रोटी बोली सब्जी बोली / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
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बहुत भीड़ थी। आखिर पैसे वालों के यहाँ विवाह का कार्यक्रम था। खूब पैसे वाले ऐसे कामों में ख़ूब बहाते हैं पानी कि तरह। यहाँ भी यही हाल था। सेठ चालना राम के बेटे विमल‌ का विवाह था। चारोँ तरफ़ जगर मगर बिजली की चका चौंध, लुप झुप करतीं रंग बिरंगी सोने चांदी नीलम जैसी लड़ियाँ और टेबिलों पर सजे लजीज़ खाने। मक्के की रोटी सरसों का साग बाजरे की पुड़ी काजू की सब्जी और न जाने कितनी तरह की मिठाइयाँ, चाट पकोड़ी पिज्जा वर्गर खाने का सारा बाज़ार हाजिर। कितना खाओगे भाई। अंगुली चाटते रह जाओगे, टेबिलें तो यही संदेशा दे रहीं थीं।

नवीन भी आमंत्रित था इस कार्यक्रम में। विमल का छोटा भाई ईश्वर नवीन का मित्र था, इस नाते ईश्वर ने कई मित्रो के साथ नवीन को भी बुलवाया था। बारात लगने के बाद लोग खाने पर टूट पड़े थे। प्लेट भर-भर के खाने का सामान लेकर खड़े-खड़े खाने का लुत्फ उठाने का अलग ही मज़ा है। नवीन ने भी यही सोचकर कि भीड़ में कौन बार-बार खाना लेने टेबिल तक जाये बहुत सारा खाना भर लिया था। लोग अपनी-अपनी मित्र मंडलियों के साथ खाने आनंद ले रहे थे। नवीन भी जुट गया। अपनी खुराक से कई गुना खाना प्लेट में था। कितना खाता। आधे से ज़्यादा प्लेट में ही रह गया। वह बचे हुये खाने के साथ प्लेट कचरा टोकनी में फेकने जा ही रहा था कि प्लेट की रोटी

उछलने लगी, सब्जी ने भी कूदना चालू कर दिया।

"सब्जी बोली रोटी बोली मुझे व्यर्थ क्यों फेक रहे हो कितने लोग पड़े भूखे, क्यों नहीं ठीक से देख रहे हो।"

नवीन घबरा गया। हाथ जहाँ के तहाँ रुक गये। सच में कितना सारा खाना वह फॆकने जा रहा है। परंतु अब क्या हो सकता था। खाना तो फेकना ही था। वह थोड़ा आगे बढ़ गया वहाँ भीड़ कुछ कम थी। दूसरी टोकनी में वह धीरे से प्लेट रखने लगा।

तभी 'चावल उछल-उछल कर बोला ये तुम क्या करते हो बेटे, इतना महँगा चावल हूँ मैं मुझे जा रहे हो तुम फेके।'

अब तो नवीन डर गया, बोला मुझे माफ़ कर दो भैया, आगे से ऐसी गलती नहीं होगी। वह प्लेट रखने लगा।

तभी अचानक 'जोरों से चिल्लाई दाल, तुम भी करते अज़ब कमाल, बिना दाल के कितने बच्चे बिलख रहे भूखे बेहाल।'

नवीन थर-थर कांपने लगा पूरा कुनबे ने ही चढ़ाई का दी थी। हे राम यह क्या हो रहा है, उसका दिमाग़ शून्य होने लगा। बात तो सच थी, जब इतना खाना खा लेना संभव नहीं था तो क्यों लिया। कान पकड़कर वह बार-बार क्षमा मांगने लगा।

फिर से डरते-डरते उसने प्लेट टोकनी की तरफ़ बढ़ाई

कि'प्याज टमाटर गाजर बोली, चिल्लाई, रो पड़ी सलाद, अगर कहीं अब मुझको फेका तुमको कर दूंगी बरबाद।'

नवीन प्लेट लेकर खाली कुर्सी पर बैठ गया। चिल्लाकर बोला अब मैं क्या करूं गलती तो हुई है। आगे से फिर नहीं होगी। हे अन्न देवता मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूँ एक बार तो विश्वास करो।

'प्याज टमाटर के संग रोटी कितने बच्चे खाते हैं, जरा देश की हालत देखो करो गरीबों से संवाद।' सलाद अभी भी चीख रही थी।

नवीन दौड़ कर बाहर भागा, प्लेट की रोटियाँ वहाँ बैठे भिखारी को दे दीं और चावल, सलाद कुत्ते के सामने डाल दी और बिना पानी पिये ही घर आ गया। ठंड के दिनों में भी उसके माथे पर पसीना छूट रहा था।