लाश कहाँ? / रामचंद्र बेहेरा / दिनेश कुमार माली

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रामचंद्र बेहेरा (1945)

जन्म-स्थान :- बारकाटीपुर, केंदुझर

प्रकाशित गल्प-ग्रंथ :- ‘द्वितीय श्मशान(1976)’, ‘अचिन्हा पृथिवी (1978)’, ‘अवशिष्ट आयुष(1982)’,’ओंकार ध्वनि(1987)’, ‘बंचि रहिबा (1990)’, ‘भग्नांश स्वरूप (1993)’,’ महाकाव्यर मुंह(1997)’, ‘फंटा कांथर गछ(2000)’,’अस्थायी ठिकाना(2002)’,’गोपपुर(2003)’।


घर से लगभग बीस फुट दूर है ईंटों पर सीमेंट का पलस्तर किए दो पिलर। दोनो पिलर के चार फुट के घेरे में लगे हुए हैं एक पल्ले के जाली के किवाड। अलकतरा से पोते हुए लकड़ी के किवाड़ों को कहा जाता है गेट। इसके भीतर लगी हुई एक सांकल। जहां ताला लगाया जाता है रात को। गेट से घर के बरामदे तक का रास्ता ईंटों से बना है।

गांव से दस किलोमीटर दूर स्थित पशु चिकित्सालय से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में सेवानिवृत हुआ था विमल। यह तीन साल पहले की कहानी है।गांव में थी उसकी तीन-चार एकड़ खेती की जमीन। तीन कमरे एक विशेष प्रकार की एस्बेस्टास की सीटों से ढ़के हुए। चारो तरफ लगभग पांच फुट उँचाई तक घेरा दीवार नहीं हुई थी। इस प्रशस्त परिसर के अंदर है आम, कटहल, केले और सजना के पेड़। बीच में है गाय बांधने की जगह।

आराम से विमल का समय कट रहा था। जिस प्रकार से सूर्योदय और सूर्यास्त का होना स्वाभाविक तरीके से ठीक उसी प्रकार से गर्मी-वर्षा-सर्दी के दिन आते-जाते थे उसके लिए। पेंशन पाने के दिन के अलावा कभी समय या कलैण्डर देखने की जरूरत नहीं पड़ती थी उसको। खेती की जमीन का भाग किसान के हवाले में था। और कितने सालों के बाद खेती का काम होगा अथवा नहीं, उसके लिए एक दूसरा प्रसंग था। कौन हल जोतने कंधों पर बोझ उठाएगा, हल जोतने के पक्ष में नहीं था। साइकिल के कैरियर में धान बांधकर ले जाने की बात भी उसने नहीं सुनी थी। इसी साल उसने यह पहली बार देखा और लंबी-लंबी सांसे छोड़ने लगा। सस्ते में आसानी से पचीस किलो चावल मिल गए थे। धूप और कीचड़ में काम किए हुए इतिहास बीत गया था।

आम दिनों की तरह विमल को साइकिल बाहर करने या पेंट-कमीज पहनने की जरूरत नहीं थी। थोड़ी सी दूरी पर थी परचूनी सामान की दुकान। दिन में दो-तीन पैसेन्जर बस उस रास्ते से गुजरती थी। दुपहिया गाड़ी और साइकिल तो आजकल हर किसी रास्ते में नजर आती थी। कभी किसी पर मनन करता था, अन्यथा अधिकांश समय वह अन्यमनस्क रहता था। ये सारी बातें उसकी जीवनचर्या और निरर्थकता का परिचायक थी। बहुत कम बात करता था वह और किसी के भी साथ आवेग से कभी भी पेश नहीं आता था, गांव में बहुत सारे लोगों के बीच वह एकाकी था।

पेंशन भोगी और घर के चारो तरफ इलाकों को लेकर अनायास स्वाभाविक और सरल जीवन बिताने वाले विमल ने सोचा तक नहीं था कि यह सब खत्म हो जायगा, असंतुलित हो जाएगा। वह समझ नहीं पा रहा था कि एक बंदूक उसे लक्ष्य बनाएगी। केवल ट्रिगर दबाने से उसका काम तमाम या उसे पकडना होगा एक धारीदार छुरा। जिस छुरे से किसी वक्त भी गले को रेत किया जा सकता है।

यहां सब असुरक्षित है। यह धारणा कुछ वर्ष पहले ही बलवती हो गई थी। लाल स्याही से लिखा हुआ पोस्टर और उसी रंग के झंडे अपने आपको जाहिर करने के बाद। बंदूक और बम से हत्या और जंगल, पहाड़ी रास्ते ध्वस्त। ये सारी चीजें जीवन को नियंत्रित कर रही थी। तब यह वीभत्स नारकीयता इस गांव और आस-पास के गांवों तक नहीं पहुंची थी।

वहां भी ऐसी घटना घटी शायद उसी कारण से उसके अंदर धरती और जीवन के प्रति एक तीव्र आक्रोश और व्याकुलता जन्म ले चुकी थी। सारी कोमलता और मधुरता की गर्दन अब यांत्रिक करुणाहीन हिंसक हाथों में आ गई थी।

घटना का विवरण निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है - भोर-भोर उठने के अभ्यस्त विमल के गेट का ताला खोलकर रास्ते में घूमते समय गांव सो रहा था। वह तब भी एक घंटे के लिए घूमता था। उसका पहला कदम रूक गया। गेट पिलर पर लगा हुआ था लाल स्याही से लिखे हुए कागज का एक टुकड़ा। उस क्षण उसे लगा, उसके भीतर एक ज्वार भाटा उमड़ आया हो। हृदय की धडकन रुक-सी गई देखते-देखते खतरनाक रेगिस्तान की तरह उसका मुंह सूख गया। इस प्रकार का कागज पहले भी एक भूखंड हथियाने के लिए लगा था, यह बात सब जानते हैं। उसकी लिखी हुई बात माननी ही पड़ती है। उसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।

तुम कुत्ते को जिंदा मौत के घाट उतार दो।

पिलर से आसानी से उडकर आए हुए इस कागज में लिखा था एक आदेश। उस कागज को पकडने के समय उसके हाथ कांप रहे थे। उसका कारण, वह और कोई मामूली कागज का टुकड़ा नहीं था। परिणित हो गया था दो वर्ष के सफेद एवं मुलायम बहुत प्यारे पपी में। उसके ऊपर खून की रेखा और खून का रंग लाल। यह हुकुम पढ़ने के बाद विमल के दोनो अथर्व हाथ झूलने लगे उन दोनों के पास में। ये केवल हाथ नहीं थे, उसका पूरा शरीर किसी काम के लिए पूरी तरह अक्षम हो गया। उसके जागने से पहले वही पपी उस जगह को भौकंकर प्रकंपित कर देता था। बरामदे में बंधा पपी बाहर निकल गया था उस गेट के पास और स्थिर खड़ा हो गया अस्थिर विमल के लिए। वह प्रातः भ्रमण से लौटकर पपी को फिर अपने साथ ले जाता था। पपी के शौच होने के समय बजे होते थे सुबह के आठ। विमल के भीतर पैदा हुआ आतंक और उद्वेग धीरे-धीरे कम हो गया था। अदृश्य हो रही धरती फिर लौट आयी थी कुंठित होकर उसकी दृष्टि के दिग्वलय में सब पहले की तरह था। पैदल चलने का रास्ता और दोनो तरफ घास। घास-फूस और टाइल छप्पर वाला घर। पेड़ और उगते दिन के पृष्ठ पर कार्यक्रम का नक्शा अंकित करने के लिए प्रस्तुत। किंतु उनके लिए महत्वपूर्ण चीज नहीं थी उसके बाद भी पपी को बचाकर रखने वाली प्रतिश्रुति।

प्रातः भ्रमण खत्म होने के बाद भी वह उस स्थान पर खडा था। वह आंखे मलकर साहस से ढुलकाया हाथ में पकडे हुए कागज को, तुम कुत्ते को जिंदा मारो। लाल स्याही के गंदे अक्षर। सिर्फ लिखा हुआ नहीं है, ट्रिगर दबाने से, बम तैयार करने से और लैंडमाइन खोदने में अभ्यस्त अंगुलियों से अच्छे अक्षर निकल कैसे सकते है? आदेश, एक अलंघनीय आदेश। पपी को मारना ही पडेगा। इस काम को जल्दी करना पडेगा।

सत्य पालन करने वाले राजा ने मारा था अपने पुत्र को। व्यंजन प्रस्तुत करने परोसा था अपने देवताओं को। पुत्र को बचाया था अवश्य देवताओं के आलौकिक बल से, मगर विमल को इस कहानी पर कभी भी विश्वास नहीं होता था। अत्यंत ही अमानवीय और निष्ठुर लगती थी वह कहानी उसको। इस परिस्थिति में देवताओं के नामोनिशान नहीं थे। खून पीने वाले और विनाश करने वाले पैशाचिक आनंद और संतोष पाने वाले आखिरकर मूर्ख और आदिमानव थे देवताओं की जगह। पपी मरने पर तो अंत ही हो जाएगा। फिर से वह जन्म लेकर लौट आएगा। जाली से जंजीर से बंधा हुआ होता। इस तरह आलौकिकता और दिव्य परीक्षा के लिए कहीं बीच में कोई और जगह नहीं थी। विकल हुए विमल ने अपने उदास चेहरे पर हाथ घुमाए।

विमल ने अद्र्धसचेतन अवस्था में गेट बंद किए। बरामदे के पास पहुंचते समय पपी खुश होकर पूंछ हिलाकर उनके चारों तरफ घूमने लगा। विमल कुत्ते के भोंकने की आवाज सुनकर खुश हो गया उसी जगह पर। वह अस्त-व्यस्त होकर समस्त सांकलों और जाली के दरवाजे को तोडने के लिए तैयार हो गया। इस अभूतपूर्व आचरण में कोई नूतनता नहीं थी एवं उसके लिए अनोखापन। क्षण भर के लिए विमल को लगा कि किसी भी जन्म में ऐसी संवर्धना उसने नहीं सुनी थी और न ही ऐसी निर्मल घनिष्ठता देखी भी थी। आशंका अथवा डर की बात नहीं है, पपी के प्रति प्रगाढ़ ममता से वह विचलित हो गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था पपी की हत्या के लिए हथियार तैयार किए जा रहे हैं या नहीं, उपाय खोजे जा रहे हैं या नहीं।

वह अपने भीतर से टूट चुका था। उसने इस बात को स्वीकार किया, जो सारे सांघातिक हथियार मौजूद हैं या चतुर मनुष्य द्वारा मारने के लिए बनाए गए हैं और जो सभी उपाय प्रचलित हैं, या होंगे हत्या के सौदागरों द्वारा, वे सारे प्रयोग और कहीं हो सकते हैं, पपी के लिए कभी भी नहीं। इसका मतलब हुआ, पपी को मारने के लिए हथियार या उपाय ही नहीं बल्कि भगवान और देवता भी मर चुके हैं और इस धरती पर शैतान जन्म ले चुका है।

तब ? तुम कुत्ते को जल्दी मारो - ऐसे कठोर हृदयहीन आदेश का वह पालन कैसे करेगा? आवेग और अंतरंगता से अस्थिर हो रहे पपी को उसने अपने सीने से लगा लिया - चुप हो जाओ। चुपचाप खडे रहो। तुम्हारा विभोर उच्छवास तुम्हें कहां ले आया, तुझे कैसे पता चलेगा? तुम्हें कैसे पता चलेगा जिसके लिए मैं निरुपाय होकर भीतर ही भीतर दुख से छटपटा रहा हूँ?

वह रूम के भीतर नहीं जाकर एक झंझावात के अंदर घुस गया। चौकी ऊपर नहीं बैठकर एक विकराल गर्जना करने लगे। चारो तरफ देखने से नजर आने लगी अनगिनत बंदूकें और चमकते छूरें। परिवार के सभी के लिए। मारो तुम कुत्ते को जिंदा, न होने पर इस घर में कोई जिंदा नहीं बचेगा।

“अरे, ये क्या? ” गीता आश्चर्यचकित होकर झाडू पकडकर पास आई सोच-विचार और उद्विग्ना में डूबे प्रतिमूर्ति के पास। अपनी सहानुभूति जताने लगी, “लग रहा है शरीर ठीक नहीं है। फिर बुखार आया है? ” पांच-छ दिन बुखार से पीडित होकर एक सप्ताह ही बीता था विमल को स्वस्थ हुए।

वह कुछ भी कहने की अवस्था में नहीं था। कागज के टुकडे को बढ़ा दिया पत्नी की तरफ। ऊँची आवाज में बातें करने में अभ्यस्त गीता उस चिट्ठी को पढ़कर विमल के चेहरे पर व्यापत डर को समझने लगी। जब वह उस पर लिखे आदेश का अर्थ समझी, गीता के दुबले पतले शरीर में खून का दौरा तेज हो गया। “कहां से मिला यह कागज? ” शायद सवाल इतना भारी था कि गीता फर्श पर ढेर होकर बैठ गई जिज्ञासावश।

विमल ने केवल अपने अक्षम हाथ गेट की तरफ बढ़ाए। इस बात को समझाने के लिए न तो मानसिक स्थिति ठीक थी और न शरीर में ताकत।

“तब क्या करोगे? ” गीता जान गई थी उसके निरर्थक प्रश्न को। पपी मारा जाएगा। कोई और विकल्प नहीं है।

विमल ने पत्नी की तरफ अपना मुंह घुमाया और सुनने लगा उसका जोर-जोर से रोना-धोना तथा लंबे-लंबे सांस। खुली खिडकी से उसने देखा कि पपी अब अपने शरीर को मोडकर गोल बना रहा था।

“क्यों पूछ रही हो? ” विमल के प्रश्न से वह विरक्त हो गई थी।

वह फिर से कहने लगा, “उसको नहीं मारने से वे राक्षस लोग हमें भी जिंदा नहीं रहने देंगे।”

सात बजे की प्रभात एक लाश की तरह लग रही थी। ठंडी और भयानक। सभी बरफ में बदल गई हो। इन दोनों के दिलोदिमाग।

“ए गंदे लोग सत्यानाश कर देंगे।” क्षोभ और आंसू भरा स्वर गीता का। खत्म नहीं हो रही थी उनकी कहानी, “आज थाना, कल कोई मोबाइल टावर, और किसी दिन स्कूल, पुलिस गाड़ी। घर के भीतर, रास्ते में लाशों के ढेर। बम और लेंडमाइन से गाडी और पुलिस को खत्म। क्या अच्छा लगता है उन्हें ये सब करने में। उन्हें और कुछ नहीं मिलता है? आखिर में हमारे पपी को भी? वे अपने आप मार देते। वे दायित्व छोड दिए हैं हमारे ऊपर। हाँ, हम कैसे मार सकेंगे दो वर्ष हो गए ऐसे लाड़ -प्यार के बढाए हुए पपी को? उसे हम क्यों मारेंगे? उसका अपराध क्या है? ”

एक सांस में इतनी बात कहने के बाद गीता दुखी हो गई। उसकी ढांढस भरी बातों से विमल को आश्चर्य नहीं हुआ। वह अच्छी तरह जानता है कि पपी को गीता कितना प्यार करती है। बांझ होने पर भी वह ऐसे हो जाएगी सोचकर विमल को विश्वास नहीं हो रहा था।

“कहां जा रहे हो? ” गीता के स्वर में भय और आशंका थी। वास्तव में जैसे पपी को मारने का दायित्व उसके ऊपर छोडकर विमल बाहर चले जा रहे हो, उस जगह पर जहां हत्याकांड घटने की संभावना नहीं हो, उस जगह जहां विधाता ने कुछ भी नहीं बनाया हो।

“पपी को ले जाऊँ बाहर? ” अंतिम कर्तव्य पालन करने की बाधकता थी विमल के स्वर में। फिर उसने कहा- “आठ बजे उसका टाइम है।”

पूरी तरह से निरुपाय और उदास हो गया था विमल। वह यह भी नहीं जान पाया था कि सुबह-सुबह पपी अपने नित्यकर्म से निवृत हुआ है या नहीं। दो वर्ष पहले एक कार्डबोर्ड के कार्टून में विमल ने उसे लाया था। असंतोष के स्वर में गीता बोली थी, “तुम्हें और कोई चीज नहीं मिली? आखिर में उसे जो पसंद किया? इससे तो बेहतर मुर्गे का बच्चा रहता। कब बडा होगा? ” गीता ऊपरी मन से जरूर कह रही थी, मगर पपी को देखकर उसका चेहरा चमक उठा था।

“शीघ्र ही बडा होगा।” विमल ने दृढ़ स्वर में कहा। और बीच में- तुम शांति रखो। “कुछ ही दिनों यह वडा हो जाएगा। उसकी मैं व्यवस्था कर दूंगा।”

पपी ! वह नाम अच्छा लगा था। उस दिन रात को नौ बजे गांव में गली के कुत्ते विव्रत होकर भोंकने लगे थे। उससे पपी बाध्य हो गया था एक मनोरंजनकारी दृश्य पैदा करने के लिए। विमल और गीता दुखी होकर बरामदे में आ गए थे। कहीं बाहर के कुत्ते पपी को हानि तो नहीं पहुंचा देंगे। पपी को वहां नहीं देखकर दोनो दुखी हुए थे – “कहां गया पपी? देखो जरा, इधर देखो, उधर की तरफ !” गीता पपी को कार्टून के अंदर खोजने लगी।

अपने आप को समेट कर दूसरे कुत्तों से अपनी रक्षा करने के लिए कार्टून में घुस गया था। कुछ दिन बाद, उसको चैन से बांधते समय वह डर रहा था। उसके बाद कुत्तों का भोंकना सुनकर वह गीता के हाथ से भाग जाता था। अपने आप को छुपाने के लिए खाट के नीचे किसी कोने में दुबक कर बैठ जाता था।

“यह डरपोक होगा।” गीता ने अनुमान लगाया जैसे कोई मां अपने बच्चे को दुष्ट कहकर प्रेम का इजहार करती है।

“इसका नाम !” हंसते-हंसते कहने लगा था विमल। पपी के प्रति अपना प्रेम दिखाते हुए कहने लगा, “डरपोक क्यों होगा? तुम इसकी ताकत के सामने मुकाबला नहीं कर पाओगी। तब उसके लिए क्या करोगी? इस ताकतवर के सामने खडा होकर अपने आप को बचाकर दिखाना? पपी क्या इस गांव के कुत्तों के साथ शामिल होगा? इसको देखते ही वे उस पर झपट पडेंगे। हमेशा ऐसा ही होता है। दुर्बल और अक्षम होने से हो गई बात। अपने अस्तित्व की रक्षा करना सहज नहीं है। पपी अपनी रक्षा का रास्ता खोज रहा है।”

दोनो विमल और गीता पूरी तरह से अन्यमनस्क हो गए थे। प्रतिदिन के ऊबाऊपन से मुक्त हो गए थे। विमल पपी के साथ लौटता था और बाद में गीता उसे शैम्पू लगाकर नहला देती थी। ये सब अपने आप घटता था, आपाततः दोनों की बिना जानकारी के पपी भोजन कर लेता था। उसके बाद और क्या?

“आप थोडा निहार बाबू को पूछ लेते।” गीता ने विमल को सलाह दी। यह समझाते हुए- “उन्होंने बीच में एक बड़ा कुत्ता पाला। उन्हें तो ऐसा कोई कागज नहीं मिला है? अगर मिला है तो इसके लिए क्या करने जा रहे हैं, हमें पता चल जाएगा तो ठीक रहेगा।”

“हो सकता है उन्हें भी ऐसा कोई निर्देश मिला होगा।” एक आशा की किरण वमल के मस्तिष्क में पैदा हुई। किसी और ने कहा, “मगर उन्होंने तो दुस्साहस दिखाया। अपने टाइगर को नहीं मारा। उसके बाद? तुम क्यों कहोगे कि निहार ने यदि इस तरह निर्देश पाया है अथवा पाने के बाद भी उसे नहीं मान रहे हैं, तब हम क्यों मानेंगे इस निर्देश को? ”

गीता कुछ नहीं कह पाई। विमल उसके पास आकर कहने लगा- “गांव में थे तीन-चार गली के कुत्ते। वे कहां देखने को मिलते हैं? ” जबाव पाकर वह वहां से चला गया। नहीं। यह कहने में गीता असमर्थ थी। इतना गंभीर था उसका शोक।

“जो घटना घटित होने जा रही है वह जैसे सामने दिख रही है” - जैसे गीता ने एक रहस्य खोला हो विमल के सामने। “दो दिन पहले दो कुत्ते स्कूल के पास मरे हुए पडे थे। इस घटना को जानने के लिए कोई उत्सुक नहीं था। गांव के पालतू कुत्ते मर कैसे गए, आज मुझे समझ में आ रहा है।”

“क्या इसी कारण से? ” गीता ने सूं सूं रोना बंद करते हुए पूछा।

“हमारे गांव के रास्ते से उनका आना जाना है। खासकर रात में।” इतना कहते हुए विमल फिर से पत्नी के पास आया। भय और करूणा को छिपाते हुए रहस्य का समाधान उसने इस प्रकार आसानी से किया -

“रात में उन लोगों की गतिविधियों को देखकर गांव के कुत्ते भौंकने लगते हैं। हमारा पपी और निहार बाबू का टाइगर भी इसलिए भौंकते हैं। कौन जानता है गांव के कितने कुत्तों को उन्होंने खत्म कर दिया है। जो कि ठीक नहीं है। उनका आना-जाना बिल्कुल ही कंटक रहित और अबाध होना जरुरी है। इसलिए पपी के ऊपर मृत्यु का परवान जारी किया है। मैं क्यों निहार बाबू को उनके टाइगर के बारे में पूछूंगा? जब तक वे टाइगर को ख़त्म करने का कोई ऊपाय नहीं ढूंढ लेते। हम यहां बैठे हैं मुंह उतार कर। इस लाल वाहिनी का कोई इलाज नहीं। सरकार भी घुटने टेक चुकी है। कहो, क्या करेंगे पपी के लिए।”

विमल का अनुमान गलत नहीं था। वहां से गीता चली गई। विमल अकेला। इधर गले में चैन से बंधा संतुष्ट पपी भोजन के लिए छटपटा रहा था। एक जघन्य आदेश के विरोध में किसी के मुंह में आवाज नहीं थी। निर्मल और स्वच्छ जीवन धारा, इतना ज्यादा खून खराबा और ध्वंस की परिपाटी अपनाने के लिए और ताकत नहीं थी।

क्रोध, प्रतिवाद और असहायता। इतनी तेज हो गई थी कि विमल स्थिर होकर बैठ नहीं सका। अस्थिर होकर रूम से बरामदे में, बरामदे से बाहरी रास्ते पर इधर-उधर पागलों की तरह घूमने लगा। जैसे उसे अपने हित और अहित का बिल्कुल भी ध्यान नहीं हो।

पपी को लेकर कहीं ओर जाने से कैसा रहेगा? मगर कहां? ऐसा सोचते ही उसे ख्याल आ गया कि सारी पृथ्वी उसके लिए अनजान है। पपी और नहीं चूकेगा। परिणित हो जाएगा एक नीरव, निष्क्रम और स्थिर जीव में। उसके लिए कोई उपाय है? बहुत ज्यादा निरुपाय हो गया था विमल। तब क्या किया जाएगा? हम? कैसे मारेंगे हमारी दुनिया का एक हिस्सा बने पपी को जिसको हमने खूब लाड़-प्यार दिया? असीम दुख और क्षोभ भर उठा था। विमल को लगने लगा, वह दुख से कहीं फट न जाए।

तुम कुत्ते को जिंदा मारो। इसके जीने की अवधि कितनी है? घंटा, दो घंटा, तीन-चार दिन, दो सप्ताह...। विमल इधर-उधर देखने लगा। घडी का कांटा जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था उसका उद्वेग और व्याकुलता उतनी ही बढ़ रही थी। कहीं उसे पता भी नहीं था, जल्दी का मतलब क्या?

सोच रहा था, वह पपी को ले जाकर एक बडे बैग में या बस्ते के भीतर डालकर। छोड देता किसी दूर के दूसरे गांव में। उसके बाद क्या?

पपी को अपना हाथ से मारने से भला इसी बहाने इस काम को निपटाया जा सकता है। केवल उसको घर से निकाल देने से कार्य सफल होगा, ऐसा नहीं लग रहा था।

संभावना नंबर 1 - पपी को साइकिल से छोड देने पर हो सकता है पपी उसका अनुसरण करने लगे। कौतुहल वश वह उसके पीछे दौड़ने लगे। उसकी साइकिल पपी की गतिशीलता को रोक नही पाएगी।

संभावना नंबर 2 - पपी को वह जंजीर से बांधकर रख देगा किसी अपरिचित गांव के अज्ञात स्थान पर उसको लौटता देख पपी अस्त-व्यस्त होकर अपने को आजाद कराना चाहेगा। प्रतिवाद और आतुरतावश वह मुक्ति के लिए चेष्टा करेगा, मगर हर समय मुक्ति नहीं मिल पाएगी, तब वह आर्तनाद करने लगेगा। यदि आस- पास कोई गली का कुत्ता होगा, तब वह उसकी चपेट में आ जाएगा। तडप-तडप कर मरेगा। इससे तो गोली मारना ठीक रहेगा। बंदूक का ट्रिगर दबाना या बम फेंकना अच्छा है। हिंसा सचमुच एक अंधी प्रवृति है। अच्छी तरह विचार करके उसने यह ऊपाय अस्वीकार किया। कोई भी युक्ति काम नहीं आ रही थी। अपने हाथ से मारना ही ठीक रहेगा। विमल अपने आप से कहने लगा- “नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता। लाड-प्यार से बडे किए पपी को ऐसे कहीं फेंक देना संभव नहीं है आदि।“

कैसे क्या किया जाए, अभी तक निर्दिष्ट नहीं हुआ था। किंतु निर्धारित हुआ था पपी को कैसे भी करके मारना होगा। यह बात पहली बार सोचकर विमल सिहर उठा था। फिर बेधड़क सो रहे पपी के पास जाकर सोचने लगा, बरामदे में यह जीव फिर कैसे दिखेगा। घर की परिपाटी का क्या होगा। उसका और गीता का उसके प्रति खूब प्रेम।

विमल पपी के पास गया। उसके सिर पर हाथ घुमाते ही वह जाग गया। उसके आगे बैठ गया और विमल का लाड-प्यार पाने के लिए दुम हिलाने लगा। थोडा सहमा हुआ चेहरा, झूलते हुए कान, गहरे सफेद रेशमी बाल। आज ही उसको नहलाया है। शैंपू से उसके बाल साफ किए गए हैं। गहरी काली आंखों से उसने विमल की ओर देखा। उसकी गर्दन और गाल पर जीभ निकाल कर चाटने लगा। फिर हाथ चाटने लगा। अस्थिर होकर सामने के दोनो पैर आगे बढाकर उसके कंधे पर रख लिए। वह कैसे जानेगा कि जिन हाथों को वह श्रद्धापूर्वक प्यार कर रहा है, वे ही हाथ उसे मारने का ऊपाय खोज रहे हैं? विमल खडा हो गया। हमेशा की तरह पपी पिछले पांवों पर खडा हो गया शायद विमल का प्यार पाने के लिए।

इसको मारना संभव नहीं है। कभी भी नहीं है। विमल जाली के दरवाजे के पास खडा रहा। फिर से लौटा अपनी पुरानी समस्या की ओर - किस तरह से पपी की हत्या की जाए या निरीहता और स्वच्छ विश्वसता की?

अगर उसके पास बंदूक होती, तो अभी तक उसकी उपायहीन निष्क्रियता समाप्त हो गई होती? क्या पता? केवल एक अस्पष्ट और स्थितिविहीन चित्र क्षण भर के लिए उसके मन में उभरकर समाप्त हो गया।

वह चित्र इस प्रकार का था - पपी ने खाना खा लिया? विमल ने प्रश्न किया रोती हुई गीता को। गीता के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। वह रो-रोकर पत्थर बन गई। फिर बीच में वह कहती पपी को मारना मत, पपी को मारने जैसे आदमी तुम नहीं हो।

विमल निरासक्त भाव से यांत्रिक स्वर में कहने लगा - कहा था न भौंकने वाले जीव को मारना एक जघन्य अपराध है। इस पाप के लिए प्रायश्चित करना पडेगा। समझ रही हो? फर्क उतना है, अगर मेरे अंदर राक्षसी निष्करुणता होती तो ध्वंस और हत्या को इंजाम दे सकता। मगर पपी को मैं मारुंगा। उसको मारने से ही इस असुरक्षित और आसुरी तांडवग्रस्त अंचल से हम लोग बच पाएंगे।

विमल चेन पकडकर बाड़ी के भीतर चला गला। अनेक पेड़ों से भरी इस बाड़ी में उसने खोजा मनपसंद एक पेड। दुम हिलाते अस्थिर आनंद विभोर पपी को वहां बांधकर वह लौटा। इतनी अस्थिरता के साथ कितनी बार भौं भौं की आवाज। उसके बाद जैसे सारी आत्मीयता और प्रेम को दबाकर कुछ दूर से बंदूक लेकर आया विमल। पपी शायद स्तम्भित और निर्बोध हो गया था। विमल के आचरण को नहीं समझने वाले पपी को लग रहा था शायद यह जो कुछ लेकर खड़ा है उस आदमी को वास्तव में वह नहीं जान रहा है। उसके साथ में विचरण करता था आदर पाता था, मगर एक छुपी हुई चीज उसे केवल विस्मय और अविश्वास लग रहा थी। थोडी दूर खड़े हुए स्थिर पपी ने आखिरकर निश्चित रुप से गोली चलने के आगे आत्मसमर्पण कर दिया। लोहे की जंजीर नामक भाग्य से कब किसको मुक्ति मिली है।

एक चिल्लाहट और उसके बाद दूर में खून से लथपथ एक छोटी-सी तडपती लाश। जीवन और मृत्यु। एक धोखेबाज निश्वास का तारतम्य। यह बात विमल को बचपन से ही पता थी। मगर आज जैसे परिव्याप्त वातावरण, इसी परिप्रेक्ष में वह सोच रहा था, एक प्रतिज्ञाबद्ध गोली ही जीवन और मृत्यु के बीच में रह गई है।

उस समय विमल थककर चकनाचूर हो गया था बल्कि पपी को मारने की रुपरेखा बनाने में बेचैन हो गया था। पास में गीता नहीं थी। शायद इसी वजह से मर्डर करने जैसा सांघातिक काम पुरुषों का। वह केवल पपी को ही नहीं वरन सारे जीवधारियों को खत्म करने के लिए। इस तरह के काम में नारी का सामर्थ्य कहां?

फिर भी विमल बरामदे से उठकर आ गया। खाट के ऊपर दुखी और रोती हुई गीता। उसने एक नजर विमल की ओर देखा। चरम असंतोष और क्षोभ से उसने मुंह घुमा लिया। इस तरह के आचरण का कारण वह नहीं समझ पाया। शायद वह सोच रही थी कि सभी की सुरक्षा की जिम्मेदारी विमल की है।यदि पपी मरता है, तो उसका कारण विमल की असामर्थ्य और मूर्खता है। विमल का मन और खराब हो गया। “क्या सोच रही हो? इस तरह बैठकर? समस्त प्रक्रिया में अपने को प्रत्याहार कर लिया था इस निरर्थक मनुष्य ने? पपी मरेगा? इस तरह विमल को आरोप करने का मतलब कुछ जरुर है?

“तुम एक काम करो।” अपने आप को हौसला देने लगा विमल।

गीता ने बीच में विमल की ओर देखा और उसकी तरफ पीठ करके बैठ गई और मुंह को कपडे से ढक लिया।

“खाना बना ली हो? ” विमल ने असहयोगी गीता को पूछा।

“जिसको भी भूख लगेगी, वे ही चूल्हे पर हांडी बैठाएंगे।” गीता के आंसुओं से भीगे स्वर में न केवल अवज्ञा थी बल्कि निर्दयता भी थी। उसका दूसरा वाक्य था- “मुझे नहीं खाना है किसको खाना है? पपी के जाने के बाद मैं भी चली जाऊँगी।”

विमल गीता के चेहरे को नहीं देख पा रहा था। बंद दरवाजे के पास खडे हुए विमल का खून गरम हो गया। एक ही क्षण में उसका शरीर झनझना गया। एक ही थप्पड़ में वह ठीक हो जाएगी। इतने वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद गीता युद्ध की घोषणा कर रही है। यह पहली बार होने की वजह से विमल भीतर क्रोध से कांप उठा, जैसे कभी भी क्रोध को वह जानता तक नहीं था। उसको गृहणी कहा जाता है? किसी भी प्रकार का घर पर संकट आने से, उसे नजर अंदाज कर केवल उसके ऊपर छोड़ दिया जाता है ये सारा दायित्व?

अपने आप को काबू में किया विमल ने। गीता के पास गया। गीता को दूसरी तरफ मुंह घुमाते देख विमल कहने लगा- “ऐसी परिस्थिति में तुम्हारा ऐसा व्यवहार मुझे पसंद नहीं है। मेरी वजह से तो ऐसी परिस्थिति नहीं बनी है। इसका मुकाबला करने की बजाय तुम्हारा मुझ पर क्रोध करना उचित नहीं है।”

“मैं किसी के ऊपर क्यों गुस्सा होऊंगी? ” गीता ने बड़े दुख भरे स्वर में कहा, जिसने विमल को प्रभावित किया। गीता की बात पूरी भी नहीं हुई थी- “इतने लंबे जीवन में कुछ भी नहीं मिला। जिस जीव को लेकर सुख मिलेगा, सोचा था, उसी जीव को हाथ से छुडा लिया जाएगा। इतना घटिया जीवन ! कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। थोडा बहुत पखाल था। उसमें कुछ दूध मिलाकर पपी को सुबह दिया था। और थोडा-बहुत होगा। जो करना है कर लो। मुझे और भूख नहीं है।”

पपी को मारने की बात से दुखी गीता इतनी असजगता, असंगत और शोकमग्न दिख रही थी जिसकी विमल ने कल्पना तक नहीं की थी। अकेला विमल अब क्या करेगा। पपी को मारने की समस्या गंभीर और जटिल होती जा रही थी। इस समस्या की तुलना में तुच्छ हो गई थी विमल की जन्म-मृत्यु, रोग-आरोग्य से संबंधित समस्त अभिज्ञता। पशु चिकित्सा केन्द्र में इतने साल नौकरी करने के बाद उसने सोचा, वास्तव में उसे कुछ भी नहीं मालूम है।

तुम कुत्ते को जल्दी मारो। इस अमानुषिक निर्देश को वह झुठला नहीं पा रहा था, भले ही वह जान रहा था कि यह भी एक प्रकार की आत्महत्या है। आततायी लोग आएंगे। निर्विकार भाव से गोली चलाएंगे उसके ऊपर, गीता और पपी के ऊपर। नहीं, रास्ते में खींचकर ले जाकर गला काट देंगे।

नहीं मानने से तो नहीं होगा, नहीं तो पपी को मारने के ऊपाय खोजने पडेंगे?

विमल पूछने लगा- “खाने में जहर मिलाकर दे दें। हमारे पास ऐसा जहर है। तुम क्या कह रही हो? ऐसा करेंगे?

विमल गीता का समर्थन लेना क्यों चाहता है, उसका कारण वह खुद भी नहीं समझ पा रहा था। हो सकता है वह अपने को समझाना चाह रहा था, दोनों ने मिलकर इस हत्याकांड को अंजाम दिया है। दीवार की तरफ मुंह करके सोई हुई गीता का शरीर और कांपने लगा। उसने कुछ भी उत्तर नहीं दिया।

अकेले विमल कैसे देख पाएगा, मरने से पहले पपी की छटपटाहट -, यदि वह विष मिला भात खायेगा, विमल के ऊपर भरोसा रखकर?

यह दृश्य ऊभर कर आया विमल के आगे। सारी असहायता और यंत्रणा समझ गया।

“हम और एक काम करेंगे।” विमल ने कहा। वह खुद समझ गया जिसे वह कर रहा था। उसको सुनने के लिए कोई राजी नहीं हो रहा था। फिर भी उसने कहना जारी रखा - “तुम्हें रात में अच्छी नींद नहीं आती है इसके लिए कुछ ट्रांकलाइजर दिए थे, वे सब कहां रखे हैं। अलमारी में? उनमें से दो-चार मिला देते हैं उसके खाने में। पपी सो जाएगा। ऐसा सो जाएगा कि फिर उठने का भी मन नहीं करेगा।”

बहुत समय के बाद उत्साहित दिख रहा था विमल। यही सबसे बढ़िया ऊपाय है। पीड़ा से छटपटाना भी नहीं पडेगा। वह गहरी नींद में सो जाएगा। पता भी नहीं चलेगा जो बाद में और उठ नहीं पाएगा।

इसके दस-पन्द्रह मिनट के बाद मिट्टी खोदने के शब्द। निस्तब्ध वातावरण में धीरे-धीरे यह आवाज सुनाई देने लगी। मिट्टी को लगातार खोदा जा रहा था। खोदने की आवाज के साथ-साथ आदमी के हांफने के शब्द भी साफ-साफ सुनाई दे रहे थे।

और खाट पर पडे रहना उसके लिए संभव नहीं था। माजरा क्या है, जानने के लिए गीता उठी। एकदम सतर्क होकर।

थोडी दूर में घर के पिछवाड़े में हाथ में कुदाल लिए पीठ करके विमल खडा है। उसने अपनी लुंगी घुटनों तक चढ़ा रखी है। उसकी शिथिल मांसपेशियां पसीने से चमक रही है। पूरी ताकत और प्रतिज्ञा के साथ वह कुदाल ऊपर को किए हुए खड़ा है। उसके बाद वहां से मिट्टी को हटा रहा है।

दुखी गीता के शरीर में चिल्लाने की शक्ति नहीं थी। उसके शरीर के सारे अंग ढीले पड गए। पपी के लिए कब्र खोदी जा रही है। वह भीतर ही भीतर आर्तनाद करने लगी।

वह तेजी से बरामदे में गई। हमेशा की तरह पपी ने सिर हिलाया, पूंछ हिलाई। यह देखकर सारा शरीर खुशी से झूम उठा।

“आ पास आ, मुझे प्यार से चाट ” गीता फिर सोने के लिए घर के भीतर आ गई। अलमारी खोली। पहले की तरह नींद की सारी गोलियाँ रखी हुई थी।

यह देख उसका दिमाग चकरा गया। बरामदे में खडी हो गई। विमल की दृष्टि दोनो हथेलियों से पसीना पोंछते हुए चारों तरफ देखते समय गीता की तरफ गई। कहने लगा - “देख रही हो, इतना बड़ा गड्ढा पपी के लिए ठीक नहीं रहेगा।”