राजेश खन्ना, प्रेमिकाएं आैर सफलता? / जयप्रकाश चौकसे

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राजेश खन्ना, प्रेमिकाएं आैर सफलता ?
प्रकाशन तिथि : 18 जुलाई 2014


एक अंग्रेजी कहावत है कि किसी भी मनुष्य को उसका पुराना नौकर सबसे अधिक जानता है, जानने वालों की सूची में पत्नी से पहले प्रेमिका का नंबर आता है। मेरा ख्याल है शत्रु ही मनुष्य को सर्वाधिक जानता है क्योंकि उसके अवचेतन में हमेशा मौजूद रहता है। युद्ध नीति भी कहती है कि शत्रु को पूरा जान लेने में आधी विजय हो जाती है। यानी मनुष्य स्वयं को सबसे कम जानता है। आज अनेक सिनेमा प्रेमी राजेश खन्ना का स्मरण करेंगे आैर कल्पना कठिन है कि अंजू महेंद्रू, डिंपल कपाड़िया उनकी आखिरी महिला मित्र उन्हें कैसे याद करती हैं? उनकी प्रिय सह-नायिकाएं मुमताज आैर शर्मिला टैगोर उन्हें कैसे याद करती हैं? पंचम, किशोर कुमार आैर शक्ति सामंत तो नहीं रहे, अत: वे क्या सोचते, यह बताना कठिन है। सबसे अहम यह है कि उनकी पुत्रियां आैर उनके बच्चे उन्हें किस तरह याद करते हैं।

अंजू उनकी पहली प्रेमिका थीं। शायद पत्नी से अधिक उनके साथ रहीं। तब जब वे सफलता पाने का प्रयास कर रहे थे। सफलता के शिखर पर अल्पतम समय बिताते समय भी अंजू उनके निकटतम रही। संभव है अंजू को सिर्फ वे क्षण ही याद आएं जब राजेश, डिंपल को ब्याहते समय बारात अंजू के बंगले के सामने से ले गए जो उन्होंने ही भेंट किया था। इतनी कड़वाहट उनमें थी। प्राय: कड़वी स्मृतियां सुखद क्षणों की स्मृतियों से पहले मन में आती हैं। सुख की बदलियां बरस कर गुजर जाती हैं, दु:ख की बिजली मन में कौंधती रहती है।

डिंपल के पिता चुन्नीलाल फिल्म निर्माण के लिए व्याकुल रहते थे आैर वे ही अपने साथ डिंपल को उस दौर के सफलतम सितारे के घर ले गए थे। उस समय डिंपल बमुश्किल सत्रह वर्ष की थी आैर 'बॉबी' लगभग बन चुकी थी। संभवत: दस दिन का शूट बाकी था। पूनम की रात आैर समुद्र का किनारा, कुछ नशीला वातावरण था, कुछ मादक फिजाएं थी आैर राजेश खन्ना को शराब आैर सौंदर्य की खुमारी थी। ऐसे में उनका शादी का प्रस्ताव सत्रह वर्षीय डिंपल कैसे अस्वीकार करती? यह भी संभव है कि डिंपल को पूनम की उस रात के साथ ही, वर्षों बाद अमावस्या की रात याद आए जब वे अपनी दो नन्ही पुत्रियों को लेकर ड'आर्शीवाद' नामक बंगले से बाहर आई आैर अगली सुबह ही उन्हें अपनी पुत्रियों के लालन-पालन के लिए पैसे की आवश्यकता थी। अत: रमेश सिप्पी की 'सागर' में अपने प्रथम नायक ऋषि कपूर के साथ काम करना स्वीकार किया। 'बॉबी' को आए एक दशक बीत चुका था आैर रमेश 'बॉबी' वाला जादू नहीं जगा पाए। उनकी अंतिम महिला मित्र जरूर इस तरह स्मरण करती होंगी कि राजेश ने उनके पक्ष में कानूनी दस्तावेज क्यों नहीं बनाए? राजेश के प्रेम पत्र तो अंजू के पास होंगे परंतु कानूनी दस्तावेज उन्होंने किसी को नहीं दिए। अपनी क्षण भंगुर सितारा छवि के रहस्य को वे सारी उम्र अपने दिल में सहेजते रहे। उनके कॉलेज के अभिन्न मित्र प्रशांत उनकी नौकरी में बरसों रहे परंतु एक दौर में राजेश ने उनका वेतन रोक दिया। अपनी हताशा में प्रशांत सलीम खान के पास पहुंचे आैर आज भी उन्हीं के यहां काम करते हैं। बीमारी के कारण उन्हें काम नहीं दिया जाता परंतु वेतन हर माह उनके घर पहुंच जाता है।

आज प्रशांत उन्हें कैसे याद करते है? उन्होंने कॉलेज के दिनों में राजेश की दरियादिली आैर सफलता के लिए बेकरारी देखी है। अपनी सफलता के दिनों में राजेश, प्रशांत को मकान दिलाना चाहते थे परंतु प्रशांत ने नहीं लिया। प्रशांत ने राजेश को उसके शिखर दिनों में देखा है, उसकी दरियादिली देखी है, उसकी शराब नोशी देखी है। सफलता को साधते हुए सफलता से वे इस कदर ग्रस्त रहे कि असफलता के दौर को वे नकारते रहे आैर सफलता के दौर में गूंजती हुई तालियां ताउम्र उनके ह्रदय के जलसा घर में गूंजती रहीं। सफलता बहुत बड़ी शिकारी है आैर प्राय: अपने पोषणकर्ता को ही डसती है। सरल साधारण दयालु राजेश खन्ना को उसने कितने विविध रूप दिए कि वह स्वयं को ही नहीं पहचान पाया। शायद सफलता ही उनकी एकमात्र प्रेमिका थी।