योग्य प्रत्याशी / जगदीश कश्यप

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यह जानते हुए भी कि टाइपिस्ट जैसी पोस्ट तुरंत भर ली जाती है और इंटरव्यू मात्र ख़ाना-पूर्ति होती है, मैं उस महाविद्यालय में साक्षात्कार देने गया जो एक पिछड़ी तहसील में स्थित था । मुझे मालूम था कि एक पोस्ट के लिए सौ-पचास व्यक्तियों का आ जाना मामूली बात है । पर मैंने भाग्य आजमाने का फ़ैसला इसी कारण किया था कि हिंदी-अँग्रेज़ी के टाइपिस्ट को वरीयता दी जाएगी । मेरी स्पीड दोनों ही भाषाओं में संतोषजनक थी और मैंने एंपलायमेंट-एक्सचेंज की परीक्षा भी पास कर ली थी । पर कॉल कहीं से भी नहीं आया था । अगर मेरे पिता क्लर्कों को औरों की तरह रुपए खिला देते तो मेरा नाम भी वरीयता क्रम पर होता । मेरे कई दोस्त एक ही भाषा की टाइप जानते हुए भी नौकरी पर लग चुके थे । मेरी माँ पड़ोसन के आगे रोती थी कि मैं एम०ए० हूँ, पर भगवान ने कहानी-कविता का गुर देकर मुझे पागल कर दिया है । तिस पर लड़की का चक्कर ।

मुझे यह जानकर संतोष हुआ कि दोनों टंकण-परीक्षाओं में मेरी गति सभी प्रत्याशियों से अधिक थी । इंटरव्यू-बोर्ड मेरे साक्षात्कार से संतुष्ट था । क्या निर्णय लिया जाए इस पर मैंनेजर और प्रिंसिपल आदि ने आँखों की भाषा में बातचीत की । मौन भंग किया प्रिंसिपल ने ही- 'हमें तुम जैसे कैंडिडेटों की बहुत ज़रूरत है । लेकिन मैं तुम्हें अँधेरे में नहीं रखना चाहता ।'

'कैसा अँधेरा, सर ?' मैंने सूखे होठों पर अपनी जीभ फिरानी शुरू की ।

'अभी तुमने देखा, हमने पचीस लोगों को आश्वासन देकर भगा दिया है । दरअसल हमें शड्यूल्ड-कास्ट कैंडिडेट की ज़रूरत है। सरकारी आदेश के अनुसार हम ऐसा करने को मज़बूर हैं ।'

'पर, सर ! आपने विज्ञापन में साफ़ लिखा है कि योग्य प्रत्याशी का चयन किया जाएगा ।'

इस पर चुप्पी छा गई । लेकिन विद्वान लोग मुझ जैसे बेरोज़गार से हार मानने के लिए पैदा नहीं हुए थे । अबकी बार शायद मैंनेजर बोला- 'डोंट वरी, हम इसी पोस्ट के लिए विज्ञापन निकालेंगे, तब तुम्हें ज़रूर कंसीडर किया जाएगा । हमें तुम जैसे होनहार लोगों की ज़रूरत है ।'

'जब एकाउंटेंट के भाई को रख लिया है, तब मेरी क्या ज़रूरत है ?' मैंने चपरासी द्वारा बताई गई बात को अत्यंत घृणापूर्वक उगल दिया ।

मेरी इस बात पर पूरा इंटरव्यू-बोर्ड चौंक गया । इससे पहले कि वे यह पूछें कि यह बात मुझे कैसे पता चली, मैं झटके से कमरे का दरवाज़ा धकेलकर बाहर निकल आया ।