रंगमंच और सिनेमा के जय-वीरू- नसीर-ओम / नवल किशोर व्यास

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रंगमंच और सिनेमा के जय-वीरू- नसीर-ओम


ओम पुरी और नसीरुद्दीन शाह असल जिंदगी के जय-वीरू थे। एक दूसरे से बिल्कुल जुड़ा सख्शियत होने के बावजूद। दोनों पहली बार सत्तर के दशक में एनएसडी में मिले और तब से तमाम गिले-शिकवो के बावजूद दोनों के बीच दोस्ती की गरमाहट रही।

नंदिता पुरी द्वारा अपने पति ओम पूरी पर 2008 में लिखी विवादित बायोग्राफी ‘अनलाइकली हीरो : ओम पुरी’  में नसीरुद्दीन शाह ने एक प्रस्तावना लिखी थी, जिसमें ओम पुरी से जुड़ी कई अंजान बातें भी दर्ज थीं। इसी प्रस्तावना में नसीरुद्दीन शाह ने ओम पुरी को अपने भाइयों से ज्यादा अजीज बताया था। यहां तक कहा कि  जीवित इंसान से वे सबसे ज्यादा अपने दोस्त ओम से ही प्रभावित है। 2014 में आई अपनी ऑटोबॉयोग्राफी ‘एंड देन वन डे’ में भी नसीर ने ओम पुरी के बारे में कुछ अनोखे किस्से दर्ज किए। सत्तर के दशक के शुरुआती सालों में एनएसडी में अभिनय सीखने आए नसीरुद्दीन शाह को उनके गुरु इब्राहिम अल्काजी ने निर्देशन सीखने के काम पर लगाया हुआ था। साथ-साथ नाटकों में अभिनय करना भी थोड़ा-बहुत जारी था लेकिन निर्देशन और मंच सज्जा से जुड़े हुए काम नसीर के हिस्से में ज्यादा थे, हालांकि उनकी रुचि केवल अभिनय करने में थी, बाकी कुछ सीखने में नहीं। इब्राहिम अलका जी का प्रभाव नसीर पर पूरी जिंदगी रहा। लगभग एक ही समय मुंबई आकर संघर्ष करना शुरू करने के बावजूद, हिंदी फिल्मों ने पहले नसीरुद्दीन शाह को मौका दिया था. जहां श्याम बेनेगल की ‘निशांत’ (1975) और ‘मंथन’ (1976) ने उन्हें स्थापित करना शुरू किया, वहीं ओम पुरी को कुछ सालों बाद ही 1980 में गोविंद निहलानी की ‘आक्रोश’ से पहली बार पहचान मिली। इस बीच मुंबई में टिकने के लिए ओम पुरी ने कुछ फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं करना भी स्वीकारा और ऐसी ही एक फिल्म की शूटिंग के दौरान नसीर की जान भी बचाई। फिल्म का नाम था ‘भूमिका’ जिसमें स्मिता पाटिल, अमोल पालेकर और अमरीश पुरी की मुख्य भूमिकाएं थीं और नसीर भी इसमें एक अहम किरदार निभा रहे थे। ओम पुरी को भारी मेकअप के साथ बेहद छोटा-सा रोल मिला था और ऐसे ही एक दिन की बात है जब इस फिल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद वे नसीर के साथ बैठकर होटल में डिनर कर रहे थे। इसी बीच नसीर का एक पुराना दोस्त जसपाल, जोकि उनके साथ एनएसडी में पढ़ता था लेकिन अब दोनों की बातचीत तक बंद थी, कमरे में दाखिल हुआ और ओम पुरी से दुआ-सलाम करने के बाद नसीर के पीछे रखी डिनर टेबल पर बैठ गया।

राजेंद्र जसपाल को नजरअंदाज कर नसीर, ओम पुरी से बातें करने में मशगूल हुए ही थे कि उन्हें पीठ के बीचोंबीच कोई धारदार चीज का वार महसूस हुआ. वे दर्द से कराहने लगे मगर जब तक उठकर पलट पाते, जसपाल ने दूसरा वार करने के लिए हाथ उठा लिया था. इससे पहले कि वह वार नसीर के लिए जानलेवा सिद्ध होता, ओम पुरी चिल्लाते हुए अपनी कुर्सी से उठे और फुर्ती से जसपाल को दबोच लिया. कुछ देर बाद पहुंची पुलिस वैन में डालकर नसीर को अस्पताल ले जाया गया और पुलिस वैन में जबरदस्ती साथ बैठने से लेकर अस्पताल में इलाज होने तक हर पल ओम पुरी नसीर के साथ रहे। बाद में पता चला कि ड्रग्स की लत का आदी और ‘मंथन’ जैसी फिल्मों में अभिनय कर चुका जसपाल नसीर को जान से मारने की नीयत से ही सेट पर आया था और एक मामूली किरदार निभाने उस दिन सेट पर आए ओम पुरी ने, एक गैर-मामूली काम कर नसीर को बचा लिया था.

और इस तरह, न सिर्फ ओम पुरी ने नसीरुद्दीन की उस दिन जान भी बचाई। ओमपुरी के अंतिम दिनों में उनके नसीर के साथ खटास को बयानबाजी में बार बार देखा गया पर नसीर ने ताउम्र अपने मिजाज के उल्टे इस पर चुप्पी साधी। नसीर बेबाक है। अमिताभ आए लेकर शाहरुख तक हर किसी के ऊपर बोला पर ओमपुरी पर उनकी चुप्पी को समझा जा सकता है। दोनों को एक साथ विशाल की फिल्म मकबूल में देखना लाजवाब सिनेमाई अनुभव था। नसीर ओम को शिद्दत से याद करते होंगे।