रणचंडी / सौरभ कुमार वाचस्पति

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

१.

"मंदिर के भीतर प्रवेश करोगी तो खोपड़ी फोड़ दूंगा रधिया !"

"क्यों नहीं जाउंगी मंदिर में ? सरकार ने छूआछूत मिटा दिया है !"

"सरकार की ऐसी की तैसी ! मेरे मंदिर का दरवाजा मेरी मर्जी से खुलता है ! क्या यह मंदिर सरकार ने बनवाया था ?"

मगर .....!"

"अगर मगर कुछ नहीं ! तुम लौट जाओ नहीं तो दुर्दशा हो जाएगी ! यह मंदिर सवर्णों के लिए है ! भगवान् की मूर्ती हमलोगों ने 'नोटों ' से खरीदी थी ! काशी जाकर ! तेरे बाप के कितने पैसे लगे थे ?"

"मगर मेरे बाप ने इसकी दीवारें जोड़ी थी ! अपनी कारीगरी के नमूने दिए थे !"

"धत्त तेरे बाप की ! तेरा बाप मजूर था ! १०० रूपये रोजाना पर खटने वाला मजूर ! स्स्साला ; दिनभर काम करता और साँझ होते ही मजूरी के लिए सर पर सवार हो जाता था ! काम करने के बदले रूपये दिए थे ! लौट जाओ , नहीं चीर हरण हो जाएगा !"

"तुमलोगों ने बहुत अबलाओं का चीर हरण कर लिया कमलेसर , अब ऐसा नहीं होगा !" यह चंदा थी ! उसके रोम रोम में जैसे प्रचंड रणचंडी का आवेश था !

"क्या बोली हरामजादी ? तू भी दुसाध चमारों का पच्छ लेती है ! हाँ , आखिर रंडी ठहरी न ! उलटने पुलटने में देर नहीं लगती ! मगर सुन; तेरा भी मंदिर प्रवेश निषेध है !"

"कब से ?"

"आज से और अभी से !"

"रोक कर तो दिखा ! मेरा मंदिर प्रवेश रोकना तेरे वश की बात नहीं !"

"तू भी तो साली अछूत है ! बेहया कहीं की !"

"बको मत ! गाली मैं भी दे सकती हूँ ! और तुमसे कही अच्छी गाली दे सकती हूँ ! मगर मैं ऐसा करना नहीं चाहती ! सारे ऊँची पगड़ी वाले लोग रात को मेरे पैरों के तलुए चाटते आए है ! आज नहा धो लेने से पवित्तर नहीं हो सकते ! किसके दामन में कालिख नहीं लगी है ?"

"तू कहना क्या चाहती है ?"

"हमलोग मंदिर में पूजा करेंगे !"

"ऐसा नहीं होगा !"

"होगा और ऐसा ही होगा !"

"बढ़ो तो आगे !"

"अभी बढती हूँ !" और चंदा रधिया की बाहें पकडे मंदिर की सीढियाँ चढ़ने लगी ! कमलेसर ने आगे बढ़कर मंदिर का द्वार बंद कर दिया ! "तू नहीं खोलेगा ?"

"नहीं"

"परिणाम जानते हो ?"

"झेल लूँगा !"

"ठीक है !" चंदाबाई एक झटके से मुड़ी ! रधिया के साथ हनहनाती हुई बाहर निकली - मंदिर परिसर से ! वह भट्ठे पर पहुँच गई !

"मैनेजर साहेब, ईंट की बिक्री कैसे हो रही है ?"

"तीन हजार का हजार !"

"मंदिर बनवाना है , ठीक से बोली !"

"मंदिर ?, किसका ?"

"महादेव मंदिर !"

"तब सत्ताईस सौ का हजार !"

"ठीक है ! बीस हजार ईंट भेज दीजिए ! और ये रखिए एडवांस !" चंदा ने नोटों की गड्डी मैनेजर साहब की ओर बढ़ा दी ! मैनेजर कुछ देर तक उसके चेहरे की ओर देखता रह गया !

"कहाँ बनेगा मंदिर ?"

"तालाब के पूर्वी घाट पर !"

"कबसे ?"

"जबसे आप ईंट भेज दीजिएगा !"

"तब तो आज ही भेज दूंगा !"

"तो कल नींव पड़ जाएगी !"

"इतनी जल्दी क्या है बाई जी ?"

"जल्दी ही नहीं बहुत जल्दी है मनेजर साहेब ! नाग जब ठोकर खा जाता है तो वह फुफकार उठता है ; लेकिन जब उसके सर पर लाठी का वार पड़ जाता है तो वह फुफकारता नहीं बल्कि दौड़ कर मारने वाले को काट खाता है ! पूरा का पूरा विष उगल देता है ! चाहे इस प्रक्रिया में उसे लाठी का और प्रहार ही क्यों न झेलना पड़े या उसकी जान ही क्यों न चली जाए !"

"हूँ .... कोई गंभीर घटना घटी है ! ठीक है बाई जी ! ईंट पहुँच जाएगी ! "

"ठीक है !" चंदा रधिया के साथ अपने कोठे पर लौट आई ! बोली -" जाकर राणा से यह ख़ुशी का समाचार कह देना और जल्दी से उसे मेरे पास भेज देना ! एक प्लान बनाना है ! इन गधों को सबक सिखाने के लिए ! इन लोगो ने मेरी जिंदगी नरक बना दी ! मैं और नहीं सह सकती !" रधिया ने क्रोध की मूर्ती बनी हुई चंदा को एक नजर देखा फिर चल पड़ी !

२.

मंदिर की नींव पड़ गई ! काम धकाधक होने लगा ! साथ ही साथ एक दूसरा प्लान भी चल रहा था !

दूसरा प्लान - सभी हरिजनों ने मिलकर समूचे गाँव को घेर लिया था ! मगर किसी को इसका जरा सा भी भान नहीं था !

सुबह होने को थी ! चार बजे होंगे ! अंधियाली रात के कारण वातावरण धुंधला था ! नित्यानंद झा का बैल बीमार था ! हालत खराब थी ! नित्यानंद ने साईकिल उठा ली और चल पड़ा मवेशी डॉक्टर को बुलाने ! गाँव के बाहर निकल ही रहा था की उसपर हमला हो गया ! दनादन लाठियां बरसने लगी ! वह घायल हो गया ! साईकिल छोड़कर वह भाग आया ! उसे यह भी पता नहीं चल पाया की किन लोगों ने उसपर आक्रमण किया था ! दिन हुआ तो आक्रमणकारियों का पता लगाने और अपनी साईकिल वापस ले जाने पांच लठैतों के साथ वह घटनास्थल के पास पहुंचा ही था की पुनः तलवार और भालों से उनपर आक्रमण हो गया ! वे जबतक सँभालते तब तक किसी के हाथ कटे , किसी के पैर ! किसी के सर का आधा कोना उड़ गया ! खून के फव्वारे बह चले पर आक्रमण करने वाले इतने चतुर थे की किसी को संभलने का मौका देने से पहले ही भाग गए ! नित्यानंद अपने लठैतों के साथ वापस गाँव आ गया ! उनके इलाज के लिए डॉक्टर बुलाने कौन जाए , यह समस्या हो गई ! लोगों ने अपना- अपना घाव डिटोल से धोया और सरसों तेल लगाकर पट्टी चढ़ा ली ! दर्द के मारे कराहते रहे !

ऊँचे लोगों का बाहर निकलना मुश्किल हो गया ! उन्हें आभास हो गया की अछूतों ने पूरी घेराबंदी के साथ उन्हें लपेटा है ! और उनकी मुखिया है - चंदा बाई !

नित्यानंद का बैल दो बजते बजते छटपटाकर मर गया ! उसकी पत्नी चमरटोली गई ! चमारों से कहा की मुर्दा बैल उठाकर फेंक दे ! मगर चमैनो ने कहना शुरू किया -" हमलोगों से तो मंदिर के भगवान छुआ जाते है , उन्हें भी छूत लग जाती है ! आपके घर दरवाजे नहीं छू जाएँगे ? जाइए , हमलोगों में से कोई नहीं जाएगा ! "

नित्यानंद की पत्नी वापस आ गई ! तीन दिनों तक मुर्दा बैल दरवाजे पर ही पड़ा रहा ! चौथे दिन नित्यानद और उसकी पत्नी ने मिलकर कुछ राजपूतों को जमा किया और घसीटकर उसे बगल के गड्ढे में डाल दिया ! गंध के मारे उनकी नाक फटी जा रही थी ! कोई ना तो गाँव से बाहर जा सकता था और न ही कोई गाँव के अन्दर आ सकता था ! झूठी शान और अभिमान से लोग यथार्थ पर आने लगे !

पांचवें दिन कुछ औरतों ने हिम्मत की ! पूजा की थाल लेकर वो गाँव से बाहर आईं ! राणा अपने जवानों के साथ उनके सामने आ धमका !

"कहाँ चली मालकिन जी ?"

"अरे राणा , मालकिन कहे की ! तुमसे ही मिलने आई थी !"

"मुझसे ? आपलोग तो पूजा करने मंदिर जा रही थीं !"

"राणा , मंदिर जाना तो बहाना था ! दरअसल हम कहना ये चाहते थे की ये दुर्दसा कब तक करोगे ?"

"तबतक , जबतक हमलोगों की दुर्दसा होती रहेगी !"

"मगर.....!"

"अगर मगर की बात नहीं चाची ! हमलोग आपलोगों को सदैव देवी और पूज्य मानते आए हैं ! अपना समझकर अच्छा व्यवहार करते हैं ! मगर आपलोगों के पति, भाई - बंधू हमलोगों की बहु -बेटियों को खिलौना समझते हैं ! रंडी समझते है ! चाची , रंडी को रणचंडी बनते देर नहीं लगती !"

"समझती हूँ ! सब समझती हूँ राणा ! पता नहीं कैसे ये मर्द लोग हवस के भूखे कीड़े बन गए !

मगर अब क्षमा भी तो कर दो !"

"आपने तो कोई गलती नहीं की , फिर क्षमा क्यों ?"

"उनलोगों की ओर से जो जीवित ही मर गए हैं !"

ऐसी ही बातें हो रही थी की मगनुआ आया ! उसके एक हाथ की गिरफ्त में एक राजपूत जवान और दुसरे हाथ में उससे छिनी हुई बन्दूक !

राणा ने पूछा -" क्या बात है ?"

"यह बन्दूक के बल पर रास्ता बनाना चाहता था !"

राणा ने उन महिलाओं की ओर देखा ! एक महिला आगे बढ़ी ! उसने उस जवान के गाल पर एक करारा थप्पड़ जमा दिया !

"तुमलोग कब तक आग लगते रहोगे मूर्ख ?"

राणा बोला -" चाची , आपलोग फैसला चाहती हैं न ? मंदिर बनकर तैयार है ! आदमी शिवलिंग खरीदने जा चुके हैं ! प्राण - प्रतिष्ठा के बाद बात होगी ! फैसला होगा आज से तीन दिन बाद !"

"तब तक ?"

"तब तक ऐसे ही घेरा पड़ा रहेगा ! मगर महिलाओं के साथ कोई बदसलूकी नहीं होगी ! हमलोग इन कुत्तों जैसे नहीं हैं !"

औरतें वापस लौट गईं !


३.

"चंदा महादेव मंदिर" का बाहरी और भीतरी परिसर लोगों की भीड़ से खचाखच भरा था ! सभी थे - छूत -अछूत , सवर्ण - अवर्ण ! बच्चे - बच्चियां तो किलकारियां मार मार कर दौड़ -धुप , खेल - कूद रहे थे !

मंदिर में भगवान शिव के शिवलिग का प्राण प्रतिष्ठापन हो चूका था ! लोग अपनी अपनी जगह बैठे थे ! विगत दिनों का न्याय आज होने को था ! दूर - दूर से विद्वान , साधू एवं पंडित जुटे थे ! मंच पर एक -एक कर उनके प्रवचन भी चल रहे थे ! वे लोग अलग -अलग धर्मों में सारतः एकरूपता का सुन्दर विश्लेषण भी कर रहे थे ! अबकी बार एक वृद्ध -पैध साधु उठ कर खड़ा हुआ, जो मूलतः जन्मना ब्रह्मण किन्तु कर्मणा कबीरपंथी था ! उसने कहा -" एकै मटिया , एक कुम्हारा ! एक सबन का सिरजनहारा !!"

और संत कबीर की इस रमैनी का इतना भाव विस्तार उन्होंने किया की उंच -नीच , में भावात्मक एकता स्थापित हो गई ! जातिवादी अहं के पुतले भीतर ही भीतर जल कर राख हो गए ! और तब उन्होंने कहा -" आडम्बर छोड़कर , देह -कुल , जाति- धन , पद, रूप -रंग , का झूठा अहं छोड़कर सहज व्यवहार करें ! तो फिर जीवन स्वतः विमुक्ति का पथ पकड़ लेगा !"

लोगों ने तालियाँ बजाईं ! उसी समय भगवान् का प्रसाद लेकर रधिया के साथ चंदा बाई निकली ! चंदा ने अछूतों और रधिया ने सवर्णों को प्रसाद दिया ! सभी ने आपसी भेदभाव भूलकर प्रसाद लिया ! सभी मंदिरों के द्वार उसी समय से सभी जातियों के लिए खोल दिए गए ! प्रसाद वितरण के बाद साधू बाबा ने जयध्वनि की !\

चंदा द्वेष और घृणा की आग में उबलते खून पर प्रेम सद्भाव और सहानुभूति की सुधा छिड़क गई !