लाल स्कार्फ वाली लड़की / अनुलता राज नायर

Gadya Kosh से
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वो देखता रहता उस पनीली आँखों वाली लडकी को,रेत के घरौंदे बनाते और बिगाड़ते.....उसे मोहब्बत हो चली थी थी इस अनजान,अजीब सी लडकी से...जो अक्सर लाल स्कार्फ बांधे रहती.....कभी कभी काला भी...

बरसों से समंदर किनारे रहते रहते इस मछुआरे को पहले कभी न इश्क हुआ था न कभी ऐसी कोई लडकी दिखी थी.जाने कहाँ से आयी थी वो लडकी इस वीरान से टापू में....देखने में भली लगती थी मगर कुछ विक्षिप्त सी,खुद से बेपरवाह सी...(जाने लहरें उसे बहा कर लाई हैं या किसी मछली के पेट से निकली राजकुमारी है वो...मछुआरा अपनी सोच के साथ बहा चला जाता था..)

लडकी को देखते रहना हर शाम का नियम था उसका.वो बिना कुछ कहे लड़की को समझने की नाकाम कोशिश करता था.

एक रोज़ वो लडकी के करीब पहुंचा....लडकी भी उसकी उपस्थिति से अभ्यस्त हो चुकी थी सो उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की....बस अपना घरौंदा बनाती रही.....तोड़ देने के लिए...

तुम इतने सुन्दर घरौंदे क्यूँ बनाती हो ???और फिर उन्हें यूँ रेत में मिला देती हो??

कोई मिटाने के लिए भी बनाता है भला?? और ये लाल काला स्कार्फ क्यूँ बदलती हो??? एक साथ सारे सवाल दाग दिए उसने,मानों कहीं एक सवाल के बाद लडकी कोई रोक न लगा दे उसके बोलने पर.

बिना अपना चेहरा उठाये वो लड़की बोली ,जब मैं घरौंदे बनाती हूँ तब प्रेम में होती हूँ और तब ये लाल स्कार्फ पहन लेती हूँ,घर के बनते ही मैं नफरत हो जाती हूँ और काला स्कार्फ पहन लेती हूँ और फिर मुझे घरौंदा तोडना अच्छा लगता है.

उसकी आवाज़ जैसे किसी शंख के भीतर से निकली ध्वनि हो....

खुद को सम्मोहित होने से रोकते हुए लड़के ने कहा-

तो तुम्हारे भीतर दो व्यक्तित्व हैं...एक भला एक बुरा !! आखिर कैसे जी लेती हो ये दोहरा जीवन?

लड़की ने पहली दफा पलकें ऊपर उठायी......सागर की गहराई मानों कम पड़ गयी उसकी आखों के आगे...और चेहरे की लुनाई मानों कोई तराशा हुआ सीप....

सच कहा तुमने मछुआरे....थक गयी हूँ ये दोहरा जीवन जीते जीते....कहो क्या तुम जियोगे मेरा एक जीवन???

लड़के की हाँ और न को सुने बिना ही उसने काला स्कार्फ लड़के की गर्दन में लपेट दिया और कहा अब इस घरोंदे को तुम तोड़ो.....मेरे भीतर की बुरे को तुम जियो.....

भीगी आँखों से लड़के ने घरौंदा तोड़ दिया और लड़की के गालों पर भी लुढ़क आये आँसू......

इसके पहले कभी एक सीप में दो मोती उसने न सुने न देखे थे .

अब तो ये नियम बन गया...लडकी साहिल से दूर सुन्दर घरौंदा बनाती,लहरों से बचाती और फिर खुद लड़के से तोड़ डालने को कहती फिर जाने क्यूँ उन दोनों की आँखों से आँसू निकल आते...

लडकी के साथ एक सुन्दर सपनों का घर बनाने का ख्वाब देखने वाले लड़के के लिए ये एक यातना से कम न था,मगर बावली लडकी से इश्क की कीमत तो उसको चुकानी ही थी.

लड़का कहता तुम्हें घर तोडना ही है तो साहिल के नज़दीक क्यूँ नहीं बनाती,लहरें खुद-ब-खुद बहा ले जायेंगी,मगर लडकी कहाँ सुनती,कहती तुम तो हो तोड़ने के लिए,सागर की लहर ही तो हो न तुम......और उसका ये अनोखा क्रूर खेल चलता रहता.

लड़का थक गया उसे मनाते,समझाते......मगर वो नहीं मानी...लड़के ने खुद ही सोच लिया कि शायद किसी पहले प्यार की नाकामी ने ही उसको पागल बना दिया होगा,और अब उसके दिल में प्यार के लिए कोई गुंजाइश न थी....हाँ,मगर वो हर शाम सागर किनारे इंतज़ार करती मछुआरे का और उसकी कश्ती किनारे लगते ही वो घरौंदा बनाने जुट जाती.

उस शाम सूरज ढल गया,मछुआरा नहीं लौटा.लड़की साहिल पर इंतज़ार करती रही और तारे निकल आये मगर कोई कश्ती किनारे नहीं लगी.

उस रोज़ समंदर लील गया था लड़के को...कौन जाने लहरों ने उसे डुबोया या उसने खुद जल समाधी ली !!

लड़की तो पहले ही बावली थी....

वो अब भी घरौंदे बनाती थी साहिल से दूर.......मगर घरौंदा बनते ही एक लहर जाने कहाँ से अपने तटबंध तोड़ती वहां तक आती और साथ ले जाती घरौंदा,और लड़की के दो बूँद आँसू भी.

लोग कहते हैं इसके पहले न समंदर इतना खारा था न ही सीप के भीतर मोती निकला करते थे.