यौन शोषण: छेड़छाड़ और बलात्कार की अनवरत प्रक्रिया है / संतोष श्रीवास्तव

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पुराणों, ब्राह्मण ग्रंथों में लिखा गया है कि बिल्ली, काली चिड़िया, गिद्ध, नेवला, छछूंदर, कुत्ते आदि की हत्या करने पर जो प्रायश्चित किया जाता है, वही नारी हत्या एँ शूद्र हत्या करने पर भी करना पड़ता है। प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो लिखता है-स्त्री बुद्धिहीन और हेय ही नहीं है बल्कि दुष्ट और डरपोक पुरुषों को दंडित करने हेतु दूसरे जन्म में स्त्री बनकर पैदा होने जैसा शाप देने का उदाहरण भी है। प्लेटो ने ऐसा कहकर पूरी स्त्री जाति को अभिशाप में तब्दील कर दिया। ऐसे में स्त्रियों के यौन शोषण का सवाल ही बेमानी है। जब स्त्री अभिशाप है तो वह प्रतिरोध की आवाज कैसे उठा सकती है। वह तो मात्र जिंदा मशीन है जिसका पुरुष चाहे जैसे इस्तेमाल करे।

बलात्कार को यदि हम पाशविक कृत्य मानें तो छेड़छाड़ और यौन शोषण को भी इसी कृत्य से जोड़ना होगा। स्त्री की मर्जी के खिलाफ उसके अंगों का स्पर्श करना, चूमना, काटना, नोचना, दबोचना, अलिंगनबद्ध करना, घर्षण आदि से भी स्त्री खुद को उतना ही तार-तार हुआ महसूस करती है जितना कि बलात्कार के दौरान। विभिन्न महिला संगठनों गैर सरकारी संस्थाओं आदि ने पीड़ित महिलाओं की गुहार के अंतर्गत कामलोलुप दृष्टि, नहाती हुई स्त्री देह को छुप-छुपकर देखना, स्त्री को अश्लील साहित्य पढ़ने को प्रेरित करना, जबरदस्ती स्त्री को हाथों से अपने यौनांगों का स्पर्श कराना आदि भी शामिल किया है। स्त्री ने भले ही बलात्कार की पीड़ा नहीं झेली पर पुरुष के आक्रामक कामलोलुप तेवरों के तएके बाण ज़रूर झेले हैं। वर्जीनिया वुल्फ का कथन है-अगर मर्दों द्वारा लिखे कथा साहित्य के अतिरिक्त औरतों का कहीं और अस्तित्व न होता तो उनकी कल्पना अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्राणी के रूप में की जाती। अत्यंत विविधतापूर्ण, बहादुर और अधम, अद्भुत और घिनौनी, अत्यंत रूपवती और चरम विकराल।

इस अत्यंत रूपवती और चरम विकराल वस्तु का इतना नशा क्यों है पुरुष को कि वह न अपने पद की गरिमा देखता, न माहौल का महत्त्व... उसके लिए नन्हीं बच्ची से लेकर प्रौढ़ा तक मात्र एक अंग है और उस अंग का दीवाना वह स्वयं... शिक्षा जैसे ज्ञान के मंदिर तक को वह नहीं छोड़ता... इस उपभोग की त्रासदी में गिरफ्त हैं गुजरात के पाटन शहर के... डी. एड। की छात्राएँ। आसपास के गांवों से ये लड़कियाँ गरीब मां-बाप द्वारा इस कॉलेज के हॉस्टेल में इसलिए भर्ती की गई थीं कि पढ़-लिखकर उनका भविष्य उज्ज्वल होगा और वे स्वावलंबी होंगी। लेकिन पुरुष शिक्षकों की काम पिपासा के गर्त में उन्हें आंकठ निमग्न होना पड़ा। ये शिक्षक पीरियड के दौरान ही लड़कियों के स्तनों, गालों, होठों का स्पर्श और यौनांगों के साथ छेड़छाड़ करते हुए भद्दी फब्तियाँ कसते थे, मजाक उड़ाते थे और यही उनका दंड़ित करने का फार्मूला भी था। इसके विरुद्ध लड़कियों की खामोशी इस बात की लाचारी थी कि बेहद प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों में वे पढ़ रही थीं और इन शिक्षकों के हाथ इंटरनल के वे बीस नंबर थे जो कि उन्हें सरकार के द्वारा दिए गए थे। एक छात्र के लिए बीस नंबर बहुत अधिख महत्त्वपूर्ण होते हैं। मर्यादा और नैतिकता कि शिक्षा देने वाले शिक्षक जब स्वयं ही अमर्यादित हो जाएँ, अनैतिक आचरण करने लगे तो सहज ही ध्यान उस सत्ता कि ओर खिंचता है जो पितृसत्तात्मक पुरुषवादी सोच में स्त्री मात्र देह है... एक ऐसा अनाज का खेत (कुरान) जिसे चरने के लिए पुरुष स्वतंत्र है। शिक्षकों का हौसला इतना अधिक बढ़ा कि वे इन अंकों का चारा डालकर सीधी-सादी, गाय जैसी मूक लड़कियों को घर के चंद कामों में हाथ बंटाने के बहाने घर बुलाने लगे और इन लड़कियों को सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाने लगे। अंकों को न देने का डर दिला कर उन्होंने लड़कियों के संग मनमाना यौनाचार किया। लेकिन राक्षसों का अंत तो निश्चित है। इन छात्राओं का उद्धार भी एक महिला शिक्षका के हाथों हुआ। मामला मीडिया ने उछाला, तमाम अखबारों की सुर्खियाँ बना यह कांड। लेकिन गुजरात राज्य के कर्णधार मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिक्रिया ठंडी और चुप्पी भरी रही। नैतिकता को ताक पर रखकर जब शासन ही मुंह छुपाने लगे तो ऐसे कांडों की पुनरावृत्ति होना लाजिमी है। अखबार, गैर-सरकारी संगठन और महिला संगठनों की मुस्तैदी के बावजूद भी तो निठारी कांड, वृंदावन-हरिद्वार के आश्रमों में यौन-शोषण का अनवरत शिकार होती विधवाएँ, रेलवे स्टेशनों, गली कूचों में गर्भावस्था का भार ढोती पागल औरतें दिखाई तो पड़ ही जाती हैं। चाहे जितने भी महिलाओं को शरण देने वाले आश्रम खुल जाएँ, बसेरे खुल जाएँ पर सावित्री बाई फुले महिला आश्रम की तरह अपने ही घर-परिवार के विभिन्न रिश्तों की औलादों को जन्म देना स्त्री की नियति बन गया है।

दिल्ली की साक्षी संस्था समय-समय पर महिलाओं के विषय में पड़ताल र आंकड़ें जुटाती रही है। ये आंकड़े थर्रा देने वाले हैं। दिल्ली के पुरुष अपने आॅफिस में कार्यरत महिला कर्मचारियों, पदाधिकारियों के विषय में बताते हैं कि जो महिलाएँ बोल्ड हैं, बेहद अच्छा बोलती हैं, एग्रेसिव हैं और शादीशुदा हैं, फिर भी विवाहेतर सम्बंध बनाती हैं... पाश्चात्य ढंग के कपड़े पहनती हैं, उन्हें यौन शओषण के लिए अधिकतर बाध्य किया जाता है। पाश्चात्य ढंग की पोशाकें हमारी भारतीय संस्कृति से अलग हैं और वे हमारा ध्यान खींचती हैं। हमारे देश का रहन-सहन ऐसा नहीं है तो हम क्यों उनके बारे में विपरीत विचार रखेंगी। भारतीय मूल्यों को अपनाते हुए जो महिलाएँ बाहर कार्य करती हैं उनके प्रति आज भी पुरुषों के मन में आदर भाव है।

पुरुष का यह कैसा चारित्रिक मापदण्ड है जिसके तहत दोषी वह खुद नहीं बल्कि जिस पर अत्याचार किया गया वह है। आज घरेलू नौकरानियों का घर के मालिकों द्वारा किया गया यौन शओषण फ्रि कौन से बहाने ढूंढ़ेगा अपनी पाकीजगी के। ये नौकरानियाँ जो दूर-दराज के गांवों से अपना और परिवार का पेट पालने अमीरों की चौखट पार करती हैं... ये न तो पाश्चात्य कपड़े पहनती हैं, न बोल्ड हैं, न एग्रेसिव, न इनके विवाहेतर सम्बंध होते हैं फिर भी घर के मालिक इनका यौन शोषण करते हैं और यह सिलसिला बरसों बरस चलता है... नौकरानी मुंह नहीं खोलती क्योंकि उसे अपना और अपने से जुड़े लोगों का पेट भरना होता है। इन घरों में काम करने वाले पुरुष नौकर भी इनके साथ शारीरिक सम्बंध बनाते हैं। बिहार से आई सुनीता का उसका मालिक दस महीनों तक बलात्कार करता रहा। जब वह गर्भवती हो गई तो उशे चुपके से रेलवे स्टेशन ले गया और सुनीता के गाँव जाने वाली ट्रेन में बिठाकर झंझट से मुक्ति पा ली। उसने यह भी जानने की कोशिश नहीं की कि बेचारी सुनीता किस हाल में होगी। उसके जन्म लेने वाले बच्चे का क्या होगा? किन हालत में उसे पालेगी। समाज तो लांछित करेगा ही। एक लंबी त्रासदी को झेल लेती हैं सुनीताएँ और मालिक पल्ला झाड़ दूसरी नौकरानी का बदन टटोलने लगता है। मालिक की ऐसी दिनचर्या से उत्तेजित घर में काम करने वाला चौदह वर्षीय नौकर सात वर्ष की नौकरानी से बलात्कार करता है... यहाँ तक कि मालिक के घर आए मालिक के दोस्तों को भी संतुष्ट कराना होता है, इन सुनीताओं को।

कामकाजी स्त्रियों का यौन शोषण होता रहा है यह बात हर कार्यालय के लिए सही नहीं है। भारतीय परिवेश में कुछ खास ही जॉब हैं जो महिलाओं को शोषण रहित सुरक्षित माहौल देते हैं। लेकिन कुछ जॉब ऐसे हैं जिसमें निश्चय ही शारीरिक शोषण देखा गया है, चाहे इसमें कार्यरत महिलाएँ कितना ही इंकार क्यों न करें पर निश्चय ही वे इस अपमानजनक स्थिति को झेलती हैं। विमान परिचारिकाएँ, मॉडलिंग, फ़िल्मी तारिकाएँ, सेल्स विभाग, निजी संस्थानों में रिसेप्शनिस्ट एवं पुलिस के अंदर कार्य करने वाली (कुछ अपवाद इनमें ज़रूर होंगे) महिलाएँ है वे अपने कार्यस्थल में पुरुषों के अनुसार निश्चय ही शारीरिक शोषण के लिए बाध्य की जाती रही हैं। पुरुष अधिकारी ऐसी महिलाओं का फायदा उठाते हैं। महिलाओं का यौन शोषण प्रत्येक आॅर्गेनाइजेशन में होता है ऐसा ज़रूरी नहीं है, लेकिन जिन जगहों पर होता है उनमें मल्टीनेशनल विदेशी कंपनियाँ तथा उनमें पाश्चात्य मूल्यों को आत्मसात करके भरपूर स्वतंत्रता कि चाह में महिलाएँ पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करती हैं। पाश्चात्य संस्कृति में सेक्स पहले है बाद में परिवार और व्यक्ति की भावनाएँ।

सबसे ज़्यादा महिलाओं का शोषण निम्न वर्ग में होता है। खेतों पर, मजदूरी, मकान, इमारत, पार्क, पुल बनाने में रत श्रमिक औरतों का यौन शोषण ठेकेदार अन्य पदाधिकारियों के द्वारा होता है। इन पुरुषों को ईंटों के ढेर की, भट्टे की, दीवार की बस आड़ भर चाहिए... ऐसी आड़ों के पीछे बांह पकड़कर घसीटी जाती मजदूरिन यदि हो-हल्ला मचाती है तो दूसरे दिन से उसका चूल्हा ठंडा पड़ जाता है और यदि चुप रहती है तो मर्दों के हौसले बुलंद हो जाते हैं। श्रमिक औरतों का यौन शोषण आम बात है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कि काम की जगह महिलाओं का शोषण नहीं होना चाहिए... कौन-सी शोषित महिला अपनी नौकरी की परवाह किए बगैर सामने आएगी। निश्चय ही ऐसी महिला का आर्थिक पहलू सुदृढ़ होना चाहिए तभी वह साहस कर पाएगी। घरेलू माहौल उसे ऐसा करने से रोकता है। पति की ज्यादातर कमाई दारू पर खर्च होते, देख वह बच्चों का पेट भरने की चिंता में, बार-बार ठेकेदारों की हवस का शिकार होती है। देश की लाखों औरतें आर्थिक दृष्टिकोण से ही नौकरी करती हैं, मजे और पॉकेट खर्च पाने के लिए नहीं। ऐसी महिलाओं में एक बड़ा वर्ग श्रमिकों का है, परित्यक्ता, विधवा, तलाकशुदा और जिनकी दहेज के कारण शादी न हुई हो ऐसी महिलाओं का वर्ग भी मजबूर है यौन शोषण युक्त नौकरी करने के लिए। कभी-कभी ऐसी महिलाएँ भी देखने सुनने में आई हैं जो अपने कैरियर की चाह में पुरुष के हाथ की कठपुतली बनने को तैयार हैं। ऐसी महिलाओं का पुरुष बेजा इस्तेमाल करते हैं। यदि एक बार वे अपना शरीर समर्पित कर दें तो उनके अंदर और-और पाने की चाह बलवती होती रहती है, निरंतर वे प्रगति पथ पर अग्रसर रहती हैं, लेकिन अंतत: उन्हें मिलता क्या है? भयंकर निराशा... और सब कुछ खो देने की पीड़ा... यह एक अळहदा प्रश्न है जो उम्र की दुपहरी में आकर पता चलता है कि वे क्या खो चुकी हैं।

लेकिन त्रासदी यह है कि स्त्री के साथ यौन शोषण हर उस क्षेत्र में होता है जहाँ वह कुछ बनना चाहती है। उसके अंदर की किसी भी क्षेत्र की कला उसे सहज ही पुरुषों के झांसे में ला पटकती है। पुरुषों के वादों पर यकीन करना उसका सहज गुण है और यहीं वह मात खा जाती है। प्रीति जैन का ग्लैमर दुनिया में प्रवेश का स्वप्न उसे सफलतम फ़िल्म चांदनी बार के निर्देशक मधुर भांडारकर के इसी झांसे में ला पटकता है। प्रीति जैन के अनुसार-मैंने मधुर भांडारकर पर कीन किया कि वे अपनी अगली फ़िल्म में मुझे हीरोइन का चांस देंगे... उन्होंने मेरी ओर प्यार का हाथ बढ़ाया। मैं उनकी बातों में आ गई। मुझसे यह कहकर कि मेरी फ़िल्म (जिसका अभी तक मुहुर्त तक नहीं हुआ था) रिलीज होते ही वे मुझसे शादी कर लेंगे मेरा लगातार पांच वर्षों तक यौन शोषण किया। न तो फ़िल्म में काम ही दिया न शादी ही की और मुझे ठुकरा कर उन्होंने दूसरी लड़की से शादी कर ली। प्रीति जैन ने हिम्मत दिखाई और मामला कोर्ट तक पहुँचा दिया। कोर्ट के ठंडे बस्ते में यह केस मौजूद है। प्रीति जैन समय के साथ भुला दी गई जबकि मधुर भांडारकर जैसे गुनहगार पुरुष के नाम का आज डंका बज रहा है। टी.वी. के रियल्टी शो में वे बतौर निर्णायक आमंत्रित होते हैं और अखबार के तीसरे पन्ने पर उनकी रंगीन तस्वीरें छपती हैं।

फ़िल्म लाइन में इस तरह की न जाने कितनी प्रीतियाँ फ़िल्म में रोल पाने के एवज में यौन शोषण का शिकार होती हैं... यह सच है कि सभी के साथ ऐसा नहीं होता... न ही सब निर्माता निर्देशक ऐसे होते हैं... लेकिन तराजू का पलड़ा प्रीतियों की तरफ का ही भारी रहता है और मधुर भांडारकर जैसे फ्लर्ट करने वाले पुरुष अपने ही शुभचिंतक पुरुषों द्वारा ऐसा ही करते रहने का बढ़ावा पाते हैं कि हम फ़िल्मवाले कोई देवता तो है नहीं... आखिर हैं तो इंसान ही। अब औरत को अपनी काबिलियत अपना हुनर दिखाना है तो कुछ तो खोना पड़ेगा ही।

पाकिस्तान की 80 प्रतिशत कामकाजी महिलाएँ अपने वर्क प्लेस यानी कार्यालयों में यौन शोषण का शिकार होती हैं। पाकिस्तानी महिलाओं की यह भयावह तस्वीर अलायंस अगेन्स्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट नाम के एनजीओ के हालिया सर्वे से सामने आई है। सर्वे के मुताबिक कामकाजी महिलाओं में ऊंचे से ऊंचे पद पर कार्यरत महिलाओं के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाली औरतें भी इसी त्रासदी का शिकार हैं। नर्स, घरेलू कामवालियाँ बड़े-बड़े मॉल्स और प्लाजा में काम करने वाली सेल्स गर्ल्स और प्राइेट व संरकारी संगठनों में काम करने वाली औरतों ने इन एनजीओ संगठनों को चौंका देने वाले यौन शोषण के बयान दिए। नर्सों ने बताया कि उनका, उनके साथी पुरुष कर्मचारियों, मरीजों या मरीजों के रिश्तेदारों और डॉक्टरों तक ने शोषण किया। ये सभी या तो अश्लील इसारे करते हैं या उनके यौन अंगों को छूते-मसलते, चूमते हैं। जबरदस्ती गले लगाते हैं, नोचते काटते हैं और कभी-कभी तो भद्दे मजाक के साथ अमर्यादित आचरण करते हैं। फूट-फूटकर रोती 16 से 30 वर्ष ी आयु की ये लड़कियाँ मजबूर हैं इस दूराचार को रहने के लिए क्योंकि उनकी घरेलू परिस्थितियाँ ऐसी नहीं है कि वे बिना कमाए जीवनयापन कर सकें। इन मामलों के सामने आने पर कोई कार्यवाही करने के बजाए सहकर्मियों द्वारा मामलों को दबा दिया जाता है। ये सहकर्मी शिकायत करने वाली नर्सों के साथ बाद में ईर्ष्या भाव रखने लगते हैं।

रोम और ग्रीक में सदियों पहले आयोजनों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में संगीत, नृत्य के साथ-साथ नाबालिग कन्याओं के साथ यौन दुराचार बाकायदा मंच पर होते थे। कलाकार उनका सामूहिक बलात्कार करते थे और दर्शक हंस-हंसकर लोट-पोट होते थे। मध्ययुग में रोम और ग्रीक में नाबालिग कन्याएँ, खुद की बेटियों तक यौन तृप्ति के लिए साथियों, दोस्तों-पड़ोसियों को भेंट में दी जाती थीं। यौन तृप्ति के बाद यह उफहार लौटा दिया जाता था। नाबालिग कन्याओं के वेश्यालय होते थे और उन्हें विधिवत मान्यता प्राप्त थी। संभोग के दौरान ये कन्याएँ जितना अधिक चएकती-चिल्लाती थीं, पुरुष ग्राहक उतना ही सुख पाता था। दूसरों की पीड़ा में अपना सुख अपनी संतुष्टि खोजना निश्चय ही मनोविकार है। मनोविकार से पीड़ित ऐसे पुरुषों का इलाज भी लायड डिसूज (जिसने पाश्चात्य काल की मेडिकल पुस्तकों का अध्ययन किया है) के अध्ययन के अनुसार कामक्रीड़ा ही है। कुवांरी कन्या को सर्वप्रथम हाथ लगाने वाला पुरुष बीमारियों से निजात पा जाता है। यदि उसे इतना मारा जाए कि वह बेहोश हो जाए तो निश्चय ही पुरुष अपने असाद से छुटकारा पा सकता है। इंग्लैंड में नाबालिग लड़कियों का बलात्कार करने वाले अपराधियों को न्यायालय इसलिए दोषी करार नहीं देता क्योंकि अपराधी ने अपने यौनांगों के गुप्त रोग के लिए ऐसा किया। निश्चय ही इसे वहाँ उपचार माना जाता है।

भाई-बहनों के बीच यौन सम्बंध, पिता-पुत्री के बीच यौन सम्बंध कोई मिथ नहीं है। मिस्र में तो सगे एँ सौतेले भाई-बहनों में विवाह तक की प्रथा राजघरानों में मौजूद रही। रानी क्लीयोपेट्रा के माता-पिता सगे भाई-बहन थे। क्लीयोपैट्रा ने भी अपने सगे भाई टोलेमी से विवाह किया। ऐसे विवाह वहाँ राजसी इतिहास की ज़रूरत समझे जाते थे ताकि राजघरानों के सारे अधिकार अपने ही परिवार तक सीमित रहें। कैसी विचित्र बात है कि धन की लोलुपता तमाम सम्बंधों को नकारकर मनुष्य के हृदय पर शासन करने लगती है।

प्रख्यात साहित्यकार दार्शनिक, सेलीब्रेटी जब अपनी आत्मकथा लिखते हैं तो ऐसे-ऐसे तथ्य प्रगट होते हैं जो उनके जीवन के रेशे-रेशे से परिचित कराते हैं। इन आत्मकथाओं में लेखिकाएँ स्वीकृत करती हैं कि वे यौन शोषण के कैसे दौर से गुजरी हैं, अपने ही परिवार से सताई गई हैं। जो बातें आम हैं वे इन खास लोगों के जीवन से होकर गुजरी हैं। कई प्रसिद्ध सिने अभिनेत्रियों ने यह स्वीकार किया है कि बचपन में वे घरेलू नौकरों से यौन शोषण का शिकार रही हैं। रानी एलिजाबेथ प्रथम को बचपन में अपने चाचाओं, पिता द्वारा यौन शोषित किया गया था।

धर्मग्रंथों में भी ऐसे सम्बंधों का उल्लेख है। ग्रीक माइथॉलॉजी में उनका देवता जूस और हेरा भाई: बहन हैं और पति-पत्नी भी। उनके माता-पिता क्रोनस और रोया भी आपस में भाई-बहन थे। बाईबिल में कई कथाएँ ऐसी लिखी हैं जिनमें पारिवारिक यौन सम्बंधों को प्रमुखता दी गई है।

विभिन्न संस्थाएँ जो इस दिशा में कार्यरत हैं उनके सर्वेक्षण द्वारा जुटाए गए आंकड़े चौंकाने वाले हैं। साक्षी संस्थान द्वारा दिल्ली की 350 स्कूली छात्राओं से जब मालूमात हासिल की गई तो पता चला कि 63 फीसदी लड़कियों का पारिवारिक सदस्यों द्वारा शोषण हुआ। अफने ही परिवार के पुरुषों द्वारा बलात्कार और लंबे समय तक चलने वाले यौन शोषण का वे शिकार रही हैं। पिता, दादा, भाई, ममेरे, चचेरे भाई सभी इस यौन शोषण में शामिल हैं। टाटा इंस्टिट्यूट आॅफ सोशल सर्विसेज द्वारा यह सिद्ध किया गया कि मुंबई के अलग-अलग कॉलेजों में पढ़ने वाली 58 प्रतिशत लड़कियों का कम उम्र में यौन शोषण अपने ही परिवार के सदस्यों द्वारा हुआ। राही संस्थान द्वारा दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और गोवा में रहने वाली एक हजार मध्यवर्गीय और उच्चवर्गीय लड़कियों के बारे में जानकारी हासिल की गई तो पाया गया कि 76 प्रतिशत लड़कियों का कौमार्य भंग बचपन में हो चुका था। 70 प्रतिशत घर के सदस्यों द्वारा और 6 प्रतिशत अड़ोस-पड़ोस, मित्र, परिचितों द्वारा। बैंगलोर की संस्था संवाद के अनुसार हाई स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं से मालूम हुआ कि 47 प्रतिशत छात्राओं का यौन शोषण हो चुका था। पिंकी विरानी और उसके सहयोगियों द्वारा एक अध्ययन में देखा गया कि 30 प्रतिशत औरतों का बचपन में ही यौन शोषण हो चुका था। ये तो जुटाए गए आंकड़ों की सच्चाई है। न जाने ऐसी कितनी ही औरतें होंगी जिनकी सच्चाई सामने नहीं आई। कारण चाहे जो भी रहा हो पर यह एक कठोर सच है कि यह कहानी हर युग की रही है जब से मानव ने धरती पर कदम रखा।

विश्व का कोई भी देश हो औरत की कहानी हर जगह एक जैसी ही है। संसार का सबसे शक्तिशाली और खुद को अति सभ्य कहने वाले देश अमेरिका में भी कुछ ऐसे ही आंकड़े पाए गए। 62 प्रतिशत औरतों का यौन शोषण बचपन में ही हुआ और इनमें से 20 प्रतिशत औरतों का कौमार्य भंग उनके पिताओं ने किया। बीस प्रतिशत का निकट सम्बंधियों ने किया। अफ्रीका में घरेलू यौन शोषण चरम पर है। युगांडा में 46 प्रतिशत, तन्जानिया में 60 प्रतिशत केन्या और जाम्बिया में 45 प्रतिशत औरतों का उनके परिवार के सदस्यों ने ही यौन शोषण किया।

यौन शोषण के मद्देनजर निम्न से निम्नतर वर्ग के पुरुष और उच्च से उच्च सेलीब्रेटी तक एक जदैसा नजरिया रखते हैं। मशहूर भारतीय शास्त्रीय संगीतज्ञ और सितार वादक के भतीजे द्वारा अमेरिका के पेलिसवेनिया में विभिन्न वाद्ययंत्रों की ट्रेनिंग के दौरान एक बालिका के यौन शोषण का मामला सामने आया है। उस पर सोलह वर्षीय लड़की ने आरोप लगाया है कि उसका भारतीय संगीत मास्टर उसके साथ छेड़छाड़ करता है और सेक्स से सम्बंधित छींटाकशी करता है। संगीत सिखाने के दौरान वह उसके यौनांगों को छूता, मसलता, थपकाता है... वह शर्म से लाल हो जाती है। छुई-मुई हो अफने में ही सिमट जाती है। विरोध करना चाहकर भी वह लज्जावश अपने परिवार वालों को यह बात बता नहीं पाई। उसकी इस चुप्पी से मास्टर को बढ़ावा मिलता रहा और दो साल तक चले इस यौन शोषण का अन्य चश्मदीद दवाह छात्राओं ने भंड़ाफोड़ किया। लिहाजा बात मीडिया तक पहुँची और सेलीब्रेटी का चरित्र अखबारों की सुर्खियाँ बन गया।

दुनिया कि किसी भी सभ्यता और संस्कृति में भाई-बहन पिता-पुत्री या किसी भी सरह की सेक्स सम्बंधी जबरदस्ती से बनाए सम्बंधों को मान्यता नहीं दी गई है। हालांकि इन मामलों में अधिकतर आगे चलकर पीड़िता के मानसिक व भावनात्मक विकास में बाधा आ जाती है। अमेरिका में किशोरवस्था में ही वेश्यावृत्ति की ओर ढकेली गई आये से अधिक युवतियाँ अपने परिवार में इन्हीं सम्बंधों की शिकार रह चुकी हैं। इसी तरह अधिकांश नशाखोरों का इतिहास भी यही रहा है। इन सम्बंधों की शुरूआत अभिभावकों अथवा भाई के दोस्त, परिचित सहकर्मियों की ओर से होती है। लड़कियाँ कभी भी इस ओर अपनी तरफ से कदम नहीं बढ़ाती। ऐसे सम्बंध सभी सामाजिक, आर्थिक श्रेणी के परिवारों में स्थापित हो सकते हैं। व्यक्तिगत या पारिवारिक संघर्ष के कारण उत्पन्न तनाव भी ऐसे सम्बंधों को जन्म देता है।

एक अव्यवस्थित एवं उलझे हुए परिवार के अंदर इस तरह के सम्बंधों के पैदा होने की अधिक संभावना रहती है। अतिशय मदिरापान करने वाले पिता व हर समय भीड़ से भरे रहने वाले परिवार की लड़कियाँ ही प्राय: यौन शोषण का कारण बनती हैं। ये सम्बंध लड़की की घर में हीन स्थिति, एकाकीपन तथा दब्बू व्यक्तित्व के कारण भी बनते हैं। जो लड़कियाँ यौन शोषण में शामिल की जाती हैं वे प्राय: घोर रूप से हीन व अपराध भावना से ग्रस्त पाई जाती हैं। वे इस बात से दुखी रहती हैं कि उनकी ठीक तरह से न तो देखभाल हुई है न परवरिश। वे स्वयं को निरर्थक समझती हैं। वे अक्सर अवसाद से घिरी रहती हैं। विवाह के पश्चात ऐसी लड़कियों के अपने पति के साथ स्वस्थ सम्बंध नहीं बन पाते। ऐसी लड़कियों के लिए एक स्वस्थ वातावरण की आज आवश्यकता महसूस की जा रही है, यह केवल उद्दाम सेक्स भावनाओं भर का मामला नहीं है इसे मनोवैज्ञानिक और जैवकीय स्तर पर भी परखा जाना चाहिए और इन सम्बंधों की शिकार औरतों का मनोवैज्ञानिक स्तर पर उपचार किया जाना चाहिए। इस तरह के प्रयास पश्चिमी देशों में तो शुरू हो चुके हैं। पर एशिया में जहाँ आज भी परिवार को एक पवित्र संस्था माना जाता है और ऐसे सम्बंध गुपचुप चलते रहते हैं। वहाँ खुलकर यह मामला सामने आए इसमें संदेह है।

जब बलात्कार या यौन शोषण गैर मर्द के द्वारा होता है तो औरत न्याय की गुहार लगा सकती है पर अपने परिवार के सदस्यों द्वारा शोषित होकर वह भले ही ज़िन्दगी भर के लिए कुंठा, तनाव, असाद से घिरे, पति द्वारा सेक्स सुख से वंचित रहे, वह खामोश रहती है क्योंकि इज्जत आबरू की हल्दी उसके आंचल में जन्म के साथ ही बंध जाती है। सारे अंकुश उसके ही हिस्से में आए हैं। वैसे भी वह उद्दाम सुख से कहाँ संतुष्ट हो पाती है... यह सारा सुख तो पुरुष अपने हिस्से लिखाकर लाया है। कुछ तो औरत के शरीर की बनावट ही ऐसी है जिसमें उत्तेजना का कहीं कोई स्थान नहीं है और कुछ समाज द्वारा लगाए गए अंकुशों का नतीजा है कि वह इस सुख की सहभागी नहीं। विश्व के कुछ काबीला जातियों में तो उसके यौनांगों को... उन हिस्सों को काट कर विबिद्ध कर दिया जाता है ताकि वह न तो उथ्तेजित हो और न यौन सुख को पाए।