रमधनिया का होली / सौरभ कुमार वाचस्पति

Gadya Kosh से
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संझिए से रमधनिया का मूड देख के हमको बुझा गया था की ई चोट्टा आज जरूर कोनो ठकैती करने वाला है (ई रमधनिया का बारे में थोडा सा जानकारी दे देना हम इहाँ पर जरूरी बूझते हैं ... आप लोग को राम खेलावन चच्चा जरूरे याद होंगे। उन्ही का पोता है ई रमधनिया। पाकिट में चाइना मोबाइल और पान पराग गुटखा रखता है। पढाई के नाम पर सफाचट्ट लेकिन बाते से लंका ढाह देता है!), नगीच आ करके हमसे कह रहा था "- कक्का, संझा में भगवत्ती थान में किरतन है ...तिरवेनी बाबा आपको भी बुलाए हैं। बिसेस में आप तS बूझिए गए होंगे की कल्हे होली है ..... तS उसका तैयारी-उइयारी करना है। एगो बात और, तिरबेनी बाबा कहे हैं की एक मुट्ठा बीड़ी सेहो लेते आने के लिए ..... अगर पनामा सिकरेटो लेते आइएगा तS और सुन्दर।"

मंद-मंद मुस्कियाता हुआ उसका थूथुन देख कर के हमको बुझा गया की पट्ठा जरूर कोनो फ़िराक में है। मुह से बसिया ताड़ी का भभका निकल रहा था।

हम कह दिए "- बेटा रमधनिया, उ सब त ठीक है लेकिन देखो अगर ई होली में तुम कुच्छो गड़बड़ किए तS सोंटा से खाल खींच लेंगे तुम्हारा। बुझाया की नहीं?"

"कक्का, काहे मजाक करते हैं ..... आपको तS पते है की रमधनिया केतना सरीफ है ....... ई मादर... पता नै के आपको कनफुसकी कर दिया है .....! होली बीते दीजिए .... पता तS लगाइए लेंगे हम .... तब बताएँगे की रमधनिया केकर पोता है।" रमधनिया मुस्कियाते हुए चला गया। हमहूँ तिरबेनी बाबा के खातिर पान-बीड़ी-सिकरेट के इंतजाम में लग गए।

वैसे त तिरबेनी बाबा को देखिएगा तS कहिएगा की ई तS दुइयो डेग नै चल पाते होंगे। देह का एगो एगो हाड स्पष्ट देखाई देगा। ऐसा लगेगा जैसे हड्डी पर चमरा सी दिया हो। और सही बूझ रहे है आप लोग। बाबा कहैं नै जा पाते हैं। दालान पर करिकबी गाय के बगल में उनका खटिया लगा रहता है। दिनभर उसी पर लेटे-लेटे हुक्का पीते रहते हैं। ठेंगा पर चलते हैं। तीन लोटा पानी से उनका स्नानो हो जाता है और धोतियो धुआ जाता है। लेकिन अगर कहियो उनको ढोलक/नाल बजाते देख लिए तS बिस्वास नै होगा की ई हड्डी में अभियो जुआनी बाकी है।

सांझ को भगवत्ती थान पहुंचे त सब गवैया -बजवैया जुट गए थे। हम चुपचाप तिरबेनी बाबा को बीड़ी और सिकरेट धरा करके एगो कोना में बैठ गए।

"गाइएSSSS गणपतिSSSS जगवंदनSSSSS..........!"

किरतन शुरू हुआ।

इहाँ पर हम एक और करेक्टर के बारे बताना लाजिमी बूझते है ---- सिंघो चा,..... राज मिस्त्री हैं, साथ ही साथ गाँव के गवैया मंडली के हारमोनियम के बजैया। निरामिष आदमी। कंठीधारी वैष्णव। पूरे गाँव में एक नंबर के हरवाह (हलवाहा) हैं। तमाखू खाते नहीं। बीड़ी बहुत पीते हैं। सब ठीक है, लेकिन तिरबेनी बाबा को तब गुस्सा आता है जब सिंघो चा गांजा के धुनकी में ताल से बेताल हो जाते हैं।

तिरबेनी बाबा नाल बजाते बजाते जब देखते हैं की सिंघो चा बेताले हो रहे है तS तुरंत उनका हाथ पकड़ के धमकियाते है "- रे सिंघबा, नै पचै छौ तS किए इत्ते गांजा पी लय छें? ताल से बजा नै तS दहीं रमबलका के।"

सिंघो चा फिर से संभल जाते। सिंघो चा को सबसे बेसी परेशानी होता है चैती पर।

"अवधऽऽऽऽ मेंऽ बजतऽऽऽ बधैयाऽऽऽ होऽऽऽऽ रामाऽऽऽऽऽ....... चैतऽऽ शुभऽऽ दिनमाऽऽ .....!”

सिंघो चा को धियाने नहीं रहता की मद्धिम ताल से कब तीव्र पर जाना है ..... और उ गड़बड़ा जाते।

बारह- एक बजे रात तक खूब हुडदंग हुआ। चैती - फगुआ, देवी गीत होते होते शिव स्तुति गा करके किरतन समापत्त हुआ।

उमापति महादेव की जयऽऽऽऽऽ
सियापति रामचंद की जयऽऽऽऽऽ
बौआ लखनलाल की जयऽऽऽऽऽ
जय जय जय हनुमानऽऽऽऽऽ
हरिऽऽऽऽऽ...... बोलऽऽऽऽऽ

जैसे ही किरतन समापत्त हुआ रमधनिया वहां से ससरने लगा।

हम बूझ गए ई अब अपना कारगुजारी करने निकलेगा। हम उसके पीछे जाने ही वाले थे की तिरबेनी बाबा हमको वापस बुला लिए।

बोले -"कहाँ जा रहे हो छोटका, सम्मत (होलिका दहन) का टाइम हो गया। चलो ...!"

हम तिरबेनी बाबा के साथ डीहबार बाबा के स्थान दिस चल पड़े। डीहबार बाबा हमरे गाँव के एकदम उत्तर में पीपर गाछ के नीचे अपना अड्डा जमाए हुए हैं। उनके पुजेरी हैं जोगिन्दर महतो। भटोतर गाँव वाले लीक पर हमरे गाँव से आधा किलोमीटर पर विराजमान हैं। होलिका दहन हुआ। सब लोग घर आ गए।

दालान पर सोए हुए थे की शोर-शराबा से आँख खुल गया। देखे की चमरटोली की भूटिया चम्मैन पांडे भैया को सुद्ध देहाती विशेषणों से असीस रही है।

"देखिए बौआ.... ई संझा-भिनसारे के जनमल सब हमरे टटघरबा का का हाल कर दिया है! हमको चीन्हता नै है कोय। सबको ई बिसहैर मैया को चढ़ा नै दिए तs हमहूँ चमार के बेटी नै। ई सब आपलोग का मन बढाया हुआ है। आप ही लोग सब फुल फिरि दे दिए की सम्मत के लिए लकड़ी ले आओ। तभी तs ई सब ऐसा हिम्मत किया है।"

भूटिया चम्मैन जमा चार फुट की है। गाँव की पतोहू। पांडे भैया चुपचाप मुड़ी झुका के सुन रहे थे।

हम कुल्ला कर के दू गिलास पानी पिए और चल दिए कारन जानने के लिए उनके पास।

भूटिया चम्मैन अविराम पुरे गाँव के "मर्द" को अपने विशेषणों से विभूषित करे में लगी पड़ी थी उसकी नजर हमरे ऊपर पड़ गई। मुह में आया हुआ गारी का आधा भाग बाहर निकला ही था की चुप हो गई। झट घुटना से ऊपर खोंसा हुआ साड़ी का "कोंचा" नीचे गिरा दिया। कोंचा सरियाने के चक्कर में अंचरा उड़ गया। और फिर पट से आधी ऊगली हुई गारी को पूरा कर दिया। एक बात तो है। उ केतनहु केकरो इज्जत करे लेकिन केकरो गरियाते समय गायक और साथ में कवयित्री सेहो हो जाती है। उ भी अव्वल दर्जे की। हम गाँव छठे-छमासे जाते है इसलिए एक नया आदमी को देखकर के उ एक छन खातीर रुकी लेकिन फिर से शुरू हो गई। उसकी एक एक गारी सुनके ऐसा लग रहा था जैसे कोनो पीला हरा लाल नीला चलचित्र का वर्णन कर रही हो।

"आप मुखिया हैं तs रहिए बाकी ई मत भूलिए की हमहूँ हाई कोट पटना देखे हैं। भर जिनगी ........ नै किए है। (अगर गाँव की कोई और औरत होती तो कहती की "भर जिनगी करम नै कूटे हैं" लेकिन भूटिया उसके जगह पर शरीर के किसी अंग के साथ विशेषण जोड़ी थी।) हमको डर नै है केकरो भतार का।"

हमसे रहा नहीं गया त हम पांडे भैया से पूछ लिए की बात क्या है।

"का हुआ पांडे भैया ..... भोरे भोरे इ असीरबाद काहे सुन रहे दुआरि पर बैठ के?"

"अब का बताएं छोटका, इ साढ़ रमधनिया रात को पूरा तमाशा कर दिया था! उसी का फल भुगत रहे हैं।"

"का बात करते हैं भैया, रमधनिया त बारह एक बजे तक हमरे साथ था। किरतन में बैठा हुआ। का कर दिया उ?"

"इ भूटिया का पूरा टटघरबा उठा कर के सम्मत में झोंक दिया ..... पता नै मादर...... इ खुराफाती दिमाग लाता कहाँ से है।"

हम बूझ गए की जब तिरबेनी बाबा हमको वापस बुला लिए थे तभी रमधनिया इ काण्ड किया होगा। रमधनिया को बुलाया गया। इधर भूटिया अपना वाक कौशल का चमत्कार दिखा रही थी।

"बाप के नाम लत्ती -फत्ती, पूत के नाम कद्दू .......? मुखिया जी हमको केकरो डर नै पड़ा है। एँ...... तैनको सरम नै आया था। बड़का बड़का ओकील मोख्तार हम अपना "अथी" के दायाँ -बायाँ बान्ह के रखते हैं। थाना -पुलिस आ कचहरी सब के "सवाद" पता है हमको। केकर मजाल है की हमर "अथी" उखाड़ ले। बाकी आपलोग का "सह" पर इ कल्हका छऊडा हमर टटघरबा सम्मत में झोंक दिया। उप्पर-उप्पर आपलोग देखाते है की बहुत सरीफ हैं .... एँ ... अटना के साहेब आ पटना के मेम .... रात खाए मुर्गी आ भिनसारे करे नेम .....! बड़का -बड़का दह गए..... आ कुत्ता कहे केतना पानी।"

मजाल की कोय उसका मुह चुप कर दे......। रमधनिया आ गया। साथ में टिघुरते टिघुरते राम खेलावन चच्चो आ गए (राते से जेतना ने दारु पी रहे थे चच्चा की अभियो भकुआए हुए थे)! भूटिया को समझाए की जेतना नुकसान हुआ है उतना पैसा दे देंगे तब जाकर भूटिया वापस गई। अब चच्चा रमधनिया को ठीठीयाते देखे तs दू तमेचा कान के तरी में बैठा दिए।

"साढ़ .... भर दिन इहे आवारागर्दी ..... और कोनो कामे नै है इसको ..... केतना समझाया है की नै पढना है तs कोनो कामे करो लेकिन नै ... इसको तs छौड़ी बाजी से फुर्सत नै है।"

हम चच्चा को किसी तरह समझा बुझा कर के वापस तडबन्ना दिस भेजे ... फिर रमधनिया को लेके अपना दुआरि पर बैठ गए।

पूछे -" की रे मादर ....... एक बेर में समझ में नै आता है .... हम तुमको कल्हे कह दिए थे की इ बार होली में कोनो गड़बड़ी करोगे तs सोंटा से देह का चाम छील देंगे .... तभियो तुमको नै बुझाया .....?"

"कक्का .... इ भूटिया पर तs हम पहिलही से नजर गडैने थे। इ "सतभतरी" हमको केतना बेर धमकी दे चुकी है की उसके आम गाछी से आम टूटा तs हमको फंसा देगी। पंचैती करेगी। हम तs पहिले पिलान बना लिए थे की इ बार होली में एकर टटघरबा सम्मत में झोंकबे करेंगे।"

"ससुर के नाती ....... जब तू किरतन में से ससर रहा था तभिए हमको बुझा गया था तू कोनो कांड करे वाला है। चल निकल इहाँ से .... भोरे भोरे मूड ख़राब कर दिया।"

"कक्का ....... आ आप अपना नै कहते हैं ... भोरे भोरे हमर कान गरमा दिए सो नहीं ....... दीजिए ..... कुछ खरचा-पानी निकालिए...... इतना दिन बाद त होली में गाँव में धराए हैं .... सुखले सुखले जाने देंगे आपको का।"

"का लेगा बे ..... जाके काकी से रंग का पैकेट ले लो ......!"

"कक्का ..... कोन ज़माना में बिला गए हैं आप..... रंग त हमरा पास है ..... दारु पिए खातिर रुपैया निकालिए....... रुपैया।"

“रे साढ़ ..... तुहू दारू पीता है रे .... कोन वाला पीता है ....... दलसिंह सराय वाला गुलबिया देसी, महुआ, आकी पोलिथिन?"

"मुरुख चपाठे बूझ लिए कक्का आप भी हमको ....... चुपचाप "सी वाज रीगल" के फुल का दाम निकालिए!"

हम बूझ गए की इ रमधनिया आज बिना रुपैया लिए मानेगा नहीं सो चुपचाप रुपैया निकल कर के दे दिए।

दुपहर को भगवती थान से नाल हारमोनियम लेके पूरा गाँव घूमने के लिए निकले .... रमेसर बाबा के दुआरि पर भांग का ठंढई बनने लगा। जानी बना। और फिर शाम तक जोगीरा (फाग) गाते रहे।


वाचस्पति सौरभ "रेणु"

३०.०३.२०१३