ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है / जयप्रकाश चौकसे

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ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है
प्रकाशन तिथि : 16 जून 2020


मुंशी प्रेमचंद की कथा ‘पूस की रात’ में एक किसान अपनी फसल का पहरा देने के लिए खेत पर फटा कंबल ओढ़कर जागता है। उसकी पत्नी ने कई बार कहा कि वह नया कंबल खरीद ले परंतु साधन सीमित हैं व पेट की आग बुझाना भी कठिन था। वह कंबल नहीं खरीदता! ठंड से बचने वह अलाव जलाता है और उसकी आंख लग जाती है। अलाव की एक चिंगारी से खड़ी फसल जल जाती है। सुबह किसान जली हुई फसल देख आत्महत्या करना चाहता है, परंतु वह ठहाका लगाता है और कहता है कि अब उसे जागकर पहरा नहीं देना पड़ेगा। आमिर खान की फिल्म ‘पीपली लाइव’ में एक पत्रकार किसानों द्वारा की गई आत्महत्या के कारण खोजने एक बस्ती में आता है। आत्महत्याओं का सिलसिला थम गया है। पत्रकार को एक सनसनीखेज खबर चाहिए। वह एक किसान को धन देकर आत्महत्या करने के लिए सौदा करता है, परंतु कई दिनों बाद पेट भर भोजन मिलने के बाद किसान आत्महत्या का इरादा छोड़ देता है।

चेतन आनंद द्वारा निर्देशित देव आनंद अभिनीत फिल्म ‘फंटूश’ का युवा बेरोजगार नायक आत्महत्या करना चाहता है। इसमें एक चतुर व्यक्ति लाभ देख बेरोजगार से एक समझौता करता कि बेरोजगार उसके द्वारा तय किए दिन आत्महत्या करेगा। वह उसे अपना रिश्तेदार बना, घर में सब सुविधाएं देता है व उसका बीमा कराता है और मुआवजे पर अपने अधिकार के दस्तावेज बनवाता है, कुछ दिन सुविधापूर्वक जीवन जीने वाला व्यक्ति आत्महत्या से इन्कार कर देता है। विचारणीय है कि मनुष्य को भोजन मिले, तो वह आत्महत्या नहीं करना चाहता। क्या भूख ही आत्महत्या का एकमात्र कारण हो सकता है? गुरुदत्त सफल फिल्मकार रहे, परंतु उन्होंने आत्महत्या की। इस पर बहस हुई, नाटक लिखे गए। कुछ लोगों ने गीतादत्त की शराबनोशी को कारण माना, तो कुछ वहीदा रहमान को दोषी समझने की भूल कर बैठे। गुरुदत्त की आत्महत्या का संकेत तो हमें ‘प्यासा’ के एक गीत में मिल जाता है। ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?’ तमाम भौतिक सुख मनुष्य को आध्यात्मिक शांति नहीं दे पाते। सांस्कृतिक मूल्यों के लिए प्यास बनी रहती है। बादल सरकार का नाटक ‘बाकी इतिहास’ इस समस्या पर प्रकाश डालता है। एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। उसका पड़ोसी लेखक अपनी पत्रकार पत्नी से कहता है कि आत्महत्या के कारण पर दोनों को कुछ लिखना चाहिए। पति कारण बताता है कि शिक्षक को अपनी कमसिन छात्रा से प्रेम हो गया, उसकी काल्पनिक एवं अतृप्त कुंठाओं के कारण उसने आत्महत्या की। पत्नी मानती हैै कि बेरोजगारी से तंग आकर उसने आत्महत्या की है।

उग्र बहस के बीच ठीक इसी समय मंच पर तीसरा पात्र आकर अपना परिचय देता है कि वह आत्महत्या करने वाला व्यक्ति ही है। वह पति-पत्नी द्वारा दिए गए कारणों से संतुष्ट नहीं है। आर्थिक तंगी व प्रेम में असफलता आत्महत्या के लिए यथेष्ट नहीं हैं। भूख व प्रेम के परे भी बहुत कुछ है। पति-पत्नी उससे ही कारण बताने को कहते हैं। जवाब में वह व्यक्ति प्रति प्रश्न करता है कि उन दोनों ने आत्महत्या क्यों नहीं की। क्यों निरर्थक जीवन ढो रहे हैं? क्या रोजी-रोटी व मकान मिलने से ही सब ठीक हो जाता है? अमिताभ व शबाना आजमी अभिनीत फिल्म ‘मैं आजाद हूं’ में भी आत्महत्या का प्रकरण था। यह फिल्म अमेरिकन फिल्म ‘मीट जॉन डो’ से प्रेरित थी।

शैलेंद्र संगम के लिए लिखते हैं- ‘आखिर क्यों हैरान हैं हम, हमने आखिर क्या देख लिया, क्यों परेशान हैं हम, यह धरती है इंसानों की कुछ और नहीं इंसान हैं हम।’