रेल यात्रा और रेल डकैती की फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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रेल यात्रा और रेल डकैती की फिल्में
प्रकाशन तिथि : 06 मई 2020


होमी वाडिया की फिल्म में वाडिया का घोड़ा चलती हुई रेलगाड़ी की छत पर सरपट दौड़ता था। उस दौर में ट्रिक फोटोग्राफी अपने पालने में बोतल से दूध पीने का प्रयास कर रही थी। आज ग्राफिक्स द्वारा सब संभव है। ‘बाहुबली’ ने अपनी ट्रिक से सहज मानवीय करुणा की फिल्मों को नदारद कर दिया। रेलगाड़ी हमारे सामूहिक अवचेतन में उत्तेजना की लहर की तरह प्रवाहित रहती है। सत्यजीत रे का अप्पू, रेलगाड़ी देखने के लिए मीलों पैदल चलता है और युवा होने पर अप्पू को रेलवे ट्रैक के नजदीक बने घर में रहना पड़ता है, साथ ही रेल का शोर उसे बेचैन कर देता है। खाकसार के मित्र प्रोफेसर के.सी.शाह का घर रेलवे स्टेशन के नजदीक था। कालांतर में वे अन्य स्थान पर रहने गए तो ट्रेन का शोर उन्होंने टेप किया और उसे बजाने पर ही उन्हें नींद आती थी।

दिलीप कुमार ने अपनी फिल्म ‘गंगा-जमुना’ के ट्रेन डकैती दृश्य को इंदौर-महू रेलवे ट्रैक पर शूट किया था। इसके कुछ वर्ष पश्चात रमेश सिप्पी ने विदेशी तकनीशियंस की सहायता से ‘शोले’ के रेल डकैती दृश्य की शूटिंग की, परंतु गंगा-जमुना वाला प्रभाव पैदा नहीं कर पाए। बोनी कपूर ने ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ में ट्रेन डकैती के दृश्य को बड़े कौशल से शूट किया। इसमें हेलिकॉप्टर से लटकते हुए ट्रेन के डिब्बे का ताला तोड़ते हुए प्रस्तुत किया गया। डेविड लीन की फिल्म ‘डॉ. जिवागो’ का रेल कम्पार्टमेंट का दृश्य दिल दहलाने वाला है। तानाशाह से बचने के लिए लोग रेल के डिब्बे में जानवरों की तरह ठुंसे हुए हैं। पामेला रुक्स ने खुशवंतसिंह के उपन्यास ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ से प्रेरित फिल्म बनाई थी। सनी देओल अभिनीत फिल्म ‘गदर’ का नायक अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से भारत आता दिखाया गया है। इस प्रेम कहानी का इंजन भी वही है और ड्राइवर भी वही है।

रेलगाड़ी को लेकर फिल्मों में एक्शन रचे गए हैं, साथ ही मानवीय करुणा के दृश्य भी प्रस्तुत किए गए हैं। ‘राम तेरी गंगा मैली’ में नायिका अपने शिशु के साथ यात्रा कर रही है। रेल के चलते समय उत्पन्न ध्वनि में एक रिदम होती है। इसी ताल पर गीत है- ‘मैं जानूं मेरा राजकुमार भूखा है, दूध कहां से लाऊं आंचल सूखा है, अपनी आंख में आंसू लिए कैसे कहूं तू चुप हो जा, हो सके तो मुन्ना सो जा’। एक अन्य फिल्म ‘द ट्रेन’ में प्रस्तुुत किया गया है कि दूसरे विश्व युद्ध के समय कुछ लोग फ्रांस की सांस्कृतिक धरोहर को एक ट्रेन में रखकर सुरक्षित जगह छिपाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि अगर वे सांस्कृतिक विरासत को बचा लेंगे तो राजनीतिक स्वतंत्रता देर-सबेर मिल ही जाएगी। उनका विचार यह भी है कि बिना सांस्कृतिक विरासत के राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। इस मामले में भारत ने बहुत कुछ खो दिया है। ज्ञातव्य है कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की जमा जोड़ जनसंख्या के बराबर लोग प्रतिदिन भारतीय रेल में सफर करते हैं। पूरे विश्व में भारतीय रेल का सफर सबसे सस्ता है। माधवराव सिंधिया ने रेल मंत्री बनते ही भारतीय रेल में बहुत सुधार किए। उन्होंने अवाम के लिए वातानुकूलित डिब्बे बनवाए और अब विशेष एक्सप्रेस ट्रेन में कम समय में ही लंबी दूरी तय की जा सकती है। भारतीय रेल तंत्र इतना विकसित और विराट है कि रेलवे बजट अलग से प्रस्तुत किया जाता रहा है। भारतीय रेलवे के पास बहुत अधिक जमीन है। भारत में रेल विकास के प्राथमिक चरण में ही हर स्टेशन के इर्दगिर्द बहुत सी जमीन रेल विभाग के अधिकार में आ गई। जगह-जगह रेलवे अस्पताल में रेल कर्मियों का मुफ्त इलाज किया जाता है। स्टेशन के पास अधिकारियों और कर्मचारियों के निवास की व्यवस्था है। विगत वर्षों में सरकारी उदासीनता के बावजूद यह विभाग सक्षम व सक्रिय रहा है।

कोरोना कालखंड में लोग एक स्थान पर फंस गए हैं और वे अपने जन्म स्थान पर लौटना चाहते हैैं। वे जानते हैं कि कस्बाई जन्म स्थान में अस्पताल नहीं है, स्कूल नहीं है, हजारों गांवों में बिजली नहीं पहुंची है। इस जानकारी के होते हुए भी वे जन्म स्थान लौटना चाहते हैं। उनकी माटी उन्हें पुकार रही है। लॉकडाउन में ट्रेन उनींदी हो गई और उन्हें जगाकर फंसे हुए लोगों को अपने घर पहुंचाने का काम दिया गया। रेलवे निगम ने घोषणा की थी कि यात्री कर राज्य सरकार वसूल करे। बाद में एक अन्य घोषणा में यात्रा मुफ्त करने की बात कही गई। व्यवस्था दो कदम आगे जाती है, तीन कदम पीछे हट जाती है। बेरोजगार यात्रियों को अफसर तंग कर रहे हैं। सुनील दत्त अभिनीत फिल्म ‘रेलवे प्लेटफाॅर्म’ में एक ट्रेन रोक दी गई है। आगे खतरा है। प्लेटफाॅर्म पर ही एक व्यापारी कालाबाजारी करता है। हम कहीं भी हों और हालात कुछ भी हों, परंतु हमारा लाभ-लोभ प्रगट हो ही जाता है। सांप के केंचुल बदलने से उसके दांत का जहर कम नहीं होता। याद आता है शैलेंद्र रचित काला बाजार का गीत- ‘मोह मन मोहे लोभ ललचाए, कैसे-कैसे ये नाग लहराए मेरे दिल ने ही जाल फहराए अब किधर जाऊं, तेरे चरणों की धूल मिल जाए तो प्रभु तर जाऊं..’।