रचनावली: खंड-1 / गणेशशंकर विद्यार्थी / पृष्ठ 2

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प्रताप का शुभारम्भ

प्रताप हिन्दी की राष्ट्रीय पत्रकारिता और गणेशशंकर विद्यार्थी के स्वंतत्रचेता पत्रकार-मानस की प्रथम सार्थक अभिव्यक्ति था। प्रताप का पहला अंक कार्तिक शुक्ल 11 (देवोत्थानी एकादशी) संवत् 1970 विक्रमी तदनुसार 9 नवम्बर 1913 को निकला। टेबलॉड से कुछ बड़े आकार के 16 पृष्ठों के उस प्रथमांक के मुख पृष्ठ पर पूरे आयोजन के संकल्प के रूप में, आचार्य द्विवेदी की ये पंक्तियाँ अंकित थीं: ‘‘जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है/ वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है’’ और प्रताप की नीति शीर्षक से विद्यार्थी जी का लिखा हुआ पहला संपादकीय उसमें छपा था, जो आज मूल्यपरक हिन्दी पत्रकारिता का अमूल्य अभिलेख बन चुका है। उस सम्पादकीय की शुरूआत इस प्रकार हुई थी:‘‘ आज अपने हृदय में नयी-नयी आशाओं को धारण करके और अपने उद्देश्य पर पूर्ण विश्वास रखकर प्रताप कर्मक्षेत्र में आता है। समस्त मानवजाति का कल्याण हमारा परमोद्देश्य है और इस उद्देश्य की प्राप्ति का एक बहुत बड़ा और बहुत ज़रूरी साधन हम भारतवर्ष की उन्नति को समझते हैं।

उन्नति से हमारा अभिप्राय देश की कृषि, व्यापार, विद्या, कला, वैभव, मान, बल, सदाचार और सद्चरित्रता की वृद्धि से है। भारत को इस उन्नतावस्था तक पहुँचाने के लिए असंख्य उद्योगों, कार्यों और क्रियाओं की आवश्यकता है। इसमें से मुख्यतः राष्ट्रीय एकता, सुव्यवस्थित सार्वजनिक और सर्वागपूर्ण शिक्षा का प्रचार, प्रजा का हित और भला करने वाली सुप्रबंध और सुशासन की शुद्ध नीति का राज्य कार्यों में प्रयोग, सामाजिक, कुरीतियों और अत्यचारों का निवारण और आत्मावलम्बन और आत्मशासन में दृढ़ निष्ठा हैं। हम इन्हीं सिद्धान्तों और साधनों को अपनी लेखनी का लक्ष्य बनायेंगे। हम अपनी प्राचीन सभ्यता और जातीय गौरव की प्रशंसा करने में किसी से पीछे न रहेंगे और अपने पूजनीय पुरुषों के साहित्य, दर्शन विज्ञान और धर्म भाव का यश सदैव गायेंगे। किन्तु अपनी जातीय निर्बलताओं और सामाजिक कुसंस्कारों तथा दोषों को प्रकट करने में हम बनावटी जोश या मसलहत-वक्त से काम न लेंगे, क्योंकि हमारा विश्वास है कि मिथ्या अभियान जातियों के सर्वनाश का कारण होता है।’’...

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