रामजी / रामस्वरूप किसान

Gadya Kosh से
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म्हैं अैलबम देखै हो। साहित्यिक प्रोग्रामां री फोटुवां रो अैलबम। जकै में अेकल फोटुवां रै अलावा स्रोतावां री फोटुवां ईज ही। ओ अैलबम भोत बडो हो। बीस बरसां रै प्रोग्रामां री फोटुवां रो संकलन। पांच सौ रै लगै-टगै कॉपियां ही इण मांय। जकै में पचास कॉपियां गैदरिंग री ही। हां, तो म्हैं अैलबम देखै हो। स्यात तीसरो पानो हो। स्रोतावां री भीड़ रो पानो। अचाणचक म्हारो ध्यान भीड़ में बैठ्यै अेक डोकरै पर गयो। ओ कुण है? सगळी भीड़ में न्यारो-सो आदमी। कित्ती गंभीरता सूं सुणै प्रोग्राम। तिरछी नाड़ करÓर कान लगा राख्यो है। कित्तो ऊंडो है वक्ता सूं इण रो जुड़ाव। अर चैÓरो? वक्ता रै भाषण री सळेट। जकी पर साफ पढ्यो जा सकै वक्ता रो भाषण। गांव में इण भांत रा साहित्यिक स्रोता? स्यात बारै सूं अयोड़ो है कोई। किणी सैÓर रो हो सकै। ना सैÓर सूं तो कोनीं। है तो गांव रो। सैÓरी मिनख पोतियो कोनी बांधै। तो कुण है ओ चिम्मी-चिम्मी आंख्यां रो? इण सोच साथै म्हैं छह-सात पाना और पळटग्यो। सुणणियां री भीड़? जबरी भीड़। ओ पानो ओझाजी री पोथी रै पाठक मंच रो हो। आखै स्रोतावां री भाव-भंगिमा देखी। सगळा भेडां भेळी भेड। कठै ई अपील करण आळी बात कोनी। म्हैं उण डोकरै नै सोधणो चायो। कोनी लाध्यो। बींया ई आ कॉपी कीं धुंधळी ही। अर भीड़ ई बेजां ही। म्हैं इण भीड़ पर ओजूं आंख्यां फेरी। अर आ सोचÓर कै इण प्रोग्राम में डोकरो आयो कोनी हुसी, पानो पळटण रो सुंआज करै ई हो कै इतराक में सगळां सूं लारै ई लारै अेक साफो दीख्यो। पूरै माथै नै ढकतो फगत साफो। क्यूं कै उण तळै नै घूण घाल राखी ही। म्हैं खासा गौर सूं देख्यो जद ठा लाग्यो कै उण रो अेक हाथ गोडै पर हो अर दूजै हाथ रा आंगळी-अंगूठो आंसू पूंछै हा। म्हारो मन भळै बोल्यो- कुण है ओ डोकरो? गांव में कदे ई नीं देख्यो इण नै। अर बारै सूं जका आवै, बां नै कार्ड देयÓर बुलावां ई हां। ईं सारू सगळां नै जाणां। आआदमी होणो तो आपणै ई गांव रो चइयै। फेर, गांव के छोटो रैयो है। तीन हजार घरां री बस्ती है। कुण किण नै जाणै। अर ओ तो पाको आदमी। बायल-कोयल ई निकळतो हुसी घर सूं। पण कुण ई हुवै, है साहित रो रसियो। म्हारी जाणण री भूख भड़की। म्हैं ऊंतावळो-ऊंतावळो अैलबम रा पाना पळटण लाग्यो। अब म्हनै फगत गैदरिंग ई देखणी ही। अर गैदरिंग मांय देखणो हो बो डोकरो। म्हैं पूरौ अैलबम छाण मार्यो। अेक ई भीड़ इसी नीं ही जिण मायं बो डोकरो नीं हुवै। म्हनै अचम्भो हुयो- हरेक प्रोग्राम मांय हाजरी! कठै ई गैर हाजर नीं ओ डोकरो! साहित सूं इत्तो लगाव। कठैई-कठैई तो बो इसी मीट में बैठ्यो हो कै म्हारी आंख्यां-डबडबागी। अेक जगां बो, बा फीकी हांसी हांसै हो कै देखण आळो रोयां बिना नीं रैय सकै। अठै स्यात बो किणी हास्य कवि री फूÓड़ कविता पर हांसणियां री हंसी रो साथ देवै हो। अेक जगां डोकरो बीड़ी सिलगावै। पण वक्ता रै चैÓरै सूं ध्यान नीं हटै उण रो। वा रै वा सहित-प्रेमी! पण है कुण थूं? ईं सवाल रै पड़ूत्तर में म्हनै म्हारी आतमा भूंडण लागी- जाणै कोनी इण नै? धूड़ है थारै सिर में। धूड़ है थारै लेखन में। जको आदमी लगोलग थारै प्रोग्रामां में आयो है। अर बिना बुलावै आयो है। उण नै जाणै तकात कोनी! अर फेर ओ कोई साधारण स्रोता थोड़ो ई है। म्हैं डोकरै सूं मिलण री सोची। इणी बगत मिलण री। अैलबम नै बास में लेयग्यो। संजोग सूं नुंवीं पीढी रा छोरा मिल्या। फोटू दिखायÓर पूछ्यो तो सगळां नाड़ मार दी। सेवट जेसै आळै घरां पूग्यो। बो उण रै हाण रो हो। देखतां ई बोल्यो- 'ओ तो आपणै ई गांव रो रामजी है। हाल मांची में पड़्यो है बिच्यारो। स्यात घटता ई पूरा करै।Ó म्हारै काळजै में झटको-सो लाग्यो। म्हैं घरां आयÓर अैलबम अलमारी में छोड्यो। अर बां ई पगां बारै निकळग्यो। म्हनै डोकरै सूं मिलण री ऊंतावळ ही। सेवट बूझतो-बूझतो उण रै घरां जा ई लियो। जद म्हैं बारणै मांय पग दियो, काळजै में खरणाटो-सो पाट्यो। बैÓम हुयो- कदे डोकरो...। म्हैं बाखळ में जायÓर खंखारो कर्यो। सुणÓर भीतर सूं अेक डोकरी आयी। बोली- 'भीतर ई आ ज्याओ। बां री हालत तो माड़ी है। दो दिनां सूं तो बोल ई बंद है।Ó म्हैं बीं रै लारै-लारै साळ में बड़ग्यो। 'थारो भोत जिकर करता।Ó आ कैंवतै थकां बा अेक बीजी कोठड़ी मांय बड़ी अर छिनेक में पांडुलिपियां री भर्योड़ी बांथ म्हारै आगै पटक दी। म्हारा तिराण फाटग्या। म्हैं बोल्यो-'इत्ती!Ó 'इत्ता ई कागद अेक बोरी मांय और पड़्या है। अै थारलो ई काम करता।Ó म्है ऊंतावळो-ऊंतावळो देखण लाग्यो- च्यार उपन्यास, पांच कहाणी संग्रै अर दो बडा-बडा कविता संग्रै। म्हारै अचम्भै रो ठिकाणो नीं रैयो। अर म्हनै ठाह ई नीं लाग्यो कै म्हैं कद मांकर बानगी रै रूप में हरेक पांडुलिपि री च्यार-च्यार ओळ्यां बांचग्यो। म्हनै लाग्यो, म्हैं तो ईंयां ई ठड्डïो करूं। लेखन रा घर तो दूर हुवै। 'बल्ले-बल्ले रै करामात।Ó आपो आप सिसकारो निकळग्यो। म्हंै लाम्बो सांस खींचÓर डोकरी नै बूझ्यो। 'किताब कोनी छपाई?Ó 'ना किताब तो कोनी छपाई। अै तो बारै ई कोनी निकळ्या। बस लिखता ई रैया।Ó म्हैं म्हारी पोथी गिणण लाग्यो। सरम-सी आई। मोवै बैठी छपास री हिड़क पर चोट लागी। अर म्हैं गोडां पर हाथ देयÓर खड़्यो हुयो। कई देर डोकरै रै चैÓरै कानी देख्यो। अचाणचक म्हारो माथो डोकरै रै चरणां पर टिकग्यो। अर मंू सूं निकळी-'रामजीऽऽ!Ó