रिवाल्यूशन 2020 / चेतन भगत / समीक्षा-1

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सफलता के अनुत्तरित प्रश्न का जवाब देने की कोशिश
समीक्षा:उर्मिला श्रीवास्तव

चेतन भगत आज एक स्थापित नाम है. उभरती पीढ़ी के तो सबसे पसदीदा लेखक लेकिन औरों के भी कम नहीं. उनका अभिव्यक्ति पक्ष मजबूत है. प्रस्तुतीकरण में मोलिकता है. मनोविज्ञान के वे मास्टर हैं और उनका बदलाव का आग्रह उनको जिम्मेदार भी बनाता है.

चेतन इस उपन्यास में भारत की बहुस्तरीय उच्च शिक्षा को खगालते हैं. इनका फोकस इसके उद्देशों उस तक पहुँच के तरीकों व इसके प्रबंधन तीनों पर है. यह उपन्यास उच्च शिक्षा के व्यावसायीकरण का दस्तावेज है. उपन्यास के फॉर्मेट में होने के कारण दस्तावेज रोचक बन गया है. इतनी गहराई से उतरा है लेखक इसमें कि यह एक शोध ग्रन्थ लगता है. आज की उपलब्ध उच्च शिक्षा निश्चित ही सब को नहीं ही से जुडी सीमाओं उपेक्षाओं प्रवंचनाओं विदूपताओं को यह उपन्यास उजागर करता है. उद्द्येश्य हीनता की भट्टी में झोंकी जा रही देश की तेजस्वी मेधा यहाँ एक उत्तर बन कर भी उभरी है जो जलते प्रश्नों के चौराहे पर एक विवेकानंद को जन्म देती है .

बात बात में चुहलबाजी करते हुए गंभीर प्रश्न छोड़ जाना व कहीं उनके समाधान भी उभार देना चेतन को आता है जिसके लिए विश्व पुस्तक मेले में जाकर भी आज की हिंदुस्तानी पीढ़ी चेतन को ही खरीद कर लाती है.

चेतन की शैली हल्की फुल्की है परन्तु अनुभवों के पैटर्न से निकला साफ़ सटीक विश्लेषण उसको गम्भीर बनाता है और यहीं पर पाठक उनसे जुड़ता है और बह बात उसको अपनी लगने लगती है परन्तु यह विश्लेषण छाया नहीं रहता जो प्रवाह को बोझिल कर दे यह केवल एक पल को आता है और अभिभूत करता है.

प्रेजेंटेशन में भी नवीनता है इसलिए क्योंकि नायक पर कई बार कथ्य मौन हो जाता है और ग्रे शेड् के चरित्र को नायक बनाता है यह बात और है कि नायक का नायकत्व बाद में उभरता है.

लेकिन सफलता हमें शायद और जिम्मेदार बनना सिखाती है अथवा यूँ कहें कि सफलता से डरना भी पड़ता है क्योंकि आपसे अपेक्षाएं बहुत बढ़ जातीं हैं.

चेतन से भी यह उम्मीदें हैं. उम्मीदें हैं करोंड़ों उन लड़कियों को जो आरती की तरह शुरुआत तो करती हैं बराबरी से परन्तु महत्वाकांक्षा का उनका फोकस डाइवर्ट हो जाता है . कुल त्रासदी तो यही है. अब चेतन जैसे लोंगों की यह जिम्मेदारी ज्यादा हो जाती है कि उनको मुख्य धारा में शामिल रहना सिखाएं. उनमें जूनून भरें कि लूज़र होना या सफल होना महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण है मुख्य धारा में शामिल रहना. कुछ आर्थिक स्वावलम्बन हुआ तो क्या यदि हम आरती जैसे आदर्श ही रखेंगे तो इतनी उभरती लड़कियों की जमात अपना मानस कैसे तैयार करेगी. वैसे सच यह भी है कि एक क्लास चेतन को केवल मनोरंजन के लिए ही पढता है. वैसे वह बहुत महत्वाकांक्षा से परिपूर्ण है परन्तु कच्चे मानसों को गढ़ने में साहित्य तो अपनी भूमिका निभाता ही है.

वैसे महत्वाकांक्षा का प्रश्न है बहुत जटिल . महत्वाकांक्षा किसकी ------ मा पिता की----- समाज की--- अंतहीन अतार्किक स्पर्धा की------या बाजार की .

चेतन का यह प्रश्न उठाने का अंदाज हमेशा की तरह हीं इतना प्रभावशाली है कि शायद भारत की शिक्षा व्यवस्था की कुछ दिशा तय करने में यह अपनी भूमिका निभा सके.


कैसी मंजिल किसकी मंजिल कौन है तेरे आगे तू किसके पीछे भागे.

आज की तथा कथित सफलता अनुत्तरित प्रश्न है. वैसे चेतन ने जवाब देने की कोशिश की है.

चतन के इस उपन्यास में प्रेम के पहलू की उपेक्षा नहीं की जाती. इस उपन्यास में प्रेम एक साधारण कथा के रूप में आता है और असाधारण जवाब दे जाता है. इस सन्दर्भ में बदलते मूल्यों की बात हम कितनी भी करें लेकिन शाश्वत मूल्यों की उपेक्षा वह नहीं करते इसलिए उनका यह प्रस्तुतीकरण जिसमें अपने प्रेम को सर्व श्रेष्ठ देने की प्रतिबद्धता है सभी के मनों को गहरे तक भिगोता है और नई पीढ़ी को प्रेम करना सिखाता है. चेतन यहाँ बहुत जिम्मेदार होकर उभरे हैं.