यह रियासत प्रेम और करुणा की है! / जयप्रकाश चौकसे

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यह रियासत प्रेम और करुणा की है!
प्रकाशन तिथि :08 जुलाई 2016


सलमान के अभिनय वाली नई फिल्म कुश्ती और फ्रीस्टाइल रेस्लिंग की नहीं होकर भावना प्रधान प्रेम-कथा है, जो रक्त और आंसुओं से लिखी गई होने का आभास देती है। इसमें एक संवाद इस आशय का है कि दर्द की कोख से सृजन और सकारात्मकता का जन्म हो सकता है, जब कोई मनुष्य सृजन के द्वारा दर्द से मुक्त होना चाहता है। इसके नायक और नायिका दर्द में डूबकर निष्क्रिय नहीं होते हुए और अधिक परिश्रम करके जीवन में सार्थकता लाने का प्रयास करते हैं। उनका विश्वास है कि हर युद्ध पहले दिलो-दिमाग में लड़ा जाता है और भीतरी युद्ध का निर्णय ही बाहर लड़े गए युद्ध की निर्णायक शक्ति है। बुरी तरह से घायल नायक फाइनल खेल में खेलता है, क्योंकि उसके लिए विपरीत हालात में निष्क्रिय रहना मृत समान जीना है। वह जीवित लोगों के बीच एक मुर्दे की तरह पड़े रहना पसंद नहीं करता। मौत से आंखें मिलाकर जूझना उसकी प्रवृत्ति है और अपनी अर्जित राशि से वह अपने पिंड में एक ब्लड बैंक की स्थापना करना चाहता है, क्योंकि संकट के समय खून उपलब्ध नहीं होने पर उसने अपने पुत्र को खोया है। अगर 'बजरंगी भाईजान' राजनीतिक सरहदों के ऊपर प्रेम और करुणा के इन्द्रधनुष की तरह थी, तो यह फिल्म देश के भीतर सकारात्मकता के लिए एक लहर पैदा करने का प्रयास करती है।

इसकी नायिका के भीतर छिपा पुरुष और नायक के भीतर छिपी स्त्री के बीच की यह प्रेम कहानी है। लिंग भेद के परे मनुष्य की करुणा की कहानी है। करुणा समयातीत और विश्वव्यापी है। आंसू और मुस्कान इसी करुणा की भाषा है। मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु स्वयं मनुष्य है और उसी युद्ध का विवरण सभी सृजन क्रियाएं करती हैं। फिल्म विधा में प्रोजेक्ट पर घूमती रीलें या परदे पर प्रस्तुत चलते-फिरते लोगों के कारण इसे मूवी नहीं कहते, वरन् सिनेमाघर में बैठे दर्शक के हृदय में जागी भावनाओं के कारण इसे मूवी कहते हैं। यह मांसपेशियों के नहीं, वरन् भावना को प्रस्तुत करने का प्रयास है।

निर्माता आदित्य चोपड़ा ने विगत वर्षों में नए कलाकार और फिल्मकारों को अवसर दिया है और उन्हें सितारों का कवच भी उपलब्ध कराया है। वर्तमान समय में वे अत्यंत साहसी और बुद्धिमान फिल्मकार के रूप में उभरे हैं। वे यश चोपड़ा की अगली कड़ी को होने को भी सार्थक करते हैं और साथ ही कुछ मामलों में वे अपने माता-पिता के धनुष से निकलकर निशाने पर लगने वाले तीर की तरह है। उन्होंने स्वयं द्वारा प्रस्तुत निर्देशक अली अब्बास जफर को बार-बार अवसर देकर तराशा है। जफर ने संवेदना के प्रभावी प्रस्तुतीकरण का काम बखूबी किया है। पैंतीस वर्ष से कम उम्र के जफर से आशा की जा सकती है कि वे उद्‌देश्यपूर्ण मनोरंजन के राजमार्ग को छोड़कर त्वरित सफलताओं की जंगली पगडंडी में नहीं खो जाएंगे। वे सिनेमा की तकनीक के दांव-पेंच में नहीं उलझे हैं और उन्होंने सीधे-सरल ढंग से अपनी बात कही है। एक निर्देशक अभिनेताओं की कठपुतलियों का संचालन अपने हाथ में रखता है, परंतु उच्च श्रेणी का निर्देशक कभी-कभी कठपुतलियों को स्वयं ही थिरकने का अवसर देता है। फिल्म में सलमान खान की कुछ मुद्राएं उनकी अपनी हैं और उनके अपने ट्रस्ट बीइंग ह्यूमन की भावना को परदे पर भी प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने अपनी मानवीय चिंताओं को अपने काम में शामिल कर लिया है। इस फिल्म में भी अपने छोटे से पिंड में एक आधुनिक ब्लड बैंक की स्थापना के लिए ही सारी जद्‌दोजहद करते हैं।

फिल्म का नायक सफलता के बेलगाम घोड़े पर सवार है और उसकी पत्नी उसे समझाने का प्रयास करती है कि इस घोड़े से उतरकर धरती पर भी कुछ कदम चलना चाहिए। सामान्य जन भी इस बेलगाम घोड़े पर सवारी करते हैं और धरती पर चलने से बचते हैं। इस प्रवृत्ति का शिकार नेता भी होते हैं। हमारे शिखर नेता ने अपने दो वर्षों में हवाई जहाज में अधिक समय बिताया है और उनकी घोषणाएं भी जमीनी अमल में नहीं लाई गई हैं और वे महज घोषणाएं करके मुतमइन हो जाते हैं।