रोमियो-जूलियट और चंडाला 'द इम्प्योर' / जयप्रकाश चौकसे

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रोमियो-जूलियट और चंडाला 'द इम्प्योर'
प्रकाशन तिथि : 26 जुलाई 2019


पुडुचेरी में एक नाटक खेला गया, जिसकी प्रेरणा उन्हें शेक्सपियर के नाटक 'रोमियो-जूलियट' से प्राप्त हुई। उन्होंने महत्वपूर्ण परिवर्तन यह किया कि शेक्सपियर के नाटक में युवा प्रेमियों के परिवार दशकों से एक-दूसरे के शत्रु रहे हैं, परंतु पुडुचेरी में प्रस्तुत नाटक में उनकी जातियां अलग-अलग है। नाटक का नाम है 'चंडाला द इम्प्योर'।

ज्ञातव्य है कि 2016 में शंकर और कौशल्या ने प्रेम विवाह किया था और उनके परिवारों ने इसका विरोध किया था। मराठी भाषा में बनी बहुप्रशंसित फिल्म 'सैराट' की भी यही कहानी थी और सैराट का चर्बा करण जौहर ने 'धड़क' के नाम से बनाया था, जिसमें बोनी कपूर और श्रीदेवी की पुत्री जाह्नवी ने अभिनय किया था। शाहिद कपूर के भाई ने नायक की भूमिका अभिनीत की थी। यह नाटक कौमारने वाल्वने ने निर्देशित किया। इसी नाटक से प्रेरित डॉक्यूड्रामा भी 75 दिन शूटिंग करके बनाया गया है, जिसे विदेशों में आयोजित फिल्म समारोह में पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। इस चर्चित नाटक और उससे प्रेरित डाक्यू ड्रामा के बनाने वालों ने प्रतीक स्वरूप एक प्रेमी को आंबेडकर नगर में रहने वाला बताया गया तथा दूसरा पात्र वैष्णव नगर का रहवासी है। यह नहीं बताया गया है कि उनके पास आधार कार्ड है या नहीं! इस रचना में एक गहरी बात भी अभिव्यक्त की गई है। कई बार युवा बहुत सोच-समझकर योजना बनाकर प्रेम करते हैं, क्योंकि यह लोकप्रिय है कि युवा होते ही प्रेम करना आवश्यक है अन्यथा जवानी व्यर्थ चली जाती है। इस विचार प्रक्रिया से जन्मा प्रेम स्वभाविक स्वत: जन्म लेने वाली भावना नहीं है। पहली नज़र में प्रेम हो जाना भी एक लोकप्रिय भ्रम है। युवा को लगता है कि यह युवती विश्व में सबसे सुंदर है और युवती युवक को सबसे बुद्धिमान मान लेने का भ्रम पाल लेती है। उन्हें यह भी लगता है कि उनकी संतान मां की तरह सुंदर और पिता की तरह बुद्धिमान होगी। यह माना जाता है कि हॉलीवुड में एक सुंदरी ने बर्नार्ड शॉ से कहा कि उन्हें उससे विवाह कर लेना चाहिए। उनकी संतान पिता से बुद्धि और मां से सुंदरता ग्रहण कर सकती है। बर्नार्ड शॉ ने कहा कि हादसा यूं भी हो सकता है कि संतान उनकी तरह बदशक्ल और सितारे की तरह मूर्ख हो। प्रेम में जातिवाद ने तूफान खड़े किए हैं परंतु चुनावी राजनीति में कहर ढाया है। तानाशाही प्रवृत्तियों को शक्तिशाली बना दिया गया है।

रोमियो-जूलियट, लैला मजनू, शीरी-फरहाद इत्यादि सभी प्रेम कहानियों का अंत त्रासदी में हुआ है। वे प्रेम में उनके अपनों द्वारा मार दिए गए। दरअसल प्रेम का यह विरोध इसलिए किया जाता है कि प्रेम प्रकाश है, दिव्य अनुभूति, मनुष्यों को जोड़ने वाली भावना है, जबकि सत्ता बांटकर सत्तासीन बनी रहना चाहती है। उन्हें अंधकार अपनी सहूलियत लगता है। जायसी कहते हैं कि 'रीत प्रीत की अटपटी, जनै परे न सूल, छाती पर परबत फिरै, नैनन फिरे ना फूल'। महाकवि कबीर कहते हैं- 'प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।' अमीर खुसरो फरमाते हैं- खुसरो दरिया प्रेम का सो उलटी वाकी धार जो उबरे सो डूब गए ,जो डूबे सो पार। कौमारने वाल्वने ने अपनी रचना के नाम में ही 'चंडाला' शब्द का इस्तेमाल किया है। राजा हरिश्चंद्र की कथा में चांडाल श्मशान भूमि में शवदाह के काम में सहायता करते हैं। उन्हें अछूत माना जाता है। चंडाला के साथ ही इम्प्योर अर्थात अपवित्र का इस्तेमाल किया गया है। सामाजिक संरचना में जात-पात के साथ अछूत अवधारणा अमानवीय है। ज्ञातव्य है कि कुछ वर्ष पूर्व चैतन्य ताम्हाणे की फिल्म 'कोर्ट' प्रशंसित हुई थी और अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में दिखाई गई थी। फिल्म 'कोर्ट' में दलित कवि नारायण काम्बले पर मुकदमा कायम किया जाता है कि उसके क्रांतिकारी काव्य के कारण एक गटर साफ करने वाले कर्मचारी ने आत्महत्या की है, जबकि सच्चाई यह है कि गटर की गंदगी के कारण उसकी मृत्यु हुई। गटर की सफाई करने वालों को सरकार गैस मास्क नहीं देती।

यह फिल्म अपने यथार्थवादी प्रस्तुति के कारण सराही गई। प्राय: निर्मम और मानवीय व्यवस्थाएं साधनहीन की मृत्यु को आत्महत्या की तरह प्रस्तुत कर रही हैं। यह सारे षड्यंत्र इसी तरह सदियों से रचे जा रहे हैं। दरअसल, अमीर और गरीब यह दो ही जातियां हैं और किसी दिन अपनी अधिक संख्या के कारण गरीब ही शासन करते हुए इस कहावत को यथार्थ में बदलेंगे कि 'मीक शैल इनहैरिट द अर्थ'।