रचना संग्रहों में भूमिका लेखन / भीष्म कुकरेती

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गढवाली भाषा में रचना संग्रहों में भूमिका लेखन

पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित समीक्षा का जीवन काल बहुत कम रहता है और फिर पत्र पत्रिकाओं के वितरण समस्या व रख रखाव के समस्या के कारण पत्र पत्रिकाओं में छपी

समीक्षाएं साहित्य इतिहासकारों के पास उपलब्ध नही होती हैं अत: समीक्षा के इतिहास हेतु सात्यिक इतिहासकारों को रचनाओं की भूमिका पर अधिक निर्भर करना होता है.

नागराजा महाकाव्य (कन्हया लाल डंडरियाल , १९७७ व २००४ पाँच खंड ) की भूमिका १९७७ में डा गोविन्द चातक ने कवि के भाव पक्ष, विषय पक्ष व शैली पक्षों का विश्लेष्ण विद्वतापूर्ण किया तो २००४ में नाथिलाल सुयाल ने डंडरियाल के असलियतवादी पक्ष की जांच पड़ताल की

पार्वती उपन्यास (ल़े.डा महावीर प्रसाद गैरोला, १९८०) गढवाली के प्रथम उपन्यास की भूमिका कैप्टेन शूरवीर सिंह पंवर ने लिखी जिसमे पंवार ने गढवाली शब्द भण्डार व गढवाली साहित्य विकाश के कई पक्षों की विवेचना की है.

कपाळी की छ्मोट (कवि: महावीर गैरोला १९८०) कविता संग्रह की भूमिका में मनोहर लाल उनियाल ने गैरोला की दार्शनिकता, कवि के सकारात्मक पक्ष उदाहरणों सहित पाठकों के सामने रखा

शैलवाणी (सम्पादक अबोध बंधु बहुगुणा १९८१): 'शैलवाणी' विभिन्न गढवाली कवियों का वृहद कविता संग्रह है और 'गाडम्यटेकि गंगा' की तरह अबोध अबन्धु बह्गुना णे गढवाली कविता का संक्षिप्त समालोचनात्मक इतिहास लिखा व प्रत्येक कवि कि संक्षिप्त काव्य सम्बंधित जीवनी भी प्रकाशित की . शैलवाणी गढवाली कविता व आलोचना साहित्य का एक जगमगाता सितारा है .

खिल्दा फूल हंसदा पात ( क. ललित केशवान , १९८२ ) प्रेम लाल भट्ट ने ललित केशवान के कविता संग्रह के विद्वतापूर्ण भूमिका लिखी जो गढवाली आलोचना को सम्बल देने में समर्थ है

गढवाली रामायण लीला (कवि :गुणा नन्द पथिक , १९८३ ) की भूमिका डा पुरुषोत्तम डोभाल ने लिखी जिसमे डोभाल ने मानो विज्ञान भाषा विकास, दर्शन, , वास्तविकता की महत्ता, रीति रिवाजों व कविता के अन्य पक्षों की विवेचना की.

इलमतु दादा (क. जयानंद खुगसाल बौळया,१९८८ ) की भूमिका कन्हयालाल डंडरियाल , सुदामा प्रसाद प्रेमी व भ.प्र. नौटियाल ने लिखीं व कवि की कविताओं के कई पक्षों पर अपने विचार दिए

ढागा से साक्षात्कार (क.नेत्र सिंह असवाल, १९८८) की भूमिका राजेन्द्र धष्माना ने लिखी और गढवाली आलोचना को ण्या रास्ता दिया. यह भूमिका गढवाली आलोचना के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है जिसमे धष्माना ने गज़ल का गढवाली नाम 'गंजेळी कविता' दिया.

चूंगटि (क.सुरेन्द्र पाल,२०००) की भूमिका में मधुसुदन थपलियाल ने आलोचना के सभी पक्षों को ध्यान रखकर भूमिका लिखी और जता दिया के मधुसुदन थपलियाल गढवाली आलोचना का चमकता सितारा है

उकताट (क. हरीश जुयाळ, २००१) की भूमिका में मधुसुदन थपलियाल ने आज के सन्दर्भ में साहित्य की भूमिका, अनुभवगत साहित्य की महत्ता, भविष्य की ओर झांकना , रचनाधर्मिता, सन्दर्भ अन्वेषण आदि विषय उठाकर प्रमाण दे दिया कि थपलियाल गढवाली समालोचना का एक स्मरणीय स्तम्भ है.

आस औलाद नाटक (कुलानंद घनसाला, २००१) की भूमिका में प्रसिद्ध रंग शिल्पी राजेन्द्र धष्माना ने रंगमंच , रंगकर्म, संचार विधा के गूढ़ तत्व , मंचन, कथासूत्र, सम्वाद, मंचन प्रबंधन, निर्देशक की भूमिका जैसे आदि ज्वलंत प्रश्नों पर कलम चलाई है.

आँदी साँस जांदी साँस (क. मदन डुकलाण २००१ ) की भूमिका अबोध बंधु बहुगुणा ने लिखी और कविता में कविता स्वर व गहराई, शब्द सामर्थ्य-अर्थ अन्वेषण . कविताओं में सन्दर्भों व प्रसंगों का औचित्य जैसे अहम् सवालों की जाँच पड़ताल की.

ग्वथनी गौं बटे (स. मदन डुकलाण 2002 ) विविध कवियों के काव्य संग्रह में सम्पादक मदन डुकलाण ने गढवाली कविता विकास के कुछ महत्वपूर्ण दिशाओं का बोध कराया व कवियों द्वारा कविताओं में समयगत परिवर्तन विषय को उठाया

ललित केशवान ने 'गंगा जी का जौ', 'गुठ्यार', 'गाजी डोट कौम ', काव्य संग्रहों की भूमिका लिखी

हर्वी-हर्वी (मधुसुदन थपलियाल (२००२) गढवाली भाषा का प्रथम गज़ल संग्रह है और इस ऐतिहासिक संग्रह की भूमिका लोकेश नवानी णे लिखी जिसमे भाषा में प्रयोगवाद की महत्ता, श्रृंगार रस में जिन्दगी के सभी क्षण, साहित्य में असलियत व रहस्यवाद का औचित्य जैसे विषयों का निरीक्षण किया है

डा आशाराम नाटक ( ल़े.नरेंद्र कठैत २००३) के भूमिका पौड़ी के सफल रंगकर्मी त्रिभुवन उनियाल, बृजेंद्र रावत व प्रदीप भट्ट लिखी जिसमे नाटक के सफल मंचन में आवश्यक तत्वों की विवेचना की गयी है

धीत (क.डा नरेंद्र गौनियाल २००३) की भूमिका में कवि व कवित्व की आवश्यकता आदि प्रश्नों की भूमिका इनमा कनकैक आण वसंत (क.वीरेन्द्र पंवार , २००४ ) कविता संग्रह की भूमिका में मधुसुदन थपलियाल ने कविता क्या है, कविता का औचित्य, किसके ल्ये कविता, कविता में कवि का पक्ष आदि विषयों की जाँच पड़ताल बड़े अच्छे ढंग से की है

अन्ज्वाळ (क.कन्हयालाल डंडरियाल, २००४) की भूमिका में गिविंद चातक ने कवि के कवित्व के सभी पक्षों को पाठकों के सामने रखा .

खिगताट (क. हरीश जुयाल, २००४) के भूमिका में भूमिकाकार गिरीश सुंदरियाल ने 'हास्य का हौन्सिया खुणे जुहारा :व्यंग्य का बादशाह खुणे सलाम' नाम से भिमिका लिखी व हरीश की कविताओं के आद्योपांत सार्थक विश्लेष्ण किया

बिज़ी ग्याई कविता (अट्ठारह कवियों का कविता संग्रह, सन. मधुसुदन थपलियाल,२००४) के सम्पादकीय में कविता विकास व सभी कवियों की अति संक्षिप्त जीवनी भी है.

उड़ घुघती उड़ (गढवाली कुमाउनी कवियों का कविता संग्रह , २००५) में गढवाली भाषा हेतु डा नन्द किशोर ढौंडियाल ने भूमिका लिखी जिसमे ढौंडियाल ने कविता में कवि मस्तिस्क व ह्रदय की महत्ता का विवेचन सरलता से किया

टुप टप (क.नरेंद्र कठैत २००६) के भूमिका में वीरेन्द्र पंवार ने कवि के कविताओं की जांच पड़ताल की

अन्वार (गीतकार : गिरीश सुंदरियाल , २००६) के भूमिका में मदन डुकलाण ने कवि के भाव-विचार , अनुभूति-अभिव्यक्ति का पठनीयता व कविता के प्रभावशीलन पर प्रभाव की आवश्यकता, कवि का सामज व स्वयं के प्रति उत्तरदायित्व, जैसे विषयों की छान बीन की , बसुमती कथा संग्रह (क.डा उमेश नैथाणी २००६) के भूमिका में डा वीरेन्द्र पंवार ने कथा साहित्य के मर्म का निरीक्ष्ण किया ग्वे (स.तोताराम ढौंडियाल, २००७ ) स्युसी बैजरों के स्थानीय कवियों के काव्य संग्रह के भूमिका में तोताराम ढौंडियाल ने कविधर्म व कविताओं का वास्तविक उद्देस जैसे प्रश्नों पर अपनी दार्शनिक राय रखी.

मौळयार (क.गिरीश सुंदरियाल, २००८ ) के भूमिका में गणेष खुकसाल गणी ने कविता को दुःख मुक्ति का साधन बताया व कविता में आख्यान, भौगोलिक पहचान, बदलाव, व शैली की विवेचना की

कुल़ा पिचकारी (व्यंगकार : नरेंद्र कठैत ) व्यंग्य संग्रह के भूमिका में भीष्म कुकरेती ने कठैत के प्रत्येक व्यंग्य की जग प्रसिद्ध व्यंग्यकारों के व्यंग्य संबंधी कथनों के सापेक्ष तौला व व्यंग्य विधा की परभाषा भी दी .

दीवा ह्व़े जा दैणी (क.ललित केशवान २००९) की भूमिका प्रेम लाल भट्ट ने लिखी आस (क.शांति प्रकाश जिज्ञासु, २००९) की भूमिका में लोकेश नवानी ने गढवाली कविता विकास व गढवाली मानस में भौतिक-मानसिक परिवर्तन की बात उठाई

गीत गंगा (गी.चन्द्र सिंह राही , २०१०) की भूमिका में सुदामा प्रसाद प्रेमी ने राही के कुछ गीतों का विश्लेष्ण काव्य शाश्त्र के आधार पर किया

नरेंद्र कठैत के व्यंग्य संग्रह (२००९) के भूमिका शिव राज सिंह रावत 'निसंग ' ने लिखी

डा . नन्द किशोर ढौंडियाल ने आशा रावत के नाटक हाँ होसियारपुर(२००७) , राजेन्द्र बलोदी के कविता संग्रह 'टुळक ' की भूमिका लिखी मनिख बाघ (नाटक , कुला नन्द घनसाला , २०१०) की भूमिका में भीष्म कुकरेती ने गढवाली नाटकों का ऐतिहासिक अध्ययन व संसार के अन्य प्रसिद्ध नाटकों के परिपेक्ष में मनिख बाघ की समीक्षा की.

कोठी देहरादून बणोला (कवि हेम भट्ट, २०११) की भूमिका में भीष्म कुकरेती ने सातवीं सदी से लेकर आज तक के कई भाषाओं के जग प्रसिद्ध कवियों की कविताओं के साथ भट्ट की कविताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया.

कबलाट (भीष्म कुकरेती का व्यंग्य संग्रह, २०११) के भूमिका पूरण पंत 'पथिक' ने लिखी व भीष्म कुकरेती के विविध साहित्यिक कार्यकलापों के बारे में पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया

अंग्वाळ (250 से अधिक कविओं का काव्य संग्रह, स. मदन डुकलाण, २०११) की भूमिका में भीष्म कुकरेती ने १९०० ई से लेकर प्रत्येक युग में परिवर्तन के दौर के आयने से गढवाली कविता को आँका व अब तक सभी कवियों की जीवन परिचय भी दिया.

गढवाली भाषा में पुस्तक समीक्षायें

. ऐसा लगता है कि गढवाली भाषा की पुस्तकों की समीक्षा/समालोचना सं १९८५ तक बिलकुल ही नही था, कारण गढवाली भाषा में पत्र पत्रिकाओं का ना होना . यही कारण है कि अबोध बंधु बहुगुणा ने 'गाड म्यटेकि गंगा (१९७५) व डा अनिल डबराल ने 'गढवाली गद्य की परम्परा : इतिहास से आज तक ' (२००७) में १९९० तक के गद्य इतिहास में दोनों विद्वानों ने समालोचना को कहीं भी स्थान नही दिया . इस लेख के लेखक ने धाद के सर्वेसर्वा लोकेश नवानी को भी सम्पर्क किया तो लोकेश ने कहा कि धाद प्रकाशन समय ( १९९० तक) में भी गढवाली भाषा में पुस्तक समीक्षा का जन्म नही हुआ था. (सम्पर्क ४ दिसम्बर २०११, साँय १८.४२ )

भीष्म कुकरेती की ' बाजूबंद काव्य (मालचंद रमोला ) पर समीक्षा गढ़ ऐना ( फरवरी १९९० ) में प्रकाशित हुयी तो भीष्म कुकरेती द्वारा पुस्तक में कीमत न होने पर समीक्षा में /व व्यंग्य चित्र में फोकटिया गढवाली पाठकों की मजाक उड़ाने पर अबोध बंधु बहुगुणा ने सख्त शब्दों में ऐतराज जताया (देखे गढ़ ऐना २७ अप्रि, १९९०, २२ मई १९९० अथवा एक कौंळी किरण, २००० ) .जब की माल चन्द्र रमोला ने लिखा की भीष्म की यह टिपणी सरासर सच्च है.

भीष्म कुकरेती ने गढ़ ऐना (१९९०) में ही जग्गू नौडीयाल की 'समळऔण' काव्य संग्रह व प्रताप शिखर के कथा संग्रह 'कुरेडी फटगे' की भी समीक्षा की गयी

भीष्म कुकरेती ने 'इनमा कनकैक आण वसंत ' की समीक्षा (खबर सार २००६) के जिसमे भीष्म ने डा. वीरेन्द्र पंवार के कविताओं को होते परिवर्तनों की दृष्टि से टटोला

भीष्म कुकरेती की ' पूरण पंत के काव्य संग्रह 'अपणयास का जलड' की समालोचना ; गढवाली धाई ( २००५ ) में प्रकाशित हुयी . दस सालै खबर सार (२००९) की भीष्म कुकरेती द्वारा अंग्रेजी में समीक्षा का गढवाली अनुबाद खबर सार (२००९) में मुखपृष्ठ पर प्रकाशित हुआ

गढवाली पत्रिका चिट्ठी पतरी में प्रकाशित समीक्षाएं

चिट्ठी पतरी के पुराने रूप 'चिट्ठी' (१९८९) में कन्हैयालाल ढौंडियाल के काव्य संग्रह 'कुएड़ी' की समीक्षा निरंजन सुयाल ने की

बेदी मा का बचन (क.सं. महेश तिवाड़ी) की समीक्षा देवेन्द्र जोशी ने कई कोणों से की (चिट्ठी पतरी १९९८) .

प्रीतम अपच्छ्याण की 'शैलोदय' की समीक्षा चिट्ठी पतरी (१९९९) में प्रकशित हुयी और समीक्षा साक्ष्य है कि प्रीतम में प्रभावी समीक्षक के सभी गुण है

देवेन्द्र जोशी की 'मेरी आज्ञाळ' कविता संग्रह (चट्ठी पतरी २००१ ) समालोचना एक प्रमाण है कि क्यों देवेन्द्र जोशी को गढवाली समालोचनाकारों की अग्रिम श्रेणी में रखा जाता है.

अरुण खुगसाल ने नाटक आस औलाद की समालोचना बड़े ही विवेक से चिट्ठी पतरी (२००१) में की व नाटक के कई पक्षों की पड़ताल की

आवाज (हिंदी-गढवाली कविताएँ स. धनेश कोठारी ) की समीक्षा संजय सुंदरियाल ने चिट्ठी पतरी ( २००२) में निष्पक्ष ढंग से की

हिंदी पुस्तक ' बीसवीं शती का रिखणीखाळ ' के समालोचना डा यशवंत कटोच ने बड़े मनोयोग से चिट्ठी पतरी (२००२) में की और पुस्तक की उपादेयता को सामने लाने में समालोचक कामयाब हुआ.

आँदी साँस जांदी साँस (क.स मदन डुकल़ाण ) की चिट्ठी पतरी (२००२ ) में समीक्षा भ.प्र. नौटियाल ने की

उकताट ( काव्य, हरेश जुयाल) की विचारोत्तेजक समीक्षा देवेन्द्र पसाद जोशी ने चिट्ठी पतरी ( २००३ ) में प्रकाशित की.

हर्बि हर्बि (काव्य स. मधुसुदन थपलियाल) की भ. प्र. नौटियाल द्वारा चिट्ठी पतरी (२००३) में प्रकाशित हुयी .

गैणि का नौ पर (उप. हर्ष पर्वतीय ) की समीक्षा चिठ्ठी पतरी (२००४ ) में छपी.समीक्षा में देवेन्द्र जोशी ने उपन्यास के लक्षणों के सिधान्तों के तहत समीक्षा के

अन्ज्वाळ ( कन्हैया लाल डंडरियाल ) की भ.प्र. नौटियाल ने द्वारा समीक्षा 'चिट्ठी पतरी (२००४ ) में प्रकाशित हई .

डा. नन्द किशोर ढौंडियाल द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षाएं

डा नन्द किशोर का गढवाली, हिंदी पुस्तकों के समीक्षा में महान योगदान है. डा ढौंडियाल की परख शाश्त्रीय सिद्धांतों पर आधारित , न्यायोचित व तर्क संगत होती है. डा ढौंडियाल की समीक्षाओं का ब्योरा इस प्रकार है

'कांति ' - खबर सार (२००१)

'समर्पित दुर्गा' - खबर सार (२००१ )

'कामनिधी' खबर सार (2001)

रंग दो - खबर सार (२००२ )

'उकताट'- खबर सार (२००२)

'हर्बि - हर्बि ' खबर सार (२००२)

'तर्पण ' खबर सार (२००३)

पहाड़ बदल रयो - खबर सार (२००३)

'धीत' - खबर सार (२००३)

'बिज़ी ग्याई कविता' - खबर सार (२००४)

गढवाली कविता' -खबर सार (२००५)

'शैल सागर' खबर सार (२००६)

'टळक मथि ढळक'- खबर सार (२००६)

'संकवाळ ' की समीक्षा खबर सार (२०१०)

'दीवा दैण ह्वेन '- खबर सार (२०१०)

'आस' -खबर सार (२०१०)

ग्वे -खबर सार (२०१०)

उमाळ - खबर सार (२०१०)

'प्रधान ज्योर '- खबर सार (२०१०)

पाणी - खबर सार (२०११)