लंबूजी और टिंगूजी की समानताएं / जयप्रकाश चौकसे

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लंबूजी और टिंगूजी की समानताएं
प्रकाशन तिथि :28 जून 2016


ऋषि कपूरने रजत शर्मा के कार्यक्रम में एक लंबा साक्षात्कार दिया, जिसमें उन्होंने निहायत ही साफगोई से अपनी कमजोरियों को भी स्वीकार किया। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रथम परिवार के इस सदस्य ने अपनी सितारा केंचुल को फेंककर कुछ इस तरह से बयान दिया कि 'श्री 420' के गीत की पंक्ति याद दिला दी, 'सीधी-सी बात, ना मिर्च-मसाला, कहकर रहेगा कहने वाला, दिल का हाल सुनाए दिल वाला।' वे खुलकर उजागर हुए और संभव है कि कुछ लोगों को चोट भी लगे, जिसके लिए उन्होंने 'अग्रिम क्षमा याचना' भी की है। जब उनसे राज कपूर नरगिस के प्रेम प्रकरण की बात की गई तब वे यह बोलना भूल गए कि स्वयं उनके विवाह में उन्होंने अपनी माताजी से आज्ञा लेकर नरगिस एवं सुनील दत्त को भी आमंत्रित किया और यह उनका बड़प्पन है कि वे आए भी।

नरगिस ने राज कपूर की 'जागते रहो' के अंतिम दृश्य में अभिनय किया था। फिल्म का आरंभ होता है गांव का गंवई भूमिहीन किसान महानगर में नौकरी प्राप्त करने के प्रयास में दिनभर की निष्फल दौड़-भाग के बाद एक बहुमंजिला इमारत में पानी पीने जाता है और भ्रष्टाचार सामाजिक कुरीतियां उजागर करने के बाद फिल्म के अंत में मंदिर के परिसर में पौधों पर पानी डालतीं नरगिस उस प्यासे की अंजुरी में पानी डालती हैं। दरअसल, नायक की यह प्यास सांस्कृतिक विघटन का प्रतीक थी। पार्श्व में शैलेंद्र लिखित गीत गूंजता है, 'किरण परी गगरी छलकाए, ज्योत का प्यासा प्यास बुझाए, मत रहना अंखियों के सहारे, जागो मोहन प्यारे,' कबीर ने लिखा था कि वे आंखन देखी बयां कर रहे हैं और शैलेंद्र अपने युग के सूनेपन को भुगतकर कहते हैं, 'मत रहना अंखियन के भरोसे।' वर्तमान में अनेक चैनलों पर 24 घंटे दिखाई जाने वाली खबरों के बावजूद हकीकत उजागर नहीं हो रही है वरन् ये चैनल मनमोहक झूठ ही रच रहे हैं। शायद इस भयावह दशा का पूर्वानुमान करके ही शैलेंद्र ने लिखा, 'मत रहना आंखों के भरोसे।' कैमरा सच दिखाने के साथ भ्रम भी रचता है और इसी तथ्य को रेखांकित करती है फिल्म 'ब्लो अप' जिसमें एक फोटोग्राफर अपने लिए चित्रों को डेवलप करता है तो उसे झाड़ियों के पीछे लाश दिखाई देती है परंतु जांच-पड़ताल पर कुछ नहीं मिलता। यहां तक कि पुलिस रिपोर्ट में भी किसी गुमशुदा का जिक्र नहीं है। अगले दिन वह पार्क में कुछ उम्रदराज लोगों को टेनिस खेलते देखता है। वे पूरी संजीदगी से खेलने का उपक्रम कर रहे हैं परंतु हाथ में रैकेट नहीं और कहीं गेंद भी नहीं। उसे भ्रम होता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि लाश ही नहीं थी।

बहरहाल, ऋषि कपूर के निमंत्रण पर विवाहोत्सव में आईं नरगिस और कृष्णा कपूर के बीच वार्तालाप हुआ। नरगिस का कहना था कि आज मां बनने के बाद वे शिद्‌दत से महसूस करती हैं कि उन्होंने कृष्णा कपूर को उन दिनों कितना दु:ख दिया। कृष्णा कपूर ने नरगिस को आश्वस्त किया कि वे इस अपराध बोध से मुक्त हो जाएं, क्योंकि उनका पति ही इतना रोमांटिक था कि नरगिस होती तो कोई अौर होती। यह कृष्णा कपूर की समझदारी और हृदय में बसी करुणा है कि उन्होंने नरगिस को अपराध बोध से मुक्त कराया। 'संगम' के निर्माण के समय राज कपूर और वैजयंतीमाला का प्रेम प्रकरण भी सुर्खियों में रहा। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही वैजयंतीमाला ने उस प्रेम प्रकरण को आरके फिल्म्स का मिथ्या प्रचार करार दिया और तब भी ऋषि कपूर ने उसे प्रचार मानने से इनकार किया था और इस आशय का बयान भी दिया था।

उस साक्षात्कार में एक प्रश्न के उत्तर में ऋषि कपूर ने कहा कि वे कोई नेता नहीं हैं और जो महसूस करते हैं, उसे बयान कर देते हैं तथा उनकी पत्नी नीतू उनसे खूब विचार करके कम बोलने की सलाह दे चुकी हैं। रणधीर कपूर-बबीता, ऋषि कपूर-नीतू सिंह के विवाह के लिए कृष्णा कपूर ने ही राज कपूर से रजामंदी ली थी अौर इनके पहले इनकी बहन ऋतु और राजन नंदा का विवाह परिवार द्वारा तय किया गया था। ऋतु के व्यक्तित्व में कृष्णा कपूर और राज कपूर का सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्त हुआ है। आजकल ऋतु नंदा अमेरिका के स्लोन कैटरिंग अस्पताल में कैंसर के पुनरागमन से जूझ रही हैं और उनके लिए अनेक लोग प्रार्थना कर रहे हैं।

अमिताभ बच्चन की तरह ऋषि कपूर लंबी पारी खेल रहे हैं र दोनों की पहली फिल्में 1969 में बनी थीं। दोनों ने नायक की भूमिका करने के बाद बड़ी सहजता से चरित्र भूमिकाओं को अभिनीत किया है और 'लंबूजी' तथा 'ठिंगुजी' ने अनेक फिल्में साथ-साथ भी अभिनीत की हैं। यह इत्तफाक भी देखिए दोनों की सुपरहिट फिल्में 'जंजीर' और 'बॉबी' भी एक ही दौर में प्रदर्शित हुईं। दोनों की ही पत्नियां (जया और नीतू सिंह) सितारा रही हैं। दोनों के सुपुत्र (रणबीर कपूर और अभिषेक) सितारा हैं। यह भी गौरतलब है कि अमिताभ की सफलता की आंधी में भी ऋषि कपूर ही टिके रहे और उन्होंने अनेक सफल फिल्में बच्चन दौर में अभिनीत कीं।

इतनी समानताओं के बावजूद अमिताभ बच्चन पुरस्कारों और पदों से सम्मानित किए गए हैं परंतु ऋषि कपूर के योगदान को सरकारों और संस्थाओं ने अनदेखा किया है और अपने में मस्त ऋषि कपूर को नहीं मालूम कि प्रचार का मुर्गा बांग दे तो इस दौर में सत्य का सूरज भी उदित नहीं होता।