रांझणा की सफलता और धनुष / जयप्रकाश चौकसे

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रांझणा की सफलता और धनुष
प्रकाशन तिथि : 25 जून 2013


आनंद राय की फिल्म 'रांझणा' ने पहले तीन दिनों में इतनी कमाई की है कि कम बजट में बनाई गई यह फिल्म सफल रही है। 'तनु वेड्स मनु' के बाद आनंद राय की यह दूसरी सफलता है। उनका परिवार देश के विभाजन के समय सिंध से दिल्ली आकर बसा था, परंतु दक्षिण भारत से उनका काम का रिश्ता बन गया है, क्योंकि 'तनु वेड्स मनु' के नायक महादेवन की तरह नवीन फिल्म के नायक धनुष भी दक्षिण के हैं और सुपर सितारे रजनीकांत के दामाद भी हैं। आनंद राय ने औरंगाबाद में कंप्यूटर विज्ञान की पढ़ाई अधूरी छोड़ी और अपने भाई रवि राय के साथ सीरियल बनाने के काम में जुट गए। सीरियल संसार छोडऩे के बाद उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा।

धनुष का अभिनय रांझणा की जान है और एक अत्यंत साधारण चेहरे-मोहरे वाले इस अनाकर्षक युवा की सफलता का श्रेय उसके पात्र में डूबकर अभिनय करने को जाता है। दरअसल, चिकने-चाकलेटी चेहरों के संसार में खुरदुरापन समय-समय पर आकर अपना सिक्का जमाता रहा है। यह सिलसिला शेख मुख्तार से शुरू होकर मिथुन चक्रवर्ती तथा ओमपुरी तक चला है और अब इसकी नई कड़ी धनुष है।

आनंद राय का कहना है कि वे रिश्तों में भरोसा करते हैं और अपनी फिल्म के कलाकारों से दोस्ती कर लेते हैं। उन्हें फिल्म कलाकार के भीतर छुपे उसके असली रूप को समझने की महारत हासिल है और यह प्रक्रिया ही अपने कलाकारों से बेहतर अभिनय कराने में उनकी सहायता करती है। 'तनु वेड्स मनु' के समय उन्होंने असली कंगना को पहचान लिया और आज भी वह उनकी इतनी अच्छी मित्र हैं कि 'रांझणा' के निर्माण के समय प्रतिदिन वे फोन पर कंगना से बात करते थे। गोया कि किसी फिल्म का अंत उनके लिए उसके निर्माण के समय बनाए हुए रिश्तों का अंत नहीं है। उनके लिए मानवीय रिश्ते फिल्म नहीं सीरियल की तरह अंतहीन हैं। यह स्थापित सत्य है कि मानवीय रिश्तों की मिक्सी में पिसकर निकला अनुभव ही मनुष्य को स्वयं को पहचान पाने में सबसे अधिक सहायता करता है। किसी निर्जन स्थान पर अकेले बैठकर भीतर की यात्रा का संकल्प कठिन होता है और आत्मलीन तथा आत्ममुग्ध होने का भय है। वह उबाऊ भी हो सकता है, जबकि मानवीय रिश्तों से ज्यादा मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक कुछ भी नहीं होता।

वेदव्यास का कहना था कि महाभारत की कथा वेदों और उपनिषदों से इस मायने में भिन्न है कि इसमें स्वयं की खोज विभिन्न रिश्तों के माध्यम से करने का आग्रह है और आत्मा-परमात्मा के दुरूह रिश्तों में उलझने से बेहतर है कि मनुष्य से व्यवहार करो। महाभारत एकमात्र ग्रंथ है, जिसमें सभी संभावित रिश्तों का विशद वर्णन है। अपने लिखे जाने के तीन हजार वर्ष पश्चात भी निरंतर बदलती हुई दुनिया में आज भी कोई ऐसी समस्या व रिश्ता विकसित नहीं हुआ है, जिसका विवरण इस महान ग्रंथ में वर्णित नहीं है।

बहरहाल, राजीव राय की अत्यंत मनोरंजक और उत्साहवद्र्धक फिल्म के अंतिम चालीस मिनट राजनीति में भटकने के बावजूद फिल्म की सफलता यह संकेत भी देती है कि व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश की भावना इतनी तीव्र है कि फिल्म दर्शकों को पसंद आ रही है। सोनम का यह संवाद कि नायक को उसकी मृत्यु तक भेजने के षडयंत्र में वह शामिल है और उसके लिए जेल जाने को तैयार है, परंतु इस षडयंत्र को रचने वाले मंत्री पर संभवत: पंद्रह वर्ष तक जांच का स्वांग चलेगा। यह बात बहुत चुभने वाली है, परंतु सत्य है। ताजा उदाहरण यह होगा कि भारतीय क्रिकेट टीम लंदन से कप लेकर आएगी और आइपीएल तमाशे में लगे सारे दाग धुल जाएंगे। गोया कि यह कप नहीं वरन रिन का डिब्बा है, जिससे दाग धुल जाते हैं और हम उसी संसार में लौट जाएंगे, जिसमें उसकी कमीज मेरी कमीज से उजली क्यों है। हमारे लिए न्याय, अपराध तथा दंडविधान से ज्यादा आवश्यक विजय रही है, शायद इसीलिए महाभारत का मूल नाम 'जय विजय' था।

आनंद राय की योग्यता यह भी है कि वे संगीत का इस्तेमाल बहुत प्रभावोत्पादक ढंग से करते हैं और उनकी फिल्मों में गीत भी गहरे और सार्थक होते हैं, परंतु 'तनु वेड्स मनु' के गीत 'रांझणा' से ज्यादा गहरे और सार्थक थे, भले ही अच्छा कवि कोई ब्राण्ड नाम का नहीं था।

रजनीकांत और कमल हासन हिंदुस्तानी सिनेमा में स्थायी स्थान नहीं बना पाए, परंत धनुष के अवसर बेहतर हैं, क्योंकि उसके अभिनय में स्वाभाविकता है।