राजनीतिक पंडागिरी / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती

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उन्हें भय है कि आगे उनकी पूछ न होगी। इसीलिए एक ओर जहाँ साम्यवाद एवं अराजकता के नाम पर दमन का दौर-दौरा है तहाँ दूसरी ओर उनने राजनीतिक पंडागिरी भी शुरू कर दी है जो बड़ी भयं कर होगी , अगर फौरन रोकी तथा दफनायी न गई। वह खूब समझते हैं कि फासिस्टी दमन से देर तक भूखी , नंगी , कराहती जनता को दबा रखना असंभव है। इसीलिए दमन के साथ ही बापू के नाम पर राजनीतिक मूर्तिपूजा उनने जारी कर दी है। स्थान-स्थान पर महात्माजी की मूर्तियाँ बन चुकी और तेजी से बन रही हैं , जिनके पंडे वही ' खाजा टोपी ' वाले बन रहे हैं! गाँधीजी की आत्मा को खून के आँसू रुलानेवाले ये बाबू दिन-रात उनकी सत्य , अहिंसा को एक ओर बेमुरव्वती से कत्ल करते हैं। दूसरी ओर उनकी जय बोलते और ' रघुपति राघव राजा राम ' गा कर भोली जनता पर मिस्मरिज्मवाला जादू चलाना चाहते हैं। इनके कुकर्मों से जनता ऊबी है। लेकिन धार्मिक पंडों से क्या कम ऊबी है ? फिर भी यदि उन पंडों के पाँव पड़ती और चढ़ावा चढ़ाती है तो इन नए राजनीतिक पंडों को भी पैसे और वोट का चढ़ावा जरूर चढ़ाएगी , इसी खयाल से महात्मा जी के नाम पर यह पंडागिरी चालू हो रही है जो निहायत ही खतरनाक होगी। धार्मिक पंडागिरी में तो सुधार हो सकता है , वह मिट सकती है। मगर इसमें सुधार की गुंजाइश कहाँ ? इसलिए यह पनपने ही न पाए , यही करना होगा। इसके विरुध्द अभी से जेहाद बोलना होगा नहीं तो किसान-मजदूर मर जाएँगे यह ध्रुव सत्य है। ये बाबू पंडे ' गाँधीजी की जय ' और ' रघुपति राघव ' को अपना राजनीतिक हथकंडा बनाने जा रहे हैं , याद रहे। इसलिए हमें इसे मटियामेट करना होगा।