यह है बम्बई (मुंबई) मेरी जां / जयप्रकाश चौकसे

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यह है बम्बई (मुंबई) मेरी जां
प्रकाशन तिथि : 05 जून 2020


मुंबई अनेक शहरों कस्बों के लोगों के सपनों में बसा है। इसे आवाम अवसरों का शहर मानता है, एक किस्म का भारतीय ‘एल डोराडो’ अगर भारत एक फिल्म है, तो मुंबई उसका मनोरम स्वप्न दृश्य है। तीन ओर समुद्र से घिरे मुंबई की सड़कों पर मनुष्य की लहरें सतत प्रवाहमान रहती हैं। मुंबई कभी सोता नहीं, वह दिन-रात जागता रहता है। मुंबई में अंधेरी एक उपनगर का नाम है, परंतु इसकी गलियां रात में भी रोशन रहती हैं। प्रकाश व्यवस्था का अनुपम उदाहरण है। संगमरमरी, गगनचुंबी इमारतों के साये में झोपड़-पटि्टयां पनपती हैं। अमीरी और गरीबी के बीच की खाई मुंबई में सबसे गहरी नजर आती है। मुंबई में प्रोड्क्ट ‘गरीबी’ भव्य पैमाने पर बनाया जाता है।

देश के अनगिनत शहरों और कस्बों में जो धन कमाया जाता है, उसका अधिकांश हिस्सा मुंबई आता है, क्योंकि मुंबई भारत की औद्यौगिक राजधानी है। राजनैतिक राजधानी नई दिल्ली जो मुंबई में अर्जित धन का बंदरबांट करता है। मुंबई को फिल्म उद्योग की राजधानी भी माना जाता है, जबकि मराठी, हिन्दी और गुजराती भाषाओं में बनी फिल्मों की संख्या किसी भी वर्ष दो सौ से ऊपर नहीं रही। अधिकांश फिल्में दक्षिण भारत की भाषाओं में बनती रही हैं। किसी दौर में मुंबई में लगभग दो दर्जन फिल्म स्टूडियो हुआ करते थे परंतु वर्तमान में बांद्रा स्थित मेहबूब स्टूडियो और फिल्म सिटी में रिलायंस स्टूडियो ही सक्रिय हैं। फिल्मकार बी.आर. इशारा ने स्टूडियो के बदले अमीरों के बंगलों में शूटिंग प्रारंभ की। बंगलों के मालिक ऊपरी मंजिल पर निवास करते और नीचे की मंजिल पर धन लेकर शूटिंग की इजाजत देते थे। गोयाकि निवास स्थान धनोपार्जन करने लगा कुछ परिवारों में पेइंग गेस्ट रखना शुरू किया।

ख्वाजा अहमद अब्बास की मुंबई प्रेरित फिल्म का नाम था ‘शहर और सपना’। गुरुदत्त, राजकपूर और ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों की पृष्ठभूमि मुंबई रहा है। यहां तक कि ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी फिल्म ‘आनंद’ मुंबई को समर्पित की है। कलकत्ता के न्यू थियेटर्स के विघटन के पश्चात बिमल रॉय अपने साथियों सहित मुंबई आ गए। दरअसल महानगर मुंबई में बिहार, उत्तरप्रदेश इत्यादि सभी प्रांतों के लोग बसे हैं और उनकी जीवन शैली पर मुंबई का प्रभाव पड़ा तो उनके रीति-रिवाजों ने मुंबई को भी प्रभावित किया। मुंबई औद्योगिक राजधानी होने के साथ ही संगठित अपराध संसार की राजधानी भी रहा है। हाजी मस्तान ने घड़ियों की तस्करी करके एक साम्राज्य रचा। उसके दल के सदस्य दाऊद इब्राहिम ने तस्करी को कार्पोरेट की शैली पर चलाया जिसे ‘डी कंपनी’ कहा गया। राम गोपाल वर्मा ने ‘डी कंपनी’ नामक फिल्म बनाई। मिलन लूथरिया ने फिल्म ‘ वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई’ में हाजी मस्तान और दाऊद की जीवन कथा में अफसाने का तड़का लगाया। अजय देवगन ने हाजी मस्तान, इमरान हाशमी ने युवा दाऊद और कंगना रनोट ने मधुबाला के समान दिखने वाली सोना का पात्र अभिनीत किया था। ऋषि कपूर जैसे रोमांटिक छवि रखने वाले कलाकार ने भी ‘डी-डे’ में दाऊद की भूमिका अभिनीत की है। ‘अग्निपथ’ में भी दमदार भूमिका अभिनीत की है।

ख्वाजा अहमद अब्बास का लिखा संवाद है कि मुंबई स्वयं पर मालिकाना अधिकार जताने वालों को कबाड़ी की दुकान में झोंक देता है। ‘मुंबई जिस्म है कच्ची मिट्‌टी का, भर जाए तो रिसने लगता है, बाहों में कोई थामे तो आगोश में गिरने लगता है।’ मुंबई हृदयहीन निष्ठुर शहर नहीं है। एक बार अतिवृष्टि के कारण हजारों लोग फंस गए थे। तब अजनबियों को आश्रय दिया गया। एक घिनौने आतंकवादी हमले के अगले दिन ही स्कूल खुल गए, दफ्तरों में काम होने लगा। दो छोटे कमरों के घर में भी लोग प्रेम ओढ़ते-बिछाते और सोते हैं। फिल्म ‘घरौंदा’ में इसे प्रस्तुत किया गया था।

दरअसल मुंबई एक तुनक मिजाज प्रेमिका की तरह है, उस पर अधिकार जताओ तो वह समुद्र की अनंत लहर की तरह थप्पड़ मार देती है।