राजा जोगी / प्रतिभा सक्सेना

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हमारे बच्चों को हर ग़लत बात बड़ी जल्दी समझ में आ जाती है और सही बात बिना बहस के गले नहीं उतरती। कही जाना हो तो सफ़र चाहे जितना छोटा हो, उनका ख़याल है ट्रेन छूटने के बाद पूरियां खाना ज़रूरी है।

वह कार्यक्रम पूरा होने के बाद के बाद हर पाँच मिनट पर एक पूछता है अब बीकानेर कब आएगा?’

दूसरी फ़ौरन बोलती है, ’कितनी देर में पहुँचेंगे?’

अब मुज़फ़्फ़र नगर से बीकानेर, अभी तो सारी रात बितानी है, इन लोगों से कैसे निपटूँगी!

पर मैंने भी तरकीब निकाल ली है, तुम डाल-डाल तो हम पात-पात।

बड़े प्यार से समझाती हूँ। ’अगर तुम दोनों सो जाओगे तो झट्ट से आ जाएगा, नहीं तो गाड़ी और देर लगाती। रहेगी। ’

और दोनों के दोनों मज़े से सो जाते हैं।

उस दिन भी दोनों खा-पी कर सो चुके थे।

पता नहीं कब एक अंधा भिखारी डब्बे में घुस आया।

गाने लगा, ’भिक्षा दे दे मैया पिंगला, जोगी खड़ा है द्वार।

मइया पिंगला... '

हरियाणा का एक जाट जिसकी कुछ देर पहले एक लड़के से तू-तू मैं-मैं हुई थी। बोल उठा, ’ लोग तो बिना बूझे कहते रहवें। वो तो बात ही होर थी। ’

सबकी निगाहें उसकी ओर घूम गईं। पास बैठा आदमी ने पूछ ही लिया, ’बात क्या? वो किस्सा तो सबन को मालुम है। ’

'ना जी ना। राजा भरथरी को जो कह्या के विसकी राणी मंतरी से फँसी थी, यो बात ना थी। जिस खात्तर राजा जोगी बण्या, वो तो मामला ही होर था। ’

सामने बैठे लड़के से रहा नहीं गया, ’क्या? कुछ और बात रही थी क्या?’

'इब जाण के क्या करोगे? लोग तो ये ई माणते रहवें। ’

'सुणा दो बाबा, इब तो असली बात सुना ई दो। ’

और दो-चार लोगं को उत्सुक देख जाट बाबा ने शुरू किया -'अच्छा सुणों। होया क्या --एक बार राणी पींगला राजा भरथरी को न्हवा री थी। '

किसी ने विस्मय प्रकट किया -

'राणी न्हवा री थी?’

'अरे न्हवाने को तो बाँदियाँ भतेरी, राणी तो खड़ी निगरानी करे थी। उबटन-सनान करा के जब बाँदी अंगौछा ले के राजा का बदन सुकावण लगी, राणी पिंगला की नजर राजा के पेट पे जा पड़ी। देख्या। नजर गड़ा के देखा, उसकी तो हँसी छूटगी। ’

राजा ने पुच्छ्या्, ’राणी क्यों हँसण लग री?’

'कुछ भी नी, यूँ ई हँसी आग्गी। ’

'नीं, तू कुछ छिपावण लग री म्हारे से। इब तो तू बताई दे। ’

वो जित्ता-जित्ता टालती जावे, राजा पिच्छो पड़ता जावे। तब विसने कही, ’एक बात म्हारा दिमाग में आग्गी तो हँसी छुट पड़ी। ’

'एसी कुण सी बात के बतावण में झंझट?’

'पर राणी बोल के ना देवे।

सुसरी बताती भी ना, राज्जा में मन में कही। फिर खुसामद करण लगा’अरी बता भी दे भागमान। ’

भौत मिन्नत करी तो बोल्ली’राजा, तुमने कभी सुण्या कि बेटा माँ से ब्या करे?’

'बावली होग्गी के? एसा भी कहीँ होवे?’

राणी फिर चुप।

'ठीक, ठीक बात कर राणी, तू तो पहेली सी बुझावे। ’

'वो बात नी राजा। ये तो मामला ही होर है। तुम तो जिद्द किए जाओ। कोई बात होवे तो बताऊं, फालतू में... बात।

ये तो बताती भी नीं।

पर राजा कैसा जो कबुलवा न लेवे।

पीछोई पड़ गया, ’कोई बात तो जरूर से, पर तू बतावण नीं लग री। ’

हार के राणी बोली, ’इसका ज्वाब मेरी भैण देगी, तुम उसके धोरे चले जाओ। ’

♦♦ • ♦♦

राजा को कल ना पड़ी। वो पौंच गया उसकी भैण के धोरे।

राजघराने की छोरी, राणी तो होनाई था जी।

खूब खात्तर की विसने अपने भैनोई की। ’

सारे डब्बे कान उधऱ ही लगे हुए थे

पति महोदय की किताब एक ओर पड़ी थी। सारा ध्यान कहानी में।

इन्हें लगा मैं ऊँघ रही हूँ, बोले

'बड़ी मज़ेदार कहानी चल रही है, ’

'हाँ सुन रही हूँ। कहने का ढंग भी एकदम ओरिजिनल। ’

जाट की बात चल रही है, ’... विससे भी वोई बात पुच्छी राजा नें। बोला थारी भैण ने म्हारे को न्हाते देखा और हँस पड़ी में पुच्छा बताती भी ना। इब तो तूई बता। ’

भैन बोली, ’कँवर साब, कोई बात विसके मूँ से भी ना निकल सके, तुम समझो। राज-घराने की मरजाद भी तो हुआ करे। ’

इब तो चक्कर में पड़ गया राजा, जब तक जाण न लूँगा म्हारे को कल नी पड़ेगा, दिद्दी। , ’

वो बोल्ली, ’घोड़े चढ़े आए हो थक लिए होगे। कल बात करेंगे राजा।

आज तो न्हाओ खाओ, बिसराम कर लो। फिर तो... '

बाँदियाँ भेज दीं राजा को न्हवाने को, असनान होते-होते खुद राणी कोई बहाने से चक्कर लगा गी।

फेर उसणे राजा को कह्या’ सब बताऊंगी राजा सब बताऊंगी, पर सबर से’

राजा चुप।

फेर वो बोल्ली, ’तुम छे माह बाद आइयो, जब मेरे छोरा होवेगा, अचानक सीट के किनारे बैठी ऊँघती झटके खाती लड़की को हाथ से रोकता जाट बोला।

... ओ बिब्बी, अभी जा, पड़ती निच्चे, इँघे को आजा। ’

'हाँ बाबा आगे। 'एक उत्सुक आवाज़ आई।

उसके छोरे की जनम की सुण के राजा फेर पोंच गया

राणी की भैण बोल्ली, ’इब मैं मर जाऊँगी और साहूकार के बेटे के जनमूँगी,

जब सहूकार की पोत्ती बारा साल की होवे तब थारा ज्वाब मिल जावेगा। ’

क्या करता राजा, चुप लौट लिया।

फेर वो पता करवाता रह्या

'जाटने उसाँस भरी, ’राणी की भैन का सुरगवास हुआ, , साहूकार की

बऊ के छोरी जनमी।

राह देखता रहा, बारे साल बीते, राजा फिर पोहोंच गया।

साहूकार की पोत्ती की सादी, राजा के छोरे से होवण लग री थी।

राजा बाट देखता रह्या।

फिर वो नई बऊ के धोरे गया,

बऊ ने कहा, ’राजा, मेरे मरद का पेट देखो। '

देखा राजा ने -जैसै मस्सा राजा के पेट पे वैसाई मस्सा, वोई जगे बऊ के मरद के पेट पे।

'इब तो राजा तुम मानोगे के बेटा माँ से ब्या करें'

उसकी समझ में सारी बात आ ग्गी।

राजा उदास हो गया, लौट आया अपने सहेर में घर कू।

पिंगला से बात भी ना की।

वो बोल्ली, ’जो म्हारे को बताओ राजा, क्या हो गया हे?’

तू तो म्हारी माँ है पिंगला, फिर भी पूछण लग री। इब तो नरक में ना धकेल। ’

होर राजा राज-पाट छोड़ बैरागी हो गया।

राणी कुछ ना बोल्ली।

लोगों के तो जो दिल में उठे कहो जायँ। दुनिया है ये तो।

कुत्तों के भूकण से सज्जन आदमी रास्ता नी छोड्डा करते। ’

कंपार्टमेंट में चुप्पी छा गई थी।

एक दूसरे से बोलने की इच्छा नहीं हो रही थी। अपनी-अपनी जगह बैठे रहे सब जैसे कुछ कहने को बचा ही न हो।