यादों की जुगाली का नया मंच / जयप्रकाश चौकसे

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यादों की जुगाली का नया मंच
प्रकाशन तिथि : 03 मई 2014


सलमान खान एक रियल्टी टीवी कार्यक्रम की योजना पर काम कर रहे हैं जिसमें केवल वे प्रतियोगी भाग ले सकेंगे जिनका रिश्ता टूट गया है या जो लंबे समय से अलग रह रहे हैं। इस कार्यक्रम में गीत संगीत, कुछ खेल-कूद इत्यादि होंगे। इस विचार का आधार यह है कि कोई भी रिश्ता टूटकर पूरी तरह नहीं टूटता, जैसे जुड़ कर भी पूरी तरह नहीं जुड़ता और ये अलग हो जाना भी स्थायी नहीं हो सकता। यह ऐसा ही है जैसे हर वर्तमान क्षण में अतीत की छाया और भविष्य का संकेत मौजूद होता है गोयाकि 'गुजरा वक्त गुजर कर भी पूरी तरह गुजरता नहीं'। मनुष्य निरंतर बदलते हैं और वक्त के साथ इतना नैतिक साहस भी आ जाता है कि अपनी गलती पर माफी मांग सके। दरअसल समय के साथ परतों के परे देखने की दृष्टि भी आ जाती है गोयाकि समय के साथ मिले अनुभव रिश्तों के समीकरण बदल सकते हैं। कम से कम पुनरावलोकन का अवसर तो आता है।

सलमान खान से ही ज्ञात हुआ कि विगत कई दिनों से संगीता बिजलानी अपने भूतपूर्व पति क्रिकेट सितारा अजहरुद्दीन के चुनाव प्रचार में काम करने गई हैं। क्या यह संभव है कि इस प्रयास में उनके बीच जमा रिश्ते की राख के नीचे छुपी कोई जानकारी प्रेम के तंदूर को दहके दे। ऐसे एक प्रसंग पर एक फिल्म बनी थी जिसमें एक लंबी ट्रेन यात्रा में तलाकशुदा पति-पत्नी को एक ही कूपे में आरक्षण मिलता है। दोनों ने अलग आवेदन किए थे परंतु एक ही सरनेम के कारण रेलवे कर्मचारी ने पति-पत्नी को कूपे में सीट दी। ज्ञातव्य है कि रेल के कूपे में केवल दो ही बर्थ होती है, वहां कोई तीसरा नहीं आ सकता। छत्तीस घंटे बाद जब ट्रेन अपने गंतव्य स्थान पर पहुंची तो वे तलाकशुदा लोग पुन: विवाह का निश्चय कर चुके थे। यात्राओं का सुखद अंत भी होता है।

इस तरह के किसी मंच या स्थान पर रितिक और सुजान लंबे समय साथ रहें तो कुछ बात बन सकती है। इस तरह के कार्यक्रम में अगर सलमान खान और संगीता बिजलानी या सोमी अली साथ हो तो कैसा रहेगा या कार्यक्रम की खातिर ही सलमान खान और ऐश्वर्या राय बच्चन कुछ समय साथ रहे और अभिषेक बच्चन तथा करिश्मा कपूर साथ आए तो स्थिति रोचक और मनोरंजन हो सकती है। इसी तर्ज पर सैफ अली खान और अमृता सिंह तथा शाहिद और करीना साथ आए तो क्या इस गीत पर वे नाचेंगे- 'तेरे मेरे बीच अभी भी कुछ बाकी है'। यह जरूरी नहीं है कि इस तरह के कार्यक्रम में स्त्री-पुरुष रिश्तों का पुनरावलोकन हो। इसमें दूर चले गए दोस्त भी शामिल हो सकते हैं। मान लें कि शाहरुख खान और सलमान खान मंच पर साथ खड़े होकर 'करण-अर्जुन' के दृश्य पुन: अभिनीत करें। ये सोचना तो हिमाकत होगी कि अमिताभ बच्चन और रेखा साथ हों और कोई सिलसिला बने। सलीम और जावेद अख्तर की गुफ्तगू भी मजेदार होगी। कुछ अन्य क्षेत्रों से भी लोग आमंत्रित किए जा सकते हैं मसलन नीतीश और लालू यादव तथा मुलायम सिंह और अमर सिंह साथ आए। यह खेल बहुत रोमांचक और बिखरे रिश्तों में निर्णायक घटक की तरह हो सकता है। रसायनशास्त्र में कैटेलैटिक होता है जो प्रक्रिया को गति देता है और परिणाम तक पहुंचने में मदद करता है। इस तरह के मंच कैटेलैटिक एजेंट हो सकते हैं।

दरअसल मनुष्य की यादें उसके भाव संसार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्राय: एकांत में यादों के बादल घुमड़ते हैं और रिश्ते पहले टूट कर जुड़ी हड्डियों में दर्द की तरह टीस देते हैं। कभी-कभी आप मित्रों को बताते हैं परंतु यादों का सार्वजनिक विमोचन कभी नहीं होता और सलमान खान द्वारा यह प्रस्तावित मंच यही कर सकता है। फिल्म देखने के अनुभव में भी याद अत्यंत महत्वपूर्ण है। परदे पर चल रहा कार्यकलाप आपकी किसी याद को ताजा कर देता है। साथ ही पुरानी किसी फिल्म का पुनरावलोकन हृदय में उस समय की यादें ताजा करता है, जो प्रथम बार उस फिल्म को देखने से जुड़ी है। दर्शक अपनी याद के सहारे वर्तमान में देखी जा रही फिल्म में कुछ नए संदर्भ और अर्थ जोड़कर एक नई स्फूर्ति हृदय में महसूस करता है। फिल्म देखने से जुड़ी ऊर्जा शोध का स्वतंत्र विषय है