युवा आक्रोश: विराट छवि से बोन्साई / जयप्रकाश चौकसे

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युवा आक्रोश: विराट छवि से बोन्साई
प्रकाशन तिथि : 12 दिसम्बर 2014


कश्मीर की क्रिकेट टीम का 40 बार चैम्पियन रही मुंबई को रणजी ट्रॉफी में हराना, कश्मीर का भारत का अविभाज्य अंग होने का एक और ऐलान है। इसी खबर के साथ नोबेल पुरस्कार के मंच पर भारत के सत्यार्थी और मलाला को शांति पुरस्कार दिया जाना भी महत्वपूर्ण घटना है और मलाला के भाषण का यह वाक्य दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क हथियार की संस्कृति फैला रहे हैं और दुनिया में 6.6 करोड़ बच्चे शिक्षा की सुविधा से वंचित हैं तथा स्कूल के खाली कमरे या स्कूल का अभाव 21वीं सदी की बड़ी चुनौती है। हथियारों के जखीरों पर खर्च रकम का छोटा सा हिस्सा भी सारे बच्चों को शिक्षा का अवसर दे सकता है। मलाला ने यह भी कहा कि कुरान के नाम पर हिंसा करने वाले और स्कूलों को नष्ट करने वालों ने कुरान शरीफ का पहला हिस्सा ही नहीं पढ़ा है, जिसमें पढ़ने पर जोर दिया गया है, इल्म (ज्ञान) पर जोर दिया गया है। सच तो यह है कि सारे धर्म ज्ञान के महत्व को रेखांकित करते हैं परन्तु पवित्र किताबों की सही व्याख्या का अभाव ही अंधकार पैदा करता है। सत्यार्थी ने अपने भाषण में एक श्लोक पढ़ा जिसका अर्थ है कि दुनिया के सभी लोग साथ विकास करके ही संसार को आदर्श बना सकते हैं। यह बात भी गौरतलब है कि सबसे अधिक शांति पुरस्कार एशिया निवासियों को मिले हैं जहां सबसे अधिक अशांति है, सबसे अधिक धर्मों का विकास भी इन्हीं क्षेत्रों में हुआ जहां सबसे अधिक अन्याय है।

बहरहाल प्रीतीश नंदी ने एक लेख में रेखांकित किया है कि भारत वह छठा देश है जहां सबसे अधिक धनवान लोगों की जमा दौलत 175 अरब है, मुंबई एक मात्र महानगर है जहां 20 खरबपति रहते हैं और सबसे अधिक गरीब बस्तियां भी इसी शहर में है। भारत में सबसे कम शौचालय हैं और सबसे अधिक लोगों के सिर पर छत नहीं है। उनका कहना है कि राजनीति में अवाम सबसे अधिक रुचि लेती है फिर भी अन्याय के खिलाफ यहां थ्यानआनमन या अरब स्प्रिंग की तरह कोई आंदोलन नहीं होता। नंदी साहब का कहना है कि हमारा युवा नौकरी की तलाश में रहता है और पाते ही मुतमइन हो जाता है। इस कॉलम में मैं दोहरा चुका हूं कि हमारा मध्यम और गरीब वर्ग अपनी आय के सीमित दायरे में भी अय्याश है अर्थात् वह एक गफलत में इस कदर डूबा है कि क्रांति की कोई गुंजाइश ही नहीं है। यहां अय्याश का पारम्परिक अर्थ वेश्यागमन, जुआ खेलना और कबूतरबाजी ही नहीं है, वरन अनावश्यक चीजें खरीदना और वैकल्पिक संसार में खोए रहकर यथार्थ से मुंह मोड़ना भी है। अपने दिल को जलसाघर बना लेना, एक थिएटर बना लेना कोई अच्छा शगल नहीं है। क्या हम अब यह आशा करें कि धनाढ्य वर्ग महज अपनी सुरक्षा के लिए ही सही गरीबी निवारण करेगा। गंदगी को दूर नहीं करने पर किसी दिन कोई संक्रामक रोक उनकी संगमरमरी हवेलियों में सेंध मार देगा और सुरक्षा के सारे तामझाम धरे रह जाएंगे।

अब हम प्रीतीश नंदी पर लौटते हैं। उनका खयाल है कि आज युवा अपने असंतोष ट्विटर पर जाहिर करता है, वह सिनेमा की फंतासी में गुम हो जाना चाहता है। वह अपने आप में संतुष्ट होना सीख गया है - इस तरह असंतोष का शमन हो रहा है। नंदी साहब कहते हैं कि जब नक्सलबारी आंदोलन पथ से डिग गया तब सिनेमा में आक्रोश की छवि में अमिताभ बच्चन का प्रादुर्भाव हुआ और उसकी बुराई को पीटने में उसे संतोष मिलता था। मेरा खयाल है कि नक्सलबारी तो सीमित क्षेत्र में था परन्तु भ्रष्टाचार के खिलाफ जयप्रकाश नारायण का आंदोलन हुआ और युवा असंतोष का शमन बच्चन की छवि से हुआ। यह बात अलग है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उस आंदोलन से जुड़े सारे लोग बाद में भ्रष्टाचार में डूब गए।

नंदी यह भी रेखांकित करते हैं कि जब नेहरू भाखड़ा नांगल, एटॉमिक एनर्जी कमीशन, भिलाई स्टील प्लांट इत्यादि आधुनिक भारत के नए मंदिर गढ़ रहे थे तब युवा भारतीय उन सपनों को सिनेमाघरों के अंधेरे में नेहरू युगीन सिनेमा में पा रहा था। फिर टेलीविजन आया, रंगीन हुआ और छोटे परदे पर चौबीस घंटे खबरों का संसार उभरा जो उन्हें वही बार बार बता रहा था जो वह पहले से ही जानता था। एक नए तरीके का "न्यूज थियेटर' उदय हुआ और अमिताभ बच्चन की तरह इस छोटे परदे आक्रोश की छवि लिए अरनव उभरे। वह अच्छी तरह जानते थे कि अवाम क्या चाहती है। उसने भी अमिताभ बच्चन की आक्रोश छवि वाला काम किया कि बुराई की पिटाई करें। ज्ञातव्य है कि जंजीर, दीवार से प्रारंभ आक्रोश छवि बाद की फिल्मों में अनाम तानाशाह को निमंत्रण पत्र की तरह हो गई। आक्रोश अराजकता में बदल गया। नंदी कहते हैं कि लोकप्रियता के घोड़े पर सवा अरनव गोस्वामी जज, जूरी हैंगमैन की तरह भी ध्वनित होने लगे। याद कीजिए अमिताभ का शहंशाह में यह कहना कि "वे जहां खड़े होते हैं वही अदालत है' या एक अन्य फिल्म में कहते हैं "वे जहां खड़े हैं वहीं से कतार प्रारंभ होती है।' आज युवा नफरत और क्रोध का अपना काल्पनिक संसार (वैकल्पिक) रचता है, और उसी से छाया युद्ध करके अपने आक्रोश का शमन करता है। सिनेमा, टेक्नोलॉजी का वैकल्पिक संसार और "न्यूज थिएटर' में मगन है। अरनव उनके कालखंड के आक्रोश की छवि है। कालखंड की तरह खोखली।