रैन भई चहुँ देश / अमरेन्द्र

Gadya Kosh से
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पाँच दिन पहिलौं एतन्हैं जोरोॅ सें बरसा होलोॅ छेलै। कोशी गांग मिली केॅ एक होलै तेॅ ओकरोॅ तांडव लीला कटिहार सें लै केॅ नौगछिया तांय फैली गेलै। कटिहारोॅ के यहेॅ गाँव छेलै, जे बची गेलोॅ छेलै। आय तांय नै भांसलोॅ छै, कत्तो कैन्हैं नी बोहोॅ आवी जाव। ई गाँव के बारे में यहाँकरोॅ लोग यहेॅ जानै छै कि सौंसे इलाका डूबी जाय, तेॅ डूबी जाय ई गाँव केन्हौ केॅ नै डूबेॅ सकै। औघड़ बाबां आपनोॅ मशानी हड्डी सें ई गाँव केॅ घेरी देलेॅ छै। आयकोॅ बात नै छेकै, हजार, दू हजार साल पहिलकोॅ बात छेकै...नै जानौं कहाँ सें ऊ औघड़ ऐलोॅ छेलै आरो यहेॅ उतराही कोना सें सटलोॅ असमसान में जमी गेलै। चार कट्ठा के जमीन पर झबरलोॅ बोॅर गाछी के नीचें। नै कुटिया, नै आसन-बासन। सावन-भादो के महीना छेलै। कोशी के पेटी हेनोॅ उमतैलै कि मत पूछोॅ। औघड़ के तेॅ कुछ नै बिगाड़ेॅ पारलकै, हों बोॅर गाछी केॅ जड़ें सें उखाड़लेॅ बही गेलै। औघड़ के गुस्सा तेॅ हेनोॅ बढ़लै कि जेना ऋषि जह्नु हेनोॅ ही चुरूवे में लै केॅ कोशी केॅ पीवी जैतै। सात दिनोॅ तांय पानी के बीच खाड़े रही गेलै, एकदम खाड़े उपास आरो जबेॅ बोहोॅ उतरलै तेॅ ऊ औघड़ें एक हड्डी लै केॅ ई गाँव के सिमाना केॅ ही बांधी देलकै। वही दिनोॅ सें कोशी कत्तोॅ उछाल मारौ, ई गाँव में नै घुसेॅ पारेॅ...गाँव के पुरखा-पुरातन सें ई कथा सुनलेॅ छै किसनां, झुट्टोॅ थोड़े हुएॅ पारेॅ।

रात के टापेटुप अन्हार में किसनां आँख उठाय केॅ देखलकै--बाप रे बाप केन्होॅ अन्हार, जेना काली मांय आपनोॅ देहोॅ के रंग पोछी केॅ सौंसे इलाका के देही पर पोती देलेॅ रहेॅ। सब कुछ कारोॅ-कारोॅ, कुछुओ नै दिखाय पड़ी रहलोॅ छै। बस गंगा आरो कोशी के उमड़तें धार के आवाज। जेना काली माय रेतोॅ पर छमछम नांचतें रहेॅ। ओकरा लागलै, ऊ आवाज ओकरे दिश दौड़लोॅ

ऐतें रहेॅ। ओकरोॅ सौंसे देह भौवाय उठलै।

"किसुनका होऽऽऽऽ"

"के नरैनां आं आं?" किसनां अन्हारे में आवाज लगैलकै

"हों, हम्मीं, काकी आरनी पार उतरी गेलौं। काकी कहलेॅ छौं--फसिल लेॅ जान जोखिम में डालै लेॅ नै।"

एकरोॅ बाद कोय आवाज नै ऐलै, नै किसना फेनू आवाज देलकै।

ओकरोॅ आँखी के सामनां में अचोके केला रोॅ खड़ा फसिल उब-डुब करेॅ लागलै। लागलै कि वैं आपने हाथें आपनोॅ दोनों हाथ चूरी लेतै, लहूलुहान करी लेतै, ताकि फेनू कभियों कोय किसिम के ऊ खेती करै लायके नै रहेॅ।

घंटा भर होलोॅ होतै, पानी खूब झमाझम बरसी केॅ थमी गेलोॅ छेलै। दालानी पर बेचैन घुमतै किसना सोचलकै, ई बोहा सें केला रोॅ ओकरोॅ खड़ा फसिल बर्बाद होय जाय छै, तेॅ वैं केकर्हौ दोषियो तेॅ नै ठहरावेॅ सकेॅ। लछमनियौं तेॅ मना करलेॅ छेलै। कहलेॅ छेलै, "आपनोॅ पास जे कुछ जमीन-जायदाद छौं आरो एकरा सें जतन्हैं टा मकै-गहूम रोॅ फसिल होय जाय छै, ओकरा सें परिवार के तेॅ भरण-पोषण होइये जाय छै, फेनू केला खेती के ई झमेला में की फँसवोॅ। ज़्यादा हाय-हाय करल्हैं सें की होतै, परेशानिये होतै आरो फेनू बचलोॅ समय्यो रोॅ सुख सपना।"

मजकि किसनां अपनी कनियैन लछमनिया रोॅ बाते कहाँ मानलकै। वैं देखलेॅ छेलै कि कोॅन रकम दस सालोॅ के भीतरे नौगछिया, कटिहार, पुर्णिया, खगड़िया रोॅ छोटोॅ-छोटोॅ किसान केला रोॅ उपज करी मालोमाल होय गेलोॅ छेलै। वहेॅ किसान, जे पहिले कलाय, रहार, मकै के खेती करै, तबेॅ हुनकोॅ जिनगी हेनोॅ तेॅ खुशहाल नै रहै कि ऊ आपनोॅ बेटा केॅ पटना आकि भागलपुरो भेजेॅ पारेॅ। आय तेॅ वहेॅ में सें कैकठो के बच्चा दिल्ली आरो बनारस में पढ़ै छै। हमरे टोला के यहेॅ परमेसरी पाँच साल पहिलें हमर्हें सें पाँच सौ रूपा लै गेलोॅ छेलै, पाँचे दिनोॅ में वापिस करी दै के नाम पर आरो साल भरी में नै लौटावेॅ पारलकै। आय महाजन बनलोॅ होलोॅ छै--केलाहै रोॅ खेती पर। सब्भे केॅ मालूम छै, परमेसरी महीनै में सात-आठ हजार रूपा आपनोॅ बच्चा लेली दिल्ली भेजै छै आरो ऊ हरकरिया, जे कल तांय दसो कोस पैदल चली केॅ ग्यारह-बारह बजें राती घोॅर पहुँचै छेलै, आय ओकरोॅ गोड़ कारोॅ सें नीच्हैं नै हुऐ छै...जब ओकरोॅ कार गामोॅ में घुसै छै तेॅ माँटी के ऊबड़-खाबड़ रास्ता केॅ पार कारलेॅ सीधे ओकरोॅ घरे पर रुकै छै। सब केलाहै खेती के कमाल। आबेॅ तेॅ यहेॅ परमेसरी हमरौ सिनी सें अंगरेजिये में बतियैलकोॅ, बाप-दादा रोॅ भाषाहै भूली गेलै।

खड़ियो बोली बोललकोॅ वहू में तीन-चार ठो अंग्रेज़ी शब्द दाली में फोरन नाँखी डालिये केॅ। जेना चौबटिया वाला पनेड़ी आपनोॅ पानोॅ में ऊपरोॅ सें कत्था ज़रूरे डालेॅ, भलेॅ कोय चाहेॅ की नै चाहेॅ आरो परमेसरी के दोनों बच्चा, ऊ दोनों तेॅ खैर हिन्दी जानवे नै करै छै--परमेसरी तेॅ जेना बस कोय अंगरेजी बच्चा केॅ गोद लेलेॅ रहेॅ।

किसना के मोॅन सोचते-सोचतें केन्होॅ तेॅ होय उठलै, एकदम कसैलोॅ-कसैलोॅ। मजकि आधे-एक मिनिट लेली। तुरत्ते नरम पड़तें सोचलकै, " वहूँ तेॅ केलाहै रोॅ आमदनी सें आपनोॅ बच्चा केॅ दिल्ली-बनारस तांय पढ़ाय के बात सोचलेॅ छै--भले आपनोॅ बाप-दादा के जुबाने में--आखिर यही सोची कि हिन्दुस्तानों में जनमलोॅ छै तेॅ हिन्दी नै बोलतै तेॅ की बोलतै। जानले बात छेकै--जों बाप-दादा के भाषा नै बोलतै तेॅ आपनोॅ समाजोॅ, आपनोॅ देश-दुनिया के दुख-दरदे की समझेॅ पारतै...मजकि है सब तेॅ बादकोॅ बात। पढ़ौक कुछुए आरो जेना पढ़ौक--पढ़ै लेली पहिलें चाही टाका। आपनोॅ मुलुक में आबेॅ तेॅ धोॅन बिना शिक्षा के पूछो पकड़बोॅ मुश्किल। लछमनिया कहै छै, केला खेती नै करै लेॅ। की वैं है बात नै समझै छै कि एकरोॅ सिवा कोय दुसरोॅ रास्तो की छै। एक तेॅ भगवानें ई इलाका के मिट्टिये हेनोॅ बनैलोॅ छै कि केलाहे यै में सबसें बढ़िया उपजेॅ पारेॅ आरो दुसरोॅ बात छै कि आन खेती में टाका-पैसा लै केॅ ओत्तेॅ परेशानी तेॅ नहिये छै। खुचुर-खुचुर खर्चा करोॅ, एक मुश्त पैसा लगाय के ज़रूरत नै पड़ै छै, तेॅ अखरबो नै करै छै। आन खेती में तेॅ चोटे पर चोट। केला खेती में खुचुर-खुचुर लगावोॅ आरो हर दाफी झोला भरी-भरी सेती राखोॅ। परमेसरी मुरुख नै छै जे केला खेती नै छोड़ै छै। एक दाफी नै, कै दाफी बिन्डोवोॅ-अन्धड़-बतासें खेते के खेत ओकरोॅ केला गाछी केॅ उजाड़ी देलेॅ छै, तेॅ की वैं ई खेती छोड़ी देलकै...घाटा-लाभ सोचिये-परखिये केॅ तेॅ...

आरो यहेॅ लेली तेॅ किसना पहिलें परमेसरी होय के बात सोची लेलेॅ छेलै। सब ओरी सें हिसाब-किताब बैठाय केॅ वैं देखलकै कि मकै आरो गहुम रोॅ खेती के जग्घा में केलाहै रोॅ खेती पकड़ला में फायदा छै। तबेॅ वैं लछमनिया रोॅ एक बात नै मानलकै आरो सामाचरण बाबू के यहाँ सें सूद पर बीस हजार टाका लै आनलकै।

सूद पर टाका लै के पहिलें किसना आपनोॅ दोस्त जगेसरो सें मिललोॅ रहै। बात तेॅ यहेॅ छेलै कि जगेसर्हैं सूदोॅ पर कर्जा लै केॅ केला खेती करै के सलाह ओकरा देलेॅ छेलै। सलाहे नै, यहू समझैलकै कि केला रोॅ एक खानी पर बीस सें पचीस टाका के मुनाफा छै। एक एकड़ में जों वैं छोॅ हजार टाका लगाय दै छै, तेॅ बारह हजार समझोॅ ओकरोॅ आपनोॅ छेकै।

सुनत्हैं किसना के मोॅन झूमी गेलै। वैं करलकै भी वही आरो साल के ऐतें नै ऐतें किसना के खेतो केला गाछी सें लहलहावेॅ लागलै। केला के हरा रंगो सें ज़्यादा ओकरोॅ मोॅन हरा होय गेलै। ओकरे नै, लछमनियो के. आपनोॅ भूल केॅ मानतें आरो किसना के साहस केॅ सरैहतें बोललै, "जन्हैं काटेॅ वोॅन।"

सचमुचे मंेे किसनां आपनोॅ लगन आरो संघर्ष सें सब किसिम के विपति रोॅ जंगल काटी-छाँटी देलेॅ छेलै। कत्तेॅ मेहनत सें पटाय-पटाय केॅ वैं केला कंद खड़ा करलेॅ छेलै। समय-समय पर कोड़ाई साथें दवाय-दारू के छिड़काव तांय। किसना केॅ मालूम छेलै कि केला गाछ रोॅ सबसें बड़ोॅ बेमारी छेकै--बांझी। जों लागी गेलोॅ तेॅ एकेक पौधा सूखी-सूखी सनसनाठी बनी जाय।

यही डरें लछमनिया तेबारी थानोॅ में कबूलतियो गच्छी ऐलोॅ छेलै आरो मने-मन यहू कबूली ऐलोॅ छेलै, जों फसल ठीक-ठाक उतरी गेलै तेॅ वैं थान केॅ ज़रूरे पक्का करवाय देतै।

तबेॅ के जानै छेलै कि हेनोॅ बारिस होतै। हथिया में सताहा। दस दिन पहिलें किसना केॅ बोहो के चिन्ता नै छेलै। चिन्ता छेलै तेॅ बस एकरे कि कहीं केला पर चित्ती नै पड़ी जाय। चित्ती लगतै तेॅ व्यापारी ना-नुकुर करतै, बीस के माल दस में मांगतै; हेनोॅ केला केॅ छुवौ लेॅ नै चाहै छै। जगेसरे साथ रही केॅ किसना व्यापारी के चालबाजी सें खूब परिचित होय गेलोॅ छै। मजकि चित्ती लागी गेलै तेॅ वैं करवो करतै की। कम में नै बेचतै तेॅ की फसल खेमें में सड़ैतै। ई इलाका में एतना बड़ोॅ मंडियो तेॅ नै कि फसिल वाहीं जाय केॅ बेची आवौं। बस लै दै केॅ धनबाद, पटना, लखनऊ आरो बनारस। आरो जों कोय किसान चाहेॅ कि ट्रक ठीक करी आपन्हैं फसल वहाँ बेची आवौं तेॅ समझोॅ ओकरोॅ हेनोॅ आरो कोय बड़ोॅ मुर्खे नै। किसना के खयाल ऐलै--पिछुलका साल आन में छंगुरी कां यहेॅ करलेॅ छेलै। ट्रक ठीक करी वै पर केला लदवैलकै आरो पहुँची गेलै पटना। सोचलकै, दू के चार बनैवै आरो होलै की? वहाँ तेॅ केला पहिल्हैं से बाजारोॅ में भरलोॅ छेलै। छंगुरी का केॅ की मालूम कि पटना में केला के भाव कम होय गेलोॅ छै। आबेॅ लौटैय्यो केॅ की लै जैतियै। पैसा-कौड़ी के अभाव में आखिर छंगुरी कां घरोॅ सें घाटा सही केॅ फसल बेची देलकै आरो हेनोॅ टुटलै कि दस साल तांय खेती के बातोे नै सोचेॅ सकलकै।

किसना सोचलकै--छंगुरी का रोॅ खेत तेॅ सड़के किनारी छै। व्यापारी केॅ टरको लानै में कोय दिक्कत नै। जबकि हमरोॅ खेत तेॅ सड़क सें बहुत हटी केॅ दूर पर छै, ट्रक नै पहुँचेॅ पारेॅ। बैलगाड़ी पर लादी केॅ पहिलें सड़क तांय लानोॅ, यै में खरच अलगे। किसना मने-मन कुढ़तेॅ फदकलै, "आखिर गामोॅ के मुखिया एतन्हौ टा कैन्हें नी करै छै कि गामे में एकटा हेनोॅ बाज़ार हुएॅ, जै में हमरोॅ हेनोॅ मँझलोॅ किसिम के किसान आपनोॅ माल बेची आवौं।"

गंगा-कोशी में सावन-भादो के उफान आवै के ठीक दू महीना पहिलकोॅ बात छेकै; किसना सें परमेसरीं कहलेॅ छेलै, "गाँववाला सिनी जों मिली-जुली केॅ शिवराज बाबू केॅ मुखिया सें विधायक बनाय दिएॅ, तेॅ कोय्यो कीमत पर है तेॅॅ तय्ये छै कि हुनी विधायक सें मंत्री बनिये जैतै आरो मंत्री बनत्हैं जे हुनी पहिलोॅ काम करतै, हौ कटिहार में केला सें जेली बनै के कारखाना खोलवाना, है हम्में नै कही रहलोॅ छियौ किसिन, शिवराज बाबूं खुद्दे धानुक, कोरी, यादव टोली के पाँचो सौ आदमी के बीच कहलेॅ छै, आरो तांेही सोच-विचार करी केॅ देखैं किसिन, जों हेनोॅ होय जाय छै तेॅ केला बेचै लेॅ किसानोॅ के नै बाहर जाय लेॅ लागतै, नै तेॅ मजूरिये लेॅ दिल्ली आरो पंजाब भागै लेॅ लागतै। बस आपनोॅ टोलावाला सें वोट दिलवाय दिऐं किसिन। आपनोॅ टोला पर तोरोॅ पकड़ छौ, ई बात तेॅ सब्भै जानै छै।"

किसनां ओकरोॅ बात चुपचाप सुनी लेलेॅ छेलै। बोललै कुछ नै। वै जानै छेलै कि है सब होतै कुछुवे नै, कहै-सुनावै लेॅ जे जतना कही, सुनाय लौ। होना केॅ जब तांय परमेसरी कहतें रहलै, तब तांय ओकरा हेने लागलै कि ओकरोॅ सब्भे टा दुख-दरिद्री जइये वाला छै--लक्ष्मी घोॅर, दलिद्दर बाहर। आरो जबेॅ परमेसरी आपनोॅ बात कही गेलै, तेॅ जादा तेॅ नै, एतना किसना ज़रूरे सोचलकै कि शिवराज बाबू विधायक मंत्री बनला पर जों नहियो कुछ करतै, तेॅ एतना तेॅ ज़रूरे करतै कि ई गाँव के कच्ची रास्ता केॅ पक्की ज़रूरे बनाय देतै--पक्की सड़क तांय। आखिर शिवराज बाबू केॅ मौका बे मौका ई गाँव तेॅ आब्है जाय लेॅ पड़तै। जों सड़क बनी जाय छै, तेॅ अबकी वहू बैलगाड़ी सें नै, सीधे टैक्सी करतै आरो लछमनिया साथें भोले बाबा के दरशन लेली सिंघेसर थान पहुँचतै। लछमनियो ई बात कै दाफी कही चुकलोॅ छै। अबकी बाबा के किरपा सें फसलोॅ होन्है लहलहाय रहलोॅ छै। ई फसल सें एतना तेॅ वै ज़रूरे करतै। चौधरी जी के सबटा कर्ज चुकैला के बादो ओकरोॅ मुट्ठी में एतना टाका तेॅ बचिये जाय छै कि अगला आषाढ़ में केला के कंद रोपै पारेॅ। किसना मने-मन सब हिसाब-किताब लगैलेॅ छेलै।

पर ओकरा की मालूम छेलै कि भादो गेला के बाद हेन्होॅ बारिश होतै। पाँच दिन पहिलें जबेॅ सताहा लागी केॅ बरसा रुकी गेलोॅ छेलै आरो मौसम वैज्ञानिकें एकरोॅ घोषणा करी देलकै कि आबेॅ बाकी साल में मौसम सूखे सूखा रहतै तेॅ किसना के बड़ी ढाढस होलै। मजकि ओकरा की मालूम कि मौसम वैज्ञानिक के भविष्यवाणी आरो सड़कोॅ किनारे के पिंजड़ा में बंद सुग्गा के भाग्य बतैवोॅ--दोनों बराबरे।

छठमोॅ दिन बीततें नै बीततें भोररिये सें वहेॅ प्रलयकारी बरसा शुरू होय गेलै। किसना सुनलकै--समस्तीपुर, खगड़िया के बाद आबेॅ कटिहारो के कै गाँव भाँसै वाला छै। नौगछिया तेॅ पानिये पर तैरी रहलोॅ छै। किसना मनेमन सोचलकै--मनिहारी घाटोॅ में पानी जों सतह सें ऊपर उठलै तेॅ समझोॅ कि ओकरो गाँव नै बचेॅ पारेॅ।

मजकि हेनोॅ नै हुएॅ पारेॅ। किसना फेनू मने-मन सोचलकै--गाँव के पुरखां जे औघड़ वाला कथा कहै छै, ऊ झुट्ठे नै हुएॅ पारेॅ। आरो कुछ होय जावेॅ पारेॅ, ई गाँव केॅ कोशी छुवौ नै पारेॅ। आरो ई सोचत्है ओकरा लागलै, जेना वैं बोहा में भाँसतें कोय गाछी के सहारा पावी लेलेॅ रहेॅ। "की सचमुचे ओकरोॅ गाँव बची जैतै, जो कोशी आखरी तांय उमतैलै। तखनी औघड़ के बचन की करतै। सुनै छियै कि एक दाफी बाली रं बलशाली एक राकसें कोशी के छान्है के कोशिश करलेॅ छेलै--रूप सें मोहित होय केॅ। की बन्हाय गेलोॅ छेलै। तेॅ औघड़ के मंत्र सें की बन्हाय जैतै कोशी माय।" किसना एकदम सें काँपी उठलै। ओकरोॅ हाथोॅ सें ऐलोॅ गाछ गोता खाय कहीं दूर निकली गेलै--ढेर सिनी शंका रोॅ थपेड़ा खाय केॅ।

किसना सोचेॅ लागलै--आय भोररिये सें जोन रकम के बरसा होय रहलोॅ छै, रुकी-रुकी केॅ, ओकरा सें तेॅ ई नै लगै कि हमरोॅ ई गामो केन्होॅ के बचेॅ पारतै। आस-पास के नगीच वाला में तेॅ हेलाव भरी पानी छप-छप करिये रहलोॅ छै। समेली, तिनघरिया, बोखरी, अमोध्यागंज, मजडीहा के लोग नाव पर बैठी-बैठी आपनोॅ घोॅर-दुआर छोड़ी देलकै--जोॅर-जनानी, बच्चा-बूढ़ोॅ सब नाव-डेंगी पर बैठी केॅ। बस दू-एक टा छवारिक हरेक घरोॅ में रही गेलोॅ छै। बड़ी जिद करी नाव पर वहूँ लछमनिया केॅ चढ़ाय देलेॅ छेलै, बेटा आरो दियोर साथें लगाय केॅ।

किसनां सोचलकै ई तेॅ वैं अच्छा करलेॅ छेलै कि लछमनिया के जिद पर मकान के छत पर माँटी गारा पर ईंटा के एक छोटोॅ रं कोठरी आरो बनाय लेलेॅ छेलै। नै जानौ कि सोची केॅ ऊ उठलै आरो बाँसोॅ वाला सीढ़ी छत सें लगाय केॅ ऊपर चढ़ी गेलै। किसना झाँकी केॅ देखलकै--बाँस भरी दूरी-दूरी पर नाव रेत पर बही रहलोॅ छै, जै पर जनानी बच्चा-बूढ़ोॅ साथें गाय-भैंस-बकरी तांय लादलोॅ छै। नाव बड़ी तेजी सें बढ़ी रहलोॅ छै। किसना आकाश दिख देखलकै। कारोॅ-कारोॅ मेघ बीच मलका साँपे रं ठनकी रहलोॅ छेलै--उखेल होला सें की, कखनियो पानी होहाय केॅ पड़ेॅ पारेॅ।

ओकरोॅ दोनों आँख अपने आप मूंदी गेलै आरो दोनों हाथ उठी गेलै कोशी माय के प्रार्थना में। आँख मूंदलै तेॅ कुछ देर लेली मुंदले रही गेलै। कानोॅ में छप-छप के आवाजोॅ साथें मनौन के गीत गूँजेॅ लागलै,

सगरे समैया कोशिका हँसी खेली बितैलियै से भादो मासे

कोशी माय लागै छै पहाड़ से भादो मासें

एक तेॅ अन्हार राती दोसर बरसात घाती सूझै नहीं

मैया गे रेत के बहाव सें गे सूझै नाहीं

मलरी-मलरी कोशिका करै अनघोल सें नदी बीचें

कोशी माय मन डरयाय से नदी बीचें।

पहचानै में देर नै लागलै। ओढ़ैया के दादी रोॅ आवाज छेलै "तेॅ की हरिबोलो भैया गाँव छोड़ी रहलोॅ छै?" किसना के मुँहोॅ सें आवाज निकललै आरो फेनू ऊ पागल नाँखी आपनोॅ छत पर चक्कर लगैतें बोललै--" हरिबोलो भैया छोड़िये रहलोॅ छै तेॅ की अचरज। अबकी हुनी खेतियो-बाड़ी तेॅ नै करलेॅ छै। कोॅन मोह होतै। मजकि हम्में केना छोड़ी केॅ चल्लोॅ जांव। ओकरोॅ आँखी में अचोके केला रोॅ हलहलैतें गाछ सिनी नाँचेॅ लागलै जेना सेना के सैनिक के जमात आपस में कोय उत्सव मनैतें।

"किसना का, नाव लेलेॅ परमेसरी का पुबारी टोलोॅ के ऊ छोरी पर छौं। कोशी के बोहोॅ गाँव में घुसी ऐलौं। समेली, तिनघरिया, बोखरी, अयोध्या गंज, मजडीहा सब हेलम-हेल हुएॅ लागलोॅ छै। काका, जल्दी तोरा बुलैलकौं। नाव खोलतौं।" ऐंगन सें अठारोॅ साल के एक लड़का हाँक देलकै।

"की?" किसना केॅ काटोॅ तेॅ खून नै। एक क्षण लेली काठ बनी गेलै।

"हों काका, जगेसर काका एकदम जल्दी बोलैलकौं।"

"बिलटा" किसना तुरते आपनोॅ हालतोॅ पर काबू पैतें कहलकै, "जो जगेसर केॅ कही दियैं, ऊ नाव लै केॅ निकली जैतै, जेकरा-जेकरा लै जावेॅ पारतै, लै जैतै, मजकि हम्में नै जैवै।"

किसना देखलकै, बिलटा ओकरोॅ पूरा बात बिना सुनल्हैं उड़ान दै देलेॅ छेलै। कुहराम मचेॅ लागलै। हजार, दू हजार के आदमी के आवाज, एक लाख के आदमी के शोरगुल में बदली गेलै। किसना समझी लेलकै कि कोशी औघड़ के बांधलोॅ रेखाहौ केॅ लांघी गेलै। रेखा लांघी गेलै, तहीं सें तेॅ ई हाहाकार छै। बैरिया, करबोला, पहाड़पुर, जमरा, अमबड़िया आरो गोरबा गाँव तेॅ पहिलैं बोहा में भाँसेॅ लागलोॅ छेलै, आबेॅ यहू इलाका जलमगन। जबेॅ समेली, तिनघरिया आरो मजडीहे डूबी गेलै तेॅ ओकरोॅ केला खेते केना बचलोॅ होतै। आदमी तेॅ छत्तोॅ पर चढ़ी गेलोॅ होतै, गाछोॅ पर चढ़ी गेलोॅ होतै, मजकि बेचारा फसिल...ऊ तेॅ ढोर-ढांगर नाँखि बही गेलोॅ होतै। ढोर-ढांगर तेॅ तभियो हेली-हूली केॅ बची जैतै, मजकि खड़ा फसिल? ऊ तेॅ...कल जबेॅ भोर होतै तेॅ केला के गाछ सिनी कटलोॅ-मरलोॅ सैनिक के लहाश नाँखि हिन्नें-हुन्नें पानी पर पड़लोॅ नजर ऐतै। मजकि आबेॅ भोर होतै की?

सोचत्हैं किसना के आँख आपने आप मुनी गेलै। आरो मुनले आँखी सें वैं आपनोॅ खेत के एक-एक गाछ केॅ देखलकै--एकदम क्षत-विक्षत। जेना धृतराष्ट्र नें मुनलोॅ आँखी सें कुरूक्षेत्र केॅ देखलेॅ छेलै। किसना के छाती फाटी केॅ रही गेलै। ओकरोॅ मोॅन होलै--ऊ उठै आरो हमेशे-हमेशे लेली ई गाँव छोड़ी केॅ चली दै। रहौक कोशिये माय आरो पंचतल्ला हवेली में बाबू शिवराज जी.

मजकि कहाँ जैतै किसना। ई गाँव में तेॅ किसना रोॅ कनियैनिये के नै, ओकरो सपना गड़लोॅ छै--एक ठो नै, कैक ठो। फेनू कन्नू चौधरी? सपने नै गढ़लोॅ छै--कन्नू चौधरी के कर्जो गड़लोॅ छै--सान नाँखी ओकरोॅ छाती में। केन्हौ केॅ नै भागेॅ पारेॅ ऊ।

आकाश कारोॅ-कारोॅ मेघोॅ सें ओन्हे ढलढल छेलै। मलका के अभियो होन्हे मलकवोॅ। बूंदा-बूंदी नै होय छेलै, मतरकि वही राती सें किसना के आँखी सें जे बूंदा-बूंदी शुरू भेलै, ऊ आय तांय नै रुकलोॅ छै।