मोटा नजरिया और बारीकियों की रचना / जयप्रकाश चौकसे

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मोटा नजरिया और बारीकियों की रचना
प्रकाशन तिथि : 04 नवम्बर 2013


दीपावली उत्सव पर अनेक सितारों के घर भव्य दावतें की गईं और कुछ समान अतिथि एक दावत से दूसरी दावत में पहुंचे। गोयाकि कहीं पिया, कहीं खाया, किसी के साथ गए और किसी के साथ लौटे। बहरहाल उत्सव पर दावतें दी जाती हैं। परंतु कहीं?कहीं राकेश रोशन की 'कृष3' के अपेक्षित भीड़ नहीं जुटा पाने का जश्न भी मनाया गया और जानकार अनजान बन गए कि बॉक्स आफिस पर वर्ष के सबसे नरम दिन उत्सव के तीन दिन होते हैं, धनतेरस, काली चौदस और दिवाली। सारे परिवार पूजापाठ और रिश्तेदारी निभाने में व्यस्त होते हैं तथा सिनेमाघरों में भीड़ आती है दिवाली के बाद वाले दिन से। इन तीन बॉक्स ऑफिस पर कमजोर माने जाने वाले दिनों में भी कृष3 ने 60 करोड़ से अधिक एकत्रित किए हैं। परंतु यही फिल्म अगर सोमवार को प्रदर्शित होती तो पहले दिन ही 45 करोड़ की आय प्राप्त करती और उस तरह के सप्ताह का सातवां दिन इतवार होता तो सात दिन में 200 करोड़ का व्यवसाय होता। राकेश रोशन यही करना चाहते थे परंतु मल्टीप्लैक्स श्रंृखला और विदेशी वितरक के दबाव में उन्हें फैसला बदलना पड़ा।

गौरतलब यह है कि एक भव्य व्यावसायिक फिल्म को हाउस फुल में जो प्रतिक्रिया मिलती है वह कम दर्शकों से नहीं प्राप्त होती। एक ही फिल्म को दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं मिलती हैं। यही कमोबेश श्रेष्ठ गुणव?ाा की फिल्मों के साथ भी होता है। सत्यजीत रॉय की पहली फिल्म 'पाथेर पांचाली' खाली सिनेमाघर में देखी जा रही थी, तो एक छोड़कर सभी निर्णायक सो गए। उस एक निर्णायक ने दुबारा सभी से फिल्म देखने का आग्रह किया और मानवीय करुणा के इस गीत को शिखर पुरस्कार मिला। यह मनोविज्ञान नेता भी जानते हैं, इसलिए भव्य भीड़ जुटाने के अलग तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। जनसभाओं का विशेष लेंस से शूट करने पर यथार्थ में मौजूद भीड़ कई गुना अधिक दिखाई जा सकती है। आज मॉस मैन्यूफैक्चरिंग के युग में 'सत्य' भी पैदा किया जा सकता है।

सारे तमाशों की जान तमाशबीन हैं और तमाशबीन की तालियां कहीं और ऊर्जा बनकर बहती हैं। वह अपनी ताकत से बेखबर और कई बार वह स्वयं अपनी तालियों पर भी मुग्ध हो जाता है। अवाम की पसंद का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह कोई नहीं जानता इसलिए समर्पित फिल्मकार अपना काम पूरी मेहनत से करता है। वह जानता है कि उसके द्वारा रची कुछ बारीकियां संभवत: नजरअंदाज कर दी जाएं, परंतु वह कोई कसर नहीं छोडऩा चाहता। मसलन कृष3 में काया का पहला दृश्य काल की प्रयोगशाला में भी हो सकता था कि किस तरह वह नित्य रंग बदलने वाले गिरगिट और मनुष्य के डीएनए के मिश्रण से बनी है। परंतु राकेश नेे इस 'अजूबे' के जन्म से पहले उसका 'प्रभाव' दिखाया। एक वैज्ञानिक अपने कक्ष में प्रवेश करता है तो वहां अजनबी खूबसूरत सुडौल जिस्म प्रदर्शित करती काया कहती है, 'मेरा कोई अतीत नहीं पर इरादा है', वह अचंभित वैज्ञानिक की पीठ की ओर से सामने आते ही उसी वैज्ञानिक की शक्ल में उसके सामने खड़ी है। उसकी अपनी कंपनी काएक व्यक्ति सारे गुनाहों का सबूत लेकर आता है और उसी 'वैज्ञानिक' को देता है और वह अपने असल रूप में आकर उसके पेट के भीतर छूरे जैसे हाथ डालती है तो इस पात्र की पीठ का एक शॉट है जिसमें ऐसा प्रभाव है मानो उसके जिस्म में सांप रेंग रहा है। यह क्षणांश की डिटेल है और उसे रचने में बहुत परिश्रम किया गया है। दरअसल किसी भी क्षेत्र में यह आवश्यक है कि हम अपना सर्वश्रेष्ठ रचें।

हाउस फुल में एक अदृश्य लहर चलती है और यह भारतीय सिनेमा की विशेषता है कि एक ही दृश्य पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक तालियां पड़ती हैं। यह कोई कम बात नहीं है कि देश की अखंडता कम से कम इस रूप में तो मुखर है। सिनेमाघर में दर्शक अपनी अविश्वास की भावना को तज कर आता है और परदे पर प्रस्तुत में रमकर आनंद लेता है। गौरतलब है क्या खाली सिनेमाघर में यह 'लहर' नहीं चलती और इस जादू के असर के लिए हाउस फुल आवश्यक है। क्या मनुष्यों की निकटता से कोई ऊर्जा जन्म लेती है जिसमें लहर चल सकती है। फिल्मकार भी अपने दृश्यों को इस ढंग से जोड़ता है कि उनमें एक लय पैदा हो, मसलन 'कृष3' मं डॉ. रोहित काल से कहते हैं कि उसे अकेला न समझे और अगले शॉट में काया और कृष स्केटिंग करते आ रहे हैं। खलनायक की पराजय की संकेत दर्शक को खुश कर देता है और लहर चलती है। राकेश रोशन ने अपनी तीनों विज्ञान फंतासी में सूर्य के ताप को केंद्रीय ऊर्जा की तरह रचा है।