राजसिंह डूंगरपुर: अनन्य क्रिकेट प्रेमी / जयप्रकाश चौकसे

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राजसिंह डूंगरपुर: अनन्य क्रिकेट प्रेमी
प्रकाशन तिथि : 28 जुलाई 2014


पच्चीस जून की शाम ब्रेबोर्न स्टेडियम, मुंबई के कर्नल सीके नायडू भवन में क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया के सौजन्य से राजसिंह डूंगरपुर को आदरांजलि देने वाली किताब का विमोचन भारत रत्न सचिन तेंदुलकर के हाथों हुआ। इस आयोजन में केवल डूंगरपुर के राजघराने के सदस्य मौजूद थे, वरन् आसपास की रियासतों के सदस्य भी पधारे थे। इंदौर के डेली कॉलेज मेयो के कुछ भूतपूर्व छात्र भी मौजूद थे। माधव मंत्री, अजीत वाडेकर, कैलाश गट्टानी, दिलीप सरदेसाई आैर एजाज मेनन भी उपस्थित थे। राजसिंह डूंगरपुर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया आैर जो बात सबसे प्रमुखता से उभरकर आई, वह थी उनका क्रिकेट के प्रति संपूर्ण समर्थन। ऐसे विरले लोग होते हैं जो अपने जीवन का केंद्रीय विचार किसी खेल या एक प्रवृति को इस कदर संपूर्णता से जिए। राजसिंह ने अपने घर जितनी बार नाश्ता या खाना खाया उससे कही अधिक बार उन्होंने ब्रेबोर्न स्टेडियम आैर लंदन के लॉ‌र्ड्स में खाया है। क्रिकेट ही उनकी सुबह, शाम आैर रात होती थी। क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में उन्होंने अनेक पदों को समय-समय पर गरिमा प्रदान की आैर युवा खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने का उन्हें जुनून था।

ज्ञातव्य है कि सारे विरोध को दरकिनार करके उन्होंने सोलह वर्ष की कमसिन उम्र में सचिन तेंदुलकर को टेस्ट खिलाया आैर उसका क्रिकेटीय अभिषेक ही पाकिस्तान के तेज गेंदबाजी के हवन में हुआ। सचिन के प्रारंभिक दौर में सभी देशों में अत्यंत तीव्र गति से गेंद करने वाले खिलाड़ी थे आैर उसके पूर्व सुनील गावस्कर ने अपने दौर में आग उगलती गेंदों का मुकाबला किया तथा उस दौर में बल्लेबाज को आज की तरह सुरक्षा गेयर प्राप्त नहीं थे। आज तो सभी देशों में तीसरे दर्जे के गेंदबाज है आैर यह बल्लेबाजों के लिए रिकॉर्ड तोड़ने का मौसम है।

बहरहाल यह जानकर खुशी हुई कि 1937 में महाराजा पटियाला आैर महाराजा डूंगरपुर ने मुंबई के तत्कालीन गवर्नर ब्रेबोर्न से प्रार्थना की कि धोबी घाट वाले ग्यारह एकड़ जमीन का टुकड़ा वे क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया स्थापित करने के लिए लंबी लीज पर नाम मात्र पैसे लेकर आवंटित करे ताकि लंदन के लॉ‌र्ड्स की तर्ज पर स्टेडियम बनाया जाए आैर इसीलिए स्टेडियम का नाम आज भी ब्रेबोर्न ही है आैर भारतीय क्रिकेट का वह मक्का रहा है परंतु कुछ वर्ष पूर्व बम्बई क्रिकेट संघ को 250 पास अतिरिक्त नहीं देने के कारण नेताओं ने वानखेड़े स्टेडियम बनाया परंतु यह ऐसा ही है जैसे अमेरिका के व्हाइट हाउस की नकल में मुंबई का कोई उद्योगपति या नेता अपने को व्हाइट हाउस कहे। ब्रेबोर्न की गरिमा उसका इतिहास है आैर वानखेड़े के पास ऐसा नहीं है। ब्रेबोर्न स्टेडियम अन्य क्रिकेट खेलने वाले देशों की स्मृति में भारतीय क्रिकेट के साथ दर्ज है। नवधनाड्य प्रवृत्तियां स्मृति आैर इतिहास नहीं बदल पाती। इसी तरह राजसिंह ने ब्रेबोर्न के इस नियम में परिवर्तन कराया कि अठारह से कम आयु का युवा पेवेलियन में नहीं सकता। सचिन तो मात्र सत्रह के थे। उन्हीं की खातिर नियम बदले गए। राजसिंह डूंगरपुर के भांजे ने बताया कि डूंगरपुर में अपने महल के बगीचे में उन्होंने रिवर्स स्वीप उसे सिखाया आैर जब युवा भांजे ने यह स्ट्रोक लंदन में खेला तो वहां इसे 'डूंगरपुर स्वीप' कहा जाता था। आज फ्रीस्टाइल कुश्ती की तर्ज पर खेले जाने वाले सीमित गेंदों के खेल में यह स्ट्रोक खूब खेला जाता है।

राजसिंह डूंगरपुर की प्रबल अभिलाषा थी कि राजस्थान की टीम रंजी ट्रॉफी मुकाबले में मुंबई को हराए परंतु लाख प्रयास के बाद भी उनके जीवन काल में यह संभव नहीं हो पाया। राजसिंह डूंगरपुर अनेक वर्ष तक चार माह लंदन में बिताते थे आैर लॉ‌र्ड्स की परंपराओं को उन्होंने क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया में स्थापित किया जैसे लॉ‌र्ड्स के 'मास्टर्स' की तर्ज पर उन्होंने 'लीजेंड्स' स्थापित किया। भारत के रजवाड़ों ने क्रिकेट को ही नहीं वरन् कई ललित कलाओं को भी सहायता दी थी। अनेक शास्त्रीय संगीत के पारंगतों को उनका प्रश्रय प्राप्त था परंतु आज के धनाड्य लोग कला को नहीं फूहड़ता को संरक्षण देते हैं। राजसिंह डूंगरपुर ने सारा जीवन क्रिकेट पर पैसा खर्च किया। आैर आज के क्रिकेट खिलाड़ी तो स्वयं राजाओं की तरह अमीर हैं परंतु किसी की सहायता वे नहीं करते।