रैफेनोब्रासिका / कमल

Gadya Kosh से
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बहुत ज्यादा खा कर, बहुत ज्यादा मल-त्याग अथवा बहुत ज्यादा या बहुत कम मल-त्याग के अजीब से फर्क के कारण तबियत खराब होने का जो परिणाम होता है यदि उसका पूर्वानुमान हो जाए तो संभवतः खाने वाले हिसाब से खाने लगें।

मगर पार्टियों में मिलने वाले लजीज खाने की तरह ही वह किष्टो से मिला था, उस पर पंद्रह सालों का अंतराल भला किसन क्या करता ? फिर किष्टो ने किसन को जो-जो सपने दिखाये और जिस-जिस तरह की बातें बतायी थी, उसके बाद तो किसन के बस में कुछ भी कहाँ रहा था ? वैसे भी किसन की आँखें शेयर-बाज़ार में किसी काले शुक्रवार या सोमवार को नहीं, वर्ना ऐसे वक्त पर खुली थीं, जब वह अपने पूरे यौवन पर था। कोई ऐसा-वैसा यौवन नहीं, बल्कि स्वर्ग की मेनकाओं, रंभाओं के साथ-साथ धरती की मल्लिका सेहरावतों और समीरा रेड्डियों को भी मात देता यौवन। मधु की तरह टपकता, मदिरा की तरह बहकता यौवन...! कसाव और कटाव वाला यौवन...! मस्त झरनों का अल्हड़पन और तपते ज्वालामुखी की लपलपाती धधक वाला यौवन...!

किसन तो पिछली रात वाली पार्टी में ज्यादा खा लेने के कारण, कैमिस्ट की दुकान से अपने गड़बड़ करते पेट की दवा लेकर अपने सैकेन्ड-हैन्ड स्कूटर को, यह जानते हुए कि वह पांचवीं किक के बाद ही स्टार्ट होता है, पहली किक पर ही स्टार्ट होने की उम्मीद में किक मार रहा था। जब वह आवाज उसके सर के पिछले हिस्से से आ टकराई।

“अरे यार तुम तो बिल्कुल नहीं बदले।”

उस अप्रत्याशित आवाज की दिशा में मुड़ते ही किसन घबराया था। गार्नियर से लाल किये बाल, आँखों पर रे-बैन का चश्मा, गले में मोटी-सी सोने की चेन, ब्रंडेड कपड़ों, मुंह में क्लासिक सिगरेट और मौरिश के जूतों में उबलता हुआ वह आदमी उसे आगे, पीछे, ऊपर, नीचे किसी भी तरफ से अपना यार बिल्कुल नहीं लग रहा था।

लरजता-सा वाक्य बहुत डरते-डरते उसके मुँह से बाहर आया, “माफ कीजिएगा, मैंने आपको पहचाना नहीं।”

“अरे यार मैं किष्टो हूं, किष्टो भूषण प्रसाद, सौन्दा कोलियरी वाला किष्टो। अपने बचपन के दोस्त को भूल गये ?” अपनी आखों से रे-बैन उतारते हुए वह और पास खिसक आया।

आँखों पर नजर पड़ते ही किसन ने चैन की साँस ली। उसकी दांयी आँख कॉलेज में एक लड़की के चक्कर में पिटने से जाती रही थी, जिसकी जगह पत्थर की बेजान आँख थी।

“ इतनी चमक-दमक में, तुम तो पहचान में ही नहीं आ रहे।” उसे पहचानते ही किसन सहज हो गया।

“ और तुमने, ये क्या हाल बना रखा है ? लगता ही नहीं कि कॉलेज का सबसे स्मार्ट स्टूडेंट इस तरह किक मारता हुआ मिलेगा।” किष्टो हो..हो कर हंस रहा था।

“ तुम्हारी शादी हो गई ?” किसन ने योगियों की-सी गंभीरता से पूछा।

“ क्यों भला ?” किसन का अप्रासंगिक प्रश्न किष्टो के सर पर क्रिकेट की बाल की तरह जोर से जा बजा, टन्...टन्… और उसे भरी दोपहर में तारा-दर्शन सुख प्राप्त हुआ।

“ इसलिए कि मेरी तरह अगर तुम्हें भी पत्नी-बच्चों की देख-भाल इस कमर तोड़ मंहगाई में अपनी नौकरी की सीमित तनख्वाह से करनी पड़ती, तब तुम भी मेरी तरह ही घासलेट छाप दिख रहे होते।”

इस बार किष्टो और भी जोर से हंसा, “ तब तो तुम जान लो कि मेरी भी पत्नी है और बच्चे भी ! सब गांव पर रहते हैं। और मैं भी तुम्हारी तरह एक नौकरी करता हूं। मगर फर्क यह है कि तुम्हारी तरह केवल नौकरी के ही भरोसे नहीं बैठा रहता। ऐसी चमक-दमक नौकरी से नहीं दूसरे कामों से आती है। तुम चाहो तो, तुम भी कर लो।”

“अच्छा, तो मुझे भी बताओ। मैं भी अपना जन्म सफल कर लूँ।”

“अभी नहीं, शाम को मिलते हैं। अभी जरा जल्दी में हूँ। आज नामी तेल कंपनी का आई.पी.ओ. आया है। देर होने से गड़बड़ हो जाएगी।”

“आई.पी.ओ. माने सबसे बड़ा अफसर होता है, क्या ?”

हो...हो हंसता किष्टो बोला, “अरे लल्लू ! बड़ा अफसर नहीं, शुरुआती शेयर होता है। ये रखो मेरा कार्ड, शाम को फ्री होने पर फोन करना। तब तुम्हें अपनी चमक-दमक का असल राज बताऊॅंगा और कहोगे तो तुम्हें भी चमकीला बना दूंगा। फोन करना, बाई !” कह कर किष्टो ये जा वो जा, सड़क के दूसरी तरफ, नयी-सी दिखती चमचमाती बिल्डिंग में जा घुसा। बिल्डिंग के सामने ऊपर के अपारदर्शी काँच पर एक फुंफकारते सांड़ की आक्रामक तस्वीर बनी हुई थी। अपने सर को झुकाये, नथुनों से भाफ छोड़ता साँड़ उसे तेजी से अपनी ओर आता लगा। वह घबराया।

उसे लगा, उसकी मनःस्थिति देख बिल्डिंग पर ‘बाजार आज’ लिखा बोर्ड उसे अजीब नजरों से घूरने लगा है। किसन को वह बोर्ड पढ़ने के लिए अपना सर बहुत ऊपर उठाना पड़ा, जिससे सर पर पहनी धूप रोकती टोपी नीचे जा गिरी और चुंधियाती धूप सीधे उसकी आँखों को भेदने लगी।

‘बाजार आज’ वह बुदबुदाया तो क्या कल ये बाजार नहीं रहेगा... और फिर परसों ? उसके भी होठों पर एक शरारती मुस्कान खेल गयी। क्योंकि तब तक स्कूटर को उसकी छठी किक लग चुकी थी।

अपने काम में व्यस्त रहने के बावजूद शाम तक किसन को किष्टो बहुत बार याद आता रहा। लेकिन उससे मिलने की कोई खास उत्सुकता उसने महसूस नहीं की थी। वैसे भी शाम को बेटी शालिनी के रिश्ते की बात करने उसके एक परिचित आने वाले थे। आजकल किसन आम भारतीय जवान बेटी के बाप की तरह अपनी बेटी की शादी की चिन्ताओं में धिरा था। हर बार बात पैसों पर ही आ कर रुक जाती थी। इस बार कुछ उम्मीद जगी थी। इसलिए आज की शाम तो संभव ही नहीं कि वह उससे मिलने की सोच पाता।

घर लौटने की जल्दी में वह स्कूटर की पांचवीं किक तक पहुंचने को ही था, जब एक काले रंग की चमचमाती स्विफ्ट उसके ठीक सामने आ रुकी। वह सर उठा कर कुछ कहता-सुनता उसके पहले ही उसकी झुंझलाती नजरों के सामने किष्टो की सजी-धजी चमचमाती मुस्कान आ खड़ी हुई।

“ कहां चल दिये प्यारे ? तुमने फोन भी नहीं किया ?”

“ अरे यार आज घर पर कुछ लोग आने वाले हैं। मैंने सोचा कल बात करुंगा।”

किष्टो ने उलाहना दिया, “तुम जैसे लोग हमेशा कल पर ही जीते हैं। अरे यार, असल जीवन तो आज पर टिका हुआ है। आज के बारे में सोचो तभी कल सफल होओगे। समझे !”

उसके ‘चलो तुम्हें घर छोड़ देता हूं’ के आश्वासन के टाले जाने और फिर एक कप कॅाफी के दबाव के न टल पाने के साथ ही वह उसकी कार में जा बैठा। उसने सोचा घर आधा घंटा देर से पहुंचा जा सकता है। वह निर्णय होते ही उन दोनों को लिए-दिए काली कार सड़क पर फिसलती ‘क्वालिटी रेस्टोरेंट’ की तरफ जा रही थी।

कमायी-आमदनी आदि की बात के क्रम में किष्टो बोला, “यार किसन, तुम भी किस पौराणिक काल की बातें कर रहे हो, मेहनत से पैसा कमाने का जमाना गये, एक जमाना बीत गया है। अब पैसे से पैसा कमाया जाता है। बस दिमाग का सही इस्तेमाल करना पड़ता है। सही समय पर सही निर्णय लो और लाखों कमा लो।”

“...लाखों..!” किसन को अपना गला सूखता लगा।

“ हां यार मुझे देख लो। पहले मैं भी तुम्हारी तरह ही सोचता था। मगर जब पैसे कमाने का तरीका पता चला, तब मेरी आँखें खुलीं। फिर मैं नौकरी के बाद खाली समय का उपयोग इस पार्ट-टाइम बिजनेस में करने लगा। अब तो नौकरी ही पार्ट-टाईम हो गयी है और बिजनेस फुल-टाईम, समझे। अपना काम बढ़ाने के लिए ही पिछले छः माह से मैं तुम्हारे शहर जमशेदपुर का चक्कर लगाता रहा हूँ।”

उसकी बातें किसन की कल्पना से बाहर थी। मगर वह तो अभी शुरुआत थी, जैसे-जैसे किष्टो खुलता गया, किसन और भी हैरान होता चला गया।

उसके बाद तो किष्टो को अपने घर तक ले जाने में किसन को अच्छा ही नहीं लगा था, बल्कि उसने सुमन से अपने बचपन के यार का परिचय बड़े गर्व से कराया था।

“ ये तो आज किस्मत से मिल गया, वर्ना मुझे कभी पता ही नहीं चल पाता कि ये भी इस शहर में आता-जाता रहता है।”

...और जवाब में हें...हें करता किष्टो कभी ऐन सड़क पर स्थित उसके घर को तो कभी उस उम्र के बावजूद उसकी आकर्षक पत्नी को देखता रहा था।

विदा होने के समय उसने अपने मन की बात बोल ही दी, “ यार अगर अपने घर की जगह एक मल्टीस्टोरी कम्पलेक्स बना लो तो काफी पैसा बना सकते हो। तुम कहो तो बिल्डर से बात करुँ ?”

“...अरे नहीं यार, हमलोग अभी भी अपने पुरुखों के घर से अपना जुड़ाव महसूस करने वाले लोग हैं। तुम्हारा प्रस्ताव मेरे लिए नया नहीं है। इस विषय पर कई बिल्डर पूर्व मंल मुझसे संपर्क कर निराश हो चुके है।”

परन्तु किष्टो उसके जवाब से जरा भी निराश नहीं हुआ था। अपने जीवन में उसने पहले भी ऐसे कई मौकों को अपनी तिकड़मों से अनुकूल बनाया हुआ था। हंसते हुए विदा लेता, उसका दिमाग तेजी से काम करने लगा था।

वर्षों बाद हुई उस पहली मुलाकात के बाद भले ही उसने पहली शाम को मिलना टालने का विचार किया था। लेकिन साथ-साथ कॅाफी पीने और उसके बारे में मिली उन कुछ जानकारियों के बाद से ही किसन चाहने लगा था कि किष्टो उससे मिलता रहे। ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान वह बड़े मनोयोग से उसकी बातें सुन रहा था।

“ मैंने सिर्फ पचास हजार से शुरु किया था। आज पंद्रह लाख काम चुका हूँ। वह भी केवल दो साल में। अगर पूरी जिन्दगी नौकरी करता रहता तो भी रिटायरमेंट पर इतने रुपये नहीं मिलते।” किष्टो उसे किसी मायालोक का प्राणी लग रहा था।

“ पचास हजार से पंद्रह लाख...!” किसन को लग रहा था किष्टो उसे ‘खुल जा सिमसिम’ वाली गुफा के मुहाने पर ले गया है। जहाँ उसे केवल ‘खुल जा सिमसिम’ बोलने भर की देर है, बस। उसे कॅाफी में ही बीयर का मजा आने लगा था, वह बहकने लगा।

“हां तुम भी कमा सकते हो। वैसे तो शेयर बाजार का जानकार होने का दावा कोई नहीं कर सकता तुम्हें भी सीखने में समय लगेगा। लेकिन फिकर नोट तुम्हें गाईड मैं करुंगा। आखिर तुम मेरे दोस्त हो।”

किसन को सहसा ही अच्छा दहेज दे कर अपने मन माफिक दामाद पा लेने का ख्याल आने लगा, “मगर यार, अपनी तो ऐसी हालत है कि पाँच हजार नहीं जुटते, पचास हजार कहाँ से लाऊँगा ?”

“ देखो मैं तुम्हारे लिये एक लाख रुपये निकाल सकता हूं। इसे तुम अपने नाम से शेयर मार्केट में लगाओ।” किष्टो तो मानों उसकी प्रतीक्षा में था।

“ एक लाख...” किसन की बीयर बनी कॅाफी अब व्हिस्की बनने लगी थी, उस पर सुरुर छाने लगा।

लगता है लक्ष्मी माता उस पर मेहरबान हो रही हैं, उसने सोचा।

मगर तभी उसके दिमाग में शेयरों की उठक-पटक का ख्याल आया, “ लेकिन शेयर-बाजार में तो नुकसान भी होता है। कुछ ऊँच-नीच हो गया तो मैं तुम्हें एक लाख कहाँ से लौटाऊँगा ?” किसन की व्हिस्की, बीयर से वापस उतरते हुए फिर से कॅाफी बन गयी।

“ कैसी बातें कर रहे हो, यार? मैं पैसे वापस मांग रहा हूं क्या ? मेरे पास बहुत पैसा है। अब तुमसे क्या छिपाना। इधर-उधर से कमाया पैसा, मेरे पास तो यूं ही पड़ा रहता है। अगर उससे तुम्हारा कुछ भला हो जाए तो मुझे तो अच्छा ही लगेगा ना ! तुम मुझसे पैसे लो, लगाओ और अपनी किस्मत आजमाओ, जितना भी फायदा वह तुम्हारा और नुकसान सिर्फ मेरा। मैं समझूंगा मैंने वह एक लाख कभी कमाया ही नहीं था !” किष्टो ने दरियादिली से मुस्कराते हुए कहा।

किसन के दिमाग में कुछ खटका, लेकिन फिर उसने खुद को धिक्कारा ‘स्साले, तुम्हारी मानसिकता मिडिल-क्लास’ ही रहेगी ! आज लक्ष्मी माता किष्टो के रुप में सामने खड़ी है और तुम हो कि उसके बारे में गलत-सलत सोच रहे हो।

“ अब अपने दिमाग पर बोझ मत डालो। कल ‘बाजार आज’ में आ जाना। वहां मिस रेनु सबलोक से मिल कर मेरा नाम ले लेना, बस। वह शेयरों की एक्सपर्ट है। मेरा सारा काम वही देखती है, समझे।”

♦♦ • ♦♦

“ देखो जी, मेरा तो मन नहीं मानता। पता नहीं आपके दोस्त के मन में क्या हो। ऐसे ही कहीं कोई लाख रुपये देता है भला ?” सुमन ने शंका प्रकट की।

“अब कोई अच्छी नीयत से मदद करना चाह रहा है तो तुम शक कर रही हो। यह बात ठीक है कि तुम अभी भी शालिनी की माँ नहीं बड़ी बहन ही लगती हो। लेकिन मेरा दोस्त ऐसा-वैसा नहीं है। मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं।” किसन ने हंसते हुए कहा।

“ओफ्फो... तुमसे तो कुछ भी कहना मुश्किल है। ठीक है तुम जानो और तुम्हारा दोस्त।” पत्नी चिढ़ गई।

किसन हंसते हुए बोला, “तुम्हें चिढ़ा कर मुझे आज भी उतना ही मज़ा आता है जितना सुहागरात के दिन आया था।”

एक मुस्कराहट के साथ सुमन संजीदा होते हुए बोली, “देखो जी, मैं भी शालिनी के लिए अच्छा वर चाहती हूँ लेकिन न जाने क्यों मुझे किष्टो भाई साब का वह लाख रुपया अच्छा नहीं लग रहा। न जाने उन्होंने कैसे कमाया होगा ? और उस रुपये पर हम अपनी बेटी के सुखी जीवन की नींव रखना चाह रहे हैं? वैसे भी कहते हैं, जो धन बिना मेहनत के आये, वो बाद में जाने क्या-क्या गुल खिलाये ?”

“कर दी न तुमने भी वही गँवारों वाली बात। आज पाप और पुण्य के पैसों में कोई भी भेद नहीं रहा। पैसा, पैसा होता है, बस ! और यह किष्टो सोचे कि उसने वह पैसा कैसे कमाया है, हम क्यों सोचें ? मैं तो वह लाख रुपया उससे केवल कुछ दिनों के लिए अपने पास रखने को ले रहा हूँ। फिर लौटा देने के बाद उस रुपये का मुझसे कोई संबंध नहीं रहेगा, समझी !”

“फिर भी पराये पैसों की बात है, कल को कुछ हो-हवा गया, तो मुझे मत कहना।” सुमन ने हथियार डाल दिये।

...और किसन को सुमन से कुछ भी कहने की ज़रुरत नहीं पड़ी थी। अगले दिन ठीक समय पर किष्टो उसके घर आया और उसने पांच सौ के नोटों की दो गड्डियां उसके हाथ में थमाते हुए समझाया था, “ इसे अपने खाते में तीन बार करके जमा करना, क्योंकि पचास हजार से ऊपर के जमा पर पैन-नंबर बताना पड़ेगा। और हां, जो लोग नौकरी करते हैं उन्हें अपने नहीं, पत्नी के नाम पर शेयर का काम करना चाहिए।”

...और उसके कहे अनुसार किसन काम करता चला गया था। पत्नी के नाम पर पैन-कार्ड बनवाने से ले कर शेयरों की खरीद बिक्री के लिए जरुरी ‘डी-मैट’ खाता खुलवाने तक।

भड़कीली लाल टी-शर्ट और सेक्सी नीली जींस पहने रेनु सबलोक ने जब उससे ‘बाजार आज’ के वातानुकूलित कक्ष में फार्म पर दस्तखत करवाने के लिए, पता नहीं अनजाने से या अपनी पेशागत दक्षता से, उसे पेन थमाया तो उसकी नर्म अंगुलियां किसन को छू गई थीं। एक अजीब-सी सनसनाहट उसके पूरे बदन में कौंधती चली गई। जिसमें बदन के साथ-साथ बाजार की मदहोशी भी घुली हुई थी।

सब कुछ अपनी देख-रेख में करवा कर किष्टो तीन महीनों के लिए यह कह कर अमेरिका चला गया कि वह केवल कमाने के लिये नहीं कमाता, उसे भोगना भी जानता है। जब भोगने की बात हो तो स्टेट्स ये बढ़ कर दूसरी जगह नहीं, “जब मैं लौटूँगा, तब तक तुम मुझे न सिर्फ एक लाख लौटा दोगे, बल्कि तुम्हारे पास अपने लाखों-लाख होंगे।” और वह किसन को चैतरफा खुले शेयर-बाजार में रेनु सबलोक के साथ खड़ा कर चलता बना था।

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ऐसी ही एक सुबह रेनु उसे बता रही थी, “ सर, यहां पर सब कुछ बहुत तेजी से होता है। समय पर क्विक डिसीजन लेने पड़ते हैं। मुझे अपने हर क्लायंट का हित देखना पड़ता है। तभी तो हमारी कंपनी का इतना नाम है।” किसन को वह आवाज दुनियां की सबसे हसीन और जवान आवाज लग रही थी।

और उसी शाम को जब मिस रेनु ने उसे फोन पर बताया था कि उसे ‘निफ्टी शोर्ट’ करने पर दस हजार का फायदा हुआ है तो वह हैरान रह गया था।

“...वह तो सर आपका फंड कम है वर्ना निफ्टी ट्रेडिंग में डबल करने पर बीस हजार का फायदा पक्का था। फंड बढ़ाइये सर !” हसीन और जवान आवाज उसे पुकार रही थी।

एक दिन में दस हजार की कमाई वह भी तब जब वह सारा दिन अपने ऑफिस में बैठा रहा था। उसका मन झूम कर ‘ऑस्कर जीतू’ गाना ‘जय हो...’ गा उठा।

मन तो सुमन का भी झूम उठा था, “ देखो जी, मेरी चाची अपनी शालिनी के लिए एक इंजीनियर लड़के की बात बता रही थी।”

“हां, ठीक है। और भी बातें पूछ लेना। अब तो लगता है अपने मन की कर सकेंगे।” किसन ने कुछ सोचते हुए कहा, “वो शेयर वाली लड़की कह रही थी कि कुछ फंड बढ़ाने से ठीक रहेगा। अब बिजनेस कर रहे हैं तो ठीक से करना ही तो पड़ेगा। एक लाख तो किष्टो ने लगाया है, अब वह क्या सोचेगा कि मैं कुछ नहीं लगा सकता ?”

“रुपये कहां से लाओगे ?” सुमन की आवाज धीमी थी।

“हम जैसों को तो इन सब चीजों का पता ही नहीं रहता। अब किष्टो को देखो, जिसे पता रहता है, वह कहां से कहां पहुंच जाता है।” फिर कुछ सोचता हुआ बोला, “ सोच रहा हूं, सब तो शालिनी की शादी का ही जुगाड़ है। बैंक में जो दो लाख का फिक्स डिपाजिट उसकी शादी के लिए रखा है, उसे भी शेयर-बाजार में डाल दूं। और कहीं तो पैसे हैं भी नहीं। गांव में खेत वगैरह होते तो आज कितने काम आते। कोई भाई-बंधु भी तो इतने पैसे वाला नहीं कि उससे ही कुछ दिनों के लिए उधार माँग लूँ। किष्टो ठीक ही कह रहा था, जिन्दगी में पैसे बनाने के ऐसे मौके बार-बार नहीं आते।”

“मैं क्या कहूं, जो ठीक समझो करो। बस डर लगता है कहीं कोई गड़बड़ न हो जाये।” सुमन चाह कर भी उसे मना नहीं कर पा रही थी। ऐसा नहीं है कि शालिनी की जोरदार शादी का सपना केवल किसन ही देखता था।

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अगले दिन जब वह अपना एफ.डी. तुड़वा कर मिस रेनु सबलोक के पास सेविंग से ‘डी मैट’ खाते में फंड ट्रांसफर करवाने गया तो हल्के पीले सलवार-सूट में वह और भी आकर्षक लग रही थी।

“अब देखियेगा सर मैं खुल कर आपका ट्रेडिंग कर सकूंगी।” उसके रस-भरे होंठ आमंत्रित करते लगे। लेकिन तब तक वह जगमग करते मोनिटर की ओर मुड़ चुकी थी। उसकी पतली-पतली नर्म अंगुलियाँ तेजी से की-बोर्ड पर थिरक रही थीं। सामने मोनिटर पर लाल-हरी पट्टियों में कई-कई तरह के अंक झिलमिला रहे थे। अंक जो किसन जैसों की समझ में नहीं आने वाले थे, लेकिन वो अंक बिना रुके लगातार लाखों का वारा-न्यारा कर रहे थे। कइयों को बिगाड़ रहे थे, तो कुछ को बना भी रहे थे।

“आप लोग कैसे सब कर लेती हैं।” कुर्सी पर बैठते हुए वह रेनु की ओर झुका था।

“सब बहुत आसान है सर ! बस एक बार थोड़ा-सा समझ लेना पड़ेगा। मैं तो चाहती हूं कि आप रोज मेरे पास आ कर बैठें, कुछ ही दिनों में आप स्वयं ट्रेडिंग करने लगेंगे।”

रोज पास बैठने की बात पर वह बहुत खुश हुआ।

“देखिये, ये लाला पट्टियां गिर रहे शेयरों को बताती है और हरी वाली चढ़ने वाले शेयरों को। हर लाईन में बगल के अंक, अभी इस वक्त खरीदने और बेचने वालों की संख्या बताते हैं। सब कुछ ऑन-लाईन सबके सामने कहीं किसी गड़बड़ की कोई गुंजाइश नहीं।” वह समझाते जा रही थी।

“ये निफ्टी शाॅर्ट क्या होता है जो आपने कल किया और दस हजार कमाया था ?”

“सर नैशनल स्टॉक एक्सचेंज इंडेक्स यानि निफ्टी, एक तरह का सूचकांक है जो बाजार के साथ लौंग यानि ऊपर और शाॅर्ट यानि नीचे होता रहता है। इसके उतार-चढ़ाव पर पैसा लगा कर फायदा कमाया जाता है।”

“ ऊपर तो समझ में आ गया, मगर नीचे जाने पर भी फायदा ? नीचे जाने पर तो नुकसान होना चाहिए?” किसन बाजार की उलझन में था।

“यहां ऐसा ही जादू होता है सर ! यह शेयर बाजार है आपका परचून बाजार नहीं ! नुकसान तो ऊपर जाने पर भी होगा, अगर आपने निफ्टी शोर्ट कर रखा हो। यही तो असल चीज है कि निफ्टी कब लौंग करना है कब शोर्ट ? सही निर्णय एक झटके में आपको लाखों ला दे सकता है तो गलत निर्णय एक झटके में आपके लाखों उड़ा भी सकता है।”

“ मतलब कि ठीक से अनुमान लगा तो फायदा ही फायदा ! बिल्कुल रैफेनोब्रासिका की तरह।”

“ रैफेनोब्रासिका ?” रेनु सबलोक चौंकी।

किसन ने हंसते हुए पूछा, “ रैफेनोब्रासिका नहीं समझी न !”

“ नहीं सर ! वो क्या होता है ?”

किसन समझाते हुए बोला, “एक वनस्पत्ति वैज्ञानिक ने सोचा मूली, जिसका वनस्पत्ति नाम-रैफेनस सेटाइवस, और फूल गोभी, जिसका वनस्पत्ति नाम-ब्रासिका ओलिरेसिया है, को मिला कर एक ऐसा पौधा बनाया जाये जिसकी जड़ मूली की और तना फूल गोभी का हो। उसने मोटल और ब्रंच की तर्ज पर दोनों पौधों के नाम मिला कर, उस पौधे का नाम रैफेनोब्रासिका रख दिया।”

“ अरे वाह क्या आईडिया है सर !” रेनु चहकी, “ नीचे मूली और ऊपर फूल गोभी। एक ही बार में डबल फायदा !”

“ लेकिन आगे तो सुनो, जो पौधा बना उसका तना मूली का और जड़ फूल गोभी की हो गई थी। यानि उलटा बन गया।”

“ अरे ये क्या हो गया ? हा...हा...हा...” रेनु ने हंसी रोकते हुए कहा, “घबराइये मत सर, शेयर-बाजार में रैफेनोब्रासिका बिल्कुल ठीक बनता है, नीचे मूली और ऊपर फूल गोभी।” कहते-कहते एक मुस्कान उसके होंठों पर फैल गई।

किसन को वह मुस्कान बहुत ही भली लगी थी। आखिर वह रेनु सबलोक के नर्मा-नाजुक और रसीले होठों की मुस्कान थी, भला किसे बुरी लग सकती थी ? हां, अगर वह मुस्कान किसी मूँछ वाले होंठों पर होती तो निश्चय ही अच्छी नहीं लगती !

लेकिन उसी शाम रेनु का फोन उसे इसलिये अच्छा नहीं लगा था कि वह उसे लगने वाला पहला झटका था, “ सर आज निफ्टी में पाँच हजार का नुकसान हो गया है।”

“क्या ? पाँच हजार का नुकसान !” वह घबराया।

“सर इसमें घबराने की कोई बात नहीं, हम कल मेकअप कर लेंगे। आप तो ऐसे घबरा रहे हैं मानों 1930 वाली महामंदी का ‘ब्लैक ट्यूस्डे’ आ गया हो। रिलैक्स कीजिए सर, रिलैक्स। कल आपको डबल फायदा करवाऊँगी, ये मेरा वादा रहा।”

मगर उस वादे के बावजूद वह उस रात ठीक से सो नहीं सका था। किष्टो के एक लाख के अलावा उसे अपने दो लाख भी डूबते लग रहे थे। कहीं उसके पैसे डूब गये तो...? उसने तो यहाँ तक सोच लिया कि अगली सुबह शेयरों के उस तिलिस्मी बाजार को अलविदा कह देगा।

लेकिन अगले दिन रेनु की बातों ने न सिर्फ उसका ढाड़स बंधाया, बल्कि शेयर बाजार में उसका विश्वास भी वापस जगाया, “सर, आप तो सच में अपसेट हो गये। बिजनेस में ऐसे छोटे-मोटे नुकसान तो सभी को उठाने पड़ते हैं। आप बिल्कुल मत घबराइये। अगर नुकसान से डर कर आप ट्रेडिंग नहीं करेंगे, एकाऊंट बंद करवा लेंगे। तो एक बात बताइये, अपने डूबे पैसे कहाँ से वापस लाइयेगा ? पैसा तो आपने इसी बाजार में खोया है न तो उसे इस बाजार के अलावा और कहां से कमा सकेंगे? कहीं से नहीं! तो इसी बाजार से कमाइये। हम तो अपना डूबा पैसा यहीं से वापस कमाते हैं। हां, समय लग सकता है, मेहनत लगेगी। मगर हम आपकी तरह छोड़ेंगे नहीं। अब आप अपना निर्णय खुद लीजिए। फिर भी यदि आप कहियेगा तो आपका एकाऊंट बंद करवा दूंगी !”

हालांकि वह नुकसान शब्द से बहुत डरा हुआ था। मगर रेनु की बाजार वाली सधी भाषा ने उसे हौसला दिया। सबसे बढ़ कर तो रेनु का यह कहना कि हम तो यहीं से कमायेंगे, आप चाहें तो भाग जायें, उसे चुन्नौती की तरह लगा। एक खूबसूरत लड़की के सामने वह कायर बन जाये ? बस फिर क्या था, वह अपने आप को समझाने लगा। अरे, एक दिन दस का फायदा और दूसरे दिन पांच का नुकसान। दो दिनों का कुल फायदा पाँच हजार, बुरा नहीं है ! यानि पंद्रह दिनों का फायदा एक लाख पचास हजार और पंद्रह दिनों का नुकसान पचहत्तर हजार तो भी कुल फायदा हुआ, पचहत्तर हजार। यानि एक माह में पचहत्तर हजार का फायदा ! क्या कहीं और से वह पचहत्तर हजार कमा सकता है ? नहीं बिल्कुल नहीं !

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किसन के अगले चालीस दिन एन.एफ.ओ., आई.पी.ओ., निफ्टी, सेन्सेक्स ( जिसके पहले डेढ़ अक्षर हमेशा उसे रेनु के उच्चारण से हटे हुए लगते थे ), लिस्टिंग, प्रौफिट बुकिंग, अपर सर्किट, लोवर सर्किट आदि शेयर बाजार के नये शब्दों में डुबकियाँ लगाते हुए और उसके लिए चमत्कारी परिणामों वाले बीते थे। फायदा-नुकसान में झूलते-झूलते उसके पास लगभग चार लाख के शेयर जमा हो चुके थे। और वह शालिनी की शादी पक्की करने के लिए, सुमन के साथ उसकी चाची के पास जाने की तैयारी कर रहा था। तभी एक दिन एक शेयर के दाम पर उसका ध्यान अटका। जिसमें उसके तीन चैथायी पैसे लगे थे। खरीदने के बाद से उसका दाम लगातार गिर कर खरीद की तुलना में आधे पर आ गया था। वहां तो पक्का नुकसान हो रहा था।

“ रेनु जी, इसमें तो नुकसान हो गया।” वह फिर चिन्तित दिखा।

“ नहीं सर, नुकसान कैसा ? जब तक आप लौस बुक नहीं करते, इसे नुकसान नहीं कहा जाता।” रेनु उसे बाजार की भाषा सिखा रही थी।

“ वो कैसे ?”

“ देखिए, अभी तो शेयर आपके पास हैं। आज का रेट कल दुगना बढ़ सकता है कि नहीं !” वह बोली।

“ हां बढ़ तो सकता है।” बात सही थी।

“तो हो गया न फायदा। जिसे आप नुकसान कह रहे हैं, वह तो तब न होगा जब आप शेयर बेच कर लौस बुक कर लें।” रेनु मुस्करा रही थी।

...और फिर सच में किसन को ‘लौस बुकिंग’ की जरुरत नहीं आई थी। वह पूरी तरह बाजार की मस्त-मस्त लहरों पर अठखेलियां करने लगा था। धीरे-धीरे बाजार उसकी समझ में आने लगा था और साथ ही समझ में आने लगा था उससे होने वाला असीमित फायदा।

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जिस दिन वह सुमन के साथ बस पर चाची के घर पहुँचा था। चारों ओर बात पक्की हो जाने की प्रसन्नता थी। चाची के घर पर सब कुछ तय हो चुका था। जब लड़के को शादी में मोटर सायकिल और पांच लाख नकद की बात पर किसन ने आसानी से अपनी सहमति दे दी, तो चाची ने गद्गद् हो कर लड़के वालों की ओर देखा था। लड़के वालों पर अब उसकी धाक जम गयी थी कि देख लो कैसी मालदार जगह पर रिश्ता तय करवाया है।

उस दिन का अखबार व्यापार पन्ने पर अक्सर दिखने वाले सांड़ की जगह अपने मुख्य पृष्ठ पर भालू की तस्वीरें छाप चुका था। समाचार को विस्तार से बताती रपट के बगल में लाल रंग का ग्राफ अपना तीर नीचे की ओर मारता मानों पताल-लोक में धंसा जा रहा था और सारा वित्त-जगत चीख रहा था, उन्नीस सौ तीस से भी ज्यादा भयानक मंदी ने इस बार पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को लील लिया है।

चाची ने जब मुंह मीठा करने को उसके हाथ में लड्डू पकड़ाया, ठीक तभी उसके मोबाइल पर रेनु सबलोक का फोन आया था, “सर आपका एकाऊंट डेंजर जोन में जाने वाला है। अगर अभी तुरंत पांच लाख का फंड-ट्रांस्फर नहीं किया गया तो सब ख़त्म हो जाएगा।”

“सब ख़त्म का क्या मतलब ?” वह बुरी तरह चौंका था।

“सर, मैं बड़ी स्टूपिड निकली। वो मेरी ही गलती है, मैंने कंपनी से एक्सपोजर ले कर आपका निफ्टी ट्रिपल लौंग कर दिया था, ताकि आपको तिगुना फायदा दिलवा सकूँ। मार्केट क्रैश हो गया है। दस प्रतिशत से ज्यादा बाजार मूव करने पर बाजार बचाने के लिये ट्रेडिंग रोकने वाला, सर्किट ब्रेक भी दो बार लग चुका है। अगर आप फंड नहीं डालेंगे तो कंपनी आपके सब शेयर बेच कर अपना पैसा वसूल लेगी और आपके एकाऊंट में बैलेंस जीरो हो जाएगा। कइयों का एकाऊंट तो निगेटिव हो चुका है।”

...रेनु और भी न जाने क्या-क्या बोलती जा रही थी। लेकिन किसन को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। बड़ी मुश्किल से वह इतना ही कह पाया, “रेनु जी मैं तो बाहर आया हूँ, यहाँ से क्या कर सकता हूँ ? आप कुछ मैनेज कर सकती हैं तो कर दीजिए मैं आते ही चुका दूंगा।”

“ठीक है सर देखती हूँ।” रेनु की आवाज उत्तर ध्रुव की बर्फ से भी ज्यादा ठंडी थी।

...और इधर चाची बोल रही थी, “किसन बेटा ऐसा रिश्ता बड़े भाग से मिलता है। शालिनी बेटी के तो भाग ही खुल गये। बेटी राज करेगी, राज।”

...मगर किसन को बेटी के राज-पाट की जगह अपना यार किष्टो भूषण प्रसाद शेयर-बाजार वाले खतरनाक सांड़ की तरह सर झुकाये नथुनों से भाफ छोड़ते, तेजी से अपनी ओर आता दिख रहा था।