राम-राज्य / अशोक भाटिया

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इतिहास का एक अध्यापक अपने मौलिक अंदाज़ में पढ़ाने के लिए चर्चित था। और वह दिन तो उस प्रदेश की राजनीति में ख़ास महत्त्व रखता था। आज कुछ ख़ास सुनने को मिलेगा–यह अनुमान कर दूसरी कक्षाओं से भी विद्यार्थी आ गए थे। कमरा खचाखच भरा था।

अध्यापक ने कहना शुरू किया–आज मैं आपको दो कहानियाँ जोड़कर सुनाता हूँ। आप खुद निर्णय कर लेना कि इतिहास कहाँ था और आज कहाँ पहुँच गया है। ' कक्षा में चुप्पी छा गई।

थोड़ा रूककर अध्यापक बोला–बाली और सुग्रीव का नाम आपने सुना होगा। भाई थे दोनों। बाली बड़ा था। किष्किन्धा का राजा था। तब जंगल अधिक होते थे; वहाँ राक्षस घूमा करते थे। मायावी राक्षस से बाली का सामना हो गया। दोनों द्वंद्व-युद्ध के लिए एक गुफा में चले गए। बाली ने सुग्रीव से कहा कि मेरे बाहर आने तक मेरी प्रतीक्षा करना। ' विद्यार्थी ध्यान से सुन रहे थे।

'अब आप वर्तमान की घटना पर आइए। आप जानते हैं, गंभीर आरोप लगने पर इस राज्य के मुख्यमंत्री ने अपनी सत्ता छोड़ दी थी। उसने अपने विश्वासपात्र विधायक को मुख्यमंत्री बनाते हुए कहा था कि मेरे आने तक आप राज-पाट चलाओ।' विद्यार्थियों की रूचि बढ़ती जा रही थी।

'देखा जाए तो दोनों को अपनी-अपनी तरह से प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। लेकिन न सुग्रीव ने की, न ही विश्वासपात्र ने। सुग्रीव ने जब गुफा में से खून बाहर आता देखा, तो सोचा कि बाली मारा गया है। फिर क्या था! जाकर उसकी सत्ता हथिया ली। इसे हथियाना ही कहा जाएगा।'

—सर, बाली का एक पुत्र अंगद भी तो था। ' एक विद्यार्थी ने कहा।

—ठीक कहा आपने। सुग्रीव यदि ईमानदार होता तो गुफा से किसी के बाहर आने की प्रतीक्षा करता और यदि बाली मारा भी गया होता, तो जब मायावी राक्षस बाहर आता, तो उससे अपने भाई की हत्या का बदला अवश्य लेता। इतना ही नहीं, बाली के बाद भी सत्ता का अधिकारी तो उसका पुत्र अंगद था। '

-लालची हो गया था सुग्रीव। ' आगे बैठा एक लड़का बुदबुदाया।

—यही बात थी। अब फिर से वर्तमान घटना पर आइए। पूर्व मुख्यमंत्री जब आरोपमुक्त हो गया तो उसने अपने विश्वासपात्र को सत्ता लौटाने को कहा। किन्तु उसने इनकार कर दिया। '

—दोनों ही लालची थे। ' एक और लड़के ने कहा।

—बिलकुल ठीक। लेकिन दोनों के हालात में फर्क है। ' अध्यापक ने कहा।

विद्यार्थी और भी ध्यानमग्न हो गए–क्या फर्क है?

एक तीसरा लड़का बोला–सर, राजनीति तो दोनों जगह खेली गई। '

—हाँ, अब और ध्यान से सुनना। तब वहाँ बाली ने लौटकर सुग्रीव को हटा दिया, क्योंकि राज तो बाली का ही था। वर्तमान में यहाँ लोकतंत्र है। यहाँ भी पूर्व मुख्यमंत्री ने विश्वास-मत के सहारे फिर से सत्ता प्राप्त कर ली। आप बताएँ कि इस पर आप सब क्या सोचते हैं? '

कहकर अध्यापक ने सवालिया निगाहों से विद्यार्थियों की तरफ देखा।

वातावरण गंभीर हो उठा।

एक लड़के ने खड़े होकर कहा–सर, दोनों जगह न्याय हो गया। '

'बहुत अच्छे!' कहते हुए अध्यापक ने अपेक्षा से दूसरे छात्रों की तरफ देखा।

एक तेज़-तर्रार लड़के ने कहा–ऐसा है कि न्याय तो हो गया। पर सुग्रीव के गले यह बात नहीं उतरी। उसने साजिश रचकर राम के हाथों बाली को मरवा दिया और किष्किन्धा की कुर्सी फिर हथिया ली। सर, क्या यह ठीक था? मुझे तो नहीं लगता। '

एक और ने समर्थन किया–सत्ता के लिए एक भाई दूसरे भाई की हत्या करवा दे, तो उसे राम-राज्य कैसे कह सकते हैं? इससे तो हमारा लोकतंत्र कहीं बेहतर है। '

कक्षा में फुसफुसाहट होने लगी थी ... -0-