राम वापिस आ गया है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
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”मालूम है, राम वापिस आ गया है?”

“क्या? कब आया है?"

"उसके मां बाप, क्या वह भी आ गये हैं?

"क्या वह भी जीवित हैं?”

“नहीं, केवल राम ही वापिस आया है,"

मां बाप तो चट्टानों में दब गये या नदी के तेज प्रवाह में बह गये, अभी तक पता नहीं है|” सारे गांव में हाल्ला हो था कि उत्तराखंड से राम आ गया है| उसके पिता बदरी प्रसाद और मां भोली बाई का कुछ पता नहीं है| लोग टेलीविज़न देख देख कर दुखी हो रहे थे| सात दिनों से शोर था,उत्तराखंड की तबाही का| हज़ारों तीर्थ यात्री मारे गये थे| समाचारों में वहां के वीभत्स दृश्य दिखाये जा रहे थे| पहाड़ों का टूटना, बड़ी बड़ी चट्टानों का भरभराकर गिरना, गंगा और उसकी सहायक नदियों की भयंकर बाढ़,विनाश लीला और हज़ारों घरों, होटलों की तबाही यह सब देखकर तो मोहन सिंह बौखला गया था| क्या शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया है या गंगा को अपनी जटाओं में नहीं संभाल पाये| क्या भागीरथी ने बगावत कर दी है|क्या यह भूचाल था, प्रकृति के विरुद्ध चलने की मानव जाति को चेतावनी थी| क्या था यह मोहन समझने का प्रयास कर ही रहा था कि उसने सुना कि राम आ गया है,उसका प्यारा मित्र राम| दौड़ पड़ा वह उससे मिलने बिना एक पल रुके भी| राम‌ एक चटाई पर बैठा सुबक रहा था| नत्था चाचा और मल्थो मौसी उसे समझा रहीं थीं|

“भगवान की यही इच्छा थी,उसके आगे सब बेबस हैं|” राम चुपचाप उसके बगल में जाकर बैठ गया| राम फफक कर रोने लगा और मोहन से लिपट गया| मोहन भी किम कर्त्तव्य विमूढ़ हो गया|उसकी भी रुलाई फूट पड़ी| उसको याद आ गया कि अभी द‌स दिन पहले ही तो वह राम को उसके माता पिता सहित बस में बिठा कर आया था। हरिद्वार केदारनाथ यात्रा के लिये| राम ने कहा था बस यूं गये और यूं आये| उसने अपना कहा तो सच का दिया वापिस आ गया किंतु अपने माता पिता को वहीं दफन कर आया था गंगा में| गंगा माता जो पापियों के पापों को धोने का दावा करतीं रहीं हैं उसके पालनहारों को लील गईं थीं| गांव से दो परिवार और भी गये थे उनमें एक भी वापिस न‌हीं आया| उन्हें भी हिमालय ने अपने आगोश में ले लिया था| मोहन राम को अपने घर ले आया था| मोहन की मम्मी ने राम को हृदय से लगा लिया था

“बेटा राम तुम बिल्कुल मत घबराना, आज से मैं तुहारी माँ हूं|" उन्होंनें उसके सिर पर हाथ फेरते हुये कहा था|

“माँ राम भी क्या हमारे साथ नहीं रह सकता| मेरा कोई भाई नहीं है,राम साथ रहेगा तो मुझे भी अच्छा लगेगा|"

“मॊहन ने मां की ओर आशा भरी नज़रों से देखा|

“क्यों नहीं जरूर वह अभी तक तुम्हारा मित्र था आज से तुम्हारा भाई हुआ”मां ने स्नेह पूर्वक कहा|

“किंतु काकी इससॆ आप लोगों को तकलीफ होगी,मेरा मकान भी खाली पड़ा रहेगा|”राम सकुचाते हुये बोला|

“मुझे काकी मत बोल मैं तेरी मां हूं और जैसा मैं कहूंगी वैसा ही तुझे करना होगा, वह अधिकार पूर्वक बोलीं| तुझे यहीं रहना है,बस|

“किंतु काकी……… सारी… मां आप लोग ऊंची जाति के लोग हैं और मैं ………….”राम ने डरते डरते कहा|

“बेटा जात पांत से कुछ नहीं होता,सब इंसाना एक से होते हैं हाथ, पैर, पेट क्या अंतर है हममें और तुममें|खून भी सबमें एक सा है, ,लाल,| संतों ने यूं ही थोड़े ही कहा है’ जात पांत पूंछे न कोई हरि को भजे सो हरी को होई’फिर तुम तो प्यारे से बच्चे हो ,भगवान स्वरूप बगिया के नन्हें फूल| मां ने बड़े प्रेम से कहा|

“ठीक है मां अब मैं यहीं रहूंगा |

जो आपदा मैंने झेली है उसका प्रयाश्चित करने का प्रयास करूंगा|”राम भावावेश में बोला|

“मतलब“ मां चौंककर बोली|

“नदी में भयंकर बाढ़ ,भू स्खलन,प्रलय क्या सब क्यों हुआ मां,क्या यह हमारी भूल नहीं है,क्या यह इंसान की अतिमहत्वाकांक्षा और खोखले विकास की चाहत का परिणाम नहीं है क्या यह प्रकृति के विरुद्ध जाने की परिणिति नहीं है,क्या हमने पर्यावरण का विनाश नहीं किया है,राम भावा वेश में बोले जा रहा था|

“पर राम तू अकेला क्या करेगा|" मां ने टोका

“मां मैं पेड़ लगाऊंगा,जितने लोग इस आपदा के शिकार हुये हैं उतने पेड़,जितने लोग काल के गाल में समाये हैं, हर एक के नाम का पेड़’ खाद पानी देकर उनकी रक्षा करूंगा|

” राम भावुक हॊ रहा था|

“मैं तुम्हारी सहायता करूंगा,भरपूर सहायता”मोहन ने राम को आगोश में ले लिया| राम और मोहन ने गांव के सरपंच के माध्यम से शासन से इस आपदा के शिकार लोगों की सूची मंगाई है| आज राम ने दो पौधे लगाये हैं एक अपनी मां भोली के नाम का और दूसरा अपने बापू बदरी प्रसाद के नाम| पौधे जाली से घेर कर सुरक्षित कर दिये हैंऔर पट्टिकाओं में नाम लिख दिये हैं| अब तैयारी है तीन हजार पौधे लगाने की|"

जालियां तैयार हैं पौधों के आदेश दे दिये हैं,बस सूची आने की देर है|