यश का शिकंजा / भाग 6 / यशवंत कोठारी

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अभी सुबह हुई है। सुरज ने धूप के कुछ टुकड़े राव साहब की खिड़की से अंदर फेंके। राव साहब को बुरा लगा - यह हिम्मत किसने की है। जब आँखें पूरी खुलीं, खुमारी कम हुई तो धूप को देखकर चुप्पी साध गए। समझ गए, इस धूप का वे कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

प्रातःकालीन अखबार, जरूरी रिपोर्टें उनके पास पहुँचाई गईं। चाय की चुस्कियों के साथ उन्होंने पारायण शुरू किया। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था, ये सब क्या हो रहा है? उन्हें रानाडे को उपप्रधानमंत्री बनाना पड़ा। सुराणा और मनसुखानी को वरिष्ठ विभाग देने पड़े। ऐसा क्यों और कब तक...?

आखिर क्यों? क्या वे इतने शक्तिहीन हो गए? राज्यों में सरकारें गिराई जा रही हैं। दल में किसी भी समय विभाजन हो सकता है। तमाम प्रयासों के बावजूद वे शायद दलीय विघटन को नहीं रोक सकेंगे...।

प्रदेशों में अकाल और भूख से लोगों के मरने के समाचार हैं। खुद उनके ही क्षेत्र में लगभग 100 लोग भूख से मर गए। एक विदेशी समाचार-एजेन्सी के अनुसार, आदिवासियों में और ज्यादा लोगों के मरने के समाचार हैं।

विदेशों से लगातार दबाव आ रहा है, विदेशों से आयातित सामान निरंतर कम आ रहा है। पेट्रोलियम और कच्चा तेल निर्यातक देशों की सरकारों के दबाव के कारण केंद्रीय सरकार और राव साहब परेशान हैं।

इधर विद्यार्थियों ने देशव्यापी आंदोलन छेड़ दिया - 'डिग्री नहीं, रेाजगार चाहिए।'

'नारे नहीं, रोटी चाहिए।'

कुछ विरोधी दलों के नेता भी इन छात्रों के साथ थे। रामास्वामी ने तो खुलकर इन छात्रों का साथ देना शुरू कर दिया। विश्वविद्यालयों में घिनौनी राजनीति के कारण कुलपतियों ने इस्तीफा दे दिया। कुछ विश्वविद्यालयों को पूरे सत्र के लिए बंद करना पड़ा।

छात्रों और युवा वर्ग के लोगों की बन आई। पुलिस-आंदोलन के कारण पुलिस से सरकार और जनता दोनों का भरोसा उठ गया।

अब हर काम में लोग छात्रों की मदद लेते। राशन नहीं मिला - छात्रों ने जिलाधीश को घेर लिया। ऐसी घटनाएँ आम हो गईं। राह चलते डाके, नकबजनी, बलात्कार आदि की घटनाएँ होने लगीं। भ्रष्टाचार तेजी से पनपने लगा। इससे क्रुद्ध होकर छात्रों और युवा संगठनों ने भ्रष्ट व्यक्तियों का सिर मुँड़ा कर नागरिक अभिनंदन करना शुरू किया। ऐसा लगता ही नहीं कि कानून और व्यवस्था नाम की कोई चीज है।

समाज में तरह-तरह के प्रतिप्ठित और नैतिक दृष्टि से उच्च वर्ग के लोगों ने अपने संगठन बनाने शुरू कर दिए।

अगर कहीं छात्रों और युवा वर्ग पर लाठी चार्ज, अश्रुगैस या गोली-प्रहार होता तो सामूहिक निंदा होने लगती। सरकार की भर्त्सना की जाने लगती।

राव साहब सोच-सोचकर परेशान होने लगे। पसीने को पोंछा, कूलर ऑन किया और पसर गए।

अजीब स्थिति हो गई थी। एक भ्रष्टाचारी को राज्यस्तरीय पुरस्कार और एक हत्यारे को अलंकरण दे दिया गया। इस बात को लेकर बड़ा बखेड़ा मचाया गया। बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों ने निराश होकर सरकार का साथ छोड़ने की ठानी। मगर इस सरकार से वे भी कुछ करा सकने में असमर्थ रहे।

सरकारी तौर पर रोज घोषणा होती - 'स्थिति सामान्य है' - 'सब कुछ ठीक है' -'महँगाई पर काबू पा लिया जाएगा' - 'गरीबी दस वर्ष में और बेरोजगारी बीस वर्ष में मिटा दी जाएगी।' लेकिन आश्वासनों की सरकार लड़खड़ाने लगी। पैबंद लगे कपड़े की तरह अब सरकार दिखाई देने लगी थी।

राव साहब ने चारों तरफ देखा - कहीं से कोई प्रकाश की किरण नहीं आ रही है। वे भी क्या करें! सत्ता है तो उसे भोगें।

अपने साथियों के साथ विचार-विमर्श करने पर भी वे किसी निष्कर्प पर नहीं पहुँच पाते। एक विश्वविद्यालय ने एक सजायाफ्ता व्यक्ति को डी.लिट्. दे दी - सुन-सुनकर राव साहब की परेशानियाँ और ज्यादा बढ़तीं। सभी राजरोग उन्हें वैसे भी परेशान रखते।

कई बार सोचते - अब सब छोड़ दें; लेकिन इतना आसान है क्या छोड़ना!

ये सत्ता, ये मद, ये आनंद फिर कहाँ! खाओ और खाने दो'की राजनीति में भी वे पिछड़ रहे थे।

रोज कोई-न-कोई नया सिरदर्द उनकी जान को लगा रहता। कल ही विरोधी दल के नेता रामास्वामी के नेतृत्व में छात्रों ने प्रदर्शन किया। उन्होंने राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया -

'संसद सदस्य क्या कर रहे हैं?'

'हमें सफेद हाथी नहीं, सेवक चाहिए।'

अपने क्षेत्र में राव साहब काफी समय से नहीं जा पाए थे, इसलिए विरोधियों ने पोस्टर बँटवाए थे। एक पोस्टर पर लिखा था -

'इस क्षेत्र के एम.पी. पिछले 4 वर्षों से लापता हैं। रंग गेहुँआ, उम्र 75 वर्ष, सफेद कपड़े और टोपी लगाते हैं, लंबाई 5 फीट 8 इंच, मधुमेह और रक्तचाप के रोगी हैं। लानेवाले या पता बताने वाले को उचित इनाम दिया जाएगा।

- जनता'

इस पोस्टर को पढ़कर राव साहब के आग लग गई; लेकिन क्या कर सकते थे! खून का घूँट पीकर रह गए।

'एक वोट क्या दे दिया, मुझे अपने बाप का नौकर समझते हैं, स्साले!'

'और भी तो कई काम हैं।'

'यहाँ विदेशी डेलीगेशनों से मिलूँ या पार्टी-संगठन सँभालूँ, या क्षेत्र में मर रही जनता से मिलूँ। एक बार हेलीकॉप्टर से देख आया। और क्या कर सकता हूँ! मरने वालों के साथ तो मरा नहीं जा सकता! ओर फिर अमर कौन है? आज नहीं तो कल, सभी मरेंगे! मेरे राज्य में नहीं तो किसी ओर के राज्य में मरेंगे। फिर दुखी होकर भी क्या होगा? लेकिन नहीं, फेटे-साफेवाले मोटी बुद्धि के छोटे लोगों की समझ में ये सब बातें कहाँ आती हैं! झट से पोस्टर छापा और चिपका दिया! अरे उस क्षेत्र में बाँध, नहर, बिजली, सड़क किसने लगवाई? सब भूल गए!'

'हूँ...'

उनका आत्मालाप भंग हुआ, सचिव ने आकर कहा -

'सर, ईरानी डेलीगेशन के आने का समय हो गया है...'

'अच्छा, उन्हें बाहर बिठाओ, मैं अभी आता हूँ।'

ईरानी डेलीगेशन से बात कर उन्होंने कुछ विदेशी संवाददाताओं को इंटरव्यू दिया।

इस कार्य से निपटकर राव साहब ने कुछ प्रमुख विरोधी नेताओं, कुछ विरोधी मंत्रियों की सूची बनाई और इंटेलीजेन्स विभग को इन लोगों की फाइलें तैयार करने को कहा।

'हर गुप्तचर के पीछे एक और गुप्तचर लगा दो, ताकि रपट साफ और सच्ची आए।'

राव साहब अब कुछ संतोष से आराम करने लगे।