मैं लिख दूँगा / प्रतिभा सक्सेना

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हमने सुना है इस बीरन सिंग ने भाषण लिखने का काम तुम्हें सौंपा है?

हाँ मुझसे कहा गया है। लिख दूँगा, जाने कित्ते भाषण लिखे हैं। इन चुनाव लड़नेवाल अक्कल के पीछे लट्ट लै के घूमत हैं, औरों के दम पर पलते हैं

लिख तो तुम दोगे, वाहवाही उनकी करवाओगे। और पता है इस आदमी ने किया क्या है?

क्या किया?

क्या नहीं किया उसने ये पूछो उसमें। हमारी गाँव की ज़मीन हथिया ली इसने। जाने कितने गुंडों का पाल रखा है,

अच्छा!

और तुम मेरे दोस्त, उसी की वाह-वाही कराओगे?

तुम चाहते क्या हो?

पिटे या मुँह काला करके जाए यहाँ से।

पढ़ा-लिखा है?

आठवीं पास। पैसे और गुंडों के बल पर बना बैठा है।

जाओ, हो जाएगा तुम्हारा काम।

कैसे?

सब समझा दूँगा।


दूसरा दृष्य (उम्मीदवार के भाषण का ताम-झाम)

एक आदमी -, काहे कित्ती देर हैं, बीरन बाबू अभै आये नहीं?

दूसरा- चल पड़े हैं हुअन से। बस पाँचै मिन्ट में पहुँचन वारे हैं।

तैयारी तो पूरी है।

हम होयँ और काम में कसर रहि जाय। अइस कइस हुइ सकत है।

अरे ये लाठा-आठी कहे को,

गाँव के लोग लाठी बिना कइस चलें। मारग में कुत्ता, पीछे लगि जाय तौन।

एक -अरे ऊ तो हमार गाम केर मानुस है, नेताजी का गाँव। निसाखातिर रहो।

लो, आगए, आ गए।

सब चुप होकर बैठ गए।

नेता जी ने अपना भाषण शुरू किया, ’मैं सालों से यही कहता रहा हूँ कि आज जो। । '

आगे की तीसरी पंक्ति से एक आदमी चिल्लाया, ’गाली दे रहा है, देखो तो जरा!

एक और चिल्लाया -हम भाषण सुनने आये हैं -गाली-गलौज सुनने नहीं!

क्या कहा?

साला-साला कह रहा है सबन को।

सच्ची?

अरे अभी तो कहा, कहो फिर कह दे।

हमें साला कह रहा है। । । दो तीन लोग उठ कर खड़े हो गये -क्या कहा, क्या कहा। ?

अरे अभी अभी तो कहा।

क्या बात है भई, पीछे आवाज़ नहीं जा रही क्या? । ।

फिर से कहिये। कुछ लोगों ने नहीं सुना।

मंत्री जी और ज़ोश से चिल्लाये, ’सालों से कह रहा हूँ। अब तो सुनाई दे रहा है?’

उन्होंने फिर से भाषण शुरू किया, हाँ तो ज़ोर-जोर से बोल रहा हूँ कि सब सुन लें, मैं यही बात सालों से कह रहा हूँ

क्या कह रहे हो मंत्री जी। फिर से तो कहना -

अरे चीख़-चीख कर कह रह हूँ -सालों से कह रहा हूँ हाँ, सालों से।

देखा, बराबर कहे जा रहा है!

हाँ, बराबर गाली दिए जा रहा है। । हम लोग चुप्पै सुनते रहेंगे का इनकी गालियाँ?

क्यों महावीरे?

महावीरे के साथ दो-चार लोग और उठ खड़े हुए।

एक चिल्लाया-हम गालियाँ सुनने नहीं आए हैं।

बैठों में से किसी ने पूछा-हाँ, सच्ची गाली दे रहा है

और क्या झूठ बोल रहे हैं हम? लेओ फिर से सुनवाए देते हैं।

स्टेज से मंत्री चिल्लाए। ये क्या गड़बड़ हो रहा है, आप लोग चुप्पे सुनिए हम बड़े मार्के की बात कहने वाले हैं

सुरू वाला इन लोगन ने सुन नहीं पाया सो मार चिल्लाय रहे हैं,

सुरू की लाइने फिर से बोल देओ

ओहो, कित्ती बार कहें कही बात? , चलो फिर से कहे दे रहे हैं, अब साफ़ सुन लेना सालों से। । ।

फिर तो हल्ला मच गया। लोग खड़े होने लगे।

कुछ लोग स्टेज पर चढ़ गए। अफरा-तफ़री मच गई। घेर लिया उन लोगो ने।

नेता चिल्ला रहे हैं। सफ़ाई दे रहै हैं कौनो नहीं सुन रहा, कुछ तो बड़े उत्तेजित हैं।

वे गिड़गिड़ा रहे हैं- हमार ई मतबल नहीं रहे।

हाथ जोड़े घिघिया रहे हैं। उन्हें बचानेवाले, पुलिसवाले सब भकुआए इधर-उधऱ भाग रहे हैं।

ई नेता की दुम पबलिक का गाली देता है।

हो रही है मरम्मत मंच से नीचे खींच कर। पुलिस छुड़ाए-बचाए तब तक गत बना डाली लोगन ने।

दोनों दोस्त किनारे खड़े हैं।

क्यों, अब तो खुश, हो गई मंशा पूरी?

कमाल कर दिया!

आज तुम्हार अक्कल का लोहा मान गए।

चलो अब काफ़ी हो गया।

फिर दोनों लोग पहुँच गए और लोगों से छुड़ा लाए नेता को, चच्, चच् करते सहानुभूति दिखाते।

'अरे ई लोग ठहरे गँवार, आप कहाँ ढँग की बात कहि रहे हो। चलिए चलिए। सब उजड्ड हैं... कौनो बात करने लायक नहीं’

ले गए नेता जी को हल्दी डाल के गरम दूध पिलाने।