लड़का / भैरवप्रसाद गुप्त

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थोड़ी-थोड़ी देर में लडक़ा कमरे से निकलकर बाहर के दरवाज़े पर जाता था, कुण्डी खोलकर, एक पल्ला फफराकर झाँकता था, फिर पल्ला भेडक़र, कुण्डी चढ़ाकर वापस ताईजी के पास आकर कहता था, ‘‘ताऊजी अभी नहीं आये।’’

ताईजी उसे बार-बार मना कर चुकी थीं, बार-बार समझा चुकी थीं कि ताऊजी ठीक सवा बजे आएँगे, उसके पहले वे आ ही नहीं सकते। तुम ख़ामख़ाह के लिए क्यों परेशान हो रहे हो? तुम मेरे पास पलंग पर लेटे रहो, तुम्हारे ताऊजी आएँगे, तो ड्राइवर हार्न बजाएगा। फिर जाकर तुम्हीं दरवाज़ा खोलना। तब तक न हो, तुम घड़ी की ओर देखते रहो।

लेकिन लडक़ा मान न रहा था। वह थोड़ी देर के लिए ताईजी के पास पलंग पर आ लेटता, लेकिन फिर उठकर चल पड़ता।

ताईजी उसे एकाध बार हल्के से डाँट भी चुकी थीं, एकाध बार यह धमकी भी दे चुकी थीं कि नहीं मानते हो तो मैं ताऊजी के आने पर उनसे तुम्हारी शिकायत करूँगी कि तुम मेरा कहना नहीं मानते। फिर भी लडक़ा नहीं माना था, तो उन्होंने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया था और अपनी किताब में जुट गयी थीं। लडक़ा लौटकर ताऊजी के न आने की सूचना देता तो भी अब वे कुछ न बोलतीं। उनका ख़ याल था कि लडक़ा उनकी चुप्पी का कारण नाराज़ी समझकर आप ही अपनी हरकत से बाज़ आएगा। लेकिन उनका यह ख़ याल भी ग़लत निकला था। लडक़ा बराबर जाता-आता रहा और उन्हें बताता रहा कि ताऊजी अभी नहीं आये।

अभी साढ़े बारह बजे थे। ताईजी किताब पढ़ रही थीं और सोच रही थीं कि लडक़ा मानता नहीं। इसकी आवा-जाही अभी पौने घण्टे तक और चलती रहेगी। अब इसे जबर्दस्ती पलंग पर लिटा दिया जाए तो कैसा? ख़ुद तो हैरान हो ही रहा है, मुझे भी हैरान करके रख दिया।

लेकिन वे वैसा न कर सकीं। उन्हें बार-बार बस एक ही बात का अफ़सोस हो रहा था कि मैंने कल क्यों इसकी जि़द मान ली थी और इसे बाबूजी के साथ कारख़ाने जाने दिया था?

कल शाम को जब लडक़ा बाबूजी के साथ कारख़ाने से लौटा था, तो बेहद डरा हुआ था। उसका मुँह सूखा हुआ था और उसकी आँखों में दहशत भरी हुई थी। ताईजी ने लडक़े को उस रूप में देखकर उसे अपनी ओर खींच लिया था और उसके मुँह पर हाथ फेरते हुए पूछा था, ‘‘क्या बात है, भैया? तुम ...’’

लडक़ा उनकी गोद में चिपक गया था और बाबूजी ने हँसकर कहा था, ‘‘ख़ामख़ाह के लिए डर गया है। आज कारख़ाने में मज़दूरों ने थोड़ा उत्पात मचाया था, वही देखकर यह डर गया है, रास्ते में मुझसे पूछ रहा था, ताऊजी, पुलिस न आयी होती तो वे हमको मार देते क्या?’’ कहकर वे फिर हँस पड़े थे।

मज़दूरों के उत्पात की बात जानकर ताईजी भी विचलित हो उठी थीं। पूरा ब्योरा जानने के लिए उन्होंने बाबूजी की ओर अपना मुँह उठाकर कुछ पूछना ही चाहा था कि उन्होंने आँखों से संकेत करके उन्हें रोक दिया था और कहा था, ‘‘भैया का हाथ-मुँह धुलाकर, इन्हें कुछ खिलाओ-पिलाओ, ये भूखे होंगे,’’ फिर लडक़े से कहा था, ‘‘जाओ भैया, ताईजी के साथ जाओ! भला हमें कौन मार सकता है?’’

लडक़ा ताऊजी के मुँह की ओर देखते हुए ताईजी के साथ स्नानघर की ओर चला आया था। उसे पीढ़ी पर बैठाकर ताईजी उसका मुँह धुलाने लगी थीं, तो वह फुसफुसाकर बोला था, ‘‘ताईजी, वे बहुत सारे थे। मुठ्ठियाँ ताने हुए वे चिल्ला रहे थे। उनके नथुने फडक़ रहे थे और उनकी फैली हुई आँखों की ओर देखकर डर लगता था। कितने भयंकर हैं वे लोग!’’

‘‘क्या कह रहे थे वे लोग?’’ ताईजी ने पूछा था।

‘‘पता नहीं क्या कह रहे थे, मेरी समझ में कुछ न आ रहा था। मैं तो डर के मारे बौखला गया था। ताईजी, मेरी समझ में क्या आता? ताऊजी से कुछ पूछने की भी मेरी हिम्मत न हो रही थी। मैं तो चुपचाप दुबका हुआ ताऊजी की बग़ल में खड़ा रहा।’’

‘‘वे तुम्हारे ताऊजी के कमरे में आये थे क्या—?’’ ताईजी ने पूछा था।

‘‘नहीं, कमरे में तो नहीं आये,’’ आँखें झपकाकर लडक़ा बोला था, ‘‘लेकिन दरवाज़े पर भिड़े हुए वे खड़े थे और ओसारे में खचाखच भरे हुए थे। मुझे बार-बार लगता था कि वे कमरे में आ जाएँगे और जब ऐसा लगता था तो, ताईजी, मेरी टाँगें काँपने लगती थीं और मैं ताऊजी की बाँह पकड़ लेता था।’’

‘‘तुम्हारे ताऊजी के कमरे के दरवाज़े पर तो दो दरबान खड़े रहते हैं, वे किसी को भी तुम्हारे ताऊजी की इजाज़त के बिना अन्दर नहीं जाने देते,’’ ताईजी ने कहा था।

‘‘पर्दे के उधर दरबान खड़े थे, ताईजी,’’ लडक़ा बोला था, ‘‘लेकिन वे दो दरबान इतने सारे लोगों को कैसे रोक पाते? मैं देख रहा था कि उनकी मुट्ठियाँ पडऩे से पर्दा बार-बार हिल उठता था। लेकिन दरबान उन्हें रोकते नहीं थे।’’

‘‘लेकिन वे अन्दर आये तो नहीं,’’ ताईजी ने कहा था।

‘‘पुलिस न आयी होती तो वे ज़रूर अन्दर आ जाते, ताईजी! वह तो अचानक एक पुलिस अफ़सर कमरे के अन्दर आ ताऊजी के सामने कुर्सी पर बैठ गया और बाहर दरवाज़े पर लाल पगड़ियाँ और लाठियाँ दिखाई देने लगीं। फिर अचानक ही बाहर बड़ा हो-हल्ला शुरू हो गया। पुलिस अफ़सर उठकर बाहर चला गया। और, ताईजी, उसके बाहर जाते ही मैंने देखा, पर्दे के बाहर ओसारे में कितनी ही लाठियाँ उठने-गिरने लगीं और चीखों-पुकारों की आवाज़ें आने लगीं। फिर अचानक ओसारे में ओले की तरह कुछ पड़-पड़ बजने लगा और फिर अचानक ही बग़ल की दीवार पर कुछ फटाक से बज उठा। यह ईंट का एक बड़ा टुकड़ा था, जो दीवार से टकराकर हमारे सामने फ़र्श पर आ गिरा था। मैं तो काँप उठा और ताऊजी की बग़ल में चिमट गया। तभी दरबानों ने आकर दरवाज़ा और खिड़कियाँ अन्दर से बन्द कर लीं। अब दरवाज़ों और खिड़़कियों पर भी ओले पड़पड़ाने लगे। डर के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा था। आख़िर मैंने ताऊजी से कहा, ताऊजी, घर चलिए!’’

‘‘और फिर तुम लोग चले आये, यही न?’’ ताईजी ने पूछा था।

‘‘नहीं, तभी कहाँ आये?’’ लडक़ा बोला था, ‘‘ताऊजी ने मेरी पीठ ठोंककर कहा, ‘घबराओ नहीं, चलते हैं।’ फिर एक-एक कर कई लोग अन्दर के दरवाज़े से कमरे में आये और ताऊजी के सामने कुर्सियों पर बैठ गये। फिर उनमें बातें होने लगीं। बाहर से अब कोई आवाज़ न आ रही थी। दरवाज़ा और खिड़कियाँ बन्द होने के कारण मैं कुछ भी देख न सकता था। जब मेरे मन में बस एक ही बात आ रही थी कि ताऊजी जल्दी-से-जल्दी घर चलें।

‘‘मैंने तो तुम्हें मना किया था,’’ तौलिये से उसके हाथ-मुँह पोंछती हुई ताईजी बोली थीं, ‘‘तुम्हीं नहीं माने न! अब कभी ताऊजी के साथ कारख़ाने मत जाना। आजकल मज़दूरों का कोई ठिकाना नहीं है। जाने कब क्या कर बैठें।’’

‘‘वे तो बड़े भयंकर लोग हैं, ताईजी!’’ लडक़ा फिर आँखें झपकाते हुए बोला था, ‘‘उनकी लहराती हुई मुठ्ठियों और भयानक चेहरों की याद करके मेरे तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पुलिस न आयी होती, तो वे हमें ज़रूर मार देते, ताईजी! कितनी बड़ी ईंट उन्होंने कमरे में फेंकी थी। कहीं हमें लग गयी होती तो क्या होता, ताईजी? ... आप ताऊजी को भी अब कारख़ाने मत जाने दीजिए।’’

‘‘अच्छा-अच्छा,’’ कहकर ताईजी ने नौकर को पुकारा था और उसने खाने के कमरे में जलपान लगाने को कहा था।

लेकिन लडक़े ने न तो मन से जलपान किया था और न रात को मन से खाया ही था। वह रह-रहकर ताऊजी का मुँह निहारता था और लगता था कि वह कुछ पूछना चाहता है। लेकिन फिर वह कुछ भी न पूछता था।

रात को वह अच्छी तरह सोया भी न था। ताईजी ने बड़ी देर तक उसके सोने का इन्तजार किया था। लेकिन वह बराबर बुदबुदाता ही रहा था, तो उन्होंने पूछा था, ‘‘क्या बात है, सो क्यों नहीं रहे हो?’’

‘‘ताऊजी के पास मैं सो रहूँ, ताईजी’’ लडक़े ने पूछा था।

तब ताऊजी ने ही हँसकर कहा था, ‘‘आ जा, आ जा, भैया! जानता हूँ, तुझे ताऊजी की चिन्ता मारे डाल रही है।’’

लेकिन ताऊजी के भी पास जाकर वह बड़ी देर तक जागता रहा था।

ताऊजी ने उसे कोई कहानी सुनाना चाहा था, तो वह बोला था, ‘‘आज कहानी नहीं सुनेंगे, नींद आ रही है।’’

लेकिन वह झूठ बोल रहा था, उसे नींद न आ रही थी। फिर भी उन लोगों ने कुछ भी न कहा था। सोचा था कि शायद चुपचाप रहने से लडक़ा सो जाए।

फिर भी वह बड़ी देर तक न सोया था। ताईजी इन्तजार कर रही थीं कि वह सो जाये तो वे बाबूजी से आज की वारदात के बारे में ठीक से पूछें। इस बीच लडक़े ने कुछ पूछने का अवसर ही न दिया था। वह बराबर अपने ताऊजी के साथ चिपका रहा था। रोज़ की तरह शाम को लडक़ों के साथ खेलने भी वह बाहर न गया था। ताईजी को तो अब चिन्ता भी हो रही थी कि कहीं इसके कोमल मन पर कोई आघात न पहुँचा हो। आठ साल का, पराये घर का लडक़ा, कहीं इसे कुछ हो गया तो क्या होगा? हमारे कोई बाल-बच्चा नहीं है, लोग यों ही न जाने क्या-क्या बका करते हैं। तब तो लोग और भी जाने क्या-क्या कहने लगें।

ताऊजी रह-रहकर धीमे से हँस पड़ते थे। कहते थे, ‘‘देखती हो, यह अपने हाथ से मेरा मुँह टटोल रहा है ... अरे भाई, मुझे कुछ भी नहीं हुआ है, और कुछ भी नहीं होगा। तुम आराम से सो जाओ। उन्हें पुलिस पकड़ ले गयी है, वे इस वक़्त हवालात में होंगे।’’

‘‘सबको पकड़ ले गयी है, ताऊजी?’’ लडक़ा पट से पूछ बैठा था।

‘‘नहीं, भैया,’’ ताऊजी बोले थे, ‘‘सबको पकडऩे की ज़रूरत नहीं पड़ती। सरगने पकड़े जाते हैं। फिर तो बाक़ी लोग शान्त हो जाते हैं। तुम कोई चिन्ता मत करो। सब ठीक हो जाएगा। ऐसी घटनाएँ तो पहले भी कई बार घट चुकी हैं। मुझे कभी कुछ नहीं हुआ भैया! आख़िर नुक़सान मज़दूरों को ही उठाना पड़ा। तुम सो जाओ, बेटा!’’

फिर भी काफ़ी देर बाद ताऊजी को महसूस हुआ था कि उनकी पीठ पर रखा हुआ लडक़े का हाथ ढीला हुआ है। उसकी ओर से आश्वस्त होकर ही उन्होंने कहा था, ‘‘लो, लडक़ा सो गया। अब तुम भी सो रहो, बड़ी रात बीत गयी। कोई खास बात नहीं हुई। कल देखना है कि क्या होता है। मज़दूर नहीं मानेंगे, तो कारख़ाना कुछ दिनों के लिए बन्द कर देंगे। कोई चिन्ता की बात नहीं है। ... आज, सच पूछो तो मुझे एक बात की ख़ुशी ही हुई है। यह लडक़ा मुझे बहुत प्यार करता है, आज ही मुझे मालूम हुआ है। कौन जाने, अपना लडक़ा होता तो वह मुझे इतना प्यार करता कि नहीं।’’

‘‘हम भी तो इसे अपने बेटे से बढक़र प्यार करते हैं,’’ ताईजी ने कहा था, ‘‘लेकिन, सुनो जी, इसके मन पर कोई आघात तो न पहुँचा होगा? आज यह इस तरह ... ’’

‘‘तभी लडक़ा नींद में चौंककर बड़बड़ा उठा था, ताऊजी! भागिए! भागिए! वे आ रहे हैं? ...’’

मुँह से थू-थू कर ताऊजी लडक़े की पीठ पर हाथ फेरने लगे थे।

लडक़े का बड़बड़ाना ख़ त्म हुआ था, तो ताईजी ने अपनी कमर से तालियों का गुच्छा निकालकर बाबूजी की ओर बढ़ाते हुए कहा था, ‘‘इसे उसके सिरहाने रख दो और उसे गोद में लेकर सो रहो।’’

सुबह उन्होंने उसे सोते ही छोड़ दिया था। बाबूजी जल्दी-जल्दी जलपान करके कारखाने चले गये थे। जाते समय वे कह गये थे कि भैया पूछे तो कह देना कि बाज़ार गये हैं, तुम्हारे लिए अच्छी-अच्छी चीजें लाएँगे।

लडक़े ने सच ही उठते ही पूछा था, ‘‘ताऊजी कहाँ हैं?’’

‘‘वे बाज़ार गये हैं,’’ ताईजी ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा था, ‘‘तुम्हारे लिए अच्छी-अच्छी चीजें लाएँगे। तुम चलो, जल्दी हाथ-मुँह धोकर जलपान तो करो।’’

जलपान पर बैठकर लडक़े ने फिर पूछा था, ‘‘ताऊजी कब तक आएँगे।’’

ताईजी ने कुछ सोचकर कहा था, ‘‘कह गये हैं सवा बजे तक आएँगे।’’

‘‘सवा बजे तो ताऊजी कारख़ाने से आते हैं,’’ लडक़ा चट बोल उठा था, ‘‘ताईजी, सच बताइए, ताऊजी कारख़ाने गये हैं क्या?’’

‘‘नहीं बाजार गये हैं,’’ ताईजी ने उसे फिर बहलाया था, ‘‘देखना, तुम्हारे लिए वे अच्छी-अच्छी चीजें लाएँगे।’’

‘‘इतनी देर तक वे बाज़ार में क्या करेंगे?’’ लडक़े ने पूछा था, ‘‘ताईजी, मैं कारख़ाने फोन करूँ क्या?’’

ताईजी फिर तो साफ़ झूठ बोल गयी थीं, ‘‘कारख़ाने फोन नहीं हो सकता। कल मज़दूरों ने फोन का तार काट दिया था, तुम्हारे ताऊजी बता रहे थे। तुम चलो, नहा-धोकर कपड़े बदलो। तुम्हारे अध्यापक आ रहे होंगे।’’

‘‘आज मैं नहीं पढ़ूँगा, ताईजी, मन नहीं कर रहा है,’’ लडक़े ने सिर हिलाकर कहा था।

‘‘तो फिर अपने अध्यापक जी के साथ सिनेमा देख आओ। तुम्हारे लौटते-लौटते तुम्हारे ताऊजी भी आ जाएँगे।’’

‘‘नहीं, मैं सिनेमा भी नहीं जाऊँगा,’’ लडक़े ने मुँह लटकाकर कहा था, ‘‘ताईजी, हम बाज़ार चलें तो वहाँ ताऊजी से भेंट हो जाएगी?’’

ताईजी अब परेशान हो उठी थीं। बोली थीं, ‘‘जाने वे किस बाज़ार गये हैं। हम उन्हें कहाँ-कहाँ ढूँढ़ते फिरेंगे?’’

‘‘गाड़ी से बाज़ारों में घूमने में क्या देर लगेगी? चलिए, ताईजी!’’ लडक़े ने अब मचलकर उनका हाथ पकड़ते हुए कहा था।

‘‘अच्छा, चलो! तुम नहा-धोकर जल्दी तैयार हो जाओ,’’ ताईजी ने कुछ सोचकर कहा था, ‘‘मैं भी तैयार होती हूँ।’’

फिर उन्होंने बाज़ारों का चक्कर लगाया था। लडक़े ने ड्राइवर और ताईजी को ताक़ीद कर दी कि वे ताऊजी को देखते रहें और खुद दरवाज़े पर खड़े होकर देखने लगा था। ताईजी ने कई बार उससे कुछ ख़ रीदने के लिए कहा था, लेकिन वह तैयार न हुआ। बराबर यही कहता रहा था, ‘‘पहले ताऊजी को तो ढूँढ़ लूँ!’’

लेकिन ताऊजी बाज़ारों में कहाँ थे कि मिलते? लाचार वे वापस हुए थे। लडक़ा अब निराश होकर सीट पर बैठ गया था। ताईजी ने समझाया था, ‘‘मैं कह रही थी न कि वे नहंी मिलेंगे। इस तरह ढूँढऩे से कोई भी नहीं मिलता। कौन जाने, जब हम इस बाज़ार में थे, तो वे उस बाज़ार में हों, और जब हम उस बाजार में थे, तो वे इस बाजार में हों।’’

‘‘लेकिन उनकी गाड़ी तो कहीं सडक़ पर आते-जाते दिखाई पड़ती?’’ लडक़े ने पूछा था।

‘‘तुमने गाड़ी देखी थी क्या?’’ ताईजी ने पूछा था।

‘‘हाँ, मैंने हर गाड़ी देखी थी,’’ लडक़े ने बताया था, ‘‘ताऊजी की गाड़ी कहीं दिखाई ही नहीं पड़ी।’’

‘‘बाज़ारों को कई-कई सडक़ें जाती हैं भैया,’’ ताईजी ने फिर भी उसे समझाने की कोशिश की थी, ‘‘कौन जाने हम इस सडक़ से जा रहे हों, तो वे उस सडक़ से निकल गये हों। ताऊजी आएँ तो उनसे पूछना, वे बताएँगे।’’

‘‘कितने बज गये हैं?’’ तब लडक़े ने पूछा था।

‘‘साढ़े ग्यारह।’’

‘‘तब तो अभी बहुत समय है,’’ लडक़े ने कहा था, ‘‘ताऊजी, सवा बजे से पहले नहीं आ सकते?’’

‘‘नहीं,’’ ताईजी ने कहा था, ‘‘तुम तो जानते हो, वे वक़्त के बहुत पाबन्द हैं। जो वक़्त देकर वे जाते हैं, ठीक उसी वक़्त पर आते हैं। तुम देख लेना, वे ठीक सवा बजे आएँगे।’’

फिर भी लडक़े को चैन कहा था? घर लौटकर कमरे से बाहर के दरवाज़े और दरवाज़े से कमरे में उसकी आवा-जाही शुरू हो गयी थी।

एक बजा तो लडक़ा बाहर के दरवाज़े पर जा अड़ा। ताईजी ने कई बार उसे पुकारा, लेकिन वह अनसुना कर गया।

अन्दर-बाहर सभी ओसारों में मोटे टाट के पर्दे गिरे हुए थे, फिर भी ताईजी को लग रहा था कि कहीं लडक़े को गर्म हवा न लग जाए। उन्होंने एक नौकर को बुलाकर ताक़ीद की कि जाकर भैया के पास दरवाज़े पर खड़े रहो और देखो कि कहीं वह पर्दे के बाहर न जाए। बाहर लू चल रही होगी।

सायबान में गाड़ी रुकने की आवाज़ आयी तो लडक़ा बेतहाशा ओसारे में भागा, लेकिन नौकर ने उसे पकड़ लिया। लडक़ा अपने को छुड़ाने के लिए छटपटाने लगा कि पर्दा उठाकर ताऊजी अन्दर आये और बोले, ‘‘यह क्या हो रहा है?’’

नौकर लडक़े को छोडक़र बोला, ‘‘ये बाहर जा रहे थे ...’’

लडक़ा ताऊजी से लिपट गया और उनका मुँह ताकते हुए पूछा, ‘‘ताऊजी, आप कारख़ाने गये थे क्या?’’

उसका गाल थपथपाते हुए ताऊजी ने हँसकर कहा, ‘‘नहीं, मैं तो बाजार गया था, देखो, तुम्हारे लिए क्या-क्या चीज़ें लाया हूँ।’’

पास में ही ड्राइवर बहुत सारी चीज़ें हाथों में और गोद में सँभाले हुए खड़ा था। लेकिन लडक़े ने उधर देखा ही नहीं। वह कह रहा था, ‘‘हमने तो सब बाज़ार छान मारे, आप कहीं भी दिखाई नहीं पड़े। आप किस बाज़ार में थे ताऊजी?’’

‘‘बताता हूँ,’’ उसका हाथ पकडक़र उसे अन्दर ले जाते हुए ताऊजी बोले, ‘‘तुम अन्दर चलो। आज बड़ी तेज लू चल रही है। मेरा गला सूख रहा है। पहले पानी पी लूँ, फिर बातें करेंगे।’’

वे अन्दर आये, तो ताईजी पलंग से उतरते हुए कुछ कहने वाली ही थीं कि बाबूजी कपड़े उतारते हुए बोले, ‘‘भाई, आज तो बड़ी लू चल रही है। प्यास के मारे मेरा गला ख़ुश्क हो रहा है। जल्दी पानी मँगाओ।’’

‘‘ताऊजी! ...’’

लडक़े की बात बीच में ही काटकर ताऊजी बोले, ‘‘भैया, तुम्हारा यह वक़्त आराम करने का है न? तुम इस वक़्त ओसारे में क्या कर रहे थे?’’

लडक़ा रुनक्खा हो उनका मुँह निहारने लगा। तभी उनकी ओर गिलास बढ़ाते हुए ताईजी बोल पड़ी, ‘‘यह तो आज सुबह से ही ताऊजी-ताऊजी की रट लगाये हुए है। न भोजन किया है, न एक पल को लेटा है। सभी बाज़ारों में चक्कर लगवाये हैं और फिर कमरे से बाहर के दरवाज़े पर और दरवाज़े से कमरे में और ताऊजी अभी नहीं आये—ताऊजी अभी नहीं आये!’’

‘‘ओह!’’ व्यस्त होकर ताऊजी बोले, ‘‘अब तो जल्दी थाली लगवाओ। पहले हम भोजन कर लें, फिर कुछ होगा। ले जाओ, इसका हाथ-मुँह धुलवाओ। बाप रे बाप! यह वक़्त हो रहा है और इसने अभी तक भोजन नहीं किया!’’

लडक़े को मेज पर सिर लटकाये हुए देखकर ताऊजी उसे समझाने लगे, ‘‘भाई, ये मज़दूर तो बड़े ही मामूली लोग होते हैं। भला उनसे हमारा क्या मुक़ाबला है? हमारे यहाँ वे चाकरी करते हैं, हम उन्हें तनख़ाह देते हैं। हम उन्हें चाकरी से अलग कर दें, तो वे भूखों मर जायँ। तुम ख़ामख़ाह के लिए सोचते हो कि वे हमें मार सकते हैं। यह बात तुम अपने दिमाग़ से निकाल दो, भैया। आराम से भोजन करके जाकर सो जाओ। मैं फिर कभी किसी दिन तुम्हें कारख़ाने ले चलूँगा और वहाँ किसी मज़दूर को तुम्हारे सामने ही बुलवाऊँगा। फिर तुम देखना कि वह मेरे साथ किस तरह पेश आता है।’’

लेकिन लडक़ा सिर झुकाये रहा और वैसे ही मिचरा-मिचराकर खाता रहा।

सब एक साथ ही मेज से उठे, तो लडक़ा सिर झुकाये हुए ही बोला, ‘‘ताऊजी, मैं आपके साथ ही आराम करूँगा।’’

ताऊजी ने हँसते हुए उसकी ओर देखा और कहा ‘‘ठीक है, चलो।’’

ताऊजी पलंग पर लेटने ही वाले थे कि टनन-टनन घण्टी बज उठी।

नौकर ने बाहर जाकर देखा, तो कोई दो मामूली-से आदमी खड़े थे। उसने उनसे पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘हम बिजलीघर के मज़दूर हैं,’’ उनमें से एक बोला, ‘‘कोठी की बिजली काटने आये हैं। साहब से बोल दो और यह काग़ज़ है, दिखा दो।’’

‘‘साहब तो आराम कर रहे हैं,’’ नौकर ने कहा।

‘‘तो किसी को भी ख़ बर कर दो, हम बिजली काटने जा रहे हैं,’’ दूसरे ने कहा।

‘‘नहीं-नहीं, रुको,’’ नौकर ने कहा, ‘‘हम लौटकर बताते हैं।’’

नौकर ने दरवाज़े पर खड़े हो धीरे से पुकारा, ‘‘रानी माँ!’’

‘‘क्या है?’’ अन्दर से ताईजी बोलीं, ‘‘बाहर कौन आया है?’’

‘‘बिजलीघर के मजदूर हैं, रानी माँ,’’ नौकर ने बताया, ‘‘बिजली काटने आये हैं। यह काग़ज़ है।’’

ताईजी ने दरवाजा खोलकर नौकर से काग़ज़ ले लिया और बाबूजी के पास जाकर बोलीं, ‘‘देखो जी, यह कैसा काग़ज़ है? नौकर कहता है कि बिजली काटने बिजलीघर से आये हैं। यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘मज़दूर? लडक़ा ज़ोर से बोलता हुआ पलंग पर उठ बैठा।’’

काग़ज़ लेते हुए ताऊजी ने हँसकर लडक़े की ओर देखा और बोले, ‘‘तुम चुपचाप लेटो।’’

‘‘वे बिजली काट देंगे, ताऊजी?’’ लडक़े ने फिर पूछा।

‘‘नहीं, हमारी बिजली कोई नहीं काट सकता!’’ ताऊजी काग़ज़ देखते हुए बोले, ‘‘तुम चुपचाप लेटो। मैं उनसे बात करता हूँ।’’

पलंग से उतरते हुए लडक़ा बोला, ‘‘ताऊजी, आप मत जाइए, जो कहना हो नौकर से कहला दीजिए।’’

ताऊजी फिर हँस पड़े। बोले, ‘‘अरे ... ’’ शेष बात वे पी गये। अचानक उन्हें कुछ सूझ गया। बोले, ‘‘आओ, तुम भी मेरे साथ आओ। तुमने तो हदकर दी, यार!’’

‘‘लडक़ा काँप उठा। लेकिन उसका हाथ ताऊजी के हाथ में था और वे उसे घसीटते हुए-से कमरे से बाहर आये और नौकर को बुलाकर कहा, ‘‘बैठक खोलो और बाहर जो मज़दूर खड़े हैं, उन्हें बुलाओ।’’

ताऊजी लडक़े के साथ एक कोच पर बैठ गये, तो नौकर मज़दूरों को बुलाने ओसारे में गया।

लडक़ा ताऊजी से बिल्कुल सटकर बैठा था, फिर भी काँप रहा था और आँखें फाडक़र दरवाज़े की ओर देख रहा था।

मजदूर दरवाज़े पर आ खड़े हुए, तो लडक़ा ताऊजी के पास और सट गया। ताऊजी ने मज़दूरों से कहा, ‘‘अन्दर आ जाओ और दरवाज़ा बन्द कर लो, बाहर से गर्म हवा आ रही है।’’

दरवाज़ा उठँगाकर उससे सटकर ही मज़दूर खड़े हो गये। तो ताऊजी अजीब लहजे में बोले, ‘‘वहाँ क्यों खड़े हो गये, सोफ़े पर आकर बैठ जाओ।’’

मज़दूर वहीं फ़र्श पर बैठ गये। एक दाँत दिखाते हुए बोला, ‘‘हमारे लिए यही जगह ठीक है, सरकार। आप कहिए, क्या हुकुम है?’’

लडक़े की पलकें इतनी देर बाद झपक उठीं। उसकी कँपकँपाहट भी कम हो गयी। फिर भी उसकी आँखें मज़दूरों पर ही टँकी थीं, जैसे वह उन अजनबियों को अच्छी तरह देख-समझ लेना चाहता था।

‘‘तुम लोग इस वक़्त यहाँ क्यों आये?’’ ताऊजी थोड़ा बिगडक़र बोले, ‘‘तुम लोगों को इतनी भी समझ नहीं कि यह शरीफों के आराम करने का समय होता है?’’

‘‘सरकार ... हम ... हम तो ताबेदार हैं, जो दफ़्तर से हुकुम हुआ ...’’ हकलाकर बोलते हुए एक मज़दूर बीच में ही चुप हो गया।

लडक़े की पलकें कई बार पट-पट झपक उठीं।

‘‘किस नामाक़ूल आदमी ने तुम लोगों को यह हुक्म दिया है कि तुम लोग हमारे आराम में ख़ लल डालो? ज़रा बताओ तो मैं अभी इंजीनियर साहब को फोन करूँ और उसे इस बेहूदा हरकत का मज़ा चखा दूँ!’’ बिगडक़र ताऊजी ने पूछा।

‘‘सरकार, वह काग़ज़ ...’’ सहमी आवाज़ में एक मज़दूर ने अधकटी बात कही।

लडक़े के चेहरे का रंग वापस आने लगा। उसके होंठ थोड़ा खुल गये और ताऊजी के पास से ज़रा हटकर वह ठीक से बैठ गया।

काग़ज़ मज़दूरों की ओर फेंकते हुए ताऊजी गरज पड़े, ‘‘इसमें क्या है? तुम लोग कुछ पढ़े-लिखे हो?’’

‘‘जी, मकान का नम्बर ...’’

‘‘क्या नम्बर है मकान का?’’ ताऊजी मज़दूरों की ओर ऐसे हाथ उठाकर बोले, जैसे वे उन्हें मार देंगे।

लडक़े के होंठों पर एक मुस्कान उभर आयी। वह सोफ़े से उठ खड़ा हुआ।

एक मज़दूर ने काग़ज़ उठाकर उसे देखते हुए कहा, ‘‘जी, सात सौ आठ।’’

लडक़े ने जब देखा कि मज़दूर के हाथ में वह काग़ज़ काँप रहा है, तो अचानक ही वह हँस पड़ा।

ताऊजी ने ज़बान ऐंठकर कहा, ‘‘सात सौ आठ! ठीक से देखो! उसके आगे भी कुछ है?’’

दोनों मज़दूर खड़े होकर काग़ज़ ध्यान से देखने लगे।

लडक़े ने देखा कि अचानक मज़दूरों के चेहरे फ़क़ पड़ गये। वे दरवाज़े की ओर मुड़ते हुए बोले, माफ़ कीजिए। अच्छर पर हमारा ध्यान नहीं गया।

‘‘ध्यान नहीं गया!’’ ताऊजी उठकर उन पर पिलते हुए बोले, ‘‘गँवार! जाहिल! अरे, तुम लोगों को इतना तो सोचना चाहिए कि यह कोठी है, यहाँ का पैसा कभी भी बाक़ी नहीं पड़ सकता! क्या नाम है तुम्हारे? बताओ, मैं अभी इंजीनियर साहब को फोन करता हूँ!’’

‘‘माफ़कर दीजिए, सरकार!’’ दोनों मजदूर गिड़गिड़ाकर बोले, ‘‘गलती हो गयी।’’

‘‘लडक़ा ताली बजाता हुआ ताईजी के पास जा पहुँचा। बोला, ‘‘ताईजी! ताईजी! ताऊजी ने मज़दूरों को डाँट दिया! वे भाग खड़े हुए। ताईजी, वे तो ... वे तो ... ’’