मैं हूँ दोस्त तुम्हारी / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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'भारी बारिश के कारण स्कूल दो दिनों के लिए बंद रहेगा।' टिन्नी की स्कूल बस के ड्राइवर अंकल का फ़ोन था। यह सुनकर टिन्नी और उसका छोटा भाई रोहन ख़ुशी से उछल पड़े। मम्मी ने रसोई से ही आवाज़ लगाई-"धमा-चैकड़ी बंद करो। पढ़ाई करो।" टिन्नी चहकते हुए बोली-"ममा। होमवर्क कंपलीट है। अब दो दिनों तक नो होमवर्क, नो स्टडी।" मम्मी ने कहा-"ठीक है। मैं रसोई की सफ़ाई करती हूँ। तब तक तुम दोनों रूम्स की सफ़ाई करो। उसके बाद तुम्हें किशमिश वाला हलुवा बनाकर खिलाती हूँ।"

रोहन टिन्नी से बोला-"मैं छोटा हूँ। मैं छोटा रूम साफ़ करता हूँ। आप बड़ी हो। आप बड़ा रूम साफ़ करोगी। ड्राइंगरूम भी। देखते हैं, कौन पहले कंपलीट करता है।" टिन्नी हंस पड़ी। आंखें मटकाते हुए बोली-"अच्छा बच्चू। यहाँ भी होशियारी। चल फिर भी, मुझे तेरा चेलेंज स्वीकार है।" छोटे कमरे की सफ़ाई करते-करते रोहन को कुर्सी के पीछे बाॅल मिल गई। वह सफ़ाई छोड़कर बाॅल से खेलने लगा। टिन्नी ने पहले बड़ा कमरा साफ़ किया। अब वह ड्राइंगरूम को साफ़ करने लगी। तभी उसकी नज़र छत के एक कोने पर पड़ी। एक मकड़ी अपने जाले पर झूल रही थी।

"संडे को तो मैंने झाड़ू से जाला साफ़ कर दिया था। इस मकड़ी ने फिर जाला बना डाला! आज इस मकड़ी की खैर नहीं।" टिन्नी ने हाथ में झाड़ू उठा लिया। ड्राइंगरूम की छत ऊंची थी। टिन्नी ने मेज सरकाई। मेज के ऊपर कुर्सी रखी और उस पर चढ़ गई। पर यह क्या! कुर्सी को मेज पर रखते-रखते वह झाड़ू फ़र्श पर ही छोड़ गई थी। टिन्नी संतुलन बनाते हुए वह कुर्सी से नीचे उतर ही रही थी कि उसके पैर डगमगा गए। वह धम्म से फ़र्श पर आ गिरी। फ़र्श पर कालीन बिछा था। टिन्नी ने दांये हाथ में झाड़ू पकड़ा और सावधानी से मेज पर चढ़ते हुए दोबारा कुर्सी पर चढ़ने लगी।

"चोट तो नहीं लगी? ज़रा सावधानी से।"

'कौन?' टिन्नी बुदबुदाई।

'मम्मी तो रसोई में है। रोहन छोटे वाले रूम में है। तो फिर मेरे कानों के नज़दीक ये कौन बोला?' टिन्नी यहां-वहाँ देखने लगी। तभी कोने की दीवारों में बना जाला हिला और मकड़ी ने हवा में छलांग लगाई। वह किसी अदृश्य झूले में झूलते हुए फिर टिन्नी के कान के पास से गुजरी और धीरे से बोली-"ये कि हम बोले। हम यानी वो, जिसका जाला तुम दो बार तोड़ चुकी हो। आज फिर से तोड़ने की तैयारी में जुटी हो।" दूसरे ही क्षण मकड़ी अपने जाले में जाकर बैठ गई।

"मैं तुम्हारा जाला तोड़ रही हूँ और तुम हो कि मेरी परवाह करते हुए पूछ रही हो कि चोट तो नहीं लगी। ज़रा सावधानी से। यही कहा था न तुमने?"

"हाँ। मैंने यही कहा था। मेरी तरह तुम्हारे पास मज़बूत जाला तो है नहीं कि तुम इतनी ऊंचाई से आसानी से नीचे उतर सको। मेरा तो घर भी यही है और रसोई भी।"

"लेकिन तुम तो दूसरों को जाल में फंसाती हो और फिर उन्हें मारकर खा जाती हो। तुम बुरी हो इसलिए मैं तुम्हारा जाला बार-बार हटाती हूँ। तुम हो कि बार-बार बना देती हो।"

"मैं जाल मंे किसी को नहीं फंसाती हूँ। वह मेरे घर में आ घुसते हैं। बस मैं दौड़कर अपने शिकार को मार डालती हूँ।"

"आप भी तो हमारे घर में आ घुसी हो। मैं आपको मार डालूं तो?"

"मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? वैसे मैं भी क्या करूं? मैं उस जगह में ही तो अपना जाला बनाऊंगी, जहाँ मुझे भोजन मिलेगा। आपके घर में मुझे कीट-पतंगे और मक्खियाँ मिलती हैं। मैं तो अपने शिकार के शरीर से पोषक रस ही चूस पाती हूँ। मैं तुम्हारी तरह ठोस भोजन नहीं खा सकती। वैसे तुम मेरा जाला तोड़कर एक तरह से मुझे मार ही तो रही हो। जबकि मैं तुम्हारी दोस्त हूँ।"

"दोस्त हो? तुमसे कौन दोस्ती करेगा? तुम तो विषैली हो?"

"हाँ मैं विषैली हूँ। पर कीट-पंतगों और मक्खियों के लिए। तुम्हारी तरह बहुत हैं, जो यह नहीं जानते कि मेरी जैसी घरेलू मकड़ियों का विष तुम पर असर नहीं करता। फिर भी मुझे तुम मारना चाहती हो? जबकि मैं तुम्हारी दोस्त हूँ।"

"तुम मेरी दोस्त कैसे हो सकती हो?"

"बताती हूँ। मैं अगर कीट-पतंगों को अपना शिकार न बनाऊँ तो वे बढ़ते चले जाएंगे। मैं मच्छरों और विषैले कीटों को खाती हूँ। मेरे बारीक रेशमी तंतुओं से आॅप्टिकल उपकरणों के महीन तार बनते हैं। यही नहीं फसलों और तुम्हारे शरीर को नुक़सान पहुँचाने वाले कीटों को भी तो मैं खाती हूँ। तो बताओं, मैं तुम्हारी दुश्मन हुई कि दोस्त?"

"लेकिन, फिर भी। घर में जाले कोई क्यों पसंद करेगा?"

"अरे। साफ-सफाई रखने को कौन मना कर रहा है। मेरी जैसी मकड़ियाँ वहीं तो रहेंगी, जहाँ उन्हें शिकार मिलेगा। यदि यहाँ शिकार न मिले तो मैं कहीं ओर अपना डेरा बना लूंगी। लेकिन इतना समझ लो कि हम मकड़िया रीढ़ वाले जीवों की दोस्त हैं।"

"अरे! ये क्या कर रही हो। गिरोगी क्या? चलो छोड़ो इस झाड़ू को। हलुवा बन चुका है। साफ-सफाई मैं अपने आप करती हूँ।" मम्मी रसोई से सीधे ड्राइंगरूम में आ गई। मम्मी मेज-कुर्सियाँ ठीक कर रही थी और टिन्नी मकड़ी को देखकर मुस्करा रही थी। वहीं रोहन रसोई में पहुँच चुका था। कमरों की सफ़ाई करने का कंपीटीशन वे दोनों ही भूल चुके थे।