लसेढ / प्रदीप बिहारी

Gadya Kosh से
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गेटमे ताला लगबैत नवल समयक गणित कएलनि। डेढ़ घंटा रहनि हुनका लग। मात्र डेढ़ घंटा। एतबे कालमे पार्क जेबाक छनि, बुलबाक छनि, किछुकाल पार्कक बेंच पर बैसि बुलैत लोक सभकें तकैत रहबाक छनि आ फेर घुरि अएबाक छनि। समयसं नहि घुरने पोताकें असुविधा भ' जाइत छनि। ओकरा कोचिंग सं घुरबाक समय वैह छैक।

कतोक बेर सोचलनि जे कने अबेरे क'पार्क सं आबथि। बेटा-पुतौहु अपन-अपन आफिस सं घुरि आबए तखन। मुदा, ताबत सांझ गहींर होम' लगैत छैक आ घुरबाकाल असुविधा होइत छनि। एम्हर आंखिक रोशनी क्षीण भ' रहल छनि, से बुझाइत छनि।

तें घड़ीक सुइया पर चलैत पार्क जाइत छथि, बुलैत छथि, बुलैत रंग-विरंगक लोककें तकैत रहैत छथि आ घुरि जाइत छथि। पार्क जएबामे असकताइत नहि छथि। पत्नीक बात मोन पड़ि जाइत छनि, "मार्निंग-इवनिंग वाक नहि छोड़ब। यैह बचा क' राखत। प्रयास राखी जे अंतो समय ककरो दू हाथ सेवाक खगता नहि होअए. हमरे सप्पत।"

सोचलनि नवल-हमरा तं अपन सप्पतसं बान्हि गेलीह। चलि गेलीह अपने। हमहूँ कहाँ द'सकलियनि कोनो सप्पत, जकरा निमाहितथि ओ. मुदा, अपन सोच निमहि गेलनि हुनका। खगता नहि भेलनि ककरो एक लोटा जल धरिक। चटपटमे विदा भ' गेलीह। नीके-ना छलीह। रातिमे दुनू गोटें संगहि भोजन कएल. भोरे हम तं जागि गेलहुं, मुदा ओ नहि जगलीह। रातिमे बुझहु ने देलीह जे मोनो खराप भेलनिहें। छोड़ि गेलीह एहि अकाबोनमे हमरा। मुदा, हमहूँ तहिना विदा भ' जाएब, तकर गारंटी हम कोना देबनि? एहि मादे हुनक सप्पत कोना निमाहबनि?

नवल गामेमे रहैत छलाह। घर ओगरैत छलाह। नराड़ वाली आबि क'दुनू सांझक भोजन बना दैत छलनि। भिनसर-सांझ टहलैत-बुलैत छलाह। मासमे एकदिन ए टी एम सं पेंसनक टाका बहार क' आनि लैत छलाह। गीता प्रेस, गोरखपुर सं प्रकाशित पोथी सभ पढ़ैत रहैत छलाह। घरमे लैंडलाइन फोन लगा देने छलनि बेटा। बेटा-पुतौहु आ पोतासं गप क' लैत छलाह। मगन रहैत छलाह। गाममे लोकक अकालक अछैतो गपसप लेल किछु गोटें भेटिए जाइत छलनि।

से, एकदिन छातीमे दर्द उठलनि। गौंए सभ डाक्टर ओहिठाम ल'गेलनि। ठीक भेलाह। बेटाकें सूचना भेटलनि। अएलनि आ ल' आनलकनि बंगलौर।

ओ गामे रह' चाहैत छलाह, मुदा बेटा नहि मानलकनि। कहलकनि, "डाक्टर कहलकए जे अहांक छातीक दर्द स्वाभाविक नहि छल। स्ट्रोक छल, स्ट्रोक। तें अहांकें एसगर रहब ठीक नहि। चलू, संगे रहब।"

"मुदा, ओतहु तं असगरे रहब हम। तों दुनू परानी दिनभरि नोकरीमे, गोलू स्कूल। ओत' तं आर औनाइत रहब।"

मुदा, बेटा नहि मानलकनि। घर सभमे नवतालक ताला मारलक आ पिताकें लेने बंगलौर आबि गेल।

बेटा-पुतौहु नवलक प्रति साकांक्ष छल। हुनक स्वास्थ्यकें देखैत सुविधा जुटा देने छल। मुदा, ई सभ हुनका भारी लाग' लगलनि। ओना दोसरे दिन बेटा अपार्टमेंट लगक पार्क हुनका देखा देने छलनि।

नवल अपना संग गीता प्रेस बला पोथी सभ नेने आएल छलाह। बेटा मना कएने रहनि, मुदा नहि मानलनि। हालहिमे वी पी-पी सं मंगाओल पोथी सभमे जे पढ़ि नहि सकल रहथि, से सभ बान्हि लेलनि।

बेटा-पुतौहु सांझ क' आफिससं घुरनि। कने काल सभ संगहि बैसए. संगहि चाह पीबए. हालचाल होइक। पुतौहु सभ दिन पूछि बैसनि, "बाबूजी! आइ कोना बीतल। मोन ठीक अछि ने?"

ओ बाजथि, "हमरा किछु ने भेल-ए. अनेरे अहाँ सभ चिन्ता करैत-करैत एत 'ल' आनलहुं।"

तकर बाद सभ अपन-अपन कोठरीमे चलि जाए. मोबाइल सं गप होइत दुनू कोठरीसं अबैत आवाजटा सुनथि नवल। मोन होनि जे बेटा-पुतौहु कें कहथि जे कत्तेक काज रहैत छौ तोरा सभकें, जे आफिसमे नहि सठै छौ। मुदा कहि नहि पाबथि। उठि क' गोलूक कोठरीमे जाथि। गोलू सेहो अपन मोबाइलमे व्यस्त।

एकदिन ओ गोलूकें पुछलनि, "तों की देखै छहक?"

"कुछ नहीं, गेम खेल रहा हूँ।"

हुनका मोन होनि जे पोतासं भरि पोख गप करथि, मुदा से भ' नहि पबनि। एकदिन पोताकें कहनहुं रहथि, "मोबाइल पर बेसी काल नहि रही। समय दूरि होइ छै बाउ।"

"अब मोबाइले पर समय बचता है बाबा।" गोलू बाजल, "हम पढ़ते भी हैं इस पर। कोई भी मैसेज बहुत जल्दी पहुंच जाता है। लोग जितनी भी दूर रहे, चैटिंग से नजदीक हो जाता है, बाबा।"

नवलकें बुझएलनि जे ई आठम कक्षाक बच्चा हुनकासं बड़ जेठ अछि। हुनका मोन भेलनि जे पोतासं पुछथि, "बाउ रे। चिट्ठी माने बूछै छहक?"

गोलू पढ़हुमे तेजगर अछि, से बात पुतौहु कहने रहथिन। नीक नम्मर अबैत छैक कक्षामे।

मुदा, छौंड़ाकें मैथिली बाज'नहि अबैत छैक। भाखा बूझि लैत अछि, मुदा बाज' नहि अबैत छैक। एहि मादे एकदिन बेटाकें कहने रहथि, तं बेटा उतारा देलकनि जे अहाँ आबि गेलियैए, आब सीखि लेत।

से छौंड़ा सेहो बाजल रहए जे बाबासं मैथिली भाखा सीखत। मुदा, छौंड़ाकें मोबाइलसं पलखति भेटैक तखन ने।

हुनका मोश्किल तखन भ'जाइत छनि, जखन राति क' ओ सूत' चाहैत छथि आ छौंड़ा मोबाइल पर आंगुर चलबैत रहैत अछि।

एकदिन सांझुक चाहक बाद बेटा कहलकनि, "बाबू! हम चाहैत छी जे अहांकें एकटा मोबाइल कीनि दी।"

नवलकें कोनादन लगलनि, "नहि, हमरा नहि चाही। हमरा लग अनेरोक समय नहि अछि। तों सभ तं संगहि छह, ककरासं गप करब मोबाइल पर? आ गपे करबाक हैत तं तोहर सभक मोबाइल तं छैके. अनेरे जंजाल किए बेसाही?"

बेटा कहलकनि, "से की? सभ सुविधायुक्त मोबाइल कीनि दैत छी। इंटरनेट रहत। कैमरा रहत। फेसबुक रहत। मैसेंजर रहत। व्हाट्सएप रहत। जे मोन हएत, देखैत रहब। जकरा सं मोन हएत, बतियाइत रहब। बोर नहि हेब।"

"नहि, नहि। हम बोर नहि होइत छी। पढ़बा लेल एतेक पोथी सभ अछिए. चारिटा धार्मिक पत्रिका आबिए जाइए. आब कते चाही?"

आ हुनका लेल मोबाइल नहि किनएलनि। हुनका लेल मोबाइल नहि किनएलनि, एहिसं संतोष भेलनि हुनका।

मुदा, दिनुका समय काटब मोश्किल भ'जानि। सांझ खन जतेक काल धरि बेटा-पुतौहु घुरनि आ चाह चलैक सैह समय महत्त्वपूर्ण रहनि। पोतासं सेहो कखनो क' गप भ' जानि।

एकदिन दुपहरियामे बहरा गेलाह बजार दिस। अनेरो। कोनो काज नहि। कोनो वस्तुक खगता नहि। सभ किछु बेटा-पुतौहु जुटाइए दैत छलनि।

चाकर सड़कक फुटपाथ पर जा रहल छलाह कि हठात् एकटा युवक टोकलकनि, "एक्सक्यूज मी। अपने नवल सिंह जी भेलियै।"

नवलकें अचरज लगलनि। हुनक नाम बूझ' बला ई अनठीया के अछि? ओ उतारा देलनि, "जी. मुदा अपने?"

"हम अनमोल भेलियै। अनमोल प्रकाश। हमर बाबूजी अहांकें देखलनि तं बुझएलनि जे चिन्हार छियै। बड़ी कालक बाद हमरा कहलनि अपनेक नाम पूछ'। अहाँ दुनू गोटें क्लास मेट रही कहांदन। बाबूए कहै छलाह।"

"अहाँक पिताक की नाम छनि?"

"जीबछ यादव।"

नवल प्रफुल्लित होइत अनमोलकें निहारैत बजलाह, "तों जीवछक बेटा छहक?" फेर चारूकात नजरि खिरबैत बजलाह, "कहाँ अछि जीवछ?"

अनमोल संकेतसं दोसर दिस देखबैत बाजल, "हे, ओत'।"

नवलक डेग कतेकटा भ' गेलनि, से ओ बूझि नहि सकलाह।

दुनू दोस आलिंगनबद्ध भ'गेलाह। दुनूक चेहरा दीप्त भ' उठलनि। जीवछ बजलाह, "की रे नवला! तों एत' ? तोरा बुते गाम छुटि गेलौ?"

"गाम तं तोहूँ ने छोड़ि देलही जीवछा।"

लगलै जेना दुनू दोस मेट्रिकक छात्र भ' गेल होथि।

जीवछक बेटा-पुतौहुकें अचरज लागि रहल छलैक। पुतौहु बाजलि, "पापा! घरे पर चलू ने। ककाजी के सेहो ल' चलियनु।"

तखने जीवछक मोबाइलमे मैसेजक टोन बजलै। जीवछ जेबीसं मोबाइल बहार क' देखलनि आ बजलाह, "बेस, चलै चलह। चल नवल।"

जीवछक मोबाइलक टोन अखरलनि नवलकें। मोबाइल धैर्य नहि रह' दैत छै।

भरि बाट दुनू दोस बतियाइत रहलाह। जीवछक बेटा कार चला रहल छल। पुतौहु पुछलकि, "अहाँ सब कते साल पर मिललहुं पापाजी?"

"मेट्रिक धरि संगे पढ़लहुं। तकर बाद कहियो काल। नोकरीमे रही तं एकाध बेर भेंट भेल। एखनि बीस बरखक बाद भेंट भेलए."

नवल बजलाह, "हाइ स्कूलमे हमरा दुनूक बीच खूब उठा-पटक होअए."

"उठा-पटक। माने?" अनमोल पूछलक।

"कही ने रे जीवछा।" नवल बजलाह।

"उठा-पटक माने कोनो साल क्लासमे ई फस्ट करए, तं कोनो साल हम। नवलाके गणित आ हिन्दी मजगूत रहै आ हमर अंग्रेज़ी आ विग्यान।"

पुतौहुकें हंसी लागि गेलै। बाजलि, "उठा-पटक के बढ़िया डेफनिसन अछि अहाँ सभक।"

अनमोलक घरमे उत्साह पैसि गेल रहैक। दुनू दोसक गप्पे ने सठनि। गोलूक स्कूलसं अएबाक समय नगचिएलैक तं नवल बजलाह, "आब चलबौ जीबछा। पोताक स्कूलसं अएबाक समय भ' रहल छै।"

अनमोल अपन कारसं नवलकें पहुंचाब' आएल. अरियातबा लेल जीवछ सेहो अएलाह। अपार्टमेन्ट लगक पार्ककें देखबैत नवल बजलाह, "एही पार्क में थोड़ेक समय कटैए."

"हमहूँ तं एतै बूल' अबै छी।" जीवछ बजलाह।

एहि बीच गपक क्रममे कतोक बेर जीवछक मोबाइलक मैसेज टोन बजलैक आ सभ बेर जीवछ मोबाइलक स्क्रीन देखि लैत छलाह। नवलकें ई व्यवधान नीक नहि लगलनि। बजलाह, "जखन हमरासं गप करबाक होउ तं मोबाइलक कंठ मोकि क' राख। बूड़ि नहितन।"

अनमोल मोने मोन मुस्किआएल.

तकर बाद दुनू मित्र पार्कमे नियमित रूपें आब' लगलाह।

ई तय भेलैक जे दू बेर पार्कक चक्कर लगयलाक बाद दुनू गोटें एकटा बेंच पर बैसताह आ गप सरक्का होएतैक। पार्कक दू बेरक चक्कर हिनका दुनूक लेल यथेष्ट छलनि।

आ कि तखनहिं जीबछक मोबाइलक मैसेज टोन फेर बजलैक। नवलकें अकच्छ लगलनि। खौंझाइत बाजलाह, "ई टुनटुनमा डेरे पर छोड़ि क'आ। जहाँ दुनू दोस बतिआए चाहैत छी कि ई सौतिन भ' जाइए."

जीबछ मैसेज देख'चाहलनि, मुदा नवल हुनक गट्टा ध' लेलनि, "रह' दही। बादमे देखिहें।"

मुदा, जीबछक मोन नहि मानलकनि। मैसेज देखितहिं बाजलाह, "हे देख! अपना सभक एकटा तेसर संगीक मैसेज अछि।"

"तेसर संगी? माने?"

"हे देख ले।" जीबछ फेसबुकक एकटा एकाउन्टक फोटो देखबैत बजलाह, "देखही। चिन्है छिही एकरा?"

नवल फोटोकें निहारि रहल छलाह। कने कालक बाद पालो पटकैत बजलाह, "नहि चिन्हलियै। कह। के अछि ई मौगी?"

जीबछ बजलाह, "वैह, जे पूरे हाइस्कूलमे तोरेसं गप करौक आ तों एकरा अबडेरही। ओ तोरासं गप कर'लेल बेहाल। ओ रेखागणित आ बीजगणित सीख' चाहैत छलौ तोरासं।"

नवलकें मोन पड़लनि, "फूलमणि दासगुप्ता।"

"हं भेटनरी डाक्टरक बेटी. दुनू बहिन संगहि स्कूल आबए आ जाए. बड़की अपना सभसं एक क्लास आगू।" जीबछ बजलाह, "तों ओकरा गुदानबे ने केलही आ आन ककरोसं ओ बतिएबे ने केलकै। पूरे खजौली स्कूलमे सभ छौंड़ा ओकरा पाछू आ ओ तोरा पाछू। मोनक बात मोनेमे दाबि लेलकै।"

"ओकरा गुदान'लगितियै, तं तों पटकिए ने दितें।" नवल बाजलाह, "कत' भेटलौ तोरा?"

"फेसबुक पर।" जीबछ बाजलाह, " मोबाइल रखितें तं तोरो भेटि जइतौक।

नवलकें फूलमणि मोन पड़लनि। हुनका क्लासमे मात्र तीनिएटा छौंड़ी पढ़ैत छलैक। पूरे स्कूलमे मात्र एगारहेटा। ताहि सभमे यैह दुनू बहिन सभसं सुन्नरि। दुनू बहिनमे फूलमणिक केश बेसी सीटल आ आंखि बेस आकर्षक।

नवलक मोन भेलनि जे एक बेर फेर फोटो देखथि। बाजलाह, "कने फेर देखो ने।"

"से देख। निहारि ले। मुदा..."

"ठट्ठा नहि कर जीबछा।" नवल बाजलाह, "देख' चाहै छी जे कतेक बदलल अछि?"

"एतेक बदलि गेल जे तों चिन्हि नहि सकलही। तोहूँ आ हमहूँ ओतबे बदललहुं जे ओ चिन्हि नहि सकत।"

नवल फोटोमे ओकर आंखिए निहारि रहल छलाह। मोन पड़लनि। फूलमणि नाम बी एस्सी मास्सैबकें नीक नहि लगनि। क्लास-टीचर वैह छलाह। हाजरीक बेर नाम पुकारबाक क्रममे एकबेर कहने रहथिन-एहनो कतहु नाम भेलैए? फूलमणि। फूल आ मणि। फूल वा मणि। कोनो एकेटा रहितैक तं।

से तकर बाद हाजरी बेरमे जखने ओकर नामक बेर अबैक, तं क्लास शांत। ओ जे " उपस्थित श्रीमान्'कहैक, से सुनबा लेल पूरा वर्ग साकांक्ष। बी एस्सी मास्सैब सेहो कहियो ओकर पूरा नाम नहि बाजथि। जहाँ हुनका मुंहसं फूल बहराइक कि ओ बाजि उठए-उपस्थित श्रीमान्। तकर बाद जेना ओकर नामे' फूल 'भ' गेलैक।

फोटो पर एकाग्र नवलक तन्द्रा तोड़लनि जीबछ, "कत' हेरा गेलें? दिल्लीमे रहैए फूल। बेटा-पुतौहुक संग। दुनू नोकरी करैत छै। एकटा पोती छै, तकरे डेबैए."

"आ पति?"

"बियाहक तीनिए बर्खक बाद विधवा भ' गेलि। यैह एकटा बेटा भेलैक। तकर बाद अनुकम्पा बला नोकरी कएलकि। रिटायर्ड अछि।"

"तोरा एतेक बात कोना बूझल छौ?"

"चैटिंगसं। देखबें? की सभ बतिआइत छी?" जीबछ बाजलाह, "ला, मोबाइल दे आ स्क्रीन देखैत रह।"

"हम ओ संवाद देखि क' की करब? तोरा पर विश्वास अछि जे तों फूसि नहि बजबें।"

जीबछ मैसेज बॉक्स खोलि फूलकें वेभ कएलनि। ओम्हरोसं हाथ हिललैक। संवाद शुरुह भ' गेलैक।

"आइ हमरा लग अपना सभक एकटा आर मित्र बैसल अछि।"

"के?"

"जकरासं हमरा उठा-पटक चलए. अपने क्लासक। काल्हि बीस बरखक बाद एत'भेंट भेल। एकरो बेटा-पुतौहु एतहि नोकरीमे छै। पोता छेटगर छै। बोकबा गामेमे रह' चाहै छल। बेटा पुतौहु उठा क'आनि लेलकै एत'। ई भेंट भेल तं लगैए जे औरदा बढ़ि गेलए हमर।"

जीवछक ई वाक्य पढ़ि भावुक भ' गेलाह नवल।

"के छथि? कहू ने, के छथि? नाम सुन' लेल हमरो मोन अगुताइए."

"अन्दाज करू।"

"किछु हिन्ट।"

"जेकरासं अहाँ रेखागणित आ ..."

जीबछ बीजगणित लिखियो ने सकल छलाह कि ओम्हरसं टाइप भ' गेलै-

"नवल जी?"

"जी."

"अहांकें कोना भेटला?"

"से तं कहिए देलहुं।"

"बड़ नीक समाद। फेसबुक पर एतेक दिनक अपना सभक गपसपक ई महत्त्वपूर्ण सूचना।"

"वाह! नवलक बात एतेक..."

"नवलजी एफ. बी. पर छथि?"

"से बादमे कहब।"

"अहांक लगमे छथि?"

"हं।"

"हम विडियो काल करी?"

"वाह! हमरासं एतेक दिनसं फेसबुक पर जुटलहुं, से कहियो विडियो काल करबे ने कएलहुं आ नवलाके देख' लेल एतेक उताहुल।"

"जरू नहि। दुनू दोसकें देख लेब। आ, अहूँ सब देखब हमरा।"

"विडियो काल आब आन दिन। एखनि पार्कमे छी। राउण्डके समय भ' गेलए."

दुनू ओ के, ओ के लिखि क' गप पूरा केलक।

जीबछ बजलाह, "की कहितियैक तोहर फेसबुक एकाउन्टक बारेमे? यैह ने जे नवल मोबाइल नहि रखैए."

"कहि दही। की हेतै तं?"

"हेतै की? फेर बंगलिया गाढ़ि पढ़तौ-बोका।" जीबछ बजलाह, "पहिने कहि नहि सकैत छलौक, तें नहि कहलकौ। दोसर बात ई जे लछमी बाबू हेड मास्सैबके डर होइ. आब कौन लछमी बाबू आ कौन बी एस्सी मास्सैब? आब तं तों दुनू गोटे सीनियर सिटीजन।"

नवल कनेकाल चुप रहलाह। फेर कब्जामे बान्हल घड़ी पर नजरि पड़लनि। घुरबाक बेर भ' गेल रहनि। दुनू दोस पार्कसं बहरएलाह आ दू दिस भेलाह।

नवल डेरा अएलाह। बेटा-पुतौहु अएलनि। आने दिन जकां सायंकालीन चर्या भेलैक आ यंत्रवत् सभ अपन-अपन कोठरीमे गेल। नवल गीता प्रेसक एकटा पोथी उनटा लेलनि। की करितथि एसगरे। जीबछसं भेंट भेलाक बाद थोड़ेक समय नीज जकां बीति जानि, मुदा तकर बाद फेर एसगर। बिचला पृष्ठमे आंगुर राखि पोथी हाथमे रखने सोचैत रहलाह नवल। डेढ़-दू घंटाक बाद बेटा-पुतौहु आ पोता घरसं बहराएत। तखन रातुक भोजनक तैयारी आ गपसप होएतैक। ताधरि की करताह नवल? पहिने तं पोथी पढ़ि समय काटि लैथि, मुदा आइ किछु पढ़बाक मोन नहि होनि।

सोचथि, जीबछ पटकि तं ने देलकनि?

नहि, आब किएक पटकतनि जीबछ?

तखन आइ पढ़बामे मोन ने किएक लागि रहल छनि?

हुनका फूल मोन पड़लनि। स्कूल परिसरमे कहियो ने टोकलकनि। बाटमे दू-चारि दिन कहने रहनि जे रेखागणितक किछु साध्य ओकरा बुझबामे नहि अबैत छैक। ओ मदति क'दैनि। नवल असमंजसमे होथि, तं फूलक जेठकी बहिन कहनि जे स्कूलसं घुरैत काल ओकरा डेरा पर बिलमैत बतौने चलि जाथि। मुदा, नवलकें डर भेल रहनि। स्कूलसं घुरबाकाल जं अबेर होयतनि, तं मायकें की जवाब देताह? नवल फूलक कोनो मदति नहि क' सकलाह।

फूल एकदिन कहने रहनि जे ओ अपन नोट्स ओकरा एको-दू दिन लेल दैथि, मुदा ओ पड़तारैत रहलाह। बस, एतबे तं गप भेल रहैक फूलक संग। एकर माने की? आ ई बात ओ जीबछकें कहने छलाह।

नवल जिनगीक एहि उत्तरार्द्ध में गणित क' रहल छलाह जे ओ फूलक संग उचित व्यवहार कयने रहथि वा अनुचित।

ओ उठलाह आ पोताक कोठरीमे हुलकी देलनि। पोता पढ़ि रहल छल। ओ देखलनि जे ओकर मोबाइल कातमे राखल छलैक।

ओ घुरि अएलाह।

अगिला दिन अजबे बात भ' गेलैक। पार्कमे जखने दुनू दोस बैसलाह कि जीबछक मोबाइलक एस एम एसक टोन बजलैक। नवलकें बेजाय नहि लगलनि।

जीबछ कहलखिन, "नवला! एकटा काज तोरासं बिनु पुछनहि क' देलियौ हम।"

"की?"

"फेसबुक पर तोहर आइ डी बना देलियौ।"

नवल एहिबेर बमकलाह नहि। चुप भ' गेलाह। जीबछ बजलाह, "राति खन सोचलहुं जे काल्हि जं फूल तोहर एफ बी आइ डी मंगतीह, तं की कहबनि? तोहर सन तं नहि छी जे पड़तारति रहबनि। आ जं कहबनि जे तोहर आइ डी नहि छौक, तं तोरा बारेमे की सोचतीह। यैह ने जे नवल" बोकबे"रहि गेल। आ फूलक ई सोचब हमरा नीक नहि लागत दोस।"

नवल गभीर रहथि। नहुएंसं पुछलनि, "एखनि फूलकें नहि ने देलहीए."

"अहंsss"

जीबछ बजलाह, "दैत छियै।"

"एखनि नहि।" नवल बजलाह, "मुदा हम फेसबुक कोना खोलब?"

"हमरे सेटमे खोलि लिहें।"

नवल चुप रहलाह। जीबछक मोबाइल सेटमे अपन आइ डी खोलब हुनका अरघैत नहि छलनि।

"की सोच' लगलें?" जीबछ बजलाह, "तोहर आइ डी बता दैत छियै। तोरा फ्रेंड रिक्वेस्ट पठौतहु।"

कने काल दुनू चुप।

जीबछ गपक क्रम बढ़ौलनि, "ओना हमरा विचारे तोरे फ्रेंड रिक्वेस्ट पठएबाक चाही।"

नवल बजलाह, "मुदा, तोरा एतेक हड़बड़ी कथीक छौक? छोड़! काल्हि देखल जेतै।"

"धु: बूड़ि।" जीबछ बजलाह, "असगरे जे टौआ-टापर करैत रहै छें, से गपसप हेतौ तं मोन लगतौ...समय बिततौ। हम तं प्रतिदिन चैट करै छी फूल सं। एतबे नहि, स्कूल समयक आर-आर दोस-महिम भेटतौ। एकटा भेटतौ, तं ओकरा संग आरो भेटैत रहतौ। एत' एकटा समाज बनि जेतौ। तों धार्मिक किताब सब पढ़ैत रहै छें। नीक-नीक बात ओहि पर लिखबें, तं तकर फैदा हेतै लोकसभकें।"

नवलकें नीक नहि लगलनि मने, "बेसी प्रवचन नहि दे। ज्ञान नहि बघार।" कने थम्हैत फेर बजलाह, "कोन एहन गप रहै छौ जे प्रतिदिन कर' पड़ै छौ? फूलकें आर कोनो काज नहि रहैत छैक?"

"गप की रहत रे। घर-परिवार, बाल-बच्चा, पोता-पोती, सर-समाज आ देश-दुनियाक गप।" जीबछ बजलाह, "फूलक कहब छैक जे प्रतिदिन गप करू। तें मैसेंजर पर चैट करैत रहैत छी।"

"ओना फोन पर वा विडियो चैट भेलौए कि नहि?"

"अहंsss"

"किएक?"

"हमरा तेहन चैट कर'मे लाज होइए. ओ कहियो ने कहलनि अछि आ ने विडियो चैटक इच्छा व्यक्त कएलनि अछि। अपन फोनो नम्मर नहि देलनि अछि। हमरा नम्मर मांगबाक साधंस सेहो ने भेल अछि। सुनै छियै जे फेसबुक सं फोन नम्मर भेटि सकैए, मुदा से हमरा ताक' नहि अबैए. बेटासं कोना पूछी? जं वैह किछ पूछि देलक, तं?" जीवछ बजलाह, "हम एतेक दिनमे हुनका लाइव नहि देखि सकलहुं अछि। तोरे नाम सुनि क'विडियो काल कर' बाजल रहथि।"

नवल चुप। सोचलनि-हुनक पोता अबस्से बता सकैत अछि जे फेसबुक सं मोबाइल नम्मर ताकल जाइत अछि। मुदा, ओहो कोना पुछताह? हुनक पोता पकठोस छनि। जं उन्टे किछु पूछि देलकनि, तं? दोसर बात ई जे ओ मोबाइलक प्रयोग लेल पोताकें कतोक बेर मना क' चुकल छथि।

जीबछ बजलाह, "खोलै छियौ तोहर एफ बी एकाउन्ट। पठबही रिक्वेस्ट।"

जीबछ नवलकें आइ डी आ पासवर्ड बतौलनि। अपन मोबाइल सेट पर खोलि क' देखौलनि।

नवल मना कएलनि, "आइ रिक्वेस्ट नहि पठबही।"

"किएक?"

"ओहिना। काल्हि देखल जेतै।"

"ठीके, एखनो धरि तोहर 'रणछोड़ प्रवृत्ति' नहि छुटलौए."

एम्हर दू दिनसं नवल भारी मोनें डेरा घुमैत छलाह। पार्क में जीबछसं भेंट नहि भ' रहल छलनि। दू दिनसं फूलक कोनो समाचार नहि सुनि सकल रहथि।

सांझ खनक दैनिक दिनचर्याक अनुसार हाथमे गीता प्रेसक पोथी लेने बैसल छलाह कि तखनहि अखबार पर नजरि पड़लनि। ओ पोथी छोड़ि अखबार उठौलनि आ अखबारक पहिल पृष्ठ पर एकटा मोबाइल कम्पनीक पूरा पृष्ठक विग्यापनकें निहार' लगलाह। विभिन्न मोडलक मोबाइल सेटक फोटो देखैत रहलाह। ओ मोबाइल सेट सभ आकर्षित करैत छलनि।

एक मोन कहनि जे बेटा-पुतौहु कें कहि एकटा मोबाइल कीनि लैथि, मुदा तखनहि दोसर मोन कहनि, " मना क' चुकल छथि, कौन मुहें मंगताह?

ओ उठि क' पोताक कोठरीमे गेलाह। ओ पढ़ि रहल छल। मोबाइल कातमे राखल छलैक। ओ पोतासं मोबाइल मांगलनि। पोता प्रश्न-दृष्टिएँ तकैत मोबाइल देलकनि।

"जीबछ बाबासं गप करबाक अछि।" नवल बजलाह, "मुदा, मोबाइल लाक किएक छह?"

"प्राइवेसी के कारण।" पोता बाजल, "नम्बर बताइए, काल लगा देते हैं।"

जा, ई की? जीबछक नम्मर हुनका मोन नहि छनि। नम्मर तं बेटाक मोबाइल में सेभ छनि।

"छोड़ि दहक। नम्मर मोन नहि अछि। बादमे बात करब।"

मुदा, पोता जे मोबाइलक 'प्राइवेसी' बला बात कहलकनि, से राति भरि मथैत रहलनि।

प्रात भेने जीबछक घर पर गेलाह। एकटा नवयौवना केबाड़ खोलि क'प्रश्न-दृष्टिएँ तकलकनि। हुनक परिचय सुनि ओ भीतर गेलि आ घुरि क' आबि हुनका अपना संग जीबछक कोठरीमे ल' गेलि। जीबछ दुखित छलाह। ओछाओन धएने। हुनका मुंहसं बहरा गेलनि, "दू दिनसं बोखार छौ आ फोन नहि कएलें?"

"तों फोन रखने छें जे..."

"हमर बेटा-पुतौहुक नम्मर तं छलौक ने।" नवल बजलाह, बेटा-पुतौहु सभ कत' गेलौ? "

"टूरमे गेल अछि-बेटाक आफिसियल टूर छलैक। पुतौहुकें छुट्टीक जोगार लागि गेलैक। चल गेल सभ गोटें। काजबाली खेनाइ बना दैए."

तखनहि ओ नवयौवना आयलि आ बाजलि, "दादाजी! हम सबकुछ बना दिया है। खाना फ्रिजमे है। गर्म पानी टेबल पर। आज शाममे हम नहीं आएगा, कल मार्निंग में आएगा।"

काजबाली चलि गेलि।

नवल पुछलक, "दवाइ?"

"ल' रहल छी।" जीबछ बजलाह, "काजबालीसं मंगौलहुं अछि।"

"तोहूँ हद करैत छें जीबछा। मोबाइल कएल नहि भेलौ तोरा? ला, मोबाइल दे। हम अपन बौआके फोन करै छियै जे आबि क' तोरा डाक्टर सं देखा अनतौक।"

"नहि, सिजनल छैक, ठीक भ' जेतैक। किछु आपातकालीन दवाइ घरोमे छलैक। अनमोल सभ परसू गेल। ओकरा सभकें गेलाक बाद मोन खराप भेल।"

"बेस, कने मोबाइल दे।"

जीबछ मोबाइल दैत बजलाह, "मुदा नेटपैक एखने समाप्त भ' गेलैए. नहि खुजतौ फेसबुक।"

नवल अपन बेटाकें फोन कएलनि आ ओहि फोनमे नेटपैक लेल कहलनि।

कनिए कालमे मोबाइलक मैसेज टोन बजलैक।

"अपन फेसबुक खोल आ फ्रेंड रिक्वेस्ट पठबही फूलकें।"

"पठएबै ने। एखने कौन हड़बड़ी छैक।"

"धु: बोकबा।" कहैत जीबछ मोबाइल अपना हाथमे लेलनि, नवलक फेसबुक खोललनि आ फूलकें फ्रंड रिक्वेस्ट पठौलनि। बजलाह, "हे ले पठा देलियै। तोरा दिससं रिक्वेस्ट देखलाक बाद ओ कतेक प्रसन्न हेतीह, से अन्दाज छौ तोरा?"

ओहि दिन सांझ खन नवल जल्दीए पार्कसं घुरि अएलाह। पुतौहु कहलकनि जे ओ सभ हैदराबाद जएबाक योजना बनौलक अछि। हुनको जएबाक छनि। मानसिक रूपें तैयार भ' जाथि। मुदा, ई प्रस्ताव हुनका नीक नहि लगलनि।

ओ मना कएलनि। ओ नहि जएताह। एत्तहि रहताह।

हुनक मोन कहलकनि-ई एकटा नीक अवसर छनि मोबाइल कीनबाक। उचित बहन्ना। नहि जएताह, तं एक सप्ताहक हाल-सूरति लेल मोबाइल चाहियनि। ओना मोबाइल हुनका चाहबे करियनि, मुदा एकबेर बेटा-पुतौहुक एहि सम्बन्धी प्रस्तावके अस्वीकार कएलाक बाद फेरसं कहब कोनादन लागि रहल छलनि। मुदा, जं ओ हैदराबाद नहि जाथि, तं मोबाइल कीनबाक बात सहज भ' जेतनि।

तें ओ अड़ि गेलाह जे हैदराबाद नहि जएताह। बेटाकें बुझौलनि जे हुनका कोनो असुविधा नहि होएतनि। काजबाली भोजन बना देतनि। शेष समय जीबछ संगे नीक जकां बीति जएतनि। मुदा...

"मुदा..."

"की?" बेटा पुछलकनि।

"सोचैत छी जे तों सभ एक सप्ताह नहि रहबह। एहि बीच गपसप करबाक होएत, तं कोना करब? लैंड लाइन तं छैके नहि, तें गप करबा लेल एकटा मोबाइल कीनि ली।"

बेटा प्रसन्न होइत कहलकनि, "आनि दैत छी। पहिने अपने मना कएने रही।"

"से, साधारणे कीनिहह। मात्र गप कर' लेल।"

बेटा किछु नहि बाजल।

अगिला दिनक सांध्य-बैसारमे पुतौहु एकटा मोबाइल देलकनि नवलकें। ओ देखिते बजलाह, "ई तं महग होएत।"

पुतौहु कहलकनि, "तं हम सभ कमाइ छी किएक? महग-सस्त नहि सोचथुन्ह। सभ अद्यतन सुविधा एहिमे उपलब्ध छैक। सिम आ नेटपैक सभ ल' लेलियनि अछि।"

तखनहि पोता हाथसं मोबाइल छीनि लेलकनि, "आपसे चलेगा? चलिए हम सिखा देते हैं। आजतक आप हमको मैथिली नहीं सिखा सके, आज मैं आपको मोबाइल का सारा एप्लिकेशन सिखा देता हूँ।"

पोता अपन कोठरीमे चल गेल। नवल सेहो पाछां-पाछां गेलाह आ पोताकें कहलनि, "बाउ रे! ओ प्राइवेसी बला सिस्टम सेहो ध' दियहक।"

नवल गणित कएलनि। काल्हि भोरे बेटा-पुतौहु-पोताकें हैदराबाद लेल बिदा भेलाक तुरन्त बाद जीबछ लग जएताह आ फूलकें विडियो काल करताह।

मुदा तखनहि पोता कहलकनि, "बाबा! अब आपको मोबाइल हो गया, तो इसी पर नहीं रहिएगा। हमको मना करते थे, यह याद रखिएगा।"

नवल मुस्किआइत रहलाह।