रोड शो / सुशील यादव

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मैंने कभी जिन्दगी में नही सोचा था, कि एक दिन ऐसा भी आयेगा कि मेरे नाम का कहीं रोड शो भी आयोजित होगा? बड़े आराम से ‘दाल-रोटी वाली जिन्दगी’ जी जा रही थी|

’बेटर हाफ’ ने कभी ‘चुपड़ी हुई की’ फरमाइश नहीं की,मगर इसका ये कतई मतलब नहीं कि हम ‘लो-प्रोफाईल’ वालो में से थे|

हमारे रिमोट कंट्रोलर से, जब वे अच्छे मूड में हुआ करती थी ,कई जबरदस्त सुझाव आया करते थे|दस रुपिया फीट की जमीन, जिसका दाम आज दो हजार रुपिया फीट का है, खरीदने का सुझाव देकर ,उनने अपनी बात का लोहा मनवा लिया है|

वो ताना देने से आज भी नही चूकती|आज ये जमीन, ये घर, लाखो का है किसकी बदौलत?

हम अपनी क्लर्की का, भला इस समझदारी भरे सौदे को माइनस कर, भला क्या नाज करते?सो कभी-कभी उनकी कही बातों को आजमा लेने में पति -धर्म की लाज समझते हैं|

एक दिन खाना परोस के ‘चटाई-कान्फेंस’ में उनने कहा ,बुढापे का कुछ सोचा है?फकत पेशन से क्या उद जलेगा?मै अप्रत्याशित प्रश्न से ,उठाया हुआ कौर वापस रखते हुए पूछा , मतलब?....

वो बोली ,पहले खाना खा लो फिर बाते करते हैं|मै समझ गया ,कोई प्लानिग पर श्रीमती जी आकर रुक गई हैं|

अक्सर बड़े-बड़े सुविचार ,बड़ी घोषणाओं की गवाह हमारी ‘चटाई’ रही है|मैंने खाने पर, पारी समाप्ति की घोषणा की ,मुह तौलिये से पोछते हुए पूछा, अब बताओ ,क्या बोल रही थी?

मै देख रही हूँ रिटायरमेंट के साल गुजरने के बाद आप कोई साइड का काम धंधा शुरू नहीं किये हो|कुर्सी तोड़ते रहने से कई बीमारियाँ घेर लेगी|किसी से मिलते-जुलते नही,कहीं आते –जाते नहीं|बस दिन-रात टी-व्ही,मोबाइल ,लेपटाप से घिरे रहते हो ,ऐसा कब तक चलेगा?बुढापे में कौन पूछेगा?

देखो !नई-नई पार्टियां खुल रही हैं कही घुस क्यों नही जाते?

बतर्ज श्रीमती ,हमने कहा मान लिया|उनकी सुझाई पार्टी ज्वाइन कर ली|

उनकी सक्रियता पार्टी के प्रति अलग बनी रही|पता नहीं महीने –दो महीने में क्या गुल खिला कि पार्टी वाले ‘टिकट’ परस कर रख दिए?

हमने उनसे कहा लो ,तुम तो पार्टी की कहती थी. वे टिकट टिका गए|अब समझो रही –सही अपनी जमा पूँजी भी ख़तम ! तुम अपने को हरदम बहुत अकल वाली मत समझा करो ,किसी दिन ले डूबोगी !

उनने समझाया,गाठ की खर्च, कौन टूटपुन्जिया नेता करता है?

दीवाल रंग –रोगन को छोड़ के ,दस-बीस हजार गँवा के खेल-तमाशा देखने में हर्जा क्या है?

इस साल समझो तीरथ -विरथ जाने के बदले, चुनावी गंगा में दुबकी लगा लिए समझेगे ,और क्या?

“बेटर-हाफ“ के लाजवाब तर्क से, मुझमे कई बार अतिरिक्त ऊर्जा का संचार हुआ है|मै उसकी बात पर एक गहरी सांस लेता हूँ तो वो खुद समझ जाती है, कि ‘फेरे’ के दौरान दिए गए वचन का मै एकलौता हिमायती पति हूँ|

पत्नी की सक्रियता से कहाँ-कहाँ से चंदा मिला ,फार्म जमा हुआ ,लोग इकट्ठे हुए|कब घर.मोहल्ले,सड़को में मेरे नाम के नारे पोस्टर ,बैनर लगने शुरू हुए पता ही नहीं चला?

बड़े रोड शो करने के पहले ,छोटे –छोटे रोड शो का रिह्ल्सल शुरू हुआ|पच्चीस-पचास मोटर-सायकल,स्कूटर वालों का जुगाड़ हुआ|उनमे पेट्रोल डलवाने मात्र से मुझे खर्च के स्टीमेट में रखे आधे पैसों का निकलना नजर आया|इससे फले कि मै चकराऊ शहर के चक्कर का कार्यक्रम चालु हो गया|

जिस चौराहे पर बिना हेलमेट के स्कूटर चलाने में, पिछले पखवाड़े मुझ पर फाइन ठोकने के बदले, पच्चास रूपये जिस ठोले ने लिया था, एकदम उसी के सामने से रैली गुजरी|मैंने स्कूटर नजदीक ले जाकर कहा ,आज क्यों ...फाइन –वाइन नही करेगे?पन्द्रह दिन पहले यहीं फाइन ठोका था न तुमने?वो मुंडी झुका लिया|प्रजातंत्र में आप कब किसकी मुंडी झुकवा लें कह नही सकते|

इससे पहले कि बाक़ी रैली वाले ठोले से भिड़ें –उलझें, वो समझदार चुपके से ,पचास निकाल के दे दिया|

मै मन ही मन मुस्काया ,चलो नेता बनने की पहली फीस तो मिली ,भले अपनी ही लक्ष्मी वापस क्यों न लौटी हो|

इस वाकिये से श्रीमती गदगद हो जायेगी|उस दिन वो पीछे बैठी ,हेलमेट नहीं पहनने पर जो उलाहने दे रही थी ,उलटे-सीधे फायदे नुकसान गिना रही थी ,अब क्या कहेंगी अंदाज लगाना मुश्किल है|

बहरहाल रिहलसल वाली रैली में लोगों का बहुत तादात में तमाशाई होना, मुझे भ्रम में डाल रहा था कि, मेरी हवा तो नही बन रही?

मुझे बड़े रोड शो का इन्तिजाम करना पडेगा|

हाईकमान को वीडियो फुटेज भेज कर, एक सेलेब्रिटी,एक स्टार प्रचारक का इन्तिजाम करने को कहा|

हाईकमान फंड कम होने का रोना ले बैठी है|पार्टी के पास फंड की कमी है|आप अपना इन्तिजाम खुद करो|

हमने कहा ,दीगर जगह अपनी पार्टी के बड़े-बड़े रोड शो हुए हैं ,कहाँ से आया फंड?

हम कुछ नही जानते! एक रोड शो हमारे लिए नही किया तो रोड में हिसाब मागेंगे! ,वो भी ऍन इलेक्शन के पहिले|

दोस्तों ,”न्यूसेंस वेल्यु”’ भी दम की चीज है|इसे हिन्दी वाले अंगुली टेढ़ी करना भी कहते हैं|समझो हमने अंगुली टेढ़ी की ,पार्टी वाले जी जान से जुटे|

पूरे ताम-झाम के साथ रोड शो शुरू हुआ|

इतना मजा तो हमें अपनी शादी में घोड़ी चढने में नहीं आया था .जितना कि रोड शो की सजी जीप पर चढने में आ गया|

प्रायोजित फूल मालाये ,जो यहाँ चढती और दुसरे चौराहे पर फिर इस्तेमाल करने को निकाल के भेज दी जाती,पखुडियाँ वन टाइम यूज वाली थी जो जगह –जगह बरसायी जाती रही|

लोग “इस देश का नेता कैसा हो” के नारे जब लगाते तो छाती गज भर चौड़ी हो जाती|

पत्नी कनखियों से देख के यूँ शर्माती जैसे उसे हम पहली बार बिदा कराने ससुराल पहुचे हों?पूरे रोड शो में हमारा कनखियों वाला अलग शो चलता रहा|ज़रा भी गुमान नहीं हुआ कि बासठवे पार किये हुए हैं|

पत्नी की थ्योरी में कि समझो इस बार ‘चुनावी गंगा’ में दुबकी लगा लिए ,मुझे सचमुच दम नजर आया |

वोट, मशीनों-पेटियों में बंद हो गए हैं ,अब देखे परिणाम क्या आता है?