लाइफ टाइम / अंजू खरबंदा

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर का काम निबटा मेधा जैसे ही लेटी नन्ही काम्या कुनमुना कर रोने लगी । मेधा की आँखें पूरी तरह नींद से बोझिल थी, खिड़की से झाँकते तारे भी आकाश में आँखें झपका रहे थे । उसने जल्दी से उसे फीड कराया ताकि पेट भरते ही वह सो जाए और मेधा भी चैन से सो सके ।

डिलीवरी के बाद ऑफिस से तीन महीने की मैटरनिटी लीव मिली थी, जो पलक झपकते ही बीत गई । पिछ्ले सप्ताह ही दुबारा ज्वॉइन किया । दिन में तो सासू माँ काम्या को सँभाल लेती, पर रात को कई बार काम्या ठीक से सोने न देती, जिस वजह से मेधा की नींद ही पूरी न हो पाती, शायद इसीलिए वह चिड़चिड़ी सी भी रहने लगी थी ।

काम्या के लगातर रोने से राघव की नींद भी खुल गई।

"क्या हुआ?"

"पता नहीं आज काम्या को क्या हुआ है, बहुत देर से रो रही है! कुछ समझ नहीं आता क्या करुँ?"

"माँ को उठाऊँ?"

"नहीं नहीं बिलकुल भी नहीं! वह वैसे भी पूरा दिन काम्या को सँभालती है, उनकी नींद मत खराब करो।" लम्बी जम्हाई लेते हुए मेधा ने उनींदे -से स्वर में कहा।

"अच्छा तुम लेट जाओ, काम्या को मैं सँभालता हूँ!"

"पर... सुबह तुम्हारा ऑफिस... !"

"ऑफिस तो तुम्हें भी जाना है! देख रहा हूँ आजकल तुम्हारी नींद भी ठीक से पूरी नहीं हो रही।"

"हाँ वो तो है पर ... !"

"पर-वर कुछ नहीं! चुपचाप सो जाओ ! काम्या हम दोनों की बेटी है तो इक्वीनोक्स की तरह हमारी ड्यूटी भी तो बराबर हुई न!"

"इक्वीनोक्स तो साल में सिर्फ दो दिन ही होता है न !" मेधा ने मासूमियत से कहा, तो राघव ने मुस्कुराते हुए रोमांटिक अंदाज में मेधा की आँखों में देखा, उसके चेहरे पर बिखर आई उलझी लट को पीछे किया और उसका माथा चूमते हुए कहा - हाँ मेरी जान, पर हमारा इक्वीनोक्स... लाइफ टाइम का है ।"