रथ यात्रा / धनन्जय मिश्र

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धमगज्जर क्लाश चली रहलो रहै। वातावरण शान्त मगर चहल-पहल रहै। सब वगोॅ में शिक्षक छात्र सिनी के शिक्षा बाँटी रहलो रहै। है स्कूली रोॅ है खाशियत छै कि यहाँ कार्य दिवसों मेंसमय पर सब काज नीकोॅ सें पुरा होय जाय छौ। की मजाल कि कोय शिक्षक लेट-लतीफ बिना कारण सें होतै आरोॅ आय नै ऐला पर काल आबी केॅ आपनोॅ हाजरी बनाय लेतै। है बात नै छै कि है रिवाज आय कल बनलौ छै, मतुर जबेॅ सें है स्कूली रोॅ सरकारीकरण होलो छै तभिये सें है परम्परा चल्लो आवी रहलो छै। यहोॅ बात नै छै कि है स्कूल शहरोॅ में छै। मतुर निरा खेत खलियानों रोॅ बीच ग्रामीण परिवेश में स्थित छै। जानों में जान है छै कि है स्कूली सुदुर देहातोॅ में नै रही केॅ भागलपुर हसडीहा मेन रोड़ों पर छै। "मेवालाल मिश्र, नेवालाल मंडल" प्लस टू हाई स्कूल चंगेरी मिर्जापुर रोॅ नामों सें जानलो जाय छै। है बातोॅ रोॅ जानकारी शिक्षा विभाग रोॅ अधिकारियों केॅ छै, तबेॅ नी हुनी नवका शिक्षक रोॅ नियोजन है स्कूली में है कही केॅ करै छै कि वहाँ ज्वाँन करला पर तोरो कर्म साधना पटरी पर रहतौ। हमरा याद छै कि आय से करीब पन्द्रह-बीस साल पहिने कोय शिक्षा अधिकारी केॅ अगर कोय शिक्षक के डंड देना रहै तॉ कालापानी रूपो में हुनको ट्रान्सफर (बदली) ढोल बज्जा या कदवा हाई स्कूली में करी दै छेलै, कैन्हे कि हौ दोनों स्कूल गंगा कोशी रोॅ पार सुदूर देहातों में रहै। है स्कूली रोॅ कर्म-साधना सें तपलो कत्ते नी दिग्गज शिक्षक यहाँ से बदली होयकॉ दोसरोॅ स्कूली में जाय केॅ हौ स्कूली रोॅ कायाकल्प करी केॅ शिक्षा अधिकारी सें वाहवाही लेने रहै छेलै है बातो पर है स्कूली केॅ गर्व छै। आरोॅ गर्व छै है बातों पर भी कि है स्कूल जें मंदार पर्वत रोॅ आंगन में बसलो छै, हौ साहित्यिक अवदान रोॅ उर्वर कर्म-भूमि भी बनलो छै। यहाँ से कत्ते नी साहित्यिक व्यक्तित्व नक्षत्र बनी केॅ साहित्यिक आकाश पर चमकी रहलो छै। हौ में पहलो नाम लेबै अनिरूद्ध प्रसाद 'विमल जी' रोॅ, जे साहित्य रोॅ हर विधा मेें आपनो सशक्त उपस्थिति दर्ज कराय रहलो छै। फेरू नाम लेबै कवि साहित्यकार अश्विनी जी रोॅ, कहानीकार सुरेन्द्र प्रसाद यादव जी रोॅ आरोॅ अन्त में हम्में आपनो भी नाम लेबै। हिनी सभ्भें यही स्कूली रोॅ शिक्षक छेलै। साहित्यकार प्रदीप प्रभात आरोॅ प्रोॉ नवीन निकंुज तॉ है स्कूली रोॅ छात्रो रहै।

यही बीचों में घंटी बजी गेलो रहै। शिक्षक आपनोॅ क्लाश बदली के दोसरोॅ क्लाशोॅ में प्रवेश करी चुकलो रहै। वर्ग दशम् में कैलाश बाबु रोॅ क्लाश रहै। कैलाश बाबु सामाजिक शास्त्रा रोॅ शिक्षक रहै। हुनी आय क्लाशोॅ में छात्र-छात्र के नैतिक शिक्षा रोॅ पाठ पढ़ाय रहलो छेलै। यहीं क्रम में कैलाश बाबु एक छात्र सें प्रश्न करलकै-"श्याम, तोहे है बतावो कि जबे शिक्षक क्लाशोॅ में सब छात्र सिनी केॅ एक समान ही पढ़ाबै छै तॉ कोय छात्र परीक्षा में फस्ट करै छै आरोॅ कोय छात्र फेल होय जाय छै है कैन्हें होय छै?" श्याम खाड़ों होय के हकलैते हुए जवाब देलकै-"सर, आपने रोॅ पाठ का जें छात्र ध्यान सें सुनी केॅ होकरोॅ मनन आरोॅ हर बार अभ्यास करै छै हौ छात्र परीक्षा में फस्ट करै छै आरोॅ जें छात्रों रोॅ मोॅन क्लाशोॅ में पाठोॅ पर नै रही के खाली फॉकी दै में रहै छै हौ छात्र फेल करी जाय छै।" "बहुत बच्छा" मास्टर साहेब बोललो रहै। "देखोॅ बच्चो-विद्यार्थी जीवन तोरा सब रोॅ लेली स्वर्णीम काल रोॅ समान तपस्या काल छौ। है समय रोॅ उपयोग जें छात्र दुःखो धरकनोॅ से करी लेतै होकरो आबै वाला कल रोॅ समय सुख-समृद्धि संे भरलो रहतै मतरकि जें है समय रोॅ दुरूपयोग करतै, मटरगस्ती करतै, होकरोॅ आबै वाला कल रोॅ समय होकरा काल बनी केॅ डरैतै। होकरोॅ सौसे जीवन दुःखो सें भरलो रहतै।" छात्र-छात्र बड़ी ध्यानों सें है पाठों के सुनी रहलो छेलै।

पाठै रोॅ बीचों में मास्टर साहेब है महसुस करलकै कि क्लाशों में आय छात्र-छात्रओं रोॅ उपस्थिति आरो दिनों नांकी नै छै। है देखी केॅ मास्टर साहेब सन्नी सें पुछलकै-"सन्नी, तोरो सिनी आरोॅ दोस्त सब आय पढ़ै ला नै ऐलो छौ कि बात छै? सर, आय 'रथ-यात्र' छेकै नी, हमरो कत्ते नी साथी रथ-यात्र देखैलॉ बौंसी (बालिसानगर) गेलो छै। हमरो सिनी के जाय रोॅ मोॅन करै छै सर, आपने कुछछु करीयै नी" सन्नी बोललो रहै। यै पर कैलाश बाबु चौकी उठलै। ओ! आय रथ-यात्र छेकै। हुनी देवी-देवता धर्मकाण्ड पर विश्वास करै छेलै। हुनी कत्ते नी धार्मिक कथा छात्र सिनी केॅ क्लाशों में सुनैते रहै छेलै। "हम्में तोरा सिनी लेली तॉ कुछछु ज़रूरे करभोॅ मतुर पहिने तोरा सिनी है प्रश्न रोॅ जवाब दौ-कि रथ-यात्र कबे होय छै?" है प्रश्न सुनी के सब छात्र-छात्र शान्त छेलै। मतरकि तखनी शान्त होय गेलै स्कूली रोॅ चहल-पहल जखनी स्कूली रोॅ प्रांगण में एक टा सरकारी जीप आबी केॅ कार्यालय सामने रूकलै। स्टेनो साथें शिक्षा विभाग रोॅ डीॉईॉओॉ साहेब स्कूल निरीक्षण करै ला ऐलो रहै। स्कूली रोॅ सब स्टाफ साथे प्रधान जी डीॉईॉओॉ साहेब रोॅ अगवानी करी के हुनका बैठैलॉ आपनो कुर्सी पेश करलकै। ज़रूरी कुछछु रजिस्टर पंजी देखी केॅ कुछ देर रोॅ बाद प्रधान साथे डीॉईॉओॉ साहेब क्लाश निरीक्षण रोॅ क्रम में वर्ग दशम मेंअनुमति लैके प्रवेश करलकै। दुआ सलाम रोॅ बाद छात्र-छात्र रोॅ कमजोर उपस्थिति पर शिक्षक कैलाश बाबु सें कारण जानी के डीॉईॉओॉ साहेब रोॅ नजर ब्लैक बोर्ड पर लिखलोॅ शीर्षक 'रथ-यात्र' पर पड़ी गेलै। यही क्रम मेंहुनी छात्र-छात्र से एक टा प्रश्न पुछी देलकै-"अच्छा तोरा सिनी है बतावॉ तॉ रथ-यात्र कबे मनैलोॅ जाय छै?" बच्चा सिनी के चुप देखी के डीॉईॉओॉ साहेब मास्टर साहेब से अनुरोध करलकै-"रथ-यात्र पर पुरा जानकारी बच्चा सिनी के आपने दियै। हमरो भी जानकारी बढतै।" है सुनी के छात्र-छात्र में भी है यात्र लेली उत्सुकता बढ़लै।

मास्टर साहेब रथ-यात्र पर बोलना शुरू करलकै-"रथ-यात्र आषाढ़ माँस रोॅ शुक्ल पक्ष दुतिया रोॅ दिन शुरू होय छै। है अनुष्ठान देश रोॅ हर हिस्सा में प्रायः मनैलो जाय छै, खास करी के हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र में। कहीं-कहीं है अनुष्ठान एक दिन में ही पुरा होय जाय छै, आरोॅ कहीं तॉ है अनुष्ठान नौ दिन तक चलै छै। बिदेशों में भी हेकरो मनाय लेली समाचार मिलै छै। है यात्र में भगवान जगन्नाथ के आपनो सखा समेत रथ में बैठाय का भक्तजन रस्सी सें रथ कॉ खींची केॅ सम्पूर्ण नगर में घुमाय केॅ संध्या बेला में फेरू वापस मंदिर में लानी केॅ विश्राम कराय छै।" सर, संसार रोॅ कौन भाग में सबसे आकर्षक रूप से आरोॅ किनको लेली है रथ-यात्र मनैलो जाय छै? "किरन नाम रोॅ छात्र ने खाड़ो होय कॉ है प्रश्न पुछलकै।" संसार में सबसे बड़ों आरोॅ आकर्षक रूप से उड़ीसा राज्य रोॅ पुरी नगर में स्थित जगन्नाथ मंदिर सें हर साल भगवान जगन्नाथ रोॅ रथ-यात्र निकली केॅ मनैलो जाय छै। है यात्र में देश-विदेश रोॅ लाखौं श्रद्धालु भाग लैके पुण्य के भागी बनै छै। भगवान जगन्नाथ जी, बड़े भाय बलभद्र जी आरोॅ बहिन सुभद्रा लेली है रथ-यात्र मनैलो जाय छै। है बार रोॅ रथ-यात्र श्रद्धालु लेली खुब्बे विशिष्ट छै, कैन्हें कि है रथ-यात्र से पहिनेॅ ही जगन्नाथ भगवान रोॅ पच्चीसवां नवकलेवर महोत्सव भी सम्पन्न होलो होतै। " कैलाश बाबु है रं बोललो रहै कि डीॉईॉओॉ साहेब भी प्रभावित रहै।

"है नवकलेवर महोत्सव कतना सालो में आरू कि छेकै आरोॅ कैन्हे मनैलो जाय छै सर।" एक छात्र सागर रोॅ प्रश्न छेलै।

"बहुत नीको प्रश्न छौ" कैलाश बाबु मुस्काय के बोललो रहै।

"है नवकलेवर महोत्सव उन्नीस सालो पर मनैलो जाय छै। भगवान जगन्नाथ रोॅ काष्ठ बिग्रहों (लकड़ी रोॅ मूर्ति) रोॅ मूर्तियों में परीबर्त्तन करलो जाय छै यानी उन्नीस सालों रोॅ मूर्ति के बदली के फेरू नया मूर्ति बनैलो जाय छै। जे है बात रोॅ सूचक छै कि भगवान भी बदलाव सें नै बचै छै। जबे हुनकौ भी बदलाव प्रिय छै तॉ हमरा सिनी नरी लोगों रोॅ जीवन में होय वाला हर बदलाव केॅ स्वीकार कैन्हें नी करना चाहियों।"

"शास्त्रों में वर्णन मिलै छै कि भगवान श्री कृष्ण ने अषाढ़ अधिमास रोॅ समय में बहेलिया रोॅ वाण सें आहत होय कॉ आपनो देह त्याग करने रहै। हुनको प्रिय सखा अर्जुन ने हुनको अंत्येष्टि करने छेलै मतुर हुनको देह पूरी तरह सें भस्मीभूत नै होलो रहै। हुनको अधजलोेॅ नाभि मंडल के लैके अर्जुन ने चंदन रोॅ लकड़ी के साथै ही सागर में भसाय देने रहै। हौ चंदन लकड़ी रोॅ साथ नाभिमंडल भसतंेे-भसतंे सागर रोॅ पश्चिमी तटो से पूर्वी तट पर आवी केॅ किनारे लागलो छेलै। वहाँ केरो राजा 'इन्द्रधुम्न' कॉ सपना होलै कि है पवित्र दारू काष्ट (लकड़ी) सें विष्णु केरो मूर्ति बनवाय केॅ श्रद्धा भाव से नियमपूर्वक हुनको पूजा-अर्चना करो। किंवदंती छै कि महाराजा इन्द्रधुम्न द्वारा बनवैलो वहाँ बिग्रह (मूर्ति) रोॅ हौ समय से ही आय तक भगवान जगन्नाथ, हुनको भाय बलभद्र आरोॅ बहिन सुभद्रा रोॅ पूजा-अर्चना होय रहलोॅ छै।"

"देश रोॅ अन्य मंदिरोॅ में स्थापित पाषाण बिग्रहों रोॅ बिपरीत भगवान जगन्नाथ आम आदमी शरीर रोॅ भाँति ही आपनोॅ पुरानोॅ देह त्यागी के नया शरीर धारण करै छै। है कामों रोॅ क्रम ही नवकलेवर महोत्सव कहलाय छै।" है वर्णन कॉ सभ्भे छात्र-छात्र बड़ा मनोयोग सें सुनी रहलो छेलै। यही बीचों में एक टा छात्र कुंदन कुमार खाड़ों होय के प्रश्न करलकै-"सर, है नवकलेवर के आय तारीखों में केतना महोत्सव छेकै आरोॅ विधिशास्त्रा में हेकरो की विधान छै?"

है प्रश्न सुनी केॅ डीॉईॉओॉ साहेब बिना मुस्कुरैलो नै रहै लॉ पारलै, आरोॅ मास्टर साहेब से बोललै-"कैलाश बाबु, तोरो विद्यार्थी सब बड़ा मनोयोग से है रथ-यात्र रोॅ वर्णन सुनी रहलो छौ आगु उत्तर दौ।" जी सर, बोली केॅ हुनी आगु बढ़लै-"है नवकलेवर रोॅ आय केॅ तारीख में 'पच्चीसवां' महोत्सव छेकै। है महोत्सव रोॅ पहिने 'मादला पांजी' नाम सें ख्यात श्री मंदिर रोॅ दैनंदिनी लिपिबद्ध करै बाला पोथी रोॅ अनुसार है महोत्सव उन्नीस सौ छियान्वे साल में मनैलो गेलो छेलै।"

है नवकलेवर महोत्सव रोॅ विधि-विधान आसान नै होय छै। है विधि कॉ एक लम्बा विधान से गुजरना पड़ै छै। है बिग्रह (मूर्ति) नीम (दारू काष्ट) रोॅ बृक्ष सें बनैलो जाय छै। बिग्रह लेली बृक्ष रोॅ चयन मेंभी कड़ा विधान छै-जेना दारू वृक्ष पुरानोॅ मोटो, कोनोॅ नदी शमशान या आश्रम रोॅ निकट हुएॅ। बृक्ष में शंख-चक्र गदा पछ्म जैसनोॅ प्रतीक चिह्न हुएॅ। हौ बृक्षों पर लता या पंछी रोॅ घोंसला नै हुएॅ। हौ बृक्षों पर कोय आदमी कैयाँह चढलोॅ नै रहै। बृक्ष रोॅ तना में दस-बारह फीट तक कोनोॅ शाखा-प्रशाखा नै हुएॅ।

श्रुत संहिता में है उल्लेख मिलै छै कि चुंकि श्री कृष्ण साँवला छेलै यही लॉ जगन्नाथ जी रोॅ बिग्रह लेली कारोॅ तना वाला दारू वृक्ष रोॅ काष्ट रहाँ। हुनको भाय लेली श्वेत वर्ण रोॅ काष्ट रहॉ, आरोॅ बहिन लेली पीत वर्ण रोॅ दारू बृक्ष होय ला रहॉ। जे साल नवकलेवर महोत्सव होय छै हौ साल चैत्र शुल्क दशमी सें श्री जगन्नाथ रोॅ बंशधर रूप में जानकार दइता पति (पुजारी) आपनोॅ अनुचरोॅ रोॅ साथेॅ दारू बृक्ष रोॅ खोज में निकली जाय छै। दोसरोॅ दिन भोरै है दल प्राची नदी में नहाय कॉ पुरी नगर सें आनलोॅ भोग समान मंगला मंदिर रोॅ पुजारी केॅ दै छै। यहाँ पुजारी निबेदक बनै छै। फेरू दोसरोॅ दिन निबेदक रूपी पुजारी आरोॅ दइता पति दोनों मिली कॉ बिग्रहों रोॅ लेली दारू बृक्ष (नीम) रोॅ खोजोॅ में निकली जाय छै। पहिने बहिन सुभद्रा लेली, फेरू भाय बलभद्र लेली आरोॅ सबसे अंतिम में भगवान जगन्नाथ लेली उपयोगी बृक्ष खोजलोॅ जाय छै। बृक्षों के चयन रोॅ बाद होकरोॅ तना केॅ काटी कॉ एक विशेषरथों सें मंदिर तक लानलो जाय छै। है तना श्री मंदिर रोॅ उत्तरी द्वार रोॅ पास कोइली बैकुंठ में राखलो जाय छै, जहाँ ग्यारह दिनों तक यज्ञोत्सव होय छै। कृष्ण चर्तुदशी रोॅ दिन पूर्णाहुति तक निर्माण कार्य रोॅ समापन होय जाय छै। रथ-यात्र सें तीन दिन पहिने ही पुरानोॅ बिग्रह रोॅ स्थान पर नया बिग्रह स्थापित करी देलोॅ जाय छै। मूर्तियों कॉ चित्रित करै केॅ बाद हुनको पलक (आँख) खोललोॅ जाय छै, जेकरा नेत्रोत्सव कहलोॅ जाय छै। फेरू एक विशेष मुर्हूत में निर्दिष्ट विधि-विधान रोॅ साथ नयका बिग्रहों केॅ रत्न सिंहासन पर बैठाय देलो जाय छै आरोॅ पुरानोॅ बिग्रहों कॉ कोइली बैकुंठ स्थित "सेबलीलता" रोॅ नींचु समाधि (पाताली) में दै देलोॅ जाय छै।

है रं भगवान केॅ है नवकलेवर अनुष्ठान द्वारा हमरोॅ आरोॅ सबरोॅ आपनोॅ जीवन में नया बदलाव अपनाय लेली प्रेरित करतेॅ रहै छै। पुरी नगर रोॅ रथ-यात्र नै दिनों में पुरा होय छै। है अंतिम वाक्य सुनथै क्लाश ताली सें गनगनाय उठलै। डी0ई0ओ0 साहेब छात्र-छात्र आरोॅ कैलाश बाबु केॅ शुभकामना दै कॉ आरोॅ बचलोॅ क्लाश निरीक्षण लेली बाहर निकली गेलै। निरीक्षण समाप्त होला पर स्कूली में छुट्टी रोॅ घंटी सुनथै लड़का सिनी रथ-यात्र देखै लेली दौड़ी पड़लोॅ छेलै।