रोमां रोलां का फ्रांस / संतोष श्रीवास्तव

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मैं जैसे पहाड़ों का सीना चीरती हर मिनट पर एक टनल पार करती पीसा से पूरे 350 किलोमीटर का सफ़र करती बढ़ती चली जा रही हूँ रोमारोलां के फ्रांस की ओर जिनकी क़लम से शब्दों के फूल खिलते थे। फूल ही दौलत है फ्रांस की। फ्रांस यानी परफ़्यूम... मैं रास्ते के तमाम शहर समानोवादी, अलबेगा, विनती विलीगा और तमाम गाँव सानरीनोआदि को आँखों में बसाती जिस फूलों भरी वादी में पहुँची हूँ वहाँ चारों ओर पीले, गुलाबी, लाल, सफेद फूल ही फूल हैं। पहाड़ों पर ग्रीन हाउसेज़ में खिले फूलों का अंबार है। हवा ख़ुशबू से लदी इतराती घूम रही है... "हवा हूँ हवा में बसंती हवा हूँ।"

यहाँ किसानों की मुख्य खेती फूल ही हैं। बहारों के गुज़र जाने पर सारे फूल तोड़कर कांसग्राम नामक जगह में भेज दिए जाते हैं जहाँ परफ़्यूम कीफ़ैक्ट्री है। मैंने बहुत पहले फ्रांस के बारे में एक लेख पढ़ा था किमध्यकालीनफ्रांस में ख़ूब सजी, रंगीन पोशाकें पहनी जाती थीं मानो हर कोई राजघरानेका हो। हर जगह सिर्फ़बनावश्रृंगारऔरमेकअप के किस्से थे लेकिन वे एक-एक पोशाककई-कई दिन बिना नहाएपहने रहते थे। अपना मेकअप तक नहीं उतारते थे, उसी पर और पोत लेते थे। कई स्त्रियाँ तो अपनी सारी उम्र बिना नहाए ही गुज़ार देती थीं। कई पुरुष जीवन में पहली और आखिरी बार तब नहाते थे जब वे सेना में भर्ती होते थे क्योंकि उस समय उनकी पूरी देह बिन कपड़ों के ही पानी में डुबोकर परीक्षण से गुज़रती थी। अमीर घरानों के फ्रांसीसी भी घर में बड़े-बड़े गमले रखते थे और उसी में लघुशंका, दीर्घशंका कर लेते थे। उस पर मिट्टी ढँककर उसे खाद बनने को छोड़ देते थे। यानी गाँधीजी वाला टॉयलेट हर घर में मौजूद था। सामान्य घराने के लोग यह क्रिया घाट मैदान में निपटाते थे। घरों में बाथरूम, टॉयलेट होते ही नहीं थे। नहाने का चलन न होने के कारण शरीर की गंध से छुटकारे का एक तरीक़ा था कि उसे बनावटी ख़ुशबू से तर रखा जाए और इसीलिए परफ़्यूम का जन्म हुआ। मुझे एक साथ दो चीज़ें याद आ गईं। एक तो इसी परफ़्यूम को लेकर बनी फ़िल्म परफ़्यूम द स्टोरी ऑफ़ ए मर्डरर जिसमें नायक एक के बाद एक सुंदरियों का अपहरण कर उनके साथसंभोग करता है और संभोग के दौरान निकले पसीने को एकत्र कर उससे परफ़्यूम बनाता है। यह परफ़्यूम यौन उत्तेजना के लिए इस्तेमाल किया जाता है और दूसरा वह लेख जो आंद्रे जींद ने लिखा है... लेख नहीं शायद प्रबंध है वह... "यौन याचना में पसीने की गंध" फ्रांसीसी स्त्रियाँ पसीने की गंध से उत्तेजित हो जाती हैं। पुरुषों के लिए भी एक परफ़्यूम ऐसा है जिसमें सिर्फ़ पसीने की गंध रहती है। उन्नीसवीं शताब्दी से फ्रांस के लोगों ने नहाना शुरू कर दिया।

"आपको सुनकर ताज्जुब होगा कि मेरी एटोनियो जैसी सुंदरी ने पूरी उम्र कभी नहाया ही नहीं।"

कोच में बैठे सहयात्री अजय की बात पर नाक चढ़ाकर छी: छी: करनेलगे। अब तो फ्रांस परिवर्तन के बेहतरीन दौर से गुज़रकर खूबसूरत और विकसित राष्ट्रों में गिना जाता है। फ्रांस का क्षेत्रफल दो लाख 12 हज़ार 760 स्क्वेयर माइल है। 56 मिलियन की आबादी है। फ्रेंच भाषा और करेंसी यूरो है। राजधानी पेरिस है। परफ़्यूम के साथ ही फ्रांस वाइन और शैंपेन के लिए भी जाना जाता है।

दक्षिणी फ्रांस अपेक्षाकृत अधिक खूबसूरत है। मेपल दरख्तों से सजी सड़क ख़्वाब की गलियों में प्रवेश कराती है। गैम्बलिंग के लिए प्रसिद्ध मोंटिकार्लो कसीनो में दिन में भी बत्तियाँ जगमगा रही हैं। एक्रो पोलीस एरिया के बाद आता है नीस शहर। नीस फ्रांस का सबसे बड़ा टूरिस्ट रिसॉर्ट भी कहा जाता है। देख रही हूँ नीला पारदर्शी पानी, दूर तक फैले समुद्री तट... तटों पर रेत नहीं गोल पत्थर हैं। जैसे शंकरजी की बटैया हो। खिलीधूप में नंग धड़ंगलेटे युवा स्त्री पुरुष नागा बाबाओं की याद दिलाते हैं। इलाहाबाद में कुंभ मेले के दौरान ऐसे नागाओं की टोली संगम पर दिखाई देती है पर वे अपने को विदेह कहते हैं यानी देह के एहसास से दूर लेकिन यहाँ तो देह से देह को रचती पूरी संस्कृति दिखाई दे रही है।

मेरे साथ आये हुए कुछ लोगों ने वॉटर ग्लाइडिंग भी की। मैं पत्थरों के बिछौने पर बैठी देर तक यह रोमांचकारी करतब देखती रही। मुझे समंदर ज़्यादा आकर्षित नहीं करता। गंभीर जल का ऊबा हुआ फैलाव या न जाने किस बात पर तट पर सिर धुनती लहरें... थोड़ी देर तक तट पर चहलकदमी कर मैं उस नग्नलोक से निकल सड़क पार कर प्लास मसीना स्क्वेयर आ गई हूँ। बीचोंबीच पार्क है। पार्क में विशाल जल स्तर पर एक साथ छूटते ढेर सारे फव्वारे... पाम के सघन दरख्तों से छायादार है यह पार्क। कई विदेशी जोड़े बैठे हैं। मैं भी बेंच के कोने में बैठ गई।

नीस अंग्रेजों के द्वारा विकसित किया गया। सन 1775 की गर्मियों में ब्रिटेन की रानी नीस के समुद्री तट पर विश्राम करने आई थी। उसे नीले सागर पर उठती सफेद लहरें, पाम के दरख्त, गोल पत्थरों से भरा तटऐसाभायाकि नीस का कायाकल्प हो गया। केन्समें हमारा खूबसूरत होटलरिलाइस मरकरी था जिससेलगा सागर तट था। रात साढ़े नौ बजे सूरज डूबने के बाद जगर-मगर लाइट में सागर तट बहुत खूबसूरत दिखाई दे रहा था। अपने कमरे में अकेली... तमाम सुख सुविधाओंके बीच विराट सूनेपन की गिरफ़्त में मैं देर तक नींद को बुलाती रही। पलकेंझपकतीं और सागर की गर्जना चौंका देती।

सुबह इंटरकॉम पर अजय थे... "स्विट्ज़रलैंड दोबारा चलें?"

"क्या?" मैं चौंकी।

"मजाक नहीं, नीस से स्विट्ज़रलैंड का विल्लार्स शहर नज़दीक है। विल्लार्स से लगा जिनेवा है, चार्ली चैपलिन का शहर। देखें क्या?"

"ऑफकोर्स... बिल्कुल देखेंगे दोनों शहर।" मैंखुशी से भर उठी। "तो फटाफट तैयार होकर लगेज द्सहित नीचे आ जाइए डाइनिंग रूम में, ब्रेकफास्ट के लिए।"

ब्रेकफास्ट के बाद मैं 'कार्ड की' काउंटर पर देने आई तो रिसेप्शनिस्ट ने अंग्रेज़ी में पूछा–"आप नहीं गईं बोमोनाडे?"

"बोमोनाडे?" मैंने आश्चर्य से पूछा।

" ओ... आपको सीबीच का नाम नहीं मालूम... बोमोनाडे। और देर तक वह हँसती रही। उसकी खूबसूरत हँसी में गुलाबों की ताज़गी थी।

कोच एकदम खड़ी सड़क पर तेज़ी से बढ़ने लगी। इतनी तेज़ रफ़्तार कि मिनटों में चढ़ाई पार कर ली। यहाँ के फूलों की तरह ही रंग बिरंगी और खूबसूरत हैं यहाँ की सड़कें, "सड़कों पर हरे रंग के छोटे-छोटे बोर्ड लगे हैं जिस पर सफेद लकीरें हैं। पीछे छूट रहा है फ्रांस... हरे ढलवाँ चरागाहों पर घने-घने खिले लाल ट्यूलिप के फूल, टोरिनो नगर, बाल्टिया नदी, बर्फीला माउंट ब्लाँक पर्वत और ब्लाँक टनल जो आधी फ्रांस में है आधी इटली में। इसे बनाने में दोनों देशों ने पैसा लगाया। टनल की शुरुआत में ही हमारी कोच की चैकिंग हुई। दो इटैलियन पोलीस के जवान कोच में आये और टूटी फूटी अंग्रेज़ी में बोले–" हमारे देश की सोनिया गाँधी, आपके देश के राजीव गाँधी तो हम रिलेटिव। " और हँसते हुए पासपोर्ट चैक करने लगे।

हमने सात या आठ टनल पार कीं तब जाकर कॉरमॉयर गाँव से लगी ब्लांक टनल आई जो 18 कि। मी। लम्बी है। 1982 में यह टनल बनी थी। एक स्टेशन जैसा मुहाना है इस टनल का। पीले रंग के लंबे चौड़े शेड में कई खंभे हैं मेहराबदार। इस टनल को 70 की स्पीड से पार करना पड़ता है। ... यह यहाँ का नियम है। पासपोर्ट यहाँ फिर चेक किये गये। आख़िर इतनी तगड़ी सिक्यूरिटी क्यों? पता चला दो साल पहले छुट्टियाँ मनाने जा रहे विद्यार्थियों से खचाखच भरी बस जब टनल पार कर रही थी तो उसमें आग लग गई। बचाव के साधन नहीं होने से धुआँ और आग में सभी विद्यार्थी ख़त्म हो गये थे तभी से यह व्यवस्था शुरू हुई है। सभीविद्यार्थियों की समाधि भी बनी है वहाँ। मैंने सिहरते मन से समाधि के सामने सिर झुकाया... युवा मौत का हादसा मुझसे अधिक कौन समझ सकता है? टनलमें प्रवेश करते हुए बार-बार हेमंत का अंत याद आता रहा।

हम दस मिनट में टनल पार हो गये पर टनल के अंदर का वह एहसास... चौकन्नी निगाहें अँधेरी सुरंग को बिजली के बल्बों से रोशन देखती रहीं। जगह-जगह कैमरे लगे हुए ताकि ड्राइवर की गतिविधियों पर नज़र रखी जा सके। टनलकी दीवारों पर सेफ्टी दरवाजे बने हुए, जिन पर हरे रंग में दौड़ते हुए सफेद आदमियों के चित्र बने हैं। कई sos के बोर्ड... यानीSave our soul विद्यार्थियोंके बलिदान के बाद की सुरक्षा की जागृति देख मन खुशी, ग़म की धूपछाँव में ठिठका रहा।

और अब हम बेहद खूबसूरती का सैलाब, वैली में बसा शामोनी गाँव, फ्रांसीसी स्थापत्य के लकड़ी के मकान जिन पर सिलेटी टाइल्स लगे हैं और जिनकी खिड़कियाँ हरी पल्लेदार हैं और जो सारी की सारी सड़क की ओर खुलती हैं देखते हुए सोच रहे हैं कि यहाँ हरा रंग बहुतायत से क्यों है? मेरा पसंदीदा रंग हरा ही है। अचानक घरों की लाइन ओझल होने लगी और ऐसा लगा जैसे घनेजंगल की शुरुआत बस होने ही वाली है।

"हमपेरिस के रास्ते पर हैं।" कहते हुए अजय ने अपना कैमरा खिड़की पर फिट कर दिया।

फ्रांस की फैशन राजधानी पेरिस मेरे ज़ेहन में कई बातों को लेकर एक पूरे के पूरे वजूद के समान मौजूद रही। पेरिस पहुँचते ही लगा जैसे बरसों पहले संजोया ख़्वाब हक़ीक़त में बदलने को बस तैयार ही है। इस शहर में परफ़्यूम और फूलों की ख़ुशबू से लदी हवाएँ हर वक़्त चलती हैं। यही वह जगह है जहाँ अस्तित्ववाद के मसीहा दार्शनिक ज्याँ पॉल सार्त्र ने अपनी प्रेमिका सीमोन द बोउवार के साथ प्रेम का इतिहास रचा था। फ्रांसकी लेखिका सीमोन द बोउवार ने धारा के विरुद्ध अपनी जीवन नैया को खेया और तमाम दुनिया की पीड़ित स्त्री के मार्मिक इतिहास को अपनी विश्वचर्चित कृति 'द सेकेंड सेक्स' के ज़रिए बयान किया। सीमोन और सार्त्र जीवन भर साथ रहे पर उन्होंने कभी घर नहीं बसाया। दोनों होटल में रहते थे और रेस्तरां में भोजन करते थे। कहवाघरों में घंटों दर्शन पर बहस करते थे। सारी रात पेरिस की सड़कों पर एक दूसरे का हाथ थामे घूमते थे। मैं उन्हीं सड़कों पर चल रही हूँ और रोमांचित हो रही हूँ।

पेरिस की आबादी दस मिलियन है। यहाँ शाम साढ़े नौ बजे ढलते सूरज के साथ दबे पाँव आती है और तुरन्त रात में बदल जाती है। जब यहाँ शाम का 9.30 बजता है तब भारत में शाम के छै: बजते हैं... तो सूरज की घड़ी में तो कोई अंतर नहीं है। वह अपने हिसाब से हर जगह एक ही समय डूबता है। रिंग रोड मुख्य सड़क है जहाँ से किसी भी दिशा में जाने के लिए एंट्री लेनी पड़ती है। सड़कों पर इंडिकेटर लगे हैं जिन पर हैं सड़कों के नाम, माइल में दूरियाँ, यदि दुर्घटना हुई है तो किस एरिया में, ट्रैफिक जाम है तोउसका कारण आदि दर्शाया जाता है। सेन नदी पेरिस के किनारे-किनारे बहती है। "पेरिस में हम तीन रातें गुजारेंगे। अभी हम होटल मरकरी एकॉर चल रहे हैं। वहीँ तीन रातों के लिए ठहरेंगे।" अजय ने कहा और भारतीय रेस्तरां के सामने कोच रुकवाकर डिनर का आमंत्रण दिया।

अपने कमरे में आकर सामान खोलकर मैं पूरे आराम के मूड में थी।

आज मुझे भारत से आए तेरह दिन हो गये। यानी 28 मई तारीख़ ही आज। मैं यहाँ की कुदरत को आँखों से बूँद-बूँद पी रही हूँ। हर बूँद एक नज़्म बनकर मेरे दिल में उतरती जा रही है और उतर रहा है यहाँ का इतिहास भी या शायद मैं ही इतिहास में उतर रही हूँ। जिस तरह फ्रांसीसी लेखिका सीमोन ने मुझे बहुत प्रभावित किया है उसी तरह जॉन ऑफ आर्क ने भी मुझे मथ डाला है। बर्नार्ड शॉ ने जॉन के जीवन पर आधारित नाटक लिखा है 'सेंट जॉन।' जॉन के दिल दहला देने वाले अंत ने मुझे विवश किया है फ्रांस का आरेलिआँ शहर देखने के लिए। आरेलियाँ के पास लोयार नदी बहती है जिसकी लहरें साक्षी हैं उन्नीस वर्षीया जॉन के ज़िन्दा दहन की और इस बात की भी कि किस तरह जॉन ने अपनी साथिनों के साथ नाव में बैठकर लोयार नदी को पार कर अचानक अंग्रेज़ों पर आक्रमण कर दिया था। उस समय फ्रांस पर अंग्रेज़ी शासन था। जॉन ने ही फ्रांस के राजा को गुलामी की ज़ंजीरें तोड़ने के लिए उकसाया था। फ्रांसीसी सेना में देश प्रेम का संचार किया था और रानी लक्ष्मीबाई की तरह युद्ध भी किया था लेकिन फ्रांसीसियों को उसका सेनापति बनना हथियार उठाना, मर्दाने वस्त्र पहनना मंजूर न था। अतः उन्होंने उसे गिरफ्तार कर पचास हज़ार पौंड में अंग्रेज़ों को बेच दिया। अंग्रेज़ों ने उस पर मुक़दमा चलाया और उसे साधारण स्त्री नहीं मानते हुए मायाविनी, डाकिनी, पिशाचिनी सिद्ध कर दिया और आरेलियाँ शहर में हज़ारों लोगों के सामने उसे एक खंभे से बाँधकर ज़िन्दा जला डाला। मैं लोयार नदी में जैसे जॉन के जलते शरीर का अक्स देख रही हूँ। पर मैं इतनी विचलित क्यों हूँ? मेरे देश में भी ग्रामीण क्षेत्रों, आदिवासी इलाकों में औरत को डाकिनी, चुड़ैल आदि की उपाधि से विभूषित कर पत्थर मार-मार कर मार डाला जाता है। परे विश्व में औरतें लगभग एक जैसे अत्याचारों का शिकार हैं।

"चलिए, आईफ़िल टॉवर से हमें लोकल गाइड पिकअप करना है जो हमें सिटी टूर कराएगी।"

पेरिस की ओर लौटते हुए अजय ने कहा। कोच अब परिस की सड़कों पर दौड़ रही थी। पेरिस बेहद खुला-बसा साफ़ सुथरा शहर है। सड़कों के किनारे छायादार दरख्तोंदार है। दरख्तों की डालियाँ पीले, बैंगनी फूलों से अँटी पड़ी है। एक ही सड़क पर दूर-दूर तक कई आड़े टेढ़े पुल जैसे भूल भूलैया हों। कहीं से गाड़ी आ रही है, कहीं से जा रही है। पेरिस में अकेला आदमी गाड़ी नहीं चला सकता। उसे चार आदमी और बिठाने पड़ते हैं। चाहे वे अजनबी क्यों न हों। ऐसा शायद प्रदूषण रहित शहर बनाने के लिए किया हो। पूरेशहर में चार सौ पार्क भी शायद यही सोच कर बनाए गए हों। सामने आईफिल टॉवर था। विशाल एरिया पर बना बेहद विशाल टॉवर। पेरिस की राज्यक्रांति की सौंवी वर्षगाँठ सेलिब्रेट करने के लिए इसे बनाया गया था। 1889 का समय था। उस समय पेरिस में इतना विशाल कोई मॉन्यूमेंट न था इसलिए इसे तोड़ा नहीं गया। इसकी ऊँचाई तीन हज़ार बीस मीटर है और वज़न दस हज़ार टन। यह पूरा धातु का बना है। इसे यदि पेंट किया जाये तो 50 हज़ार टन पेंट लगता है। चार मंज़िल के इस टॉवर को देखने के लिए हम टिकट लेकर लाल, पीली गोल गेंद जैसी लिफ़्ट से पहली मंज़िल पर गये। विशाल मंज़िल की बाल्कनी से पूरे शहर का नज़ारा किया जा सकता है। जितने ऊपर जाएँगे दृश्य उतने ही छोटे होते जाएँगे। बाहर मैदान में टॉवर का खिलौना और की चैन बिक रहे थे लेकिन महँगे... गिदे का नाम जेनिस था। मोटी, गोरी और खुशमिज़ाज लड़की थी जेनिस। उसने पेरिस का चप्पा-चप्पा घुमाते हुए बड़े विस्तार से जानकारी दी।

हम एवेन्यू बोर्दनास एरिया से गुज़र रहे थे। जहाँ काफ़ी खूबसूरत इमारतें हैं। सामने हैं मिलिट्री स्कूल जो 1751 में ग़रीब विद्यार्थियों के लिए खोला गया था। नेपोलियन बोनापार्ट यहीं पढ़ता था। यहीं से ट्रेनिंग लेकर वह बीस साल की उम्र में सेना का सेनापति बना था। 51 साल की उम्र में उसकी मृत्यु हो गई। मैंने मन ही मन नेपोलियन महान को याद किया। फ्रांस की राज्यक्रांति मैंने एम. ए. में विस्तार से पढ़ी थी। एक जगह से आईफिल टॉवर का व्यू बड़ा शानदार लग रहा था। वहीँ घास के मैदान में प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए मार्शल जॉफ़ल की काले घोड़े पर बनी मूर्ति है। जॉफ़ल को 32 भाषाएँ आती थीं और जीवन भर वह शांति का संदेश लोगों को देता रहा। हम वहाँ से चले तो मिलिट्री स्कूल फिर आ गया। यानी एक बहुत बड़े क्षेत्रफल में बनी है इसकी भूरे रंग की फ्रेंच स्टाइल की बिल्डिंग। तीन तरफ़ घड़ियाँ लगी हैं और ग्राउंड वॉल पर कुछ विशेष व्यक्तियों की मूर्तियाँ भी। वहीँ बाजू में यूनेस्को बिल्डिंग है जो गोलाकार है। खरे 24 कैरिट सोने से बना ग्रैंड डोम ऑफ इनवेलिडस अद्भुत डूम है। साढ़े बारह किलो सोना लगा है इसे बनाने में। इसमें नेपोलियन बोनापार्ट की बॉडी सात कॉफ़िन में दफनाई गई है। यह सातवीं सदी में बनाया गया था लेकिन जब 1815 में वाटरलू के युद्ध में ब्रिटिश सेना से नेपोलियन हार गया और उसे सेंट हेलेना के द्वीप ले गये तब उसने फ्रांस में बिताये महत्त्वपूर्ण दिनों को याद करते हुए बड़ी शिद्दत से अपनी इच्छा प्रगट की कि उसे फ्रांस में ही दफ़नाया जाये। तब उसकी बॉडी यहाँ लाई गई और पूरे सम्मान के साथ दफ़नाई गई। उसी रास्ते पर है मिलिट्री अस्पताल, 1900 फ्रेंको रशन अलायन, चार सुनहली मूर्तियाँ बनी हैं। लेकिन सोने की नहीं सिर्फ़ रंग सुनहरा है। यह सेन नदी पर बना खूबसूरत पुल है जिस पर इन मूर्तियों को लगाया गया है। वैसे सेन नदी पर 38 पुल हैं। यह सबसे बड़ा शानदार... आधुनिक रोशनी से रात को जगमगाने वाला पुल है। दोनों ओर काले लैंप पोस्ट पर सफेद रोशनी के हंडे लगे हैं। पूरा का पूरा पुल पार होते ही आता है आर्ट एग्ज़िवीशन हॉल... चौड़ी सड़कें चेस्टनट के दरख्तों की छाया तले धूप के फूल से सजी हैं। मैंने यहाँ बड़े-बड़े फ्लैट्स में जो बाल्कनियाँ देखीं वे सभी लोहे की बनी हैं और उन पर काला पेंट है। हम जॉर्ज एवेन्यू स्ट्रीट से गुज़र रहे हैं जो यहाँ की सबसे महँगे बाज़ार वाली सड़क कहलाती है। एक गेटवे ऑफ इंडिया जैसा गेट देखा 'आर्च ऑफ गेट' ... नेपोलियन ने इसकी नींव रखी और बनकर तैयार हुआ 1836 में। यह 165 फ़ीट ऊँचा है और 264 सीढ़ियाँ हैं ऊपर जाने के लिए। इस गेट पर फ्रांस के लिए शहीद हुए सैनिकों के नाम लिखे हैं। वाटर लू युद्ध के समय के शहीदों की मूर्तियाँ भी गेट की दीवार पर उभरी हुई हैं। यहाँ से बारह रास्ते विभिन्न दिशाओं को जाते हैं।

जेसिका बता रही है कि यहाँ पोलिस को चिकिन कहते हैं और यह इतनी सारी पोलीस गाड़ियाँ जो खड़ी हैं वे पहली जून को ट्रेन शुरू होने की सौंवी जयंती की तैयारियोंके लिए खड़ी हैं। सड़कों पर अस्थाई ट्रैक डाले जा रहे हैं और सौ साल पुरानी ट्रेन से लेकर 21वीं सदी की ट्रेन के विभिन्न मॉडल उन ट्रैकों पर खड़े हैं। मैं लंदन जाने वाली सुपरफ़ास्ट यूरोस्टार ट्रेन भी देख रही हूँ। शाही ठाठ और सुख सुविधाओं वाली यह ट्रेन इंग्लिश चैनल के नीचे बनी सुरंग में से सीधे लंदन जाती है। आज पूरा विश्व भूमंडलीकरण के बुखार में जकड़ा है। मैक्डोनल, पीज़ा हट, प्लेनेट हॉलीवुड जैसी बड़ी कंपनियों की दुकानें याहं भी दिखाई दे रही हैं। पूरे वर्ल्ड में इनकी चेन है। नीच बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल हैं। मॉल के ऊपर मालिकों के रहने के आलीशान घर जिनमें शानदार बगीचे और स्विमिंग पूल भी है। एकदम पॉश इलाका। सड़कों पर फूलों की क्यारियाँ, फव्वारे... 1958 में बनी जनरल शारद गॉल की मूर्ति, एक गोल घेरे में जहाँ फूल ही फूल खिले हैं। प्लेस डीला कॉनकॉर्ड स्क्वेयर, लुई 16वें को यहाँ मार कर उसकी बीवी मारिया आंटिनेट को क़ैद कर लिया गया था। वह महल भी देख रही हूँ मैं... ऑर्से म्यूजियम जहाँ तमाम पेंटिंग्स रखी है। लुवेरे म्यूज़ियम... विश्वविख्यात सुंदरी मोनालीसा की पेंटिंग यहीं हैं। चेहरे पर दर्द लेकिन आँखों में हँसी। संसार की मरीचिका का एहसास दिलाती है यह पेंटिंग। दुख से भरे इस जीवन में हमें हँसते रहना पड़ता है, बेवजह। यह म्यूज़ियम 1783 में बना है। हँसते हुए जेसिका कहती है कि–

"हम जिस पुल को पार कर रहे हैं व्ह पेरिस का सबसे पुराना पुल है लेकिन नाम है न्यू ब्रिज।"

सभीहँसने लगते हैं। मैं कहती हूँ... "यह बात मैं अपने यात्रा वर्णन में ज़रूर लिखूँगी।"

वह खिलखिला पड़ती है... "ओ... राइटर्स से बचकर रहना चाहिए। सूरज की किरणों से भी अधिक तेज उनकी लेखनी होती है।" अब जो सामने इमारत है वह 2000 साल पहले जब रोमन यहाँ आये थे तब 1605 में बनी थी 'लादेना सित्ते आयरलैंड' अब यहाँ फूलों की नर्सरी है। आयरलैंड में हमने तब प्रवेश किया जब पूरा लम्बा पुल पार कर लिया। वहीँ 1103 में बना विख्यात नॉट्रेदाम चर्च है। इसे पूरा होने में 170 साल लगे। यह चर्च गोथिक कला का सुन्दर नमूना है। जेसिका हमें फ्रेंच साहित्य अकादमी भीले जा रही है। नाम सुनते ही मैं खुश हो गई हूँ। रास्ते में देख रही हूँ लेटिन क्वार्टर, गुलाबी संगमरमर से बना सेंट माइकल फाउंटेन... यहीं टकसाल भी थी पहले, अब नहीं है। हम रॉयल ब्रिज से गुज़र रहे हैं। कितनी घटनाओं का साक्षी है यह ब्रिज। 15वीं सदी की जॉन ऑफ़ आर्क की मूर्ति गहरे भिगो जाती है मुझे। दुबारायाद आ जाती है जॉन ऑफ आर्क की कहानी। 17वीं सदी में बनी मीनार जिस पर हरे रंग की नेपोलियन की मूर्ति बनी है और वह कभी न भुलाया जा सकने वाला वेन्डोम स्क्वेयर जहाँ के सबसे महँगे रेस्तरां में चर्चित डायना और पत्रकार डोडी ने अपनी ज़िन्दगी का आखिरी लंच लिया था। 31 अगस्त 1997 का दिन था। लंच लेकर वे अपनी शानदार कार में आ बैठे थे। लेकिन उनके तमाम किस्सों को जानने के इच्छुक पत्रकारों की भीड़ उनके पीछे लग गई थी। जिससे बचने के लिए ड्राइवर ने कार फुर्ती से टनल की ओर मोड़ी थी और असावधानी में कार के दीवार से टकरा जाने के कारण डोडी और डायना काल के गाल में समा गये थे। यह टनल रोयल ब्रिज के नीचे बनी है। इसीलिए तो कह रही हूँ मैं कि रॉयल ब्रिज कितनी घटनाओं का साक्षी है। टनल से हम भी गुज़रे... लगा जैसे एक इतिहास जी रही हूँ मैं।

लाइम स्टोन से बना इटैलियन स्टाइल का ऑपेरा हाउस... कितना पुराना लेकिन अब भी नया-नया सा। 1875 में बने इस ऑपेरा हाउस के ऊपर एक बड़ी मूर्ति बनी है सुनहरे रंग की और सुन्दर सुनहली कार्विंग मन मोह लेती है। जैसे जगर मगर सोने की नगरी द्वारका में सुदामा आ गये हों। पेरिस की ज़्यादातर इमारतों में सुनहरे रंग का प्रयोग हुआ है। हँसमुख जेसिका जहाँ हमसे विदा लेती है वह इंडियन (भारतीय) मार्केट है। दुकानों के शोरूम में भारतीय औरतों के साड़ी पहने मॉडल हैं। यहाँ बनारसी सिल्क साड़ियों का भारत से आयात होता है। जेसिका के उतर जाने से कोच सूनी हो गई।

पूरा बाज़ार पार कर कोच एक दूसरे बाज़ार में आ गई है जो पूरा परफ़्यूम की दुकानों से सजा है। हमारा ड्यूटी फ्री बेनेलेक्स में परफ़्यूम की शॉपिंग करने का पहले से तय था। शॉप के दरवाजे पर एक हँसमुख पारसी खड़ा था जो हमें अंदर ले गया। वह शॉप का मेन दुकानदार था। काउंटर पर हमें तमाम परफ़्यूम की जानकारी देने से पहले उसने ' ईचकदाना, बीचक दाना दाने ऊपर दाना... गाकर सुनाया। वह राजकपूर का फ़ैन था और भारतीय फ़िल्मों का शौकीन। पूछने लगा... "बताइए... यह गाना फ़िल्म में किसने गाया है?"

किसी ने मीनाकुमारी, किसी ने वैजंतीमाला कहा। अनिल ने नरगिस कहा। पारसी व्यक्ति बहुत खुश हुआ और अनिल को एक बॉटल परफ़्यूम की गिफ़्ट में दी। मैंने भी गिफ़्ट में देने के लिए परफ़्यूम खरीदे। पर लोगों की खरीददारी क्या इतनी जल्दी ख़त्म होनी थी। घंटों लगा दिये। तब तक मैं पारसी से बातें करती रही। हेमंत के बारे में सुनकर वह उदास हो गया। बोला–"अगर हेमंत होता तो मैं अपनी बेटी की शादी का प्रपोज़ल रखता। मुझे इंडियन्स बहुत पसंद हैं।" मैं उदास हो गई। वह इधर उधर की बातों से मेरा मन बहलाता रहा। अब वह मुझसे हिन्दी में बात कर रहा था। उसकी हिन्दी सुन मैं दंग रह गई। मुझे प्यास लगी थी। वह दौड़कर फ्रिज से मिनरल वॉटर की बॉटल निकाल लाया। इतने दिनों की मौन यात्रा के बाद ये दो घंटे अच्छे बीते।

शाम छै: बजे होटल लौट आये। शाम क्या थी दोपहर ही थी। सूरज बीचों बीच चमक रहा था। सभी अपने-अपने कमरों में एन ईवनिंग इन पेरिस यानी कि पारादीलातेन शो में जाने के लिए तैयार हो रहे थे। 1889 में बना पारादीलातेन पेरिस का सबसे रोमांचक और हसीन कैबरे शो है। जहाँ डिनर और शैम्पेन भी सर्व की जाएगी पर कैबरे शो में अकेले तो नहीं जाया जाता। वैसे भी इस शो में सभी को शादी के समारोह में पहनकर जाने वाली ड्रेस, ज्वेलरी आदि से लैस होकर जाना था। पुरुष सूटेड बूटेड, औरतें साड़ियाँ जेवर... कोच चली गई। मैं होटल के लाउंज में अकेली रह गई। वैसे भी मुझे तड़क भड़क वाले समारोहों में जाना पसंद नहीं। मैंने सात यूरो का फ़ोन कार्ड खरीद कर मुम्बई और अहमदाबाद बात की। प्रमिला का नंबर बहुत लगाती रही पर लगा नहीं। कमरे में लौटकर मैंने चाय बनाई और बिस्किट, नमकीन चाय के साथ खाकर भरपूर सोने के मूड में बिस्तर पर आ गई। बहुत दिनों बाद आरामदायक नींद आई।

सुबह चार बजे नींद खुल गई। मैं अभी फ्रेश होकर चाय की केटली ऑन कर ही रही थी कि सुबह हो गई। सूरज कितनी मुस्तैदी से यहाँ कर्म के लिए लोगों को प्रेरित करता रहता है। इसीलिए यूरोपीय देश इतने समृद्ध हैं। मैंने यहाँ इटली को छोड़कर और कहीं भी इक्का दुक्का भिखारी से ज़्यादा नहीं देखे। कहीं एक भी झोपड़पट्टी नहीं देखी... कहीं फुटपाथों पर रात को सोते लोग नहीं देखे... कहीं भी सार्वजनिक नल के पास खाली बाल्टियोंकी कतार नहीं देखी। लोगों को इधर उधर कचरा फेंकते थूकते नहीं देखा... सड़क पर आवारा कुत्तों की फ़ौज नहीं देखी... मानती हूँ भारत देश में ही सर्वप्रथम सभ्यता का उदय हुआ पर इन देशों जैसा क्यों नहीं है भारत? चाय पीते हुए और खिड़की पर सूरज की दस्तक सुन कहाँ से कहाँ पहुँच गई थी। आज तो यूरो डिज़्नी जाना था। सुबह आठ बजे होटल से निकले तो साढ़े दस बजे यूरो डिज़्नी पहुँच पाये। रास्ते में फिर उन्हीं ख़यालों ने धर दबोचा। हरे कपड़ों में हरी कचरा गाड़ी ले जाते जमादार मुस्तैदी से शहर की सड़कें, फुटपाथ साफ़ कर रहे थे। साफ़ फुटपाथों पर जवान लड़के लड़कियाँ रोलर स्कैटिंग करते सर्र से निकल जाते थे। कुछ के कंधों पर तो स्कूल बैग भी था।

डिज़नीलैंड मैं आना नहीं चाहती थी। बच्चों के लिए यह जगह ठीक है। फिरसोचा सारा दिन होटल में अकेली क्या करूँगी। अब आ गई हूँ तो वही मन से मजबूर... न सिंड्रेला के महल में मन लगा न और कहीं पर पूरे डिज़नीलैंड की ट्रेन से यात्रा में मज़ा आया। लोग डिज़नीलैंड के पात्रों से मिल रहे थे। अलादीन की कहानियों को जीता जागता देख रहे थे। तरह-तरह की राइड्स ले रहे थे। एलिस इन वन्डरलैंड, पिनोखीओ और स्नो व्हाइट चाँद की सैर, स्टीम ट्रेन औरवाईल्डवेस्ट के दृश्य सब नकली... नाटकीय आभास... जैसे किसी खिलौने से बच्चे का मन बहलाया जा रहा हो। लेकिन हाँ... डिज़नी की परेड आकर्षक लगी। वैसे भी मेले वगैरह में जाने से मेरा मन घबराता है। मंडला में दीपावली के बाद दूज का मेला भरता था दस दिनों का... उसमें भी तरह-तरह के झूले होते थे। अब उन्हीं मेलों का आधुनिकीकरण कर दिया है स्थाई रूप से बसाये गये डिज़नीलैंड में। मुम्बई में भी तो एस एल वर्ल्डऔर डिज़नीलैंड, वॉटरपार्क।

लौटते हुए सेन नदी का सफ़र क्रूज़ से तय किया। हम ऊपर टैरेस पर खुले में बैठे। नदी की शांत लहरों पर क्रूज़ का चलना पता ही नहीं चल रहा था। कमेंट्री का कैसेट बज रहा था जिसमें बताया जा रहा था कि दाहिने और बायें कौन कौन-सी इमारतें हैं। फ्रेंच और अंग्रेज़ी भाषा में कमेंट्री चल रही थी। पेरिस की इमारतें, आईफिल टॉवर, ढेर सारे पुल... पुलों के खंभों पर राजा महाराजाओं की मूर्तियाँ जड़ी थीं, सफेद पत्थर से बनी। पत्थर के पक्के सीढ़ी-दार तट पर कई जोड़े मस्ती कर रहे थे। आज पेरिस में छुट्टी का दिन था। कुछ सामूहिक नृत्य कर रहे थे। संगीत और ऑर्केस्ट्रा बज रहा था। एक अकेला आदमी सुनसान किनारे पर खड़ा वायलिन बजा रहा था। लगा जैसे हवा मेरे कानों के पास गुनगुनाती हुई सिम्फ़नी बजा रही है।

डिनर के बाद जब हम होटल वापिस लौट रहे थे तो ग्रुप के एक सदस्य को रास्ते में एरिक ने छोड़ दिया था। वह पान पराग का डिब्बा तलाशने दुकानों की ओर घंटे भर से गायब था। समय की पाबंदी यात्रा के समय ज़रूरी होती है। हालाँकि इस बात के लिए सभी एरिक पार नाराज़ हुए कि परदेश में ऐसा नहीं करना चाहिए। अजय ने मोबाइल पर छूटे हुए यात्री को होटल के लिए टैक्सी लेने को कह दिया।

तीस मई आज पेरिस में आख़िरी सुबह है ये। आज हम बेल्जियम के लिए रवाना होंगे। सुबह नाश्ते के बाद हमने अपना सामान कोच के लिए भिजवाया फिर नज़दीक ही कोरा शॉपिंग सेंटर पैदल गये। कोरा की पूरे विश्व में शाखाएँ हैं। वैसा ही बड़ा भव्य था मॉल। मैंने चॉकलेट खरीदीं। कोच की ओर आते हुए एक फ्रांसीसी युवती ने हमें देखकर हाथ हिलाया। यह पेरिस में हमारी आखिरी विदाई थी। युवती फूलों से लदे पेड़ की डाल झुकाकर पंजों के बल फूल तोड़कर हाथ में पहनी डलिया में रखती जा रही थी। मुझे पंतजी की कविता याद आ गई। फूलों की सुगंध मेरे मन में उतर गई। एरिक शांत था।