राजकुमार की प्रतिज्ञा / यशपाल जैन / पृष्ठ 1

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पुराने जमाने की बात है। एक राजा था। उसके सात लड़के थे। छ: का विवाह हो गया था। सातवां अभी कुंवारा था। एक दिन वह महल में बैठा था कि उसे बड़े जोर की प्यास लगी। उसने इधर-उधर देखा तो सामने से उसकी छोटी भाभी आती दिखाई दीं। उसने कहा,

"भाभी, मुझे एक गिलास पानी दे दो।" महल में इतने नौकर-चाकर होते हुए भी सबसे छोटे राजकुमार की यह हिम्मत कैसे हुई, भाभी मन-ही मन खीज उठीं। उन्होंने व्यंग्य भरे स्वर में कहा, "तुम्हारा इतना ऊंचा दिमाग है तो जाओ, रानी पद्मिनी को ले आओ।" राजकुमार ने यह सुना तो उसका पारा एकदम चढ़ गया। बोला, "जबतक मैं रानी पद्मिनी को नहीं ले आऊंगा, इस घर का अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा।"

बात छोटी-सी थी, लेकिन उसने उग्र रूप धारण कर लिया। रानी पद्मिनी काले कोसों दूर रहती थी। वहां पहुंचना आसान न था। रास्ता बड़ा दूभर था। जंगल, पहाड़, नदी-नाले, समुद्र, जाने क्या रास्ते में पड़ते थे, किन्तु राजकुमार तो संकल्प कर चुका था और वह पत्थर की लकीर के समान था।

उसने तत्काल वजीर के लड़के को बुलवाया और उसे सारी बात सुनाकर दो घोड़े तैयार करवाने को कहा। वजीर के लड़के ने उसे बार-बार समझाया कि रानी पद्मिनी तक पहुंचना बहुत मुश्किल है, पर राजकुमार अपनी हठ पर अड़ा रहा। उसने कहा, "चाहे कुछ भी हो जाये, बिना रानी पद्मिनी के मैं इस महल में पैर नहीं रक्खूंगा।"

दो घोड़े तैयार किये गये, रास्ते के खाने-पीने के लिए सामान की व्यवस्था की गई और राजकुमार तथा वजीर का लड़का रानी पद्मिनी की खोज में निकल पड़े।

उन्होंने पता लगाया तो मालूम हुआ कि रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप में रहती है, जहां पहुंचने के लिए सागर पार करना होता है। फिर रानी का महल चारों ओर से राक्षसों से घिरा है। उनकी किलेबंदी को तोड़कर महल में प्रवेश पाना असंभव है वजीर के लड़के ने एक बार फिर राजकुमार को समझाया कि वह अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दे अपनी जान को जोखिम में न डाले, किन्तु राजकुमार ने कहा,

"तीर एक बार तरकश से छूट जाता है तो वापस नहीं आता। मैं तो अपने वचन को पूरा करके ही रहूंगा।"

वजीर का लड़का चुप रह गया। दोनों अपने-अपने घोड़ों पर सवार होकर रवाना हो गया।

दोपहर को उन्होने एक अमराई में डेरा डाला। खाना खाया, थोड़ी देर आराम किया, उसके बाद आगे बढ़ गये। चलते-चलते दिन ढलने लगा, गोधूलि की बेला आई। इसी समय उन्हें सामने एक बहुत बड़ा बाग दिखाई दिया। राजकुमार ने कहा,

"आज की रात इस बाग में बिताकर कल तड़के आगे चल पड़ेंगे।"

बाग का फाटक खुला था और वहां कोई चौकीदार या रक्षक नहीं था। वजीर के लड़के ने उधर निगाह डालकर कहा,

"मुझे तो यहां कोई खतरा दिखाई देता है। हम लोग यहां न रुक कर आगे और कहीं रुकेंगे।"

राजकुमार हंस पड़ा। बोला, "बड़े डरपोक हो तुम! यहां क्या खतरा हो सकता है? देखते नहीं, कितना हरा-भरा सुन्दर बाग है!"

वजीर के लड़के ने कहा, "आप मानें न मानें, मुझे तो लग रहा है कि यहां कोई भेद छिपा है।"

राजकुमार ने उसकी एक न सुनी और अपने घोड़े को फाटक के अंदर बढ़ा दिया। बेचारा वजीर का लड़का भी उसके पीछे-पीछे बाग में घुस गया। ज्योंही वे अंदर पहुंचे कि बाग का फाटक अपने आप बंद हो गया। राजकुमार और वजीर के लड़के को काटो तो खून नहीं। यह क्या हो गया? वजीर के लड़के ने राजकुमार से कहा,

"मैंने आपसे कहा था न कि यहां ठहरना मुनासिब नहीं? पर आप नहीं माने। उसका नतीजा देख लिया!"

राजकुमार ने कहा, "वह सब छोड़ो! अब यह सोचो कि हम क्या करें"

वजीर का लड़का बोला, "अब तो एक ही रास्ता है कि हम घोड़ों को यहीं पेड़ों से बांध दें और किसी घने पेड़ के ऊपर चढ़ कर बैठ जायें। देखें, आगे क्या होता है।"

दोनों ने यही किया। घोड़े पेड़ से बांध कर वे एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गये और चुपचाप बैठ गये।

अंधकार फैल गया। सन्नाटा छा गया। राजकुमार को नींद आने लगी। तभी उन्होंने

देखा कि हवा में उड़ता कोई चला आ रहा है। दोनों कांप उठे। हवा का वेग रुकते ही वह आकृति नीचे उतरी। उसकी शक्ल देखते ही दोनों को लगा कि वे पेड़ से नीचे गिर पड़ेंगे। वह एक परी थी। उसने नीचे खड़े होकर अपने इर्द-गिर्द देखा। तभी इधर-उधर से कई परियां आ गईं। उनके हाथों में पानी से भरे बर्तन थे। उन्होंने वहां छिड़काव किया। वह पानी नहीं, गुलाबजल था। उसकी खुशबू से सारा बाग महक उठा।

अब तो उन दोनों की नींद उड़ गई और वे आंखें गड़ाकर देखने लगे कि आगे वे क्या करती हैं।

हवा में उड़ती एक परी आ रही थी

उसी समय कुछ परियां और आ गईं। उनके हाथों में कीमती कालीन थे। देखते-देखते उन्होंने वे कालीन बिछा दिये। फिर जाने क्या किया कि वह सारा मैदान रोशनी से जगमगा उठा। अब तो इन दोनों के प्राण मुंह को आ गये। उस रोशनी में कोई भी उन्हें देख सकता था।

स जगमगाहट में उन्हें दिखाई दिया कि एक ओर से दूध जैसे फव्वारे चलने लगे हैं। पेड़ों की हरियाली अब बड़ी ही मोहक लगने लगी। जब वे दोनों असमंजस में डूबे उस दृश्यावली को देख रहे थे, आसमान से कुछ परियां एक रत्न-जटिलत सिंहासन लेकर उतरीं और उन्होंने उस सिंहासन को एक बहुत ही कीमती कालीन पर रख दिया। सारी परियां मिलकर एक पंक्ति में खड़ी हो गईं। राजकुमार ने अपनी आंखें मलीं। कहीं वह सपना तो नहीं देख रहा था!

वजीर का लड़का बार-बार अपने को धिक्कार रहा था कि उसने राजकुमार की बात क्यों मानी। पर अब क्या हो सकता था! आसमान में गड़गड़ाहट हुई। दोनों ने ऊपर को देखा तो एक उड़न-खटोला उड़ा आ रहा था।

"यह क्या?" राजकुमार फुसफुसाया। वजीर के लड़के ने अपने होठों पर उंगली रखकर चुपचाप बैठे रहने का संकेत किया। उड़न-खटोला धीर-धीरे नीचे उतरा और उसमें से सजी-धजी एक परी बाहर आई। वह उन परियों की मुखिया थी। सारी परियों ने मिलकर उसका अभिवादन किया और बड़े आदर भाव से उसे सिंहासन पर आसीन कर दिया।

थोड़ी देर खामोशी छाई रही। फिर मुखिया ने ताली बजाई। एक परी आगे बढ़कर उसके सामने खड़ी हो गई। मुखिया ने बड़ी शालीनता से कहा, "जाओ, उसको लाओ।"

"जो आज्ञा!" कहकर वह परी वहां से चल पड़ी और उसी ओर आने लगी, जहां पेड़ पर राजकुमार और वजीर का लड़का बैठे थे। दोनों की जान सूख गई। वे अपने भाग्य में क्या लिखाकर आये थे कि ऐसे संकट में फंस गये!

परी उसी पेड़ के नीचे आई और राजकुमार की ओर इशारा करके कहा, "नीचे उतरो। हमारी राजकुमारी ने तुम्हें याद किया है।" राजकुमार हिचकिचाया। उसकी हिचकिचाहट देखकर परी ने कहा, "जल्दी उतर आओ। हमारी राजकुमारी आपकी राह देख रही हैं।