं को लाइक नहीं करते थे, उनके प्रति मन में वैमनस्य जन्म ले रहा था। मेरी रचनाओं को को लाइक करने वाले ऐसे मित्र जिनको मैं सिर्फ फेसबुक पर जानता था, मैं उनको अपना सबसे बड़ा शुभचिंतक समझने लगा। सच में अब मैं ‘दोस्त’ को नहीं बल्कि ‘पोस्ट’ को लाइक करने लगा था। मुझे खुशफहमी हो रही थी कि मैं महाकवि बनने की और अग्रसर हूँ। मैंने तमाम रचनायें जिनको छपवाकर शायद दस –बीस हजार का पुरस्कार झटक लेता, फेसबुक पर कुर्बान कर दी थीं। किताब छपने के बाद इतनी प्रतिक्रिया कहाँ मिलती जितनी कि फेसबुक पर मिली जा रही थी। किताब छपवाने के बाद समीक्षकों को तेल लगाना पड़ता है पर यहाँ तो हर दोहे की समीक्षा हो रही थी। ‘वाह वाह क्या कह दिया’, ‘अद्भुत’, ‘निराला होते तो गले लगा लेते आपको’, ’कालजयी रचना’, ‘न भूतो न भविष्यति’, ‘क्या सर्वहारा चिंतन है !मार्क्स, लेनिन, चेखव की श्रंखला में अगला नाम आपका’।

मैं साहित्य में प्रतिष्ठित भले प्रतिष्ठित नहीं हो पा रहा था पर पॉपुलर जरूर हो रहा था। मैं फेसबुक का बैक्टीरिया आँखों के रास्ते दिल में उतरा, फिर खून में। ऑफिस में मित्रों से चैट करता तो बॉस से चीटिंग। मेरी फैन फालोविंग बढ़ती जा रही थी। गौतम –गांधी को अनुयायी बनाने के लिए क्या क्या नहीं करना पड़ा, पर मेरे देखते ही देखते एक हजार फालोवर्स हो गए। मैं अपनी तुलना अमिताभ बच्चन से करने लगा। फेसबुक पर अधिकाधिक लाइक पाने के लिए फोटो पोस्ट करना आवश्यक होता है। अतः एक डिजिटल कैमरा और एंड्रॉयड मोबाइल भी खरीद लिया। फोटोशॉप भी सीख लिया। फिर क्या था मुझे और भी ज्यादा प्रसिद्धि मिलने लगी। अब मैं कवितायेँ के अनुकूल फोटो छांटता और साथ में चस्पा देता। विभिन्न मुद्राओं में फोटो। कविता पाठ करते हुए शेल्फी खींचता और तुरंत अपडेट कर देता। हालांकि यह सेल्फी मुझे सेल्फिश बना रही थी।

मैं जहाँ भी साहित्यिक गोष्ठी में जाता पल पल का अपडेट फेसबुक पर देता रहता जैसे –‘मित्रों, अभी –अभी घाटमपुर पहुँचा हूँ, प्रसिद्ध कवि लटूरी लट्ठ जी ने मेरा माल्यार्पण कर दिया है’ फिर कुछ देर बाद –‘अब मैं दस हजार की भीड़ में कविता पढ़ने जा रहा हूँ’ फिर –‘मित्रों, बहुत प्यार दिया आपने जोरदार तालियों के बीच मुझे सुना धन्यवाद’ यह धन्यवाद जहाँ पहुँचना चाहिए वहाँ नहीं पहुँच रहा था। असल में ऐसे अपडेट विरोधियों को सकते में लाने के लिए किये जाते हैं। मैं हर गाँव गली कूचे के सम्मान को अति प्रतिष्ठित बना कर अपडेट करता था-‘मित्रों, ईश्वर की असीम अनुकम्पा, बड़ों के आशीर्वाद और मित्रों के शुभकामना के फलस्वरूप मुझे निराशापुर का अत्यंत प्रतिष्ठित ‘मैकू लाल राम भरोसे सम्मान -२०१४’ प्रदान किया गया’। प्रशंसकों का आभार/’ मुझे यह मालूम न था कि जिनको मैं प्रशंसक समझ रहा हूँ वह मेरे कंपटीटर हैं।

मैं समाजसेवी बना, अनाथ बच्चों को पेन्सिल गिफ्ट की क्योंकि मुझे स्टेटस अपडेट करना था। मैं अन्ना आंदोलन में टोपी पहन एक्टिविस्ट बना क्योंकि मुझे स्टेटस अपडेट करना था। मैंने निर्भया के कातिलों को सजा दिलवाने खातिर पानी की बौछार झेली क्योंकि मुझे स्टेटस अपडेट करना था। मैंने पौधा रोपा, पर्यावरण –प्रेमी बना क्योंकि मुझे स्टेटस अपडेट करना था। मैंने गरीब बस्ती की मुआयना किया क्योंकि मुझे स्टेटस अपडेट करता था। मैं टूरिस्ट बना, श्रीनगर चला गया इसलिए नहीं की श्रीनगर मुझे आकर्षित करता है बल्कि इसलिए की मुझे फोटो डालकर स्टेटस अपडेट करना था। शोपिंग माल, डिस्कोथेक, क्लब गया। प्रोफाइल वालों के साथ फोटो खिंचवाई और प्रोफाइल फोटो बनायी। थ्री स्टार होटल में रुका। स्वीमिंग पूल में नहाते हुए फोटो लगाकर स्टेट्स अपडेट किया। पुरी गया तो समंदर में नहाते हुए फोटो खिंचवायी और स्टेटस अपडेट किया।

मैं धीरे धीरे अपना स्टेटस बढ़ाने लगा। जिसका परिणाम हुआ की मेरी कविताओं को लाइक न करने वाली महिलाएं मेरी फोटो लाइक करने लगीं। मेरी इन संस्कारित अपडेट्स के फलस्वरूप फ़्रेंड लिस्ट में महिलाओं की संख्या ताबड़तोड़ बढ़ने लगी। मेरे पास अक्सर कॉलेज जाने वाली लड्कियों के मैसेज आते कि आप कवि हैं तो मेरे ऊपर कोई कविता लिख दीजिए न। यह कवितायेँ आई ब्रो, हेयर स्टाइल, हॉट लुक आदि के इर्द गिर्द बुननी रहती थीं। आधुनिक नायिका का नख शिख वर्णन यही था। मैं चाहता तो अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा ‘नायिका प्रसस्ति गान’ में लगा सकता था। पर मुई एक ने भी अपना मोबाइल नंबर नहीं दिया तो मुझे अक्ल आ गयी। एक ही कविता लिखता था और सबसे बोलता था कि मोहतरमा, आप के लिए ही लिखी है। फेसबुक की वाल असल में प्यार के बीच दीवार का काम कर रही थी। यह दीवार गिरे तब तो मोबाइल नंबर मिले। नतीजन मिस यू, हैव अ नाईस डे।, गुड नाईट, स्वीट ड्रीम, टेक केयर के आगे बात बढ़ नहीं पायी। ज्ञान प्राप्त हुआ कि ऑनलाइन दिखने वाली लड़कियों को लाइन पर लाने के लिए स्टेटस अपडेट के बजाय अपना स्तर गिराना पड़ता है। ऐसी लड़कियों की प्रोफाइल फोटो प्रायः स्वाभिमानी प्रेमियों के लैपटॉप का स्क्रीन सेवर बन जाती है और उसका नाम पासवर्ड।

इस तरह के पुनीत अनुष्ठानों के लिए आपको अपना स्टेटस सिंगल दिखाना अनिवार्य होता है। एक बार मैंने ‘इन अ रिलेशनशिप’ दिखा दिया तो बवाल मच गया। किसके साथ ?कहाँ ? कब ? कौन है वो खुशनसीब? सैकड़ों कमेन्ट आ गए। मानो कोई राष्ट्रव्यापी मुद्दा हो गया हो, , कुछ दिनों के लिए लगा मैं मैं इन्सान से सलमान बन गया हूँ। कई दिनों बाद मैंने खुलासा किया कि मैं चाचा बना हूँ। और अपने भतीजे के साथ रिलेशनशिप में हूँ। इसी तरह एक बार अपडेट किया ‘गोट एनगेज्ड’। फिर तमाम सारे प्रश्नवाचक कमेन्ट आये। मैंने बताया -‘भाई आजकल नौकरी मिली है, एंगेज रहने लगा हूँ’।

। मेरे मित्रों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। जब संख्या बल बढ़ता है तो अहम का भाव खुद ब खुद जाग्रत हो जाता है। मेरे कई बाहुबली मित्रों के अंदर ऐसे भाव पहले ही आ चुके थे, ऐसा मैं फेसबुक से प्राप्त तत्व ज्ञान के आधार पर कह रहा हूँ। फेसबुकियों को उनके फेस-कर्म के आधार पर निम्न श्रेणियों में बाँट रहा हूँ -

1. कट्टर पंथी फेसबुकिये: ये ऐसे लोग होते हैं जिन्हें अपनी वाल पर दूसरे की पोस्ट गंवारा नहीं होती। क्या मजाल किसी की जो इनकी दीवार को छू सके। ऐसी सेटिंग लगा देते हैं कि आप इनकी वाल पर कुछ भी टैग, शेयर आदि नहीं कर सकते। परन्तु जब इनको कोई उपलब्धि बतानी होती है तो जबरदस्ती आपको टैग कर देते हैं। ये अपने से लोप्रोफाइल वाले फेसबुकियों की पोस्ट पर कभी लाइक या कमेन्ट नहीं करते। जबकि आपसे यह उम्मीद करते हैं कि इनकी घटिया से घटिया पोस्ट पर भी आप शानदार कमेन्ट दें। जिससे इनकी गरिमा में श्री वृद्धि हो। ऐसा नहीं कि ये बिरादरी किसी की पोस्ट शेयर नहीं करती। करती है, अपने से हाई प्रोफाइल वालों की। उनके सम्मान में कसीदे गढ़ते हुए। ऐसे लोग प्रायः सामान्य जीवन नहीं जी पाते हैं।

2. उदार पंथी फेसबुकिये: ये उदार हृदय वाले लोग होते हैं जो दूसरे की पोस्ट को बिना किसी झिझक के अपनी वाल पर शेयर कर लेते हैं। कमेन्ट करते हैं लाइक करते हैं। ऐसे लोग प्रायः साहित्यकार नहीं होते। इनको पब्लिक फीगर बनने की चाह भी नहीं होती। ये किसी गुट विशेष से ताल्लुक नहीं रखते। ये प्रायः सामान्य जीवन जीने वाले लोग होते हैं।

3. स्वार्थी फेसबुकिये: ये आपकी पोस्ट को लाइक इसलिए नहीं करते कि आपकी पोस्ट बहुत बढ़िया है, बल्कि इसलिए कि आप भी इनकी पोस्ट को लाइक करें। यदि कुछ दिनों तक आपने रिस्पोंस नहीं दिया तो ये आपको अनफ़्रेंड भी कर सकते हैं।

4. छद्म फेस बुकिये: ये उँगलीबाल लोग होते हैं जो छद्म नामों से अपनी प्रोफाइल बनाते हैं फिर किसी गुट विशेष को निशाने पर लेते हुए उसकी भरसक आलोचना करते हैं। ऐसे फेसबुकिये प्रायोजित भी होते हैं।

मैं उपरोक्त में किस श्रेणी का फेसबुकिया हूँ यह निष्कर्ष मैं आपको क्यों बताऊँ? क्योंकि निष्कर्ष हमेशा खुद को परे रखकर ही दिया जाता है। अलबत्ता यह जरूर बताना चाहूँगा कि फेसबुक ने मुझे बहुत कुछ दिया है तो काफी कुछ छीना भी है। उसने मुझसे कराची का मुशायरा छीन लिया। कारण सिर्फ इतना था कि मैंने संयोजक जी द्वारा पोस्ट किये गए एक अशआर पर ‘मुक़र्रर’, ‘आफरीन’ जैसा कुछ नहीं लिखा था। लेकिन मुझे विश्वास है कि अगले मुशायरे में मेरा बुलावा ज़रूर आएगा क्योंकि मैं उनका हर अशआर अपनी वाल पर शेयर करने लगा हूँ मरहवा –मरहवा लिखते हुए। मुझे लगता है ऐसा करके मैं संयोजक को एक न एक दिन खुश कर ले जाउंगा।

आज चार साल बाद कहने को मेरे पांच हज़ार मित्र हैं फिर भी अकेला हूँ। फेसबुक की नजदीकियों ने धीरे धीरे प्यार में दूरियां बना दीं। इस कदर बनावटी फोटो अपलोड किये कि मेरा वास्तविक स्वरूप ही खो गया है। अपनी प्रोफाइल फोटो से खुद के चेहरे का मिलान करता हूँ तो पाता हूँ मैं और मेरी और प्रोफाइल फोटो दोनों अलग –अलग सख्श हैं। एक का जब स्टेटस अपडेट होता है तो दूसरे का स्तर गिरता है। मैं सुकून का अनुभव तब करूँगा जब फेसबुक के मैसेज बॉक्स में मिलने वाली हजारों बर्थ डे विशेज के बजाय कोई एक ग्रीटिंग लेटर बॉक्स से आएगा। जब चैट के बजाय कोई चिट्ठी आयेगी। जब मैं सात समंदर पार फ़्रेंड रिक्वेस्ट भेजने के बजाय गाँव के दोस्त से मिलने जाऊँगा। जब मैं फेस बुक पर फ्लर्टिंग करने के बजाय गाँव की सावली अप्सरा से फेस टू फेस मनुहार करूँगा। जब मैं ‘आन लाइन मिलो सजना’ के बजाय ‘आन मिलो सजना’ कह सकूंगा।

यकीन मानिए ऐसा सब करने के दौरान मैं अपना स्टेटस कतई अपडेट नहीं करूँगा। मेरा आख़िरी अपडेट यह है –‘अलविदा मित्रों !मैं अपनी वास्तविक दुनिया में वापस जा रहा हूँ। ’

देखता हूँ इस पोस्ट पर कितने लाइक और कमेन्ट आते हैं।