लज्जा / सेवा सदन प्रसाद

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

- आईये, बैठिये ठंडा लेंगे या गर्म?

- जी शुक्रिया, अभी कुछ नहीं चाहिये।

- लाईट बुझा दूँ।

- इतनी जल्दी भी क्या है?

- मुझे और ग्राहकों से निपटना है।

- मैं पूरी रात की फीस दे चुका हूँ।

- लगता है, आपका कोई नहीं इसिलिए रात गुजारना चाहते है।

- नहीं, ऐसी बात नहीं। बीवी-बच्चे सब हैं... दरअसल...

- फिर क्या पत्नी से संतुष्टी नहीं मिलती?

- तुम शायद ग़लत सोच रही हो... मैं कुछ और मतलब से आया हूँ।

- यहाँ आने वाले का बस एक ही मतलब होता है जो हम सब अच्छी तरह समझते हैं।

- नहीं, मेरा कुछ दूसरा मतलब हैं।

- क्या मतलब है?

- मैं एक चित्रकार हूँ

(सूने कमरे में एक खिलखिलाहट गूंज गई)

- पर यहाँ क्यों आये?

- तुम निर्वस्त्र होकर खड़ी हो जाओ... एक चित्र बनाना है... मदहोश जवानी का।

- छीः एक पुरूष के समक्ष निर्वस्त्र खड़ी रहूँ... निर्वस्त्र होती हूँ पर अंधेरे में या एक निर्वस्त्र के समक्ष ही... क्यों पत्नी को निर्वस्त्र कर चित्र क्यों नहीं बनाते।

- मुझे बहुत शर्म आती है... झिझकती है।

- मैं भी तो एक औरत ही हँ... और लज्जा ही तो औरत का आभूषण है।

- मैंने पैसे चुकाये है - मात्र इसी के लिए.

- तुमने पैसे चुकाये हैं - मात्र मेरे शरीर के लिए.

पैसे से जिस्म खरीदा जाता है... प्यार-मुहब्बत - ममता और लज्जा नहीं।

- बस यही जानना था... मैं एक पत्रकार भी हूँ। तुम्हारी आवाज टेप हो चुकी है।