रजामंदी / शुभम् श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
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जमीला जन्म से दिलेर और कुशाग्र बुद्धि की थी। उसने हमेशा हक़ के लिए आवाज़ उठाई. उसे हमेशा यही अफ़सोस रहता था कि जों सुविधाएँ उसके भाइयों कों मिलती वह उसे क्यों नहीं मिलती। अपनी माँ फातिमा से जिद करने पर अक्सर लाताड़ी जाती।

फातिमा–'देख हम औरत जात है। हमें सामाजिक दायित्व में घर को सींचने का कार्य दिया गया हैं। इसलिए मर्दों को अलग सुविधाएँ मिलती हैं और औरत को दूसरी।'

जमीला–'यही सोच बदलने के लिए तो हम जीते हैं। हम नहीं चाहते की हमें शादी के बाद बाहर जाने के लिए बुरका पहनना पड़े।'

फ़ातिमा–'देख बुरका पहनने में कोई बुराई नहीं है।'

जमीला–'बुराई कुछ भी नहीं। हर इंसान स्वतंत्र है जो वह पहनना चाहता है पहनने को। मुझे ये बंदिशे लगती हैं।'

फ़ातिमा-'और अगर तेरा पति तुझसे ये पहनने को कहेगा तब क्या करेगी?'

जमीला–'मैं उससे शादी नहीं करूँगी जो मुझें मजबूर करे।'

फ़ातिमा–'देखते हैं बड़े बोल तेरे।'

जमीला–'चलो! मुझे जाने दो कॉलेज का समय हो गया हैं।'

फ़ातिमा–'ठीक है जा।'

पास में उसके घर के शमायरा रहती हैं। दोनों साथ में अब्दुल कलाम आज़ाद यूनिवर्सिटी में एल0एल0बी के प्रथम वर्ष में पढ़ते है। कॉलेज में तीसरा दिन हुआ था आए हुए लोग एक दूसरे से दोस्ती करने में लगे हुए थे।

किसी की नज़रे किसी पर पड़ती तो किसी की किसी और पर नज़रों ही नज़रों में इशारे होते। लेकिन एक नज़र अक्सर जमीला पर रहती। नाम था मलिक नूर मुहम्मद, एक नामज़द बिल्डर का लड़का शहर के. अब पैसा था तो शौक भी बहुत थे उस हिसाब के. कॉलेज में ऑडी लाना और फिर सीधे डायरेक्टर की गाड़ी के बगल में लगाकर खड़ा कर देना लोगों को भाव न देना। कई लोगों की आँखे उसपर टिकी रहती थी। दारू-सुट्टा बात-बात पर गाली देना। जटिल, धींट लेकिन चौकस लोगों को भापने में। कपटी फ़ितरत। सब उससे घुलने मिलने को तैयार रहते ताकि उसका सान्निध्य प्राप्त कर सके. लेकिन उसकी नज़रे जा टिकीं जमीला पर।

उसके दोस्त उसे छेड़ कर कहते–'किधर खो गए हो जनाब' और वह हँसकर बातें टाल देता।

रोहित, रहमत, जुबिन और आयशा उसके अच्छे मित्र बन गए, सब उसके साथ शहर भर में गेड़ियाँ मारते।

कॉलेज के बाहर एकदिन वह सिगरेट फूँक रहा था तभी उसने देखा कि फ़ातिमा भी वहाँ खड़े होकर सिगरेट पी रही है।

मलिक गाड़ी से उतरकर सीधे फ़ातिमा के पास जाकर बोलता है–'अरे वाह! मैडम जी सिगरेट पी रही है।'

जमीला ने त्योरी चढाई दाहिनी आँख की और फिर बोला–'क्यों बे लड़की नहीं पी सकती क्या? टैग लगा है इसपर लड़कों का?'

मलिक–'वो! वो! वो! हमने नहीं कहा कि लड़की सिगरेट नहीं पी सकती है। हम कह रहें हैं कि क्या हुआ आज जो इसे फूँक रही हों।'

जमीला–'अरे! वट ना! एक तो पहले ही इस प्रोफेसर ने दिमाग की लगा रखी है। ऊपर से तु आकर दिमाग की दही ना कर।'

मलिक हँसते हुए कहता है–'अमा यार! तु एक प्रोफेसर की लताड़ से परेशान हो रेली है।'

जमीला–'तेरी तरह चमचे नहीं घूमते न मेरे आगे पीछे जो मेरा होम वर्क पूरा कर दे।'

मलिक–'चिल मार! मलिक तो माटी का खिलौना है कुम्हार तो ऊपर वाला है जिसने नाचीज़ को रहमत से नवाज़ा है।'

जमीला मुस्कुराकर बोलती है–'अरे वाह! लाइने क्या ख़ूब बोल लेते हो तुम।'

मलिक–'चल मूड तो बन गया ना तेरा।' फिर उसने आगे हाथ बढ़ाकर बोला–'दोस्त।'

जमीला ने हाथ मिलाया–'दोस्त।'

रोहित भागते हुए आया और बोला–'भई वाह! मलिक भाई की दोस्ती हो गई आखिरकार।'

मलिक–'क्यों बे सुलग गई क्या तुम्हारी?'

जमीला ने बात को बीच में ही काटते हुए बोला–'अरे रोहित। मलिक तो दोस्त है पर तूतोह जिगरी है मेरा।'

मलिक को अन्दर से टीस उठी पर उसने अपना मन किसी तरह शांत किया और वापिस गाड़ी में जा बैठा। '

उसने इस बार बड़ी सिगार निकाली और लाइटर से कई बार जलाने की कोशिश की पर जली नहीं।

आयशा ने अपनी लाइटर से सिगार जलाई. मलिक बुदबुदाया–'कुत्ते लोग।'

आयसा–'क्या यार कॉलेज की इतनी लडकियाँ पड़ी है तुझपर और तु इस लो क्लास लड़की के पीछें रहता है।'

मलिक–'काम कर अपना।'

आयसा–'अले मेला राजा बेटा का दिल टूट गया।'

मलिक ने चुटकी बजाते हुए बोला–'ए पगली! निकल चल वरना थूथ छेद दूँगा।'

आयसा–'सुन में बात करती है उससे तेरे लिए. अपने यार के लिए इतना तो कर सकती है में।'

मलिक के चेहरे पर हालकी-सी मुस्कराहट आई.

आयसा–'32सि ना निपोर। पार्टी लूँगी सेटिंग करवाने की।'

मलिक–'हाँ! चल-चल।'

अगले दिन

आयसा जाकर जमीला की सीट पर बैठ गई और शमायरा को पीछे जाकर बैठने को बोला। जमीला यह देखकर बहुत अचंभित हुई.

'इधर कैसे?'

'दो मिनट को आई हूँ इधर अभी पूरे 15 मिनट है लेक्चर शुरू होने में।'-आयसा ने बोला

'बोल'

आयसा–'कल मैंने तुझें मलिक के साथ देखा।'

जमीला–'तो।'

आयसा–'मुझे उसकी नज़रों में तेरे लिए कुछ ख़ास दिखा।'

जमीला–'फिर?'

आयसा–'फिर? तू पागल है क्या? कॉलेज की कितनी सारी लडकियाँ उसके पीछे पड़ी है। तुझे पता है?'

जमीला–'तू उसकी सिफ़ारिशे क्यों कर रहीं हैं मुझसे? कहीं उसने तो नहीं भेजा तुझे? और तू फिर क्यों नहीं कर लेती उससे फिर?'

आयसा–'नहीं भेजा उसने मुझे। मैं पटा लेती उसे पर वह चूतिया तेरे पर फ़िदा है।'

जमीला–'तो क्या? मुझे तो रोहित पसंद है।'

आयसा–' रोहित भी उसका चमचा है। क्या ख़ास है रोहित में? दसवी में एक बार 90 फीसद लाया और थोड़ा बहुत क्रिकेट खेल लेता है बस।

फिर वह तो तेरे धर्म का भी तो नहीं है आगे शादी में भी तो दिक्कते आएँगी। देख मैं तेरे जगह होती तो मलिक को पता लेती, अच्छा लड़का है बाकी ज्ञान चोदने का शौक नहीं है मुझे बाकि तू समझदार तो है ही। '

जमीला ने आगे कुछ नहीं बोला और आयसा उठकर चली आई. समय बीतता गया और जमीला की ज़िन्दगी से रोहित धीरे-धीरे निकलने लगा। वहीँ मलिक करीब आता गया। तीसरे साल तक आते-आते जमीला और मलिक ने संग रहने का ऐलान कर दिया कॉलेज में लगभग हर बंदेको यह पता चल गया। इधर शमायरा और रहमत भी एक दूसरे को पसंद करने लगे थे।

एक साल बाद

'मैं तेरी उस लड़की के साथ शादी नहीं कर सकती।' जैनाब (मलिक की अम्मी) ने उससे कहा।

मलिक–'लेकिन क्यों अम्मी-जान।'

जैनाब–'मुझे ऐसी लड़की नहीं चाहिए जो शराब, सिगरेट पीती हो और बुरका न पहने। हमारे घर के कुछ क़ायदे-कानून है। उसे यह मानना ही पड़ेगा।'

मलिक–'मान जाओ अम्मा तुम्हारे बेटे की ख़ुशी से बढकर थोड़े ना क़ायदे कानून है। ज़माना बदल रहा है थोड़ी छूट तो देनी चाहिए हर इंसान को। नहीं तो दम घुटता है।'

जैनाब–'जो अभी से इतना चलाती है वह आगे चलकर तेरे सिर चढ़कर नाचेगी।'

मलिक–'अम्मा, मान जाओ तुम्हारा बेटा हमेशा मानता है तुम्हारी।'

जैनाब–'चल, चल मक्खन न मार, उससे कह अगर कहीं समारोह में शरीख होना होगा और घर में समारोह पर बुरका पहनना पड़ेगा। बाकी उसे जो पहनना हो पहने। मैं इससे ज़्यादा नहीं झुकुंगी।'

मलिक ने सोचा चल उसका काम बन जाएगा पहली मुलाक़ात में हुई खींचतान के बाद उसे उम्मीद की किरण दिखाई दी।

अगले दिन

मलिक–'जान! मूँह क्यों उतर रखा है तुमने? कब तक उतारी रहोगी मूँह तुम। हम तुम्हारे लिए खुशखबरी लाए हैं।'

जमीला–'अगर मुझे पता होता की मेरा ऐसे घर में पाला पड़ने वाला है तो कभी में नहीं प्यार करती तुमसे। पूरी मेहनत की हमने रिश्ते बनाने में, पूरे चार साल लगाये, पूरे चार साल। समझे इतने में हम क्या–क्या नहीं कर लेते।'

मलिक–'ऐसा मत कहो जमीला हमने भी बड़ी शिद्दत से तुम्हें चाहा है। ये सारा कॉलेज जानता है। कितनो को ना करी तुम्हारे ख़ातिर कभी नहीं धोखा दिया तुमको।'

शमायरा–'अबे बच्चों की तरह ड्रामे मत करो। मलिक तुम बताते क्यों नहीं क्या खुशखबरी है।'

जमीला–'तू चुपकर शमायरा। तुझे ये ड्रामा लगता है? इधर ज़िन्दगी की लगी पड़ी है।'

शमायरा अपना माथा पकड़ लेती है।

मलिक–'देखलिया शमायरा हमारी मैडम जी का गुस्सा सातवे आसमान पर है।'

आयसा–'तू भी तो कुछ नहीं बोल रहा है।'

मलिक–'अम्मा ने कहा है कि जमीला को आजादी है सबकुछ पहनने की पर उसकघर में और बहार होने वाले समारोह में बुरका पहनना पड़ेगा।'

जमीला–'हरगिज़ नहीं मैं नहीं करूँगी तुम मुझे अच्छी तरीके से जानते हो मैंने लॉ भी इसलिए ही किया था ताकि मैं लोगों को उनके मौलिक अधिकार दिला पाऊँ।'

मलिक–'मान जाओ जमीला' कहकर मलिक ने उसे गले से लगा लिया।

दो मिनट को जमीला का दिल टूट गया। उसे लगा वह बहुत कुछ खोने को जा रही है। ऐसा इंसान जो तुम्हें बेपनाह प्यार करे बहुत कम ही मिलेगा। वो खो चुकी थी उसकी आँखों में आँसू आने लगे। मलिक ने उसकी आँखों से आँसू पोछे और उसके माथे पर चूमने ही जा रहा था कि जमीला ने उसे धकेल दिया। मलिक ने हैरान होकर पूछा-'अब क्या?'

'मैं ये शादी नहीं कर सकती।'

मलिक–'क्यों?'

जमीला–'नहीं कर सकती तो नहीं कर सकती।'

मलिक ने जमीला की माँ फ़ातिमा को फ़ोन लगाया–'आया जी मैंने अपनी अम्मा से बात करी उस दिन के बाद उन्होंने यह तह किया की घर के और बाहर के समारोह में जमीला बुरका पहनेगी बाकी दिन ये जो चाहें पहन ले।'

फ़ातिमा–'ये तो ठीक ही है एक तरीके से।'

मलिक–'लेकिन हमारी मैडम जी अभी भी अडी हुई है।'

फ़ातिमा–'क्यों? फोने देना ज़रा इसे?'

मलिक ने फोने जमीला को पकड़ा दिया।

फ़ातिमा–'क्या दिक्कत हो गयी तुम्हें जमीला?'

जमीला–'माँ तुम जानती हो मैं नहीं शादी करूँगी ऐसे घर में। मैंने लॉ भी इसलिए पढ़ा है ताकि बन्धनों की जकड़नसे लोगों को बचा सकूँ और लोगों को उनके अधिकार दिला सकूँ।'

फ़ातिमा–'हाँ, हाँ पर बेटा रिश्ते सामंजस्य से बनते हैं। दो कदम तुम चलो दो कदम वह चले।'

जमीला–' वाह अम्मा तुमसे तोह यह उम्मीद नहीं थी। पहले कपड़े पर रोक-टोक करेंगी, फिर कहेंगी नौकरी में क्या रखा है, फिर कहेंगी चूहला-चौका सम्भाल लो और फिर कहेंगी मेरे साथ किटी पार्टी में बैठकर पत्ते खेलो और अंत में कहने को मिलेगा साड़ी ज़िन्दगी तुमने किया ही क्या है? ये तुम्हें अच्छे से पता है अम्मा मैं बदलाव के लिए जीती हूँ।

फ़ातिमा–'जो जी में आएकर तूने मेरी सुनी कब हैं?'

मलिक ने हाथ से फोने लेकर काट दिया और बोला–'मेरी अम्मा के खिलाफ़ एक लफ़्ज नहीं। मैंने आया जी का कभी तिरस्कार नहीं किया। तो तुम भले ही उनसे सहमत न हो पर उनका तिरस्कार मत करो।'

शमायरा–'मलिक न का मतलब ना है।'

मलिक–'मुझे जमीला के मूँह से सुनना हैं।'

जमीला–'नहीं।'

मलिक की आँखे बड़ी हो गई. उसका अंतर्मन बिखर गया गुस्सा, मद, घृणा, घिन्न सब एक क्षण में उसे एक साथ महसूस होने लगे। वह टूट गया और वहाँ से चला गया। जमीला अचेत होकर गिर गई और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।