लड़के / अनतोन चेख़फ़ / अनिल जनविजय

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

— वलोद्या आ गया ! — घर के अहाते में अचानक कोई चीख़ा।

— वलोद्या भैया आ गए क्या? — नताल्या दोड़ती हुई डायनिंग रूम में घुसी, — अरे, भगवान !

सारा करअल्योफ़ परिवार पिछले कई घण्टों से वलोद्या का इन्तज़ार कर रहा था और यह बात सुनकर घर के सभी लोग खिड़कियों की तरफ़ भागे। मकान के दरवाज़े पर एक चौड़ी-सी त्रोइका स्लेजगाड़ी आकर खड़ी हो गई थी, जिसमें तीन सफेद घोड़े जुते हुए थे। बाहर निकलकर परिवार के सदस्यों ने देखा कि गाड़ी ख़ाली है क्योंकि तब तक वलोद्या गाड़ी से उतर चुका था और ठण्ड से लाल पड़ चुकी अपनी उँगलियों से अपने कोट के बटन खोल रहा था। उसके स्कूल की ड्रेस वाले उसके ओवरकोट पर, उसकी टोपी पर, उसके जूतों पर और उसके माथे पर लटक आए बालों पर बर्फ़ की पतली सी परत जमी हुई थी और सिर से पैर तक वह बर्फ़ से ढका हुआ था।

उस बर्फ़ से एक ख़ास तरह की ख़ुशबू आ रही थी। इस तरह बर्फ़ में जमे किसी आदमी को देखते ही एक कँपकँपी-सी चढ़ जाती है और मुँह से बर्रर्रर्र... जैसी एक थरथराहट सी निकलने लगती है। वलोद्या की माँ और बुआ उसे चूमने के लिए आगे बढ़ीं। घर की नौकरानी नताल्या उसके पैरों पर झुक गई और उसके जूते उतारने लगी। वलोद्या की बहनें ख़ुशी से चीख रही थीं और तालियाँ बजा रही थीं। वलोद्या के पिता अपने हाथ में कैंची पकड़ हुए अपनी फतुही में ही बाहर ओसारे में निकल आए थे। उन्होंने कुछ घबराई हुई सी आवाज़ में कहा :

— अरे बेटा, हम तो कल से तुम्हारा इन्तज़ार कर रहे हैं। रास्ते में कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई ? सब कुछ ठीक रहा ? अरे भई, पहले उसे अपने पापा से तो मिल लेने दो। आख़िर बाप हूँ इसका !

अचानक उनका बड़ा काला कुत्ता ज़ोर-ज़ोर से अपनी पूँछ हिलाता हुआ भौंकने लगा। वह इतना ख़ुश था कि अपनी पूँछ से ही फ़र्नीचर और घर की दीवारों पर जैसे पोंछा-सा फेर रहा था।

कुल मिलाकर घर में कुछ देर तक ख़ुशी और हंगामे का वातावरण रहा। जब शुरुआती ख़ुशी का माहौल थोड़ा शान्त हुआ तो परिवार के लोगों ने देखा कि ओसारे में बर्फ़ से ढका एक और छोटा-सा लड़का खड़ा हुआ है। वह गाड़ी से उतरकर बिना हिले-डुले वहीं कोने में खड़ा हो गया था। उसने भी अपनी स्कूल-ड्रेस का ओवरकोट पहना हुआ था।

— वलोद्या, यह कौन है? — वलोद्या की माँ ने फुसफुसाते हुए पूछा।

वलोद्या को अचानक उस लड़के का ख़याल आया और वह बोला — अरे माँ, यह मेरा दोस्त है चिचिवीत्सिन। यह दूसरी क्लास में पढ़ता है। मैं इसे भी अपने साथ ले लाया हूँ। कुछ दिन हमारे साथ ही रहेगा ।

वलोद्या की बात सुनकर उसके पिता ख़ुश हो गए — यह तो बहुत अच्छी बात है। आओ, बेटा, आओ। तुम्हारा ही घर है। नताल्या, ज़रा कोट उतारने में चिरिपीत्सीन की मदद कर दो। इस कुत्ते को कोई हटाओ यहाँ से। कितना परेशान कर रहा है।

कुछ देर बाद वलोद्या और उसका दोस्त हंगामेदार स्वागत के बाद चाय पी रहे थे। उनके चेहरे और हाथ अभी तक ठण्ड से लाल पड़े हुए थे। सूरज निकल आया था और बर्फ़ीले कोहरे को पार करके जाड़ों की धूप घर की खिड़कियों पर पड़ रही थी। पाला इतना ज़ोरदार था कि चमकदार धूप भी जैसे ठण्ड के मारे समोवार और प्यालों पर भी काँप रही थी। कमरा काफ़ी गर्म था और उन दोनों के काँपते हुए बदनों पर धूप और ठण्ड लुकाछिपी का खेल खेल रहे थे। धूप उनके बदन को गुदगुदा रही थी।

वलोद्या के पिता ने अपनी उंगलियों के बीच बीड़ी घुमाते हुए कहा — जल्दी ही बड़ा दिन आने वाला है। गर्मियाँ बीते अभी कोई ज़्यादा दिन नहीं हुए हैं। तुम्हें याद होगा, तुम्हारी माँ तब तुम्हें स्कूल के लिए विदा करते हुए रो रही थी। और देखो, तुम लौटकर भी आ गए। बेटा, समय बहुत जल्दी गुज़र जाता है। एक छींक मारोगे और बूढ़े हो जाओगे। अरे, भाई चीबिसफ़ ! खाओ, खाओ, शरमाओ नहीं, इसमें शरमाने की क्या बात है?

वलोद्या की तीनों बहनें भी उनके पास ही बैठी हुई थीं। उन तीनों के नाम थे — कात्या, सोन्या और माशा। इन तीनों बहनों में सबसे बड़ी बहन ग्यारह साल की थी। तीनों बहनें घर आए मेहमान को बड़ी उत्सुकता से देख रही थीं। चिचिवीत्सिन की उम्र भी वलोद्या के बराबर ही थी, लेकिन वह वलोद्या की तरह गोरा-चिट्टा और मोटा नहीं था। कंजी आँखों वाला चिचिवीत्सिन दुबला और साँवला-सा लड़का था और उसके चेहरे पर चित्तीदार झाइयाँ पड़ी हुई थीं। उसके बाल घने थे और होठ मोटे- मोटे थे। वह ज़रा भी ख़ूबसूरत नहीं था। अगर उसने स्कूल की वर्दी नहीं पहन रखी होती तो कोई भी उसे रसोईदारिन या आया का बेटा ही समझता। वह बड़ा उदास-उदास-सा था और बहुत कम बोल रहा था। अभी तक वह एक बार भी नहीं मुस्कराया था। तीनों लड़कियाँ उसे देखकर ही समझ गईं कि वह काफ़ी समझदार है।

चिचिवीत्सिन के दिमाग में हमेशा कुछ न कुछ चलता-रहता था। कोई न कोई विचार उसके मन में घूमता रहता था इसलिए उससे जब भी कुछ पूछा जाता तो वह अचानक सावधान हो जाता और अपना सिर हिलाकर सवाल को दोहराने लगता था।

तीनों लड़कियों ने इस बात की तरफ़ भी ध्यान दिया कि उनका भाई वलोद्या, जो बेहद बातूनी और मज़ाकिया था, आज बहुत कम बात कर रहा था। आज तो उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह घर लौटकर ज़रा भी ख़ुश नहीं हो। वह ज़रा भी मुस्करा नहीं रहा था। चाय पीते हुए उसने सिर्फ़ एक बार अपनी बहनों से बात की थी और उस बात में भी अजनबी शब्दों की भरमार थी। उसने समोवार की तरफ़ इशारा करते हुए कहा था :

— कैलिफ़ोर्निया में तो लोग चाय की जगह जिन पीते हैं।

आज वलोद्या के दिमाग़ में भी कोई फ़ितरत चल रही थी। वह अपने दोस्त चिचिवीत्सिन की तरफ़ कभी-कभी ऐसी नज़रों से देखता था कि आस-पास बैठे हुए लोगों को तुरन्त यह पता लग जाता था कि दोनों लड़कों के दिमाग में एक ही बात घूम रही है।

चाय पीने के बाद सब लोग बच्चों के कमरे में आकर बैठ गए। लड़कियाँ और उनके पिता ने अपना वह काम फिर से करना शुरू कर दिया, जो इन दोनों लड़कों के घर पहुँचने से बीच में छूट गया था। वे लोग रंग-बिरंगे कागज़ों से झालरें और फ़र-वृक्ष को सजाने के लिए फूल बना रहे थे। यह काम लड़कियों को बहुत पसन्द था और वे हंसती-खिलखिलाती हुई फूल बनाने का काम कर रही थीं। हर बार नया फूल बनने के बाद लड़कियाँ ख़ुशी से चीख़ने लगती थीं, जैसे वह फूल आसमान से टपका हो। उनके पिता भी फूल देखकर ख़ुश हो जाते थे और इस बात पर नाराज़ होने लगते थे कि कैंची भोथरी है। कभी-कभो वे उस कैंची को ज़मीन पर पटक देते थे। उनकी माँ कैंची ढूँढ़ती हुई परेशान होकर वहाँ आती थी और पूछती थी :

— मेरी कैंची किसने ली है? — फिर अपने पति का नाम लेकर आगे कहती थी — इवान, तुम फिर से उठा लाए हो न, कैंची?

उसका पति जैसे रटा-रटाया-सा जवाब देता था — हे भगवान ! यह औरत तो अपनी कैंची भी नहीं लेने देती। — इसके बाद वह कुर्सी पर अपनी पीठ टिकाकर ऐसी मुद्रा बना लेता, मानों उसकी बेइज़्ज़ती कर दी गई हो। लेकिन एक मिनट बाद ही वह फिर से हँसने-खिलखिलाने लगता था।

इससे पहले वलोद्या जब भी घर आता था तो वह भी फ़र-वृक्ष को सजाने के लिए तैयारियां करता था या फिर घर के अहाते में जाकर यह देखता था कि कैसे कोचवान और चरवाहा अहाते में गिरी बर्फ़ को एक जगह पर इकट्ठा करके उसका ढेर बना रहे हैं। लेकिन इस बार न तो वलोद्या, न ही चिचिवीत्सिन ने रंगीन काग़ज़ों की ओर कोई ध्यान दिया था। दोनों में से कोई भी एक बार भी घुड़साल में नहीं गया था। दोनों खिड़की के पास बैठकर आपस में कुछ फुसफुसाते रहे। इसके बाद उन्होंने भूगोल की एट्लस खोल ली और कोई नक़्शा देखने लगे।

— पहले पेर्म तक जाना होगा। — चिचिवीत्सिन ने धीमी आवाज़ में कहा — वहाँ से त्युमेन ... फिर वहाँ से तोम्स्क ... और फिर ... फिर कम्चात्का। वहाँ से हमें मल्लाह अपनी नाव से बेरिंग बहाव तक छोड़ देंगे। और बस, हम अमेरिका पहुँच जाएँगे। वहाँ जंगलों में बहुत से जंगली जानवर रहते हैं।

— और कैलिफ़ोर्निया ? — वलोद्या ने पूछा ।

— कैलिफ़ोर्निया वहाँ से नीचे की तरफ़ है । हमें सबसे पहले किसी तरह अमेरिका पहुँचना है। फिर कैलिफ़ोर्निया जाना मुश्किल नहीं होगा । पेट भरने के लिए हम कुछ शिकार करेंगे या चोरी-चकारी करेंगे ।

चिचिवीत्सिन सारा दिन वलोद्या की बहनों से दूर दूर रहा और अपने माथे पर बल डालकर लड़कियों की तरफ़ देखता रहा। शाम की चाय के बाद कुछ ऐसा हुआ कि उसे पाँच मिनट के लिए तीनों लड़कियों के साथ अकेले बैठना पड़ गया । उसे चुप रहना ठीक नहीं लग रहा था। वह ज़ोर से खाँसा और उसने अपनी दाईं हथेली से बाईं हाथ को रगड़ते हुए कात्या की तरफ उदासी से देखा और उससे पूछा — क्या तुमने मायन रीड को पढ़ा है ?

— नहीं , मैंने नहीं पढ़ा । भाई साहब यह बताइए क्या आप स्केटिंग करना जानते हैं ?

अपने विचारों में डूबते हुए चिचिवीत्सिन ने उसके इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और अपने गाल फुलाकर गहरी सांस भरी, मानो उसे बड़ी गरमी लग रही हो। इसके बाद उसने कात्या की तरफ नजर उठाई और बोला :

— जब जंगली भेंसों का झुण्ड पमपास से गुजरता है तो धरती काँपने लगती है। इस झुण्ड को देखकर अमेरिका के जंगली घोड़े भी डर जाते हैं और डर से चीख़ने लगते हैं ।

चिचिवीत्सिन इसके बाद उदासी से मुस्कराया और उसने आगे कहा :

— ऐसे ही रेड इण्डियन भी रेलगाड़ियों पर हमला करते हैं। लेकिन सबसे ख़राब बात है, वहाँ के मच्छर और दीमक ।

— यह क्या होता है ?

— मच्छर चींटी की तरह होते हैं लेकिन उनके पंख होते हैं, इसलिए वे उड़ते हैं। वे बहुत ज़ोर से काटते हैं। तुम लोग जानते हो, मैं कौन हूँ ?

— आप चिचिवीत्सिन भाईसाहब हैं ।

— नहीं, मैं मोण्टिगोमो के बाज़ का पँजा हूँ, अजेय लोगों का नेता।

लड़कियों में से सबसे छोटी लड़की माशा ने उसकी तरफ देखा। फिर वो खिड़की से बाहर देखने लगी जहाँ शाम का झुटपुटा दिखाई देना शुरू हो गया था। फिर कुछ सोचते हुए वह बोली :

— हमारे यहाँ कल शाम को चिचिवीत्सा (मसूर) की दाल बनी थी।

चिचिवीत्सिन की वे बातें लड़कियों को पूरी तरह समझ में नहीं आ रही थीं, जो वह लगातार फुसफुसाते हुए वलोद्या से कह रहा था। उन्हें वलोद्या की यह हरकत भी अजीब और एक पहेली की तरह लग रही थी कि वह उनके साथ खेलने की जगह कुछ सोचने में लगा हुआ था। तीनों में से दोनों बड़ी लड़कियाँ यानी कात्या और सोन्या ने दोनों लड़कों पर नज़र रखनी शुरू कर दी । रात को जब दोनों लड़के सोने के लिए गए, तो दोनों लड़कियाँ दरवाज़े से कान लगाकर उनकी बातें सुनने लगीं। उनकी बातें सुनकर उन्हें पता लगा कि लड़के भागकर कहीं अमेरिका जाना चाहते हैं, ताकि वहाँ सोने की खान ढूँढ़ सकें। अमेरिका जाने के लिए उन्होंने पूरी तैयारी कर ली है। उनके पास एक पिस्तौल है, दो चाकू हैं, कुछ चना-चबैना है और मैग्नीफाइंग लेंस भी है, ताकि उस से आग जलाई जा सके। इसके अलावा उनके पास एक कम्पास है और चार रूबल नकद हैं।

लड़कियाँ यह भी जान गईं कि दोनों लड़कों को कई हज़ार कोस पैदल चलना पड़ेगा और रास्ते में बाघों और दूसरे जंगली जानवरों का सामना करना पड़ेगा। इसके बाद उन्हें सोना और हाथीदाँत जमा करने होंगे। उन्हें अपने दुश्मनों और समुद्री डाकुओं को मारना होगा। वहाँ जाकर ये दोनों जिन पीएँगे और बाद में ख़ूबसूरत लड़कियों से शादी कर लेंगे और इसके बाद दोनों बड़े-बड़े बगीचे लगाएँगे। वलोद्या और चिचिवीत्सिन लगातार बात कर रहे थे और बात करते हुए बीच-बीच में एक दूसरे की बात काट रहे थे। बात करते हुए चिचिवीत्सिन खुद को ’मोन्तिगोमो के बाज़ का पँजा’ बता रहा था और वलोद्या को अपना ’गोरा भाई’ बता रहा था। दोनों लड़कों की बात सुनकर अपने कमरों की तरफ़ वापिस लौटते हुए कात्या ने सोन्या से कहा :

— देख, तू अम्मा को ये सब बातें मत बताना। अमेरिका से वलोद्या हमारे लिए सोना और हाथीदाँत लेकर आएगा और अगर तू अम्मा को सब बातें बता देगी, तो माँ उसे कहीं जाने नहीं देगी।

बड़े दिन से पहले चिचिवीत्सिन सारा दिन एशिया का नक़्शा देखता रहा और अपनी डायरी में कुछ लिखता रहा और वलोद्या अपना मुँह सुजाकर, जैसे किसी मधु-मक्खी ने उसे काट लिया हो, थका-थका और उदास सा बिना कुछ खाए-पिए घर के कमरों इधर-उधर डोलता रहा। एक बार जब वह बच्चों के कमरे में पहुँचा, तो वहाँ लगे एक देवचित्र के सामने अपनी छाती पर सलीब का निशान बनाते हुए बोला :

— ऐ खुदा ! मुझ पापी को माफ़ कर दे ! खुदा, तू मेरी बदक़िस्मत और बेचारी माँ को ठीक-ठाक रखना !

शाम होते-होते वह रोने लगा था। सोने के लिए अपने कमरे में जाने से पहले वह बार-बार अपने पिता, माँ और बहनों के गले से लिपट रहा था। कात्या और सोन्या को तो पता था कि बात क्या है लेकिन छुटकी माशा की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह बार-बार चिचिवीत्सिन की और देखती और कुछ सोचते हुए गहरी साँस भरकर कहती :

— हमारी आया का कहना है कि जब भी व्रत रखो, तो सिर्फ़ चने की दाल और मसूर की दाल का सूप ही पीना चाहिए।

अगले दिन सुबह-सुबह कात्या और सोन्या अपने बिस्तर से उठीं और यह देखने के लिए लड़कों के कमरे के पास पहुँच गईं कि वे कैसे अमेरिका भागेंगे। दोनों ने अपने कान लड़कों के कमरे के दरवाज़े से सटा दिए :

— तो क्या, तुम नहीं चलोगे ? — चिचिवीत्सिन नाराज़गी से पूछ रहा था — बताओ, तुम्हें चलना है या नहीं ?

— हे भगवान ! — वलोद्या धीमे-धीमे रोते हुए कह रहा था — मैं अपनी प्यारी अम्मा को छोड़कर कैसे जाऊँगा? मुझे उनपर तरस आ रहा है।

— अरे. मेरे गोरे भाई ! चलो न ! मैं तुम से मिन्नत करता हूँ। तुमने तो कहा था कि तुम भी मेरे साथ जाओगे। ख़ुद तुम्हीं ने सारा प्लान बनाया था और अब जब जाने की बारी आई तो घबरा गए !

— नहीं, नहीं, मैं घबराया नहीं हूँ। मुझे, सचमुच, अपनी माँ पर तरस आ रहा है।

— तुम यह बताओ कि तुम चल रहे हो या नहीं ?

— अरे भाई, मैं चलूँगा, ज़रूर चलूँगा। लेकिन थोड़ी देर और रुक जाते हैं। मैं अपने घर को जीना चाहता हूँ।

— अगर यह बात है तो मैं अकेले चला जाता हूँ। — चिचिवीत्सिन ने फ़ैसला लेते हुए कहा।

— तुम्हारे बिना भी जा सकता हूँ। तुमने तो ख़ुद ही कहा था कि तुम शेर का शिकार करना चाहते हो, कि तुम चीते को मारना चाहते हो। चलो, लाओ, मेरी पिस्तौल मुझे दे दो। ।

वलोद्या ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। उसे रोते देखकर उसकी बहनें भी चुपचाप रोने लगीं। माहौल में एक गहरी चुप्पी छा गई ।

— तो तुम चलोगे या नहीं ? — चिचिवीत्सिन ने एक बार फिर पूछा ।

— हाँ, हाँ, चलता हूँ ।

— तो फिर कोट पहनो अपना ।

और चिचिवीत्सिन ने वलोद्या को मनाने के लिए अमेरिका की तारीफ़ करना शुरू कर दिया। कभी वह चीते की तरह गरज़ता तो कभी जहाज़ की तस्वीर बनाने लगता । उसने वलोद्या से वादा किया कि वह सारा हाथीदाँत और शेरों व चीतों की सारी खालें उसे दे देगा।

सिर पर खड़े बालों वाला और चेहरे पर झाइयों वाला वह साँवला-दुबला लड़का दोनों लड़कियों को किसी हीरो की तरह लग रहा था। ऐसा हीरो जिसे बिलकुल डर नहींं लगता, जो तुरन्त फ़ैसला करता है और जो ऐसे गरज़ता है कि बन्द दरवाज़े के पीछे खड़े लोगों को सचमुच ऐसा लगने लगता है कि कोई शेर या चीता आ गया है ।

जब दोनों लड़कियाँ अपने कमरे में वापिस लौटीं और अपने कपड़े बदलने लगीं तो कात्या की आँखों में आँसू आ गए और वह बोली :

— ओह, मुझे कितना डर लग रहा है।

अगले दिन सब लोग जब लंच करने बैठे, तब तक घर में शान्ति थी। लेकिन लंच के बाद अचानक घर में हलचल होने लगी। पता लगा कि दोनों लड़के गायब हो गए हैं। नौकरों के कमरे की तरफ से लड़कों की खोज शुरू हुई। इसके बाद लोग घुड़साल में उन्हें ढूँढ़ने लगे, फिर घर के पास बनी कॉटेज में भी जाकर देखा गया। इसके बाद कारिन्दे से पूछा गया। लेकिन दोनों लड़कों का कुछ पता नहीं चला। फिर नौकरों से गाँव भर में ढुँढ़वाया गया, लेकिन लड़के गाँव में भी कहीं नहीं थे। शाम की चाय के दौरान सभी लोग दोनों लड़कों के बारे में ही सोच रहे थे । जब शाम के खाने तक दोनों की कोई ख़बर नहीं मिली तो वलोद्या की माँ परेशान हो उठी । वे रोने लगी थीं।

रात को सारे नौकर फिर लालटेनें लेकर उन्हें ढूँढ़ने निकले। पर वे न गाँव में मिले न गाँव के साथ लगे जंगल में और न ही नदी के किनारे कहीं पर। पूरे घर में हंगामा मच गया ।

अगले दिन पुलिस का एक सार्जेंट वहाँ आया और उसने डायनिंग रूम में बैठकर दोनों लड़कों का हुलिया एक कागज़ पर लिख लिया। वलोद्या की माँ ने रोते-रोते हुए उसे सारा क़िस्सा सुनाया कि कैसे अहाते में तीन घोड़ों वाली त्रोयका स्लेजगाड़ी आकर रुकी थी, कैसे स्लेजगाड़ी में जुते घोड़ों के मुँह से भाप निकल रही थी, कैसे अहाते में किसी की चीख़ सुनाई दी थी, उसने कहा था :

— वलोद्या आ गया !

फिर कैसे रसोई से बाहर आकर नतालिया ने कहा था — वलोद्या भैया आ गए हैं !

तभी उनका कुत्ता मिलॉर्ड ख़ुशी से भौंकने लगा। दोनों लड़के शहर की सराय में अटक गए थे। दोनों शहर में यह पूछते हुए घूमते रहे कि बारूद कहाँ मिलता है। जैसे ही वलोद्या दहलीज़ में घुसा, वह रोने लगा और अपनी माँ से लिपट गया। दोनों लड़कियाँ इस डर से काँपने लगीं कि अब क्या होगा? दोनों ने यह देखा था कि कैसे पापा ने वलोद्या को अपने कमरे में बुलाकर उससे कुछ पूछताछ की थी। माँ भी रोते हुए बार-बार कुछ कह रही थी।

वलोद्या के पापा ने उन दोनों लड़कों को डाँटते हुए कह रहे थे :

— कोई ऐसा करता है क्या? अगर तुम्हारे स्कूल में पता लग जाएगा तो स्कूल से निकाल दिए जाओगे । और चिचिवीत्सिन साहब, आपको तो शर्म आनी चाहिए। यह कोई अच्छी बात नहीं है। यह साज़िश आपने ही रची थी। और मेरा ख़याल है कि आपके माँ-बाप आपकी इस हरकत के लिए आपको सज़ा ज़रूर देंगे। इस उम्र में कोई ऐसी हरकत करता है क्या? अच्छा, तो आप लोगों ने रात कहाँ बिताई?

— रेलवे स्टेशन पर — चिचिवीत्सिन ने अकड़कर कहा ।

इसके बाद वलोद्या सारा दिन बिस्तर में पड़ा रहा और उसके माथे पर सिरके में डूबोकर तौलिया रखा जाता रहा। चिचिवीत्सिन के घर एक तार भेज दिया गया। अगले दिन उसकी माँ आकर अपने बेटे को अपने साथ ले गई।

चिचिवीत्सिन ने जब उनसे विदा ली, तो उसने अपने चेहरे को कठोर बना रखा था और उसके चेहरे पर घमण्ड झलक रहा था। सख्त चेहरा बनाकर वह दोनों लड़कियों के पास आया और बिना कुछ बोले उसने कात्या की कॉपी उठाकर उसमें दो शब्द लिख दिए :

- मोण्टिगोमा बाज़ के पंजे।

अब उसके पास चिचिवीत्सिन की सिर्फ़ यही एक याद बाक़ी रह गई है।

रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

1887 (कहानी का मूल रूसी नाम -- मालचिकि)