मोह पाश / शोभना 'श्याम'

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"रोज रोज की चिकचिक से कोई फायदा नहीं राजे, कान खोल कर सुन लो तुम सब! मैं अपने जीते जी इस घर को छोड़ कर नहीं जाऊँगी। इसी घर में मुझे ब्याह कर लाये थे वह, इस घर में हमारी गृहस्थी के एक-एक पल की यादें बसी हुई है। उनके न रहने पर भी आज तक यहाँ उनके होने का अहसास होता है मुझे ... और फिर यहाँ मोहल्ले पड़ोस में मेरी संगी-साथिन हैं, मंदिर हैं, जहाँ सब कीर्तन करते हैं, सत्संग होता हैं। वहाँ नयी जगह मेरा मन कैसे लगेगा, तुम सब तो लग जाओगे अपने-अपने काम में। मैं किसके साथ बोलूंगी, बैठूंगी?"

"अम्मा, नयी जगह तो हम सब के लिए हैं न, धीरे-धीरे वह भी अपनी हो जाएगी। शहर के बीचों-बीच इतनी बढ़िया जगह इतना बड़ा सरकारी आवास किस्मत से मिलता हैं, बच्चे कितने खुश हैं वहाँ जाने के नाम से ... अम्मा अब बच्चे बड़े हो रहे हैं, अब उन्हें पढाई के लिए अपने अलग कमरों की ज़रुरत पड़ेगी। ये घर कितना छोटा हैं, बच्चों को असुविधा होती हैं। यहाँ गली में कार भी नहीं आ सकती, बाहर पार्किंग में खड़ी करनी पड़ती हैं और वहाँ तक पैदल जाना पड़ता हैं। हारी-बीमारी में कितनी परेशानी होती हैं, अम्मा तुम समझती क्यों नहीं...?"

"अरे! इसी छोटे से घर में हमने तो पांच बच्चे पाल लिए। तुम्हारे दो बच्चों के लिए छोटा हैं? तुम पांचो बहन भाई क्या पढ़े लिखे नहीं? सब के सब सरकारी अफसर इसी घर में पढाई कर के बने हो, क्या तुम कभी बीमार नहीं पड़े? क्या तुम्हारा इलाज नहीं हुआ? यहाँ तो सब पडोसी अपने हैं, दुःख सुख में भागे चले आते हैं।"

अम्मा, अम्मा वह ज़माना और था, तब कॅरिअर बनाने में इतनी प्रतियोगिता नहीं थी, आज हमारे बच्चों के लिए सरकारी नौकरी तो बची ही नहीं हैं, आज इन्हें कुछ बनने के लिए दिन रात एक करना पड़ता हैं । अच्छा आप ही बताओ तब घर में इतने उपकरण थे बिजली के? इतना फर्नीचर होता था? चौबीस घंटे टीवी चलाती थी तुम, जैसे तुम्हारी बहु चलाती हैं? आस पास से कहीं तेज रेडियो तो कहीं चीखने चिल्लाने की आवाजें आती हैं, कैसे पढ़ें बच्चे इस शोर शराबे में? अम्मा मान भी जाओ, बड़ा घर उपलब्ध होते हुए भी छोटे घर में परेशानी उठा कर रहना कहाँ की समझदारी हैं? ..."

तभी द्वारी से एक वार्तालाप सुनाई दिया।

नेहा, तुम लोग तो मंडी हाउस की गवर्नमेंट अकोमोडेशन में जाने वाले हो न, बहुत बढ़िया जगह हैं यार मेट्रो भी हैं वहाँ, तुम लोगों की तो ऐश हो जाएगी! "

"नहीं यार, हम अभी नहीं जा रहे, दादी की डेथ के बाद जायेंगे"

एक पल को स्तब्ध अम्मा अपने पल्लू से चेहरा पोछते हुए बोलीं, -आजकल कनागत चल रहे है न नौरातों में चलेंगे नए घर में। "