रिमझिम के तराने लेकर आई बरसात / जयप्रकाश चौकसे

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रिमझिम के तराने लेकर आई बरसात
प्रकाशन तिथि : 09 जून 2014


ग्रीष्म काल में पानी की कमी सभी जगह शिद्दत से महसूस की जाती है। पर्यावरण के विशेषज्ञों का कहना है कि धरती की सतह के नीचे पानी कम होता जा रहा है। पहले जहां 200 फीट पर पानी मिल जाता था, अब 400 फीट तक बोरिंग करनी पड़ती है। एक तरफ पानी की कमी है तो दूसरी ओर वर्षा के पानी के संचयन के जतन भी कहीं-कहीं किए जा रहे हैं। वॉटर हार्वेस्टिंग से कई क्षेत्रों में फायदा हुआ है। विगत दो दशकों से शेखर कपूर 'पानी' नामक फिल्म बनाने का प्रयास कर रहे हैं और अब आदित्य चोपड़ा ने निर्माण का उत्तरदायित्व लिया है। इसके प्रदर्शन तक पानी की कमी प्रमुख चिंता हो जाएगी। शेखर कपूर के मामा चेतन आनंद ने मैक्सिम गोर्की के नाटक 'लोअर डेप्थ' से प्रेरित 'नीचा नगर' बनाई थी जो भारत के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली फिल्म थी। पानी के स्रोत पर श्रेष्ठि वर्ग के कब्जे की बात भी कुछ फिल्मों में दिखाई गई है। फिल्म निर्माण में प्राय: वर्षा के दृश्य होते हैं, कभी नायक-नायिका के प्रेम गीत के लिए तो कभी एक्शन व क्राइम दृश्यों के लिए। फिसलन भरे कीचड़ में एक्शन के दृश्य रोमांचक हो जाते है। यथार्थ की वर्षा में शूटिंग कठिन होती है। महंगी लाइट्स पर पानी की बूंद से नुकसान होता है। अत: वर्षा के दृश्य स्टूडियो में किए जाते है और अगर आम सड़क पर भी करें तो ये 'वर्षा' रची जाती है। अमूमन दस हजार लीटर के दस टैंकर चंद घंटों की शूटिंग में खर्च होते है।

पात्रों के सिर के ऊपर और कैमरे की फ्रेम के परे एक बड़ी सी छलनी लगाई जाती है और टैंकर से उस पर पानी फेंका जाता है। जमीन पर रखे बड़े पंखे उस 'वर्षा' को लहरदार बनाते है। राजकपूर की 'श्री 420' में ऐसे पंखों से ही पानी की बूंदें वायलिन पर थिरकती सी लगती हैं। 'प्यार हुआ इकरार हुआ' मधुरतम युगल गीत है- मन्ना डे और लता का गाया हुआ। बहरहाल 'वर्षा' दृश्य असीमित पानी को नष्ट कर देते हैं। पानी की भारी कमी के आने वाले दौर में 'वर्षा' के दृश्य बिना पानी के उपयोग के कम्प्यूटर जनित होंगे। हर वर्ष ग्रीष्म में ही आईपीएल क्रिकेट तमाशा रचा जाता है क्योंकि शीतल पेय कम्पनियों के विज्ञापन ही इस तमाशे की आर्थिक रीढ़ हैं। सीजन में साठ मैच खेले जाते हैं और इसके लिए उपयोग में आने वाले ग्राउंड को महीनों पहले पानी से सींचा जाता है। इस तमाशे में पानी और बिजली दोनों का भारी अपव्यय होता है और इसका सीजन विद्यार्थियों के पढऩे का और किसानों की तैयारी का मौसम है परंतु आम व्यक्ति की चिंता किसे है? इस तमाशे में करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं। आज तक किसी सांसद ने इस पर सवाल नहीं पूछा है। श्रेष्ठि वर्ग में भी उपवर्ग है और अधिक धनाड्य व्यक्ति गोल्फ खेलता है जिसका खेलने का क्षेत्र कई एकड़ों में फैला होता है और उसे वर्ष भर हरा रखने के लिए असीमित जल का अपव्यय होता है परंतु हुक्मरानों के आत्मीयजनों के इस खेल पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।

महानगरों के सारे फाइव स्टार होटलों में पानी का सबसे अधिक अपव्यय होता है और सरकार द्वारा प्राप्त पानी के अतिरिक्त वे टैंकर से पानी बुलाते है। मुंबई के वर्ली क्षेत्र में एक पुरातन कुएं में असीमित जल है और आधीरात के बाद उसी जल को टैंकरों द्वारा पांच सितारा होटलों में पहुंचाया जाता है। महानगरों में पानी माफिया सक्रिय है और गैंग वार भी होते है। अब तो अनेक मध्यम नगरों में भी टैंकर व्यापार ने पानी माफिया को जन्म दिया है। वर्षा जीवन है और साहित्य में अनेक रचनाओं को इसने जन्म दिया है। यह सिलसिला कालीदास के मेघदूत से प्रारंभ होता है। वर्षा को रोमांटिक दृष्टि से देखा जाता है परंतु इसका यथार्थ स्वरूप भी है। राजकपूर की 'बूट पालिश' के एक दृश्य में जेल के एक कमरे में सारे गंजे अपराधी हैं और डेविड का ख्याल है कि वर्षा से गंजापन दूर हो सकता है। वह गाता है 'लपक झपक तू आरे बदरवा, तेरे घड़े में पानी नहीं है, तू पनघट से भर ला।' मन्नाडे का गाया गीत है। वर्षा होने लगती है क्योंकि उसे याद आता है कि तूफानी वर्षा में गरीबों की झोपडिय़ां बह जाएंगी, फुटपाथ पर सोने वाले लाखों लोगों का क्या होगा? इस तरह के ट्रेज्यो- कॉमिक क्षण अलसभोर है। वर्षा पर अमर गीतों की रचना हुई है- 'परख' में 'बरखा बहार आई, रिमझिम फुहार लाई' शैलेंद्र ने तो 'बरसात' से ही यात्रा शुरू की थी और अपने बंगले का नाम 'रिमझिम' रखा था जो अब पारिवारिक कलह के कारण अदालत में जा पहुंचा है।