रेल यात्रा से प्रेरित बॉलीवुड फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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रेल यात्रा से प्रेरित बॉलीवुड फिल्में
प्रकाशन तिथि : 29 जनवरी 2022


गौरतलब है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत में रेल यात्रा सबसे सस्ती है। दूसरी ओर यूरोप में रेल यात्रा सबसे महंगी है। इंग्लैंड में जगह की कमी के कारण वहां जमीन के नीचे ट्यूब ट्रेनें चलाई गईं। पहले ट्रेन कोयले से ऊर्जा प्राप्त करके चलती थीं बाद में इलेक्ट्रिसिटी का प्रयोग हुआ। यही नहीं पहाड़ों को काटकर ट्रेन ट्रैक बनाए गए और जरूरत पड़ने पर गुफाओं में से भी ट्रैक के लिए रास्ते निकाले गए। इन गुफाओं से जब ट्रेन गुजरती है तो दिन में भी ट्रेन में अंधेरा छा जाता है। बहरहाल, अनेक फिल्मों में ट्रेन के दृश्य रखे गए हैं। भारत में भी कई रोचक फिल्में ट्रेन की पृष्ठभूमि पर बनी हैं। बलदेव राज चोपड़ा ने ‘टॉवरिंग इनफर्नो’ से प्रेरित ‘द बर्निंग ट्रेन’ बनाई थी। निर्माता रमेश बहल के लिए निर्देशक रवि नगाइच ने राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म ‘द ट्रेन’ बनाई थी। ज्ञातव्य है कि फिल्मकार कमाल अमरोही ने अपनी फिल्म ‘पाकीजा’ की शूटिंग के लिए स्टूडियो में ट्रेन और प्लेटफार्म के स्थाई सेट लगा दिए थे। इन सेट पर अन्य निर्माताओं ने भी जरूरत के मुताबिक अपनी शूटिंग की है।

एक फिल्म में प्रस्तुत किया गया कि रेल आरक्षण विभाग को एक ही सरनेम के दो महिला-पुरुष यात्रियों के आवेदन मिलते हैं। अतः उन्हें पति-पत्नी मानकर उन्हें एक कूपे में आरक्षण दे दिया गया। ज्ञातव्य है कि रेल में कूपे, दो यात्रियों को यात्रा करने के लिए बनाए जाते हैं। यात्रा प्रारंभ होते ही ज्ञात होता है कि एक ही सरनेम वाले दोनों यात्री दरअसल पति-पत्नी रहे हैं और उनका तलाक हो चुका है। खैर लंबी यात्रा में उनके पुराने मनमुटाव दूर हो गए और लंबे समय तक उन्होंने सुखी दांपत्य जिया। इस तरह ट्रेन दिलों को जोड़ती भी है।

रेल यात्रा भारत की विविधता में एकता का प्रतीक भी है। विविध धर्मों को मानने वाले साथ सफर करते हैं। यात्रा के आरंभ में अनुमान होता है कि स्थान से अधिक यात्रियों को टिकट दिए गए हैं। लेकिन ट्रेन के चलते-चलते सब अपना स्थान बना लेते हैं। यात्रा के दौरान भोजन का आदान-प्रदान भी होता है। आलू की सूखी सब्जी और पूरी यात्रा में मिल -बैठकर खाई जाती है। ट्रेन में एक डिब्बा उन यात्रियों के लिए होता है, जो आरक्षण नहीं करा पाए। सत्यजीत रॉय की फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ में बालक अपु और उसकी बहन मात्र ट्रेन देखने के लिए पैदल ही लंबी दूरी का फासला तय करते हैं। इसी फिल्म के अगले भाग में अपु को रेल ट्रैक के निकट ही सस्ता घर किराए पर मिलता है। अत: कभी ट्रेन देखने के शौकीन को अब ट्रेन का शोर सहना पड़ता है। जीवन में भी हम प्राय: जिन सुविधाओं के पीछे भागते हैं बाद में अनुभव होता है कि वे एक छलावा मात्र थीं।

ट्रेन डकैती के दृश्य के लिए ‘शोले’ में रमेश सिप्पी ने विदेश से तकनीशियन बुलाए। जबकि दिलीप कुमार ने फिल्म ‘गंगा-जमुना’ में बेहतर प्रभाव देसी तकनीशियनों की मदद से प्रस्तुत किया था। बोनी कपूर की ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ में भी ट्रेन डकैती का प्रभावोत्पादक रूप प्रस्तुत किया गया है। ट्रेन में अपराध विषय पर अगाथा क्रिस्टी का उपन्यास ‘मर्डर ऑन द ओरिएंट एक्सप्रेस’ एक यादगार फिल्म मानी जाती है। रोहित शेट्टी की दीपिका पादुकोण और शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ अत्यंत मनोरंजक फिल्म बनी है। इसी तरह इम्तियाज अली की करीना कपूर शाहिद कपूर अभिनीत फिल्म ‘जब वी मेट’ भी रेल यात्रा की प्रेम कहानी है। यह फिल्म करीना कपूर के अभिनय के कारण यादगार रहेगी।

गोया की राष्ट्र के बजट का रेल बजट इतना महत्वपूर्ण माना गया है कि उसे अलग से प्रस्तुत किया जाता था। अब उसे राष्ट्रीय बजट के साथ ही प्रस्तुत किया जाता है। दरअसल रेल द्वारा कमाया मुनाफा, घाटे की अन्य मदों की क्षतिपूर्ति में काम आता है। बहरहाल, प्राइवेट सेक्टर में जाते ही रेल यात्रा महंगी हो सकती है।